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'मरने वाली मुस्लिम थी?'
'नहीं सर। वह हिन्‍दू थी। आशा क्‍वात्रा। उम्र २६ साल।'
'हैंग लूज़। परवाह न करो।' अँग्रेज़ी भाषा और अमरीकन स्‍लैंग का बॉस को चस्‍का है, तिस पर उनकी ख़ूबी यह है, वे स्‍लैंग उच्‍चरित करते ही उसकी हिन्‍दी भी साथ ही जोड़ देते हैं। मुझ जैसे 'देसी' जन की सुविधा के लिए।

'येस सर,' मेरी आवाज़ में सलामी है। अपनी रणनीति के निश्‍चय-अनिश्‍चय के बीच मैं व्‍यवहार-कुशलता की ओट में जा खड़ा होता हूँ, 'लेकिन सर, मृतका के पिता मेरे दफ़्तर में बैठे हैं और एक एफ.आई.आर. दर्ज करवाना चाहते हैं। उनके दु:साहस पर मैं स्‍वयं बहुत हैरान हूँ, सर। उनके आरोप की असम्‍भावना ...'
'हैंग आउट। भेद खोल दो', वे धैर्य खो रहे हैं।
'वे आपको अपनी बेटी की मृत्‍यु का कारण ठहरा रहे हैं, सर ..'
'होल्‍ड एवरीथिंग। प्रतीक्षा करो। मैं पहुँच रहा हूँ ...'
'येस, सर ...'

विभाग में बॉस की अच्‍छी धाक है। बावजूद इसके कि वे सप्‍ताह में तीन दिन राजधानी में बिताते हैं और बाक़ी चार दिन की लगभग प्रत्‍येक सन्‍ध्‍या देर रात की पार्टीबाज़ी में। उनके ससुर प्रदेश पुलिस के एक महकमे में डायरेक्‍टर जनरल हैं और सभी जानते हैं यह सीढ़ी उन्‍हें बहुत ऊपर ले जाने वाली है। बॉस को मैं नहीं बताता मृतका के पिता अपने रूसी वुल्‍फ़हाउंड के लापता होने की एफ.आई.आर. में भी बॉस को नामजद करना चाहते हैं : 'बुर्के वाली जिस टहलनी की आपको तलाश है वह और कोई नहीं, आपका यह एस.पी. है क्‍योंकि हमारे उस बौलज़ौए से भी उस दुष्‍ट ने हेल-मेल कर रखा था।'

असल में मृतका के पड़ोसियों द्वारा वारदात की सूचना मिलने पर जब मैं अपने दल के साथ वहाँ पहुँचा था तो उन्‍हीं में से कुछ लोग बारम्‍बार एक ही बात दोहराए जा रहे थे, दोपहर में उन्‍होंने मृतका के कुत्‍ते को बुर्के वाली उसी टहलिन के साथ मकान से बाहर निकलते हुए देखा था जिसे वे अकसर उस कुत्‍ते के साथ आते-जाते हुए देखा करते। वह तो जब शाम होते-होते मृतका के मकान से उठ रहे धुएँ का आयाम अप्रत्‍याशित रूप ग्रहण करने लगा था और मकान के दरवाज़े की घंटी बजाने पर, जवाब में, दूसरे दिनों की तरह न तो उन्‍हें कुत्‍ते की भौंक सुनाई दी थी और न ही अन्‍दर से मृतका की कोई आहट, तभी उन्‍हें ध्‍यान आया रहा, बुर्के वाली टहलिन मृतका के कुत्‍ते के साथ नवाब टोले पर लौटी ही न थी। तिस पर जब दरवाज़ा देर तक घंटी बजाने पर भी खोला नहीं गया तो उन्‍हें फायर ब्रिगेड और पुलिस बुलाने की ज़रूरत महसूस हुई रही। और जब तक हम पहुँचे, लड़की मर चुकी थी। अस्‍पताल ले जाए जाने पर डॉक्‍टर बोले थे : 'ब्रौट डेड।'

अपने बाथरूम के एकान्‍त से मैं अपनी मेज़ पर लौट आता हूँ।
एफ.आई.आर. का रजिस्‍टर खोलता हूँ, उसकी पेंसिल अपने हाथ में लेता हूँ और अपने सामने वाली कुर्सी पर बैठे हुए मृतका के पिता, चन्‍द्रमोहन क्‍वात्रा से पूछता हूँ, 'आपकी बेटी हमारे एस.पी. साहब को कब से जानती थी?'
बॉस के आने तक मुझे उन्‍हें बातों में उलझाये रखना है। बिना कुछ दर्ज किये।
'मेरे लिए यह अत्‍यन्‍त लज्‍जा का विषय है और मैंने उससे नाता भी तोड़ रखा था किन्‍तु उसकी मृत्‍यु ने मुझे फिर उससे ला जोड़ा है .. '
तना हुआ उनका चेहरा एकदम ढीला पड़ जाता है। उठी हुई ठुड्डी नीचे गरदन पर गिर जाती है और वे फूट-फूट कर रोने लगते हैं : बीच-बीच में अपने विलाप-भरे वाक्‍य जोड़ते हुए : 'वह सब से ज्‍़यादा मेधावी थी.. ' सबसे ज्‍़यादा ख़ूबसूरत... 'कुल जमा तेइस वर्ष की आयु में उसने इतने बड़े स्‍पोर्टस कॉलेज में अध्‍यापिकी पा ली थी... वार्डनशिप पा ली थी ... '
'वार्डनशिप?' मैं चौंकता हूँ, 'लेकिन आपकी बेटी तो हमारे चौक क्षेत्र के इस नवाब टोले में पिछले साल ही से एक किराये के मकान में रह रही थी...' स्‍पोर्टस कॉलेज दूसरे थाना क्षेत्र में पड़ता है।

