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लड़के तो लड़के।  उन्हें हेनरी के खर्राटें में मजा मिलने लगा।  एक मसाला मिल गया।  बदतमीज किस्म के लड़कों ने कुछ इस तरह शोर मचाया कि बात प्रिंसिपल तक पहुंच गई।  पर, हेनरी का खर्राटा नहीं टूटा।  प्रिंसिपल तक इस बात को किसने पहुंचाया, यह तो पता नहीं।  पर, वह लायब्रेरी में आ गया।  उसने हेनरी को जगाया,' मिस्टर हेनरी  . . . . ' वह अचकचाकर उठा, 'यस सर  . . . '  
'यह लायब्रेरी हैं  . . . '
'यस सर  . . . '  
'यह सोने की जगह नहीं है  . . . '
'मैं जानता हूं  . . . थका हुआ था  . . . इसलिए  . . . '  
'आप मेरे ऑफिस में आइए  . . . '  

हेनरी को अपने ऑफिस में आने का आदेश देकर प्रिंसिपल लायब्रेरी से बाहर हो गया।  उसके निकल जाने के बाद हेनरी बुदबुदाते हुए उठा – कमबख्त, अच्छी मुसीबत हो गई।  जब प्रिंसिपल के कमरे के सामने पहुंचकर उसने दरवाजे में पीपिंग ग्लास से भीतर झांककर देखा तो प्रिंसिपल को अपनी पी•ए• के साथ बात करता पाया।  वह कुछ डिक्टेट कर रहा था।  लगभग दस–बारह मिनट बाद जब पी•ए• कमरे से बाहर निकली तो हेनरी भीतर घुसा।  'एश  . . . मिस्टर हेनरी  . . . कम इन  . . .'  

हेनरी और प्रिंसिपल के बीच एक बड़ी टेबल थी।  हेनरी खड़ा था।  प्रिंसिपल ने उसे बैठने के लिए भी नहीं कहा।  वह एक कागज को कुछ इस तरह उलट–पुलट रहा था जैसे बहुत ही जरूरी कागज देखनें में व्यस्त हो।  असल में उसके काम करने का तरीका ही यही है।  सामने वाले को अपनी प्रभुसता का अहसास कराकर उसे एक दिन अजीब किस्म का सुख मिलता है।  क्या पता ऐसा हर उस आदमी के साथ उसकी शख्सियत का हिस्सा हो जाता है जो अपने से अधिक योग्य आदमियों के ऊपर अफसरी का नसीबी–सुख भोग रहा हो।  हेनरी बहुत देर खड़ा नहीं रहा।  उसने मुझे कुर्सी पर बैठने के लिए भी नहीं पूछा, 'एस सर, आपने मुझे अपने ऑफिस में आने को कहा था।'

हेनरी को अपनी मर्जी से कुर्सी हथियाकर बैठते हुए देखना प्रिंसिपल को बड़ा नागवार–सा लगा।  अपने हाथ में लिए जिस कागज को अति महत्वपूर्ण मानते हुए वह उलट–पुलट रहा था उसे एक ओर बड़ी निर्ममता से रखते हुए उसने कहा, 'एश  .. . . एश  . . . आपने गलती की है  . . .  
'गलती की है  . . . . या, हो गई  . . . . मैं क्या बता सकता हूं  . . . '  
'ओ  . . . . नो  . . . नो  . . . आप लिखकर दीजिए कि आपशे गलती हुई है  . . . '
'क्या  . . . ' हेनरी अवाक रह गया।  उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि उससे गलती कहां हुई।  वह अपने खाली पीरियड में लायब्रेरी गया था।  थका तो वह था ही।  साथ ही नई जगह होने के नाते उसे नींद भी ठीक से नहीं आई थी।  अब ऐसे में उसकी आँख लग ही गई तो वह क्या इसे लिखकर दे कि उससे गलती हो गई है।  उसे याद नहीं आ रहा था कि कभी उसने किसी ऐसे प्रिंसिपल के नेतृत्व में काम किया हो जो ऐसी बातों को लिखित में लेता रहा हो।  
'लिखकर दीजिए   . . . '  
'क्या लिखकर दूं   . . . यह भी कोई लिखकर देने की चीज है  . . . '
'नो  . . . नो  . . . लिखकर दीजिए कि आपने गलती की है और, ऐसी गलती आप फिर कभी नहीं करेंगे  . . . '  
'यह कोई इतनी बड़ी बात तो नहीं जिसके लिए लिखित में माफी मांगी जाए   . . . '
'मैं जो कह रहा हूं  . . . वह कीजिए  . . . '
प्रिंसिपल की भावभंगिमा को समझने में हेनरी से कोई गलती नहीं हुई।  उसने कहा, 'ऐज यु विश  . . . '
वह अपने चेंबर से निकलने के लिए खड़ा हुआ।
'व्हेयर आर यू गोइंग  . . . '  
'स्टाफ रूम  . . . '
'नो  . . . फर्स्ट यू राइट द एपोलॉजी हीयर  . . . .देन  . . . यू गो व्हेयर एव्हर यू लाइक  . . . ' 
'नो प्राब्लेम  . . . '  

