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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में प्रस्तुत है
भारत से डॉ. लक्ष्मी शर्मा की कहानी- परित्यक्त


“माँ... मुझे कुछ पैसे चाहिये।” सारांश की आवाज पौष माह का पाला मारी सी है, ठंडी से जकड़ी और ठिठुरती सी।
“फिर से? अभी महीना पहले ही तो तुम्हारे अकाउंट में दस हजार ट्रांसफर ...” लेकिन लेपटॉप पर झुकी अंजलि आगे बोलने के पहले ही अटक गई, कि उसके भीतर बैठी माँ ने सारांश की आवाज को पकड लिया था। ‘हाय राम, ये मेरा लाल है, मेरा बिगड़ा शहजादा आज ऐसे कैसे स्याणा बच्चा हो गया... इम्पॉसिबल, जरूर कहीं कुछ गड़बड़ कर के आये हैं बेटे जी,’ अंजलि के भीतर बैठी नरम माँ अब भुक्तभोगी, चतुर माँ में बदलने लगी। ‘जरूर या तो इसने कहीं चूना लगाया है या लगाने के मूड है, वरना सारांश और ये तेवर? लेकिन इसका मुँह कैसा छोटा सा निकल रहा है, कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ तो नहीं कर आया।’ सारांश का रंग फीका और रूप उदास है, वह अनिश्चित सा रूम के लगभग बाहर खड़ा है, विदाउट एनी एटीट्यूड। बिना किसी हायतौबा-जल्दबाजी के। अंजलि पिघलने लगी फिर भी अनुभव से सीखी माठी माँ बने रह के बोली “क्या हुआ, सब ठीक तो है। कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं कर आये फिर से।”

सारांश जो न कर आये कम है। पिछले दिनों किसी दोस्त से कोई अजीब सी शर्त में पांच हज़ार रुपये हार के आया है। गाड़ी-वाडी ठोकना, इलेक्ट्रोनिक गजेट्स, मोबाइल, परफ्यूम और कपड़े खरीदना तो सारांश के लिए हँसी-मजाक है, अभी इसकी बुआ लंदन से आई तो इसने कितना अनाप-शनाप खर्च किया और कितना सारा बेकार का। बुआ के लिए फ्रेन्ड्स पार्टी दी, उसके लिए ड्रेस, शूज, घड़ी, डियो, गजेट्स, एसेसरीज, पिक्चर-पार्टी तो ठीक था लेकिन जो विराटकाय टेडीज लाया, अब घर के स्टोर की शान बढ़ा रहे है, उन्हें वो अपने साथ लंदन तो ले जाने से रही थी। पर सारांश को कहें भी तो क्या कहे, अभी उम्र ही ऐसी है उसकी, ना तो समझदार में ना नादान में। वैसे भी आजकल के बच्चों को कुछ कहते हुए भी डर लगता है। नाक पे मक्खी तो बैठने नहीं देता, कुछ कहो तो मुँह फुला के बात करना बंद कर देगा, ज्यादा कहो तो ‘इट्स माय लाइफ, डोंट इंटरफेयर। प्लीज लेट मी हेंडल इट’ कह के पैर पटकता घर से चला जायेगा, अपने कमरे के दरवाजे पर ‘नो एंट्री‘ चिपका देगा। फिर करते रहो खुशामद, मनाते रहो खाना खाने को कि वो दोनों टाइम बाहर का जंक कचरा खाना बंद करे।

