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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में प्रस्तुत है
भारत से डॉ. लक्ष्मी शर्मा की कहानी- मोनालिसा की सोहबत


“अरेssss, मोनालिसा तुम...? तुम सचमुच तुम ही हो ना, द वर्ल्ड फेमस मोनालिसा?” और सामने खड़ी मोनालिसा ने आगे बढ़ कर अम्बर को यूँ सम्भाल लिया जैसे अम्बर के उड़ते होश सम्भाल रही है। “सच में तुम आई हो? मुझ से मिलने? लेकिन तुम मुझे जानती कैसे हो, और यहाँ कैसे आ गई, तुम तो फ़्रांस के लुव्ह्र म्यूजियम में हो न?”

“अम्बर, तुम पहले डॉक्टर को फोन करो, फिर मैं सब बताती हूँ ना।” मोनालिसा की उदास आँखें व्यस्त और सम्बद्ध हैं। “लेकिन तुम मुझे ये सब क्यों कह रही हो, मेरा तो तुमसे कोई परिचय भी नहीं। और तुम, एक फेमस पेंटिंग केरेक्टर मेरे पास आई हो, इट्स अमेजिंग। मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि ये सपना है या सच। और मजेदार बात तो ये है कि न मुझे तुम्हारी कभी याद आती है न आज आई। फिर तुम... ?

“पहले फोन करो फिर सब बताती हूँ।” मोनालिसा की आँखों से फूटती उदासी से उस नीम अँधेरे कमरे का अँधेरा ज्यादा गहराता जा रहा है। लेकिन अम्बर को फिर भी सब कुछ साफ़ दिखाई दे रहा है। जैतूनी हरी दीवारों वाले कमरे में लटकी भारतीय संथाल-सुन्दरी की अर्धावृत देह वाली ऑयल पेंटिंग, दूसरी दीवार पर टँगा टीवी, लकड़ी के फर्श पर पसरा जाफरीदार छोटे कक्ष जैसा एक विशालकाय पारम्परिक चीनी पलंग जिस पर ताम्बे-पीतल के अजदहे लिपटे हैं और जिसे पहली बार देख के अम्बर मुग्ध हो गया था। पलंग के सामने की शीश-भित्तिका से दीखता तेरहवें माले का स्विमिंग पूल, बगल की आबनूसी टेबल पर रखी उसकी घड़ी, मोबाइल और दूसरे छुटपुट सामान, पलंग के नीचे बिखरी उसकी कोल्हापुरी चप्पलें... सब कुछ।

“सुनो मोनालिसा, बुरा न मानो तो एक बात कहूँ। प्रॉमिस, बुरा तो नहीं मानोगी न?” अम्बर बगैर सुने बोलता चला जा रहा है।
“अम्बर... फोन करो।” मोनालिसा की आँखों की तरह ही उसकी आवाज है, सूनी और बेदम सी। महीन लेकिन मरियल... जैसे किसी मातमी धुन पर बजती शहनाई।

“सच कहूँ तो मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि तुम में ऐसा क्या है जो लोग तुम्हे देखने को ऐसे उत्सुक रहते हैं।” अम्बर टहलते-टहलते थक कर आरामकुर्सी पर ढह गया। “मुझे तो तुम बड़ी ओवररेटेड सी लगती हो। तुम्हारी ये बेजान मरी-मरी सी सूनी आँखें कितनी डिप्रेसिव हैं, बाप रे। पेंटिंग बनवाते समय तुम जरा सा काजल नहीं डाल सकती थी इनमें?” इस बार मोनालिसा हँस पड़ी, वही जगत प्रसिद्ध हँसी, जिस पर न जाने कितने लोग दीवाने हो चुके हैं और जिस के भेद का आज तक कोई आर-पार नहीं पा सका है।

“और तुम्हारी ये हँसी, हाउ बोरिंग,” सुन कर मोनालिसा फिर धीरे से हँस पड़ी। वही अकृत्रिम तिर्यक और बंद मुट्ठी सी बंद हँसी। अम्बर की बेचैनी और छटपटाहट ज्यादा बढ़ गई, उसकी मुंदती आँखों में कुढन की बुकनी सी पड़ने लगी है। “सुनो, तुम अपना पोट्रेट बनवाने बैठी थी तब पति से झगड़ के आई थी क्या, ऐसा नहीं लगता है जैसे किसी ने सिर पर पिस्तौल रख के बैठने को कहा हो?” अम्बर बेलगाम बक रहा है पर मोनालिसा उसी अकम्प ठसक से खड़ी है, एक आत्म-सम्पन्न गुमानी के गुमान से भरी।