हेनरी ने प्रिंसिपल की मेज पर से ही एक सफेद कागज उठाकर वहीं बैठे–बैठे जो कुछ लिखा उसका लब्बेलुबाब यह था कि बेहद थका होने की वजह से लायब्रेरी में वह कब और किस तरह सो गया, इसका उसे कुछ पता नहीं।  उसकी समझ में तो यह कोई  गलती नहीं है, मगर यदि प्रिंसिपल इसे गलती मानता है और इसके लिए सॉरी लिखवाना चाहता है तो उसे ऐसा लिखने में कोई आपत्ति नहीं है।  हेनरी वह भी समझ गया कि प्रिंसिपल ने उसे स्टाफ रूम में जाने से पहले ही एपोलॉजी लिखकर देने को क्यों फोर्स किया।  हेनरी के लिखे को पढ़कर प्रिंसिपल का माथा ठनका।  'मैंने कहा था कि आप लिखकर दें कि आप लिखकर दें कि आप से गलती हुई है और ऐसी गलती आप दुबारा नहीं करेंगे  . . . '  

'मैं ऐसा कोई वायदा नहीं कर सकता  . . . अगर जान–बूझकर गलती मैंने की हो तो मैं ऐसा कुछ लिखकर दे सकता हूं, पर  . . . जब ऐसा अनजाने हुआ है तो फिर आगे भी हो सकता है।  ऐसा नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है  . . . '  

'मैं आपसे लेक्चर नहीं सुनना चाहता  . . . आप वही लिखकर दीजिए जो मैं कह रहा हूं  . . . '  
'मैं आपको कोई लेक्चर नहीं दे रहा  . . . हां, वह मैं नहीं लिखूंगा जो आप कह रहे हैं  . . . '  
हेनरी ने जो कुछ लिखा था, उसे प्रिंसिपल की टेबल पर छोड़ा और उठ खड़ा हुआ।  प्रिंसिपल बाहर निकलते हेनरी की पीठ देखता रह गया।  नए स्कूल में इस तरह का व्यवहार देखकर उसका मन थोड़ा खीझा तो पर उसने किसी से कुछ कहा नहीं।  वह स्टाफ रूम में आकर बैठा और बीते घटनाक्रम पर विचार करने लगा।

मुश्किल से बीस मिनट बीते होंगे कि ऑफिस ब्वॉय एक सील्ड इनवेलप लिए हेनरी के सामने खड़ा था।
'यह क्या है  . . ?'  
'इसे लीजिए और, यहां साइन कीजिए  . . '  
ऑफिस ब्वॉय ने एक काली–सी डायरीनुमा एक बुकलेट हेनरी के आगे कर दी।  हेनरी ने साइन करके लिफाफा ले लिया।  उसे खोलने के बाद बेसाख्ता उसके मुंह से निकला, 'वह आदमी है कि पागल  . . . '  हेनरी की बुदबुदाहट से स्टाफ रूम में बैठे लोग चौंके, 'जरा–सी बात पर कमबख्त वार्निंग लेटर . . . '  

हेनरी नया था पर स्टाफ मेम्बर तो हो ही गया था।  जेण्टस् स्टाफ में दो चार लोग जो उस समय वहां मौजूद थे, हेनरी के पास चले आए –  'व्हॉट हॅपेण्ड  . . . '  एक ने पूछा।  

'ज्वॉयनिंग के दूसरे ही दिन मेमो  . . . ऐण्ड दैट आलसो आफ्टर माय क्लेयरीफिकेशन  . . . वेरी सिली  . . . '  
'सो लेट  . . . आयम मणिक्कम  . . . . मैथ्स टीचर  . . . '  
'व्हॉट डू यू मीन  . . . '  
'याह  . . . हीयर, देयर आर सो मेनी हू हैव बीन गिव्हेन द सेम ट्रीट ऑन द सेम डे, दे ज्वॉइण्ड  . . . '  

माणिक्कम ने जोर से हँसते हुए कहा और हेनरी के हाथ से लिफाफा लेकर मेमो पढ़ने लगा।  हेनरी ने जो कुछ लिखकर दिया था वह प्रिंसिपल को पसंद नहीं आया था।  मेमो में उसे चेतावनी दी गई थी कि भविष्यमें अगर उसने किसी गलती पर इस तरह का अंदाज अपनाया तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।  मेमो पढ़ने के बाद लोगों की उत्सुकता इसमें ज्यादा हो गई कि आखिर हेनरी ने क्या लिखकर प्रिंसिपल को दिया है जिसमें उसे अपच–सा हो गया है।  हेनरी ने पूरा घटनाक्रम बता दिया।  सभी हँसने लगे।  लेकिन शाम होते न होते यह बात पूरे कैम्पस में और कैम्पस के बाहर भी पहुंच गई कि हेनरी को प्रिंसिपल ने स्कूल में सोते हुए पकड़ लिया और यह भी कि हेनरी स्नोर्स लाउडली।

हेनरी का अपना लिखा और प्रिंसिपल का दिया मेमों, दोनों ही उसकी पर्सनल फाइल में लग गए।  हेनरी की प्रतिक्रिया थी, 'कमबख्त वक्त खराब हो तो वही सब कुछ होता है  . . . आदमी ताड़ के पेड़ पर भी बैठा हो तो भी कुत्ता काट लेता है  . . '

हेनरी और वासुदेव में बहुत–सी बातें समान थीं।  दोनों दिल्ली के थे।  दोनों ही क्रिश्चियन थे।  दोनों की नियुक्ति विज्ञान विभाग में हुई थी।  यह भी कैसा साम्य था कि दोनों के पास विदेशों में अध्यापन का एक लंबा अनुभव था।  नाइजीरिया में उनकी मुलाकात एक वार्षिक सेमिनार में हो चुकी थी।  वहां वे अलग–अलग विद्यालयों में क्रमशः रसायन विज्ञान और जीव–विज्ञान पढ़ाते थे।  परंतु इस स्कूल में उनकी मुलकात ज्वॉयनिंग वाले दिन ही हुई थी।  लेकिन पुरानी पहचान होने के नाते वासुदेव को अपने सहयोगी के रूप में पाकर हेनरी को खुशी हुई थी।  यहीं कारण था कि जब उसे वासुदेव के साथ बैचलर एकोमडेशन शेयर करने के लिए कहा गया तो उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

हेनरी और वासुदेव में जो कुछ असमान था वह यह कि वासुदेव दो जवान होते बच्चों का बाप था और हेनरी की अभी शादी नहीं हुई थी।  वासुदेव के बच्चों में लड़की बड़ी थी और कर्नाटक के किसी मेडिकल कॉलेज में उसका सेकेण्ड इयर था।  लड़का, दिल्ली के एक प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में आई  .सी  .एस  .सी  . बोर्ड की आई  .एस . सी  . फाइनल में था।  इस वजह से वासुदेव अपनी फेमिली को साथ  नहीं रख सकते थे।  लड़के की उचित निगरानी के लिए माँ का उसके आसपास होना जरूरी था।  जहां तक हेनरी की बात है तो अब वह लगभग चालीस का होने वाला था। जब शादी कर लेनी चाहिए थी तो हालात ठीक नहीं थे और वह व्यवस्थित होने की कोशिशों में लगा हुआ था।  और, जब वह लगभग एक अच्छी–खासी स्थिति में हुआ तो अचानक वक्त ने फिर उसे ऐसा धोबीपाट मारा कि वह चारों खाने चित्त हो  गया।  नाइजीरिया के नैरे की कीमत रद्दी के कागज से भी ज्यादा गई–बीती हो गई और जो कुछ हेनरी ने बचाया था वह उसके किसी काम का नहीं रह गया।  एक बार फिर वह सड़क पर आ गया।  कुछ महिनों से उसकी शादी की बात चल रही है। 