“नो मॉम, यू प्लीज डोंट वरी, सब ठीक है, मुझे जरूरी काम के लिए चाहिए प्लीज।” सारांश की आवाज में जाने क्या सा है, अंजली के सारे हथियार धराशायी हो गये। “ओके, कितने चाहिए, दस ट्रांसफर कर ...”
“पांच सौ” अंजलि की बात पूरी होने के पहले ही सारांश का उतावला सा जवाब आया, अटपटी सी आवाज़ में। कच्ची उम्र की प्रोढ़ आवाज।
“क्यों...,मेरा मतलब बस, इतने पैसे भी नहीं बचे तुम्हारे पास?” अंजलि अपनी ही हैरानी से परेशान है, ये हो क्या रहा है, सारांश ठीक तो है ना, पाँच सौ रुपये के लिए सारांश ऐसे...?
“यस मॉम, एम ओके। एंड माँ, मैंने कहीं भी मनी वेस्ट नहीं किया, बट काफी दिन भी हो गये न माँ।” अरे हाँ, सारांश ने सचमुच बहुत समय से पैसे नहीं माँगे। “हाँ तो इन बिटवीन डेडी से कितने रुपये लिए, डैडी को तो तुम सेकिंड्स में बनाते हो।” कविता खूब जानती है सारांश के लिए ऋषि से पैसे लेना साँस लेने जितना सीधा काम है, और जानते-बुझते भी ऋषि को सारांश से बुद्धू बनने में जो सुख मिलता है सारांश खूब जानता है और खूब भुनाता भी है। “नहीं माँ, स्वेयर, मैंने डैड से कुछ भी नहीं लिया। आप कन्फर्म कर लो।” सारांश की आवाज़ पनीली सी होने लगी।
“ऋषि, तुम ने सारांश को कुछ कहा क्या इन दिनों में?” अंजली दोपहर से सारांश की आवाज को ले कर कुढ़े जा रही है। “किस बारे में, वैसे आपके सुपुत्र जी को कुछ कह के अपनी खैर खराब नहीं करनी मुझे।” ऋषि ने अंजली की ओर करवट बदली। “फिर लड़ मरे तुम दोनों, अब किस बात पे मूड खराब कर दिया साहब का?”

“नहीं, वो आजकल कुछ अजीब सा बिहेव कर रहा था तो मैंने पूछा।”
“बच्चे हैं, कुछ हो गया होगा, तुम यार इतनी चिंता मत करा करो, जानती हो न ज्यादा केअरिंग से उसको इरीटेशन होता है।” ऋषि ठीक कहते हैं सारांश को ज्यादा प्यार-दुलार से भी इरीटेशन होता है। लेकिन उसका ये बिहेव...
“गुड मोर्निंग मॉम।” सुबह छः बजे कमरे के बाहर निकलती अंजली के लिए ये आवाज़ दुनिया के सारे अजूबों से बड़ा अजूबा है, ये दोपहर का सूरज आज सवेरे-सवेरे कैसे निकल आया। सारांश जी तो सोते ही सुबह के आसपास हैं और यूनिवर्सिटी जाने के आधा घंटे पहले जागते हैं वो भी नगाड़े पीटने पर। इस समय जागने का तो सवाल ही नहीं, वो भी बेवजह... “गुड मोर्निंग डार्लिंग, क्या बात है आज मेरा बेटा बहुत जल्दी उठ गया, तबियत तो ठीक है, रात कुछ अच्छा-बुरा तो नहीं खा लिया था?” अंजलि ने सारांश को मोर्निंग किस दिया।

“मैं ठीक हूँ मॉम, आज मुझे नैतिक से मिलने सेक्टर सात जाना है, देर होने पर वो कालेज के लिए निकल जायेगा।”
“इतनी जल्दी? ठहरो, मैं मिल्क-कॉर्नफ्लेक्स लाती हूँ।” “नहीं मम्मा, रहने दो मैं आपके साथ चाय ही पी लूँगा।” सारांश ने किचन में जाती अंजलि को रोकते हुए कहा। “तू चाय पिएगा?” अंजली फिर विस्मित है। “तो क्या बुराई है, अब मैं बड़ा हो गया, सब कुछ खाने-पीने की आदत होनी चाहिए आप ही तो कहतीं है।” नहीं ये वो सारांश नहीं है। “नोट्स लेने जा रहे हो या कोई बुक?” चाय पीती अंजलि ने बात चलाई, “नहीं मम्मा, मुझे उस के साथ किसी के घर जाना है। मम्मा ब्लेसिंग्ज दो कि काम बन जाये।” सारांश ने उठ कर अंजली के घुटनों को हाथ लगाया और बिना रुके घर के बाहर निकल गया। पीछे रह गई अंजली के घुटने जैसे एक पल ही में बुढा गये, वो खाली प्याले वहीं रख के धम से बैठ गई। कब ऋषि आया, कब मैड चाय बना के ले आई, उसे कुछ ध्यान ही नहीं। “क्या हुआ अंजू, क्या सोच रही हो ऐसे?” पर अंजली ने कोई जवाब नहीं दिया बस चुप बैठी न्यूज-पेपर को घूरती रही। ‘क्या हो गया सारांश को, किस काम से गया है वो, ऐसा कौन सा काम कर रहा है। और ये पैर छूना, उसे तो बार-त्योंहार भी आँख में अंगुली डाल के बताना पड़ता है तो वो पैर छूता है और आज...’