'हमारा दुर्भाग्‍य। जो वह वार्डनशिप उसके हाथ से निकल गयी ...' उनका कोप उनके चेहरे पर लौट रहा है, शोकाकुलता को मिटाता हुआ ...
'कैसे?' मैं पूछता हूँ। 'डेढ़ वर्ष पहले स्‍पोर्टस कॉलेज के उस गर्ल्‍ज हॉस्‍टल में एक छात्रा की आकस्मिक प्रसूति के कारण हुई मृत्‍यु पर भयंकर बखेड़ा खड़ा हो गया था। आशा की जवाबदेही शंका के घेरे में आ गयी थी। तिस पर पुलिस के हस्‍तक्षेप ने मामला और पेचीदा बना दिया था। जभी तो इस दुष्‍ट एस.पी. से मेरी अभागी बेटी की भेंट हुई थी ..'
'आपके परिवार में और कौन-कौन है?'
'मेरी पत्‍नी है। दो बेटियाँ हैं।'
'वे क्‍या करती हैं?' 'मेरी पत्‍नी एक स्‍कूल में गेम्‍स टीचर है। बड़ी बेटी लखनऊ के एक बी.पी.एस. सेंट्रल स्‍कूल में स्‍पोर्टस टीचर। आशा हमारी मंझली थी', एक पल के लिए उनका गला भर आया है किन्‍तु अगले ही पल वे अपने को सँभाल जाते हैं।
'एक ही परिवार में इतने स्‍पोर्टस परसनज़!' अपना परिचय देते समय वे मुझे बता चुके हैं कि वे स्‍वयं उधर अपने कस्‍बापुर के फि़जि़कल ट्रेनिंग कॉलेज में अध्‍यापक हैं,
'एक ही परिवार में इतने अध्‍यापक!'

प्रभावित होने का भाव मैं अपने चेहरे पर ले आता हूँ। शायद मैं उनसे प्रभावित हो भी रहा हूँ। उनकी आयु पचपन और अट्ठावन के बीच कुछ भी हो सकती है। किन्‍तु उनकी देह का गठन अभी भी ख़ूब कसरती है, बलिष्‍ठ है। उनके दिखाव-बनाव में कहीं विपुलता नहीं, कहीं अप्राकृतिकता नहीं। आधे से अधिक सफ़ेद हो चुके अपने बालों पर उन्‍होंने किसी खिजाब की परत नहीं डाल रखी। पुरानी काट का वे एक साधारण सफारी सूट पहने हैं। उनके चश्‍मे का फ्रेम भी पुराना है। किन्‍तु प्रियदर्शी उनके चेहरे पर एक उज्‍ज्‍वलता है, एक गरिमा है। यह अनुमान लगाना कठिन नहीं, उनका अनुशासन स्‍वगृहीत एवं स्‍वत: पूर्ण है। जभी वे दूसरों से भी उसकी अपेक्षा रखते हैं।

'लेकिन सभी ठगे गये। दो बार ठगे गये। पहली बार जब उस दुष्‍ट के विहार को हम आँखे मूँद कर प्रेम समझ बैठे और हमारे आँखे तब खुलीं जब हमने उसकी विवाह की फोटो समाचार पत्रों में छपे देखे। और दूसरी बार जब आशा के डिप्रेशन के उपचार के अन्‍तर्गत उसके डॉक्‍टर ने हमें बेगाने इस शहर में उसकी स्‍पोर्टस कॉलेज वाली नौकरी नहीं छुड़वाने दी। यह तर्क देकर कि आशा को यह नौकरी व्‍यस्‍त रखेगी और रही उस दुष्‍ट की बात तो वह अपने ससुर के भय से स्‍वयं ही आशा से दूरी बनाये रखेगा। और जब तक हमने जाना दुष्‍ट ने आशा पर अपने पूर्वाधिकार का लाभ उठा कर उसे पुन: वशीभूत कर लिया है, मूर्खा औचित्‍य-अनौचित्‍य की सीमा लाँघ चुकी थी ...'
'और आपने उन्‍हें अपने स्‍नेह से वंचित कर दिया? नवाब टोला के उनके पड़ोसी बता रहे थे वे उन्‍हें हमेशा अकेली ही दिखाई दिया करती थी। बुर्केवाली उस टहलिन के अतिरिक्‍त उनके मकान में किसी का भी आवागमन नहीं था...'
'हम उससे रूठे रहे, अड़े रहे कि हमें मनाना चाहती है तो उस दुष्‍ट को छोड़ आओ। फिर उसकी रखवाली के लिए बौरज़ो तो रखा ही था ...'
'उनके पड़ोसी बता रहे थे वह कुत्‍ता कम और भेडि़या ज्‍़यादा मालूम देता था ...'

'असली नसल का बौरज़ो था। मेरी सास उसकी तीनों पीढ़ी के सायर और डैम ब्रीडरर्ज़ को जानती थीं। संयोगवश यह बौरज़ो जभी पैदा हुआ था जिन दिनों आशा अपने डिप्रेशन के उपचार हेतु हमारे पास कस्‍बापुर में थी और घर ही पर रहती थी। ऐसे में नन्‍हें बौरज़ो की देखभाल उसी के जिम्‍मे ज्‍़यादा रही और बौरज़ो भी उसी के संकेत पर सर्वाधिक फुर्ती और उछाल ग्रहण करता था। फिर जब आशा इधर अपनी ड्यूटी पर लौटी तो हमने वह रखवाल दूत उसके संग इधर भेज दिया। और भेद की एक बात बताऊँ?'

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