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कहानियाँ

मकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से प्रवीणा जोशी की कहानी— नया सवेरा


वैन के अन्दर सभी खामोश थे उसकी तरह और वह बाहर देख रही थी इस शहर को, कितना कुछ बदल गया था, बस उसे छोड़ कर। दौड़ती सड़के, बोलते वाहन और गगनचुंबी इमारतें, विहंगम दृश्य! सड़कों पर हर ओर रंगीन झंडियाँ लगी हुई, शोर शराबा, संगीत, सजी हुई दूकानें... उसके भीतर जितनी शांति जितना अकेलापन जितनी स्थिरता थी वैन के बाहर की दुनिया उससे बिलकुल अलग थी। शोरगुल उत्सव और हंगामे की दुनिया, एक ऐसी दुनिया जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी, एक ऐसा संसार जो बहुत दूर कहीं पीछे छूट गया था।
"आज नया साल है।" साथ बैठी महिला पुलिस ने बताया।
नया साल! बरसों से यह दिन उसके जीवन में नहीं आया था। इतने लोग एक साथ उसने पहले देखे ही नहीं थे उसने तो कभी अपने आस–पास भी ध्यान से नहीं देखा था। शायद सूर्य देवता का कमाल था जिसकी चमक से ना दिखने वाले लोग भी उसे दिखाई दे रहे थे या उस ओर से आती ठंडी हवा ने उसमें प्राण फूँकने शुरू कर दिए थे। सड़क किनारे चलते बच्चों और महिलाओं का झुण्ड देख कर लगा जैसे उसे भी अपने साथ शामिल होने को बुला रहा हो।

एक बड़े भवन के आगे वैन को रोक कर वे लोग अन्दर गए। प्रवेश मार्ग से मुख्य भवन तक सुन्दर सड़क और सड़क किनारे बड़े हरियाले पेड़ और उनमें से आती ठंडी बयार ने उसकी चेतनता को जैसे और जागृत किया हो।

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