“तुम डॉक्टर को फोन तो करो।” मोनालिसा की मरी सी आवाज में वही आत्म सम्पन्नता है। गुस्से ओर चिड़चिड़ाहट से अम्बर की जीभ लड़खड़ा रही है, अब फर्श और छत दोनों गोल घूमने लगे हैं। “सुनो लोग कहते हैं तुम्हारी हँसी और बैठने के तेवर में एक सम्पूर्ण स्त्री का बिम्ब है, तुम्हारा रहस्यमय चेहरा तुम्हें आकर्षी बनाता है, और भी जाने क्या-क्या... लेकिन मुझे तो तुम कतई आकर्षक नहीं लगती। मैं झूठ नहीं बोल सकता मोनालिसा, और सच ये है कि तुम मुझे एक बहुत सामान्य सी औरत लगती हो जिसे जाने किस बात का अहंकार है।” बेचैनी में कुर्सी से उठ कर पलंग पर ढह गया अम्बर अब लगभग बेहोश है। मोनालिसा ने खुद ही फोन उठा कर नम्बर मिला दिया है और अम्बर के हाथ में पकड़ा दिया है।

“लिसन ओवर रेटेड लेडी, मुझे तुम कतई पसंद नहीं, और चाहे सारी दुनिया करती रहे पर मैं तुम से प्रेम नहीं कर सकता... हेलो रिसेप्शन, इट्स रूम नं थ्री जीरो डबल वन, आई नीड क्विक मेडिकल हेल्प प्लीज।” और अचेत अम्बर के हाथ से फोन छूट कर गिर गया, लेकिन मोनालिसा उसकी दहकती कलाई को अपने कृश हाथों की छोटी-छोटी मुट्ठियों में कसे वहीं खड़ी रही। उसके गाउन के बाएँ कंधे का झूलता पल्लू बाँह के पीछे से आ कर अम्बर के भाल को ऐसे छू रहा है जैसे वो बरफ की पट्टी बन के बुखार उतारने आया हो। उसकी अर्धमीलित आँखों से उदासी भरी मुस्कान अम्बर के गात पर ऐसे बरस रही है जैसे मोलश्री के फूल बरस रहे हों।

डोरबेल चार बार बज चुकी लेकिन मोनालिसा ने अम्बर का हाथ नहीं छोड़ा। और अब इमरजेंसी चाबी से दरवाजा खुल गया है। “हे भगवान, ये तो बुरी तरह तप रहा है।” आगन्तुक डॉक्टर ने अम्बर का माथा छूने को हाथ बढ़ाया तो मोनालिसा ने धीरे से अपना हाथ और आँचल दोनों खींच लिए। अब वो शीशे की दीवार से बाहर निकल गई। “जल्दी एम्बुलेंस बुलाओ, इसकी नब्ज डूब रही हैं, ये मर रहा है।” अम्बर के कानों में चीनी डॉक्टर की घबराई हुई आवाज आई और वो बेहोशी में भी डर गया।

“माँ... मैं पराए देश में अनजानों के हाथों नहीं मरना चाहता। मैं आपके और डैडी के पास मरना चाहता हूँ, प्लीज मुझे एक बार अपने पास बुला लो माँ... आई लव यू माँ, लव यू पापा।” अंबर बुदबुदाया जो वहाँ किसी ने नहीं समझा। फिर बजते सायरन, भागते स्ट्रेचर, घोंपी जाती सुइयों ओर खींचे जाते खून के बीच कितनी बार उसे माँ-पापा याद आए...

पुरानी बस्ती की सघन गलियों में बसी बड़ी सी हवेली के चौक में खेलता अम्बर, सर्दियों की दोपहर में तिल के तेल से मालिश करके अपने गुनगुने प्रेम में नहलाती गरम रजाई सी माँ, गर्मियों में छिडकाव की हुई छत पर बिछी चांदनी पर लेट के दुलार की ठंडी फुहार करते खस की पाटी जैसे पापा... नीम बेहोशी में उसने कितनी-कितनी बार पुकारा दोनों को।

“भले आदमी, तुम तो चल ही दिए थे, शुक्र करो डॉक्टर पोई चेन का जो तुम्हे मौत के मुँह से खींच लाई।” चेत होते ही अम्बर का सामना बूढ़े अटेंडेंट की मुस्कान के साथ तन्वंगी, बालिका जैसी कदकाठी की डॉक्टर पोई चेन से हुआ। चेकअप करके और शुभकामनाएँ दे कर वो कर पीली रंगत और खुली मुस्कान वाली डॉक्टर तो चली गई पर अपनी सुघड़ सुराहीदार गरदन के उजले मोतियों की माला के साथ हिमा को अम्बर के पास छोड़ गई।
“गिर गए न मिस्टर टच मी नॉट, कितनी बार कहा था कि मेरे बिना अकेले नहीं रह पाओगे, अब भुगतो बच्चू।”