एक ही कमरा शेयर करने को मिला हो और पुराने परिचित भी हों तो जाहिर है कि आपस में बातचीत भी होगी और ऐसा भी नहीं था कि हेनरी के सोते हुए पकड़े जाने की बात से वासुदेव अनभिज्ञ था।  हेनरी ने मेमो वासुदेव को दिखाया।

'थ्रो इट इन टू बिन  . . . . याह  . . . ' 
'नो, आय विल कीप इट फॉर एव्हर  . . . ' 
'हाई  . . . . व्हॉट फॉर  . . . ' 
'टु रिमेम्बर ऐन ईडियट  . . . ' 

दोनों ने कुछ देर तक इसी विषय पर बातें की और फिर रात का खाना खाने के लिए डायनिंग हॉल चले गए।  हॉल में सीनियर डॉर्म के छात्र थे।  हेनरी को देखते ही हॉल का वातावरण फुसफुसाहटों और खिलखिलाहटों में बदल गया।  हेनरी को लगा कि इस स्कूल में उसकी शुरूआत ही बिगड़ गई है।  खाया तो क्या किसी तरह वक्त काटकर वह कमरे पर आ गया।  हेनरी सीधा–सादा इस अर्थ में कि उसे छल–कपट से कुछ लेना–देना नहीं था।  वक्त और हालात द्वारा मिली जिंदगी को जीने में ही उसका यकीन था।  भीतर, बहुत भीतर से उसने यह मान लिया था कि जो कुछ होना है वह होकर रहेगा। मगर वासुदेव हेनरी–सा नहीं था।  उसने पहले ही दिन चेयरमैन की लकड़सूंघे की लकड़ी इस तरह सुंघा दी कि वह न केवल प्रिंसिपल के मेमो और बंदरघुड़की से बच गया बल्कि इण्टर स्कूल एथलेटिक मीट जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम में जबरदस्त रोल झटकने में भी कामयाब हो गया।  हेनरी की सारी रात अपने साथ हुए प्रकरण की वजह से ठीक से नींद नहीं आई।  मगर वासुदेव के ठीक से न सो पाने का कारण कुछ और रहा।  उसने एक योजना बना डाली।  लग गया तो तीर वरना तुक्का ही सही। 

वासुदेव को ड्युटी पर जाना तो आफ्टरनून में हेनरी के ही साथ था परंतु सारी रात उसने सवेरा होने के इंतजार में गुजारी थी।  नौ बजते–बजते वह प्रिंसिपल के चेंबर के सामने था।  बीस–पच्चीस मिनट तक पानी में से निकाली मछली की तरह बेचैनी में तड़पते हुए वह चेम्बर के सामने दो कदम दाएं तो दो कदम बाएं होता रहा  . . .आखिर प्रिंसिपल ने उसे बुलाया, 'एश मिश्टर  . . . ' 

'वासुदेव  . . . आयम वासुदेव  . . . '  
'सर  . . . डिफीकल्ट  . ... . व्हेरी डिफीकल्ट  . . . ' 
'क्यों, क्या हुआ  . . . '  
'सर  . . . हेनरी के साथ  . . . एक कमरे में रहना  . . . व्हेरी डिफीकल्ट  . . . ' 
'क्या मतलब  . . . '
'यू नो सर, ही स्नोर्स अ लॉट  . . दैट आलसो  . . . व्हेरी लाउडली  . . . कोई सो नहीं सकता कमरे में  . . . '  
' मैं क्या बताऊं सर, इस तरह तो मेरी परफॉर्मन्स पर बुरा असर पड़ेगा  . . . . चेयरमैन ने भी रिसपॉन्सिबिलिटी सौंप दी है  . . . आइ नीड टाइम टु प्रॅक्टिस ऐण्ड डि्रल  . . . '
'प्रेसान न हों मिश्टर वासुदेव  . . . आपको इनफ शमय दिया जाएगा  . . . बश, ट्रॉफी हमारे शकूल को मिलनी चाहिए  . . . और हेनरी  . . . उशे  . . . उशके रहने का कुछ दूशरा इंतजाम होगा  . . . यू मे गो नाऊ  . . . '