“बन गया तुम्हारा काम?” सारांश कॉलेज से लौट के आ गया है और अंजलि बेसब्री से उसका नाश्ता खत्म होने की प्रतीक्षा में है, खत्म होने के बाद उससे एक पल भी नहीं ठहरा गया। “यस मॉम, बन गया।” सारांश की नॉन-स्टाप वाचालता ठहराव में बदल रही है ये तो अंजली ने पहले ही नोटिस कर लिया था, अब वो ये भी नोटिस कर रही है कि खाने के मामले में महाफसी और डिमांडिंग सारांश अब जो भी सामने आ जाये चुपचाप खा लेता है। “बता ना क्या काम था?” अंजली से रहा नहीं जा रहा। “मॉम मुझे एक ट्यूशन मिल गई है, टेंथ के स्टूडेंट को जर्मन और मेथ्स पढ़ाने के लिए, कालेज से आते हुए ही पढ़ा आया करूँगा। अब मुझे लेट हो जाया करेगा, आप चिंता मत करना।” “क्या ! तू ट्यूशन पढ़ायेगा? अपनी पढाई तो पूरी कर लिया कर। याद भी है लास्ट बार बुक कब छुई थी?” अंजली को सारांश के बचपने पे हंसी आ गई। उसे सारा खेल समझ आ गया, ये जरूर मीता द्वारा प्रसारित लन्दन-वाणी के ज्ञान का प्रताप है, वहां के सेल्फमेड बच्चों की यश गाथा श्रवण से जागा जोश है।

“प्लीज माँ, आय’म सीरियस, प्लीज।” सारांश की आवाज में क्या है अंजली नहीं पकड़ सकी, वो अपनी ही रौ में बोले जा रही है। “और जायेगा कितने दिन, दो-तीन दिन में बोर होके छोड़ देगा। कोई जरूरत नहीं, चुपचाप फोन कर के मना कर देना।” “नो...प्लीज मुझे ये करने दो, मैं भी कुछ करना चाहता हूँ, बड़ा हो गया हूँ अब मैं, कब तक आप लोगों पर यूँ ही बोझ बनता रहूँगा।” सारांश की ऊँची आवाज़ पर चौंक गई अंजली ने देखा सारांश का मुँह तमतमा गया है और उस के आँसू आँखों की सरहद में रुकने को राजी नहीं। “कब तक आप मुझ पर ये काईंड ऑब्लिगेशन्स करते रहेंगे, मुझे नहीं चाहिए ये सब मर्सी … मैं अपना खर्च खुद उठाना चाहता हूँ, आप लोगों ने अब तक मेरे लिए जो किया वो बहुत ज्यादा है, थेंकफुल हूँ मैं आप लोगों का ...” सारांश के अधपके गले से निकलती आवाज कितनी भयानक है, अंजली का कलेजा काँप गया, “सारांश...इनफ इज इनफ, कुछ होश भी है क्या बक रहा है तू। कहाँ से सीख ली ये ड्रामेबाजी, जो चाहिए सीधे-सीधे बता, ये इमोशनल ब्लेकमेल नहीं चलेगी।” अंजली कोशिश कर रही है कि उसकी आवाज नाराज लगे लेकिन वो जानती है कि उसकी आवाज में कोई दम नहीं, वो बोदी है और उसके हाथों की तरह काँप रही है।

“कुछ नहीं, कुछ नहीं चाहिए अब मुझे आप लोगों से, लेट मी मेक इट मायसेल्फ प्लीज।”
“हाँ तो करो ना, किसने मना किया। अभी तो तुम कॉलेज में आये ही हो, पहले पढ़ाई खत्म कर लो फिर डैड का बिजनेस तुम्हे ही संभालना है, वैसे भी बूढ़े हो रहे है हम अब। हम तो खुद चाहते है कि एजुकेशन कम्प्लीट करके तुम अपने बिजनेस में डैड की हेल्प करो तो वो भी थोडा फ्री हों।” अंजली की नजर सारांश की खाली कलाई पर है, इसकी ‘स्वाच’ रिस्ट-वॉच कहाँ गई, “और घड़ी कहाँ है तुम्हारी?”
“नहीं, नहीं लेना मुझे डैडी की हेल्प, बहुत जी लिया मैं आपकी एड पर। अब मैं अपने दम पर कुछ करना चाहता हूँ... मैंने अमेरिका में स्कॉलरशिप के लिए एप्लाय भी कर दिया है कल...आपसे फार्म के पैसे भी इसीलिए लिए थे। और चिंता मत करिये, घड़ी न खोई है न किसी को दी है, वो मैंने संभाल कर रख दी है। मुझे जरूरत नहीं आप चाहें तो वापस ले सकते हैं।” सारांश बिना किसी लाग-लपेट के कहने की कोशिश कर रहा है, चाहे उसकी आवाज काँप रही है।

“अच्छा, बहुत बड़े हो गए हो तुम। माँ-बाप से लेने में शर्म आने लगी है अब तुम्हे, फिर ये बताओ क्या-क्या छोड़ोगे...खाना, रहना, पढ़ाई, ये शान-शौकत, ये घोड़े-गाड़ी जब तक हैं न तब तक ही बुरे लगते हैं, जिस दिन नहीं रहते उस दिन कीमत मालूम होती है बेटा।” अंजली बौखला कर डाइनिंग टेबल को उँगली से खोद देना चाहती है, ये गुस्सा है, दुःख है या भय वो खुद नहीं जानती। उसका रोना पेट की गहराइयों से उमड़ा पड़ रहा है और वह ऐसी बातें कह रही है जो उसने कभी नहीं की, सारांश के साथ तो कतई नहीं।
“मुझे महँगा मोबाइल और गाड़ी भी नहीं चाहिए माँ, मैंने, मेट्रो से जाना शुरू कर दिया है, और जल्द ही मैं अपना खाने-पीने का इंतज़ाम कर लूँगा। तब तक ...। प्लीज मॉम...“
इसके आगे अंजली कुछ नहीं सुन पाई, जब उसे जब होश आया तब तक रात उतर आई थी। ऋषि और सारांश दोनों चिंतातुर से बेड के पास बैठे हैं। “सॉरी माँ।” सारांश उसके सीने से लगा पुराना सारांश बना आँसू बहा रहा है। “लव यू माँ...लव यू, मेरी प्यारी मोमी।“ सारांश जब बहुत लडियाता है तो उसे ‘मोमी’ ही कहता है। अंजली का कलेजे में ठंडक पड़ गई, उसने सारांश के सर पर हाथ रख के फिर आँख बंद कर ली।

तीसरे दिन तक अंजली और घर का माहौल दोनों ही लगभग पटरी पर आ चुके हैं। सारांश माँ के पास बैठता है, ठीक से खाना खाता है, गाड़ी भी ले जा रहा है और उसने घड़ी भी बांधनी शुरू कर दी है। पर ट्यूशन उसने नहीं छोड़ी है।
“अंजली”...ऋषि को देख कर ही लग रहा था कि वो सारांश के जाने का इंतजार कर रहा है। “मैंने बात की थी उससे, वो सब जान चुका है।” ऋषि ने बिना किसी अनास्थिया के सीधा चीरा लगा दिया।

“मैं समझ गई थी, मीता के जाने के बाद से इसके बर्ताव का अंतर भांप गई थी मैं।” अंजू की फीकी मुस्कान में ठहराव है।
“पर मीतू को ये सब उसे अचानक नहीं कहना था, उसके इक्कीसवें जन्मदिन पर हम उसे बताने वाले ही थे। खैर, आई विल टाक टू हिम टुमारो।

बात अंजलि को ही करनी थी, ऋषि ऐसे मामलों में सदा पलायन ही करता है, आज भी कर गया। अंजलि चाहती भी नहीं कि उसके और उसके बेटे के बीच कोई आये। वो सारांश के कमरे में उसके पास बैठी है “सारांश, क्या बात है बेटा। ऐसे क्यों कर रहे हो तुम। सिर्फ ये जान के कि तुम एडाप्टेड हो क्या फर्क पड़ गया, तुम हमारे बेटे हो, हमारी जान, क्या कमी रह गई हमारे प्रेम में जो तुम सडनली इतना पराया फील कर रहे हो?“ सारांश के हाथ अंजली के हाथों में हैं है और दोनों अपने आँसू मैनेज करने में लगे हैं।