“कहाँ जानेमन, तुम गिरने भी तो नहीं देती। काश एक बार गिर ही जाने देती। बोल गिर जाऊं? तेरी इन काली जुल्फों के नीचे ये जो तेरी सुराहीदार गरदन है न, बस इससे चिपका पड़ा रहूँगा। तेरी इस मोतियों की माला में उलझा रहूँगा। हिमा यार, चल न... भाग चल मेरे साथ।” अम्बर को हिमा से बेतरह इश्क है। “साली, तू मेरे साथ यहाँ आ जाती तो क्या बिगड़ जाता तेरा। शादी ही तो करनी थी न तुझे, वो भी कर लेते।

“सच! शादी करेगा मुझसे? ये सब छोड़-छाड़ के मेरे साथ चलने और केवल मेरे साथ रहने की शर्त निभा पाएगा? माँ-पापा से दूर रह पाएगा? हिमा की तनिक भारी आवाज की चुनौती अम्बर के जूनून की आग में कपूर सी धधक उठी। “कर लूँगा हिमा, सब कर लूँगा। समझा लूँगा सब को... और नहीं समझे तब भी सब को भूलभाल के अब मैं बस अपने इश्क को जीना चाहता हूँ। हम दुनिया के किसी अनजान किनारे पर जा के रह लेंगे, तुम एक बार हाँ तो कहो मेरी जान।” अम्बर को हिमा से बेतहाशा इश्क है। और हिमा... उसकी आँख का पलाश अम्बर के नाम से खिलता है, हिमा की रात का सुरमा अम्बर के नाम से घुलने लगता है और हिमा की दुपहरियों का सूरज अम्बर की गोद में सुस्ताता है।
हिमा चुप है लेकिन उस की लम्बी घनी बरोनियों ने अम्बर के ओठों का बोसा लिया, इतना कस के कि अम्बर के पपड़ाए ओंठ नरमा गए। दोनों के बीच जागी रातों का साँवलापन अम्बर के ओठों पर है, और एक-दूसरे की बाँहों में सोती दुपहरियों के उजाले हिमा की आँखों में।

“हिमा... मुझे सच में इश्क है यार तुझसे” अम्बर के खयाल और आवाज दोनों बहकने लगे हैं। “मुझे अपने साथ ले चल ना जानिया, हम सब से अलग अपनी दुनिया में रहेंगे। केवल मैं और तुम”
“तू चल, मैं बस तेरे पीछे-पीछे आई।” हिमा की खुली हँसी से उसकी गरदन की सुराही पर अटकी मोतियों की बूँदें झिलमिला उठी।

“सुनो, दवा ले लो और बैग पैक करो। चार बजे तुम्हारी शंघाई की ट्रेन है” अचानक से सिर पर आ खड़ी हुई मोनालिसा अम्बर को कड़वी जहर लगी। “ओके, बट प्लीज गो।” और अम्बर हैरान है कि मोनालिसा चुपचाप चली भी गई, लेकिन कागजात, टिकिट और दवाएँ उसके पास रख कर। उसकी रोतली सी आँखों से झुंझलाए अम्बर को मन मसोस कर उठना पड़ा, क्योंकि हिमा भी चली गई थी और घड़ी भी उसके पीछे दौड़ पड़ी थी।

लगभग सूनी पड़ी ट्रेन में कुर्सी की पुश्त से टिके बैठे अम्बर को बीती तीन रातें एक सपने सी भरमाए हैं, मोनालिजा से सम्वाद, माँ-पापा की याद, हिमा का सच की तरह आना... सब कुछ। ‘कहते हैं न इन्सान की आखिरी बेला में सब याद आते हैं, मेरे साथ भी शायद यही हुआ। लेकिन मोनालिसा क्यों...? उससे तो मैं कतई प्रेम नहीं करता, प्रेम क्या पसंद तक नहीं करता, फिर? और शुभ्रा... अरे! गजब शुभ्रा एक बार भी याद नहीं आई।’ अम्बर अपनी हैरत में ऊभ-चूभ है। ‘एक मरते हुए आदमी को अपनी बीवी याद तक न आए, हद्द है यार, कोई सुनेगा तो तुझे बेवफा कहेगा अम्बर।’ अम्बर सच में अपने आप से शर्मिंदा जैसा हो गया। ‘लेकिन सच तो यही है कि मैं शुभ्रा से प्रेम नहीं करता था, मैं हिमा से प्रेम करता था। और सभी तो ये बात जानते हैं, माँ-पापा, दादी, दिदिया, यहाँ तक कि शुभ्रा भी... फिर भी यार ऐसे समय पर एक याद, एक फोन तो बनता है।

ओह शिट, शुभ्रा को फोन भी नहीं किया।’ अम्बर जैसे झटका खा के हिला और जेब से फोन निकाल लिया। “हाँ शुभ्रा, सॉरी यार... नहीं, अभी शंघाई में ही हूँ। हाँ, सब ठीक है, थोड़ी सी तबियत गडबडा गई थी... नहीं, नहीं... ज्यादा कुछ नहीं हुआ था, बस बुखार हो गया था। हाँ, ट्रेन में हूँ, बस डिनर तक पहुंच जाऊँगा।”

‘बचे,’ फोन जेब में रखते हुए अम्बर ने राहत की साँस ली और खाली बोगी में निगाहें फैंकी, शायद हिमा फिर आ जाए। लेकिन आखिरी सीट पर ऊँघती उस बुजुर्ग चीनी महिला में हिमा का कोई चिह्न तक नहीं था, थक कर अम्बर ने आँखें मूँद ली। उसे बेतरह हिमा याद आने लगी है।
घर के बाहर सन्नाटा है, चीन की भीड़-भाड़ जैसे नानजिंग शहर की इस गली में आते-आते ठिठक कर पलट जाती है। फ्लेट के बाहर भी ख़ामोशी से होड़ लेता पीला उजाला पसरा पड़ा है। अम्बर ने डोरबेल पर हाथ छुआया और भीतर एक मद्धम सा घुँघरू खनक गया।

“आ गए, क्या हुआ था तुमको?” शुभ्र कस के अम्बर के गले चिपकी है। लेकिन कुछ ही क्षण, जल्दी ही चेत कर शुभ्रा ने अम्बर के हाथ से बैग ले लिया। “अब तो तबियत पूरी तरह ठीक है न? जाओ तुम हाथ-मुँह धो लो, मैं गर्म सूप लाती हूँ।” व्यस्त भाव से बात करती शुभ्रा के भाल पर चिंता का रंग है लेकिन क्रोध की कालिमा उस रंग से बाहर है। कोई शिकायत भी नहीं वहाँ।

“अच्छा सुनो, पहले दवाएँ निकाल कर मुझे जरा समझाओ तो, कब और कितनी लेनी है। और हाँ, डॉक्टर से भी एक बार बात करवा देना मेरी।” सूप लाते हुए भी शुभ्रा की नर्सिंग चालू है। अम्बर को खीज होने लगी है, और अचानक उसे हिमा की चहकती-महकती याद ने बिलमा लिया। वो यादें जो उसकी मौत के पास आ खडी हुई थी।

“अम्बर, पासपोर्ट कहाँ है?” बैग सहेजती शुभ्रा को तो ये भी नहीं मालूम कि वो उसे कभी याद नहीं आती, जीते जी तो क्या मरते समय भी। और अम्बर का मन एक अजीब सी ग्लानिपूर्ण करुणा से भर गया। काम में लगी शुभ्रा की झुकी पलकों से दम तोड़ती पीली रौशनी झर रही है, जैसी बाहर गलियारे के लेम्प से झर रही थी। उसने आँख भर के शुभ्रा की ओर देखा, और देखता ही रह गया। शुभ्रा की नीम तर आँखों की उदासी और तिर्यक ओठों के बंद किनारों की दम तोडती मुस्कान, उसके ऊँचे माथे पर पड़ी चिंता की यह लकीर, यह...

“क्या हुआ अम्बर, ऐसे क्यों देख रहे हो।” शुभ्रा सहजता से असहज हो रही है और अम्बर चमत्कृत सा मोनालिसा के भिंचे ओठों के किनारे से बहती उदास हँसी के भँवर फँसा है हूबहू मोनालिसा... जो वो शंघाई के होटल में देख कर आया है। अम्बर अवाक् है और उसकी ख़ामोशी से छेड़छाड़ किए बिना शुभ्रा भी चुप है, बस उसकी आत्मसम्पन्न अर्धमीलित आँखों से उदासी भरी मुस्कान अम्बर के गात पर ऐसे बरस रही है जैसे मोलश्री के फूल बरस रहे हों।

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