एसेम्बली खत्म होते ही हेनरी का बुलावा आ गया।  हेनरी को ताज्जुब हुआ कि अब क्यों मिलना चाहता है प्रिंसिपल।  बात तो कल ही खत्म हो गई थी, अब नया क्या हो गया।  बहरहाल, प्रिंसिपल ने बुलाया था और, उसे उनके चेम्बर में जाना था। 

••

'आपने मुझे बुलाया  . . . सर  . . . '  
'हेलो मिश्टर हेनरी  . . . रात कैशी कटी  . . . '
हेनरी कुछ समझ नहीं पाया।
'मैंने पूछा, रात कैशी कटी  . . . '
'ठीक तो नहीं, पर कट गई रात  . . . ' 
'मगर वासुदेव तो बिल्कुल नहीं शो पाए  . . . ' 
'दैट आइ नो सर  .. . . ' 
'आप इशे कैशे जानेंगे  . . . ' 
'क्यों  . . . ही इज माय रूम–मेट  . . . ' 
'लेकिन, आप तो श्नोरिंग करते रहे शारी रात  . . . ' 
'पता नहीं सर  . . . ' 
'आपको कैशे पता चलेगा जब आप ही श्नोरिंग करेंगे  . . . ' 
'पहले तो ऐसा नहीं होता था, अब होने लगा हो तो मैं कुछ नहीं कह सकता  . . . ' 
'ऐशा करें  . . . आप आज ही सहर में कोई अकोमेसन ढूंढ़ लें  . . शकूल आपको अलाउंस दे देगा  . . . '
'ओ•के•   . . . . सर  . . . ' 

हेनरी परेशान–सा प्रिंसिपल के कमरे से बाहर निकला।  नया आदमी।  नई जगह।  एकदम से अचानक कमरे की तलाश।  उसने स्टाफ रूम में सबसे कमरे की बाबत पूछा।  अंततः क्लासीफाइड ही वह जरिया निकला जिसके विज्ञापनों से एक जगह बात तय हो गई।  शाम को जब स्कूल की छुट्टी हुई और लड़के अपनी–अपनी बसों में घर जाने के लिए आ बैठे तो उन्हीं बसों में से एक में हेनरी भी अपना सूटकेस लेकर बैठा।  उसका कैम्पस छूट गया और वासुदेव को रहने के लिए एक इंडिपेन्डेंट कमरा मिल गया।  उसने हेनरी से कहा, 'आयम सॉरी, हेनरी  . . .बट इट वॉज प्रिंसिपल्स डिसीजन  . . ' 

'हां मैं जानता हूं  . . . इट्स ओ  .के  .'  ऐसा नहीं था कि हेनरी कुछ समझता नहीं था। 
••

सुबह आठ–सवा आठ बजे गैराज में अपनी कार पार्क करते हुए मिस्टर जयराज ने मिसेज रमणिका पाटेकर को स्कूल गेट पर टैक्सी से उतरते देख लिया। पहली शिफ्ट के हिसाब से मिसेज पाटेकर को साढ़े सात तक आ जाना चाहिए था। 

अपने चेम्बर में पहुंचते ही प्रिंसिपल ने ऑफिस ब्वॉय राई को बुलाया। 
'एस  . . . सर  . . ' 
'मिसेज रमणिका को बोलो कि आकर मुझशे मिले  . . . ' 
'एस  . . . सर  . . . ' 
'जल्दी  . . . ' 
'एस . . . सर  . . 'राई कमरे से बाहर निकला। 

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