शादी के पांच साल बाद भी बच्चा नहीं होने और तमाम नामी डॉक्टर्स के हाथ ऊँचे कर देने पर वो सारांश को घर लाये थे। चंद घंटों पहले जन्मी नन्ही जान, जिसे गोद में लेने के बाद अंजली और ऋषि के मन में एक क्षण को भी नहीं आया कि उन्हें दूसरी सन्तान चाहिए। एक क्षण के लिए भी नहीं सोचा कि ये उन दोनों की मांस-मज्जा का नहीं बल्कि दूसरों की देह का अंश है, उनके जीवन की सार्थकता, उसका सारांश है। जैसे सारी दुनिया के बच्चे बढ़ते हैं ऐसे ही सारांश बड़ा हुआ है। ऐन वैसे ही लड़ते-झगड़ते, अंतहीन फरमाइशों से दुखी करते और अपनी रौनक से माँ-बाप के कलेजे को ठंडा करते। सारांश का होना ऋषि-अंजली के जीवन में पूर्णता का होना है और लाख लाड-बिगड़ा हो पर सारांश के लिए उसकी मोमी उसका फर्स्ट क्रश और डैडा उसके सुपर हीरो हैं। बिलकुल हर घर की कहानी ...न कम न ज्यादा। दो साल बाद सारांश इक्कीस का हो जायेगा और ऋषि-अंजली ने अभी से प्लान कर रखा था कि उस दिन वो उसे ये बात बता देंगे। कि तब तक वो इस को सहने-समझने के लिए मेच्योर हो जायेगा और उसकी एजुकेशन भी कम्प्लीट हो जाएगी। लेकिन ऋषि की मौसेरी बहन ने जो किया वो अब किसी तरह अनकिया नहीं हो सकता।

अंजली सारांश को देख रही है और सारांश सामने दीवार को जिस पर उसने ही कल-परसों में कभी लिख दिया है- ‘हू आय एम?’ देख अंजली ने भी लिया है पर देख के अनदेखा किये बैठी है। “सारांश, क्या हो गया तुझे। क्यों कर रहा है तू ऐसे। बोल बच्चा, बुआ के एक फेक्ट बताने में क्या बदल गया, हम भी वही है और तू भी वही है ना? और इस फेक्ट के ओपन होने के पहले भी क्या कभी ऐसी कोई बात तुझे फील हुई, क्या कोई कमी रहने दी हमने तुझे। तूने कहाँ डिफ़रेंस फील किया। तेरे फ्रेन्ड्स, तेरी कंपनी, तेरे कॉलेज मेट्स में और तेरी लाइफ स्टाइल में क्या चेंज लगता है तुझे? तू हमारा बेटा है सारांश, ऋषि ब्रह्मभट्ट और अंजलि ब्रह्मभट्ट का बेटा, सारांश ऋषिराज ब्रहमभट्ट। यू आर द मोस्ट लवेबल एंड वेल्युएबल वन फॉर अस इन दिस एन्टायर वर्ल्ड एंड यू नो दिस वेरी वेल“

“मैं जानता हूँ माँ, आय नो एंड अंडरस्टेंड दिस आल, बट मैं क्या करूं। सब जानते हुए भी एक सेकिंड के लिए नहीं भूल पा रहा हूँ कि आय’म एडापटेड। मैं आपका अपना बेटा नहीं हूँ। आपका प्यार-दुलार, ये पेम्परिंग-कड़लिंग सब मर्सी है मुझ पर। मैं एक क्षण को भी नहीं भूल पाता ये फेक्ट कि ये सब मुझे मिला क्यूंकि आप के कोई बेबी नहीं था, अदरवाइज ये कुछ भी मेरा नहीं होता। एवरी...एवरी मोमेंट ये याद आता है मुझे, आप प्यार करते हैं तब भी और मेरी मिस्टेक्स पर डांटते हैं तब भी। आपकी लिबर्टी मुझे फील करती है कि आपकी अपनी संतान होता तो शायद आप मुझे इतनी फ्रीडम नहीं देते और आपके डांटने पर मुझे याद आता है कि मैं आपका बेटा नहीं हूँ तभी तो आप मुझे इस तरह ट्रीट कर रहे हैं। आप केयरिंग होती हैं तो मुझे लगता है कि ये आप मेरा ध्यान नहीं रख रहीं बट अपनी फीलिंग्स क्वेंच कर रहीं हैं और आप केयर नहीं करती तो लगता है कि मैं आपकी अपनी संतान नहीं हूँ न सो आप को मेरी कोई चिंता नहीं।” सारांश के चेहरे पर कैसी कातरता है, अंजली कुछ भी नहीं कह पा रही, उसका सिर लगातार नहीं में हिले जा रहा है।

“माँ मैं क्या करूं माँ, मुझसे इन भुला जाता कि मैं इस घर में भगवान की मर्जी से नहीं आपकी नीड पर आया हूँ। मैं वो बच्चा हूँ जिसकी अपनी बायलोजिकल माँ ने उसे न जाने क्यों छोड़ दिया, जिसके पापा का पता-ठिकाना नहीं, और अब वो दूसरों के घर में दूसरों के रहम पर पल रहा है।”
“सारांश, दूसरा कह के तुम हम तीनों को रिजेक्ट ...”

येस मॉम, आय नो। जानता हूँ मैं कि मैं बहुत बुरा और गलत बोल रहा हूँ, बट वाट टू डू? मैं नहीं भूल पा रहा रहा मॉम?” सारांश के आँसू उसके शब्दों को लीले जा रहे हैं। उसकी कातर आवाज़ अंजली को फिर अचेत करने के लिए काफी है पर उसने खुद को कस के पकड रखा है। “मैं नहीं भूल पा रहा रहा मॉम कि ये घर, और इसका सब कुछ मेरे दादाजी का नहीं हैं ना मेरे असली मम्मी-पापा का... ऐसा क्यों हुआ माँ, मेरे साथ ही क्यों...?”

“सिर्फ तुम्हारे साथ ही नहीं, हमारे साथ कहो सारांश...” अंजली की आवाज सूख के चटक गई है, इतनी सूखी कि सारांश को किरकिरी सी चुभी। उसने चौंक कर माँ को देखा, सूखा उसकी आवाज़ में ही नहीं चेहरे पे भी पसर गया है और आँखों में भी ललछौंही दरारें बन के उभर आया है। “तुम्हें लगता है दुःख सिर्फ तुम्हें ही हुआ है, हमने तुम्हारे आने के पहले भी और तुम्हारे आने के क्षण में भी कोई दुःख नहीं हुआ होगा? हम भी तुम्हारी तरह सेंसेटिव हैं सारांश, दुःख हमे भी हुआ था कि एक बच्चा हमारे अपने लिए ईश्वर ने नहीं बनाया जो आज हमें एक पराये, अनजान बच्चे को अपना कह के लाना पड़ रहा है।” अंजलि की बेलौस, निर्मम आवाज़ सारांश के लिए एक नया रूप है, पर वो सारांश की आँखों में सीधे-सीधे देखती बस कहे जा रही है, उसका लाडला बेटा सामने बैठा रो रहा है पर उसके आँसू अंजली को शायद दिख ही नहीं रहे, “हमने समझाया खुद को, जीवन के इस फेक्ट के साथ रहने को ट्रेंड किया हमने, एंड अब ये भी उतना ही सच है कि मैं और तुम्हारे पापा एक मोमेंट को भी ये फील नहीं करते कि तुम हमारी बायलाजिकल संतान नहीं हो, हमारे लिए तुम अंतिम ख़ुशी हो। सारे सच के ऊपर यही सच है जो हमने याद रखा। और यही रहेगा चाहे तुम स्वीकार करो या ना करो।” अंजलि बगैर रुके, बगैर सारांश की प्रतिक्रिया जाने बोले जा रही है।

“जानती हूँ तुम बहुत दुखी हो, तुम्हारा दुःख ओबिविअस भी है, तुम्हे दुखी होने का राईट है, तुम चाहो तो खुद को सेल्फ मेड प्रूव करने के लिए घर छोड़ के भी जा सकते हो, बट आई मस्ट से इट्स नॉट फेयर। जानती हूँ तुम ब्रेव और इंटेलिजेंट हो, स्ट्रगल करके जल्दी ही कुछ बन भी जाओगे लेकिन उससे क्या तुम ये सब भूल जाओगे। हमे, हमारे प्रेम, हमारे साथ को भूल जाओगे, भूल जाओगे इस फेक्ट को कि तुम एक तुम जो उन्नीस वर्ष सारांश ऋषिराज ब्रहमभट्ट बन के रहे, आर्फनेज से लाये हुए एडाप्टेड किड नहीं थे, लेकिन अब हो गये हो, इस एक बात से कुछ नहीं बदलेगा सारांश, ऐसे कुछ भी नहीं बदलता, और अब जो भी है हम सब के सामने है, इसी को एक्सेप्ट कर के जीना होगा बेटा, तुम्हे लगता है हमने नहीं जिया होगा, जिया है। सुना भी है और आगे भी सुनना है, हर हाल में।”

अंजलि अब रो रही है और उसके साथ सारांश भी। दोनों के पास कहने को कुछ नहीं बचा, अपने अपने दुःख में दोनों परित्यक्त हैं। अंजलि का बेटा भी और सारांश की माँ भी...अनाथ, अकेले और अभिशप्त।

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