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उसके साथियों के साथ बहुत बुरा हुआ। उसके साथ गए तीन सौ लोग जो नाव द्वारा इटली जा रहे थे, इटली के पास नाव डूबने से मारे गए थे। एक तो दो सौ लोगों को ढोने वाली नाव पर तीन सौ लोगों के सवार होने पर वैसे ही असुरक्षा को आमंत्रण दे दिया गया था। जब नाव के नाविक ने नाव चलाने से मना किया तो लोगों ने अशांति उत्पन्न करना, शोर मचाना आरंभ कर दिया था। कहते हैं कोई भी नाव से उतरने को तैयार नहीं था। कैसा होता है यह जीवन को बेहतर बनाने के लिए विदेश जाने का सुख?

जिस दिन वह नाव दुर्घटना हुई उस दिन समुद्र में तेज़ हवाएँ चलने लगी थीं। तेज़ हवाओं में नाव का संतुलन बिगड़ गया था। नाव डूब गई और उस पर सवार सभी मारे गए थे। उस नाव पर रामशरण सवार नहीं हुआ था क्यों कि उसकी भेंट एक ट्रांसपोर्ट मालिक से हो गई और उसके कहने पर रामशरण उसके साथ रुक गया था। रामशरण के घर वाले उसे दो महीने तक मरा समझते रहे जब तक उसका विदेश से पत्र नहीं आ गया था।

आज उसे इस बात की बहुत प्रसन्नता है कि उसके खेत मुक्त हो गए है। घर पक्का बन गया है।
रामशरण को अपने वतन से बहुत प्रेम है। चाहे संगीत हो या कपड़े वह सदा स्वदेशी वस्तुओं को पसंद करता। पर दूसरों के लिए उसने विदेशी वस्तुएँ ख़रीदी हैं। होली आने वाली है वह अपने देश जा रहा है। वह भारतीय ट्रेवेल एजेंसी से टिकट ख़रीदता है। उसका कहना है कि विदेश में यदि आदमी के पास काम हो और वह अनपढ़ भी हो तो उसका काम चल जाएगा। मंदिर-गुरुद्वारे में अपनी भाषा। दूतावास में अपनी भाषा। भारतीयों की अपनी ट्रेवेल एजेंसियाँ हैं, उनके अपने रेस्टोरेंट हैं। भारतीय सामान अनेक प्रवासी दुकानों पर मिलता है। रही बात विदेशी भाषा की वह तो जहाँ आदमी रहता है सीख जाता है। उच्चारण सही न भी हुआ तो कोई बात नही यदि भाषा अच्छी तरह सीख भी ली तो कौन उसे भाषा का प्रोफ़ेसर बना देगा।

रामशरण अपनी कार चला रहा है। पुरानी फ़िल्म का गीत बज रहा हैं,
"ऐ वतन ऐ वतन मुझको मेरी कसम, तेरी राहों में जान तक लुटा जाएँगे।" तभी वह कार रोकता है।
"नमस्कार हरदेव सिंह!"
"नमस्कार रामसरन! सुना है कि तू इंडिया जा रहा है।"
"हाँ, मैं भारत जा रहा हूँ।"
"यार जब वापस आना तब मेरी माँ को साथ लेते आना। दो बरस बाद उनका वीज़ा मिल गया है। तूसी अपनी भाषा-बोली भी बोलते हो तो माँ नू बहुत आराम हो जाएगा।"
"यह तो कोई बात ही नहीं, हरदेव सिंह! मेरी वापसी तारीख मुताबिक ही माँ की टिकट कटाओ। मैं आराम से उन्हें लेता आऊँगा। उन्हें चार-पाँच घंटे पहले हवाई अड्डे पर बुला लेना। यह तो बताओ हरदेव सिंह जी, तेरा मुंडा जो पोलैंड में पढ़ता है उसका क्या हाल है? वह तो सारा समय इस देश के बाहर ही रहता है।"
"मत पूछो यार मेरा दीवाला निकला जा रहा है। लोगों के कहने पर अपने पुत्तर को डाक्टरी में दाखिला तो दिला दिया। वह हर महीने कुछ न कुछ माँग किया करता है।" कहकर हरदेव सिंह ने लंबी साँस भरी और अपनी बात जारी रखी,
"मैंने अपने मुंड्डे से कई बार कहा कि तुम सरकारी लोन(उधार) ले लो मेरा पिंड छोड़ो पर वह कहता है कि उसने डाक्टरी मे दाखिला मेरी इच्छानुसार लिया था अत: उसका खर्चा भी मुझे उठाना होगा।"
"यह आपने अच्छा किया। मुंडा डाक्टर तो कहलाएगा।"
"इससे क्या फ़रक पड़ता है। मुझे तो चूना लग रहा है। वैसे साथ रहता। अपनी मात्र भाषा सीखता। हमारे काम में हाथ बटाता।"
"कोई बात नहीं है। सब ठीक हो जाएगा। कोई कुड़ी देखी अपने पुत्तर वास्ते?" गहरी साँस लेते हुए हरदेव बोला,
"मत पूछो रामसरण, मैं क्या करूँ? एक विलाइती कुड़ी उसके साथ रहती है। मुझे पहले पता होता तो मैं उसे कभी भी बाहर पढ़ने न भेजता।"
"की फ़रक पैंदा है? (क्या फरक पड़ता है?) बुढ़ापे का क्या भरोसा। जब बच्चे भी अपने कहने मे नहीं हैं। भला हो यहाँ की सरकार का जिसने यहाँ वृद्धाश्रम बनाए हैं, जहाँ हम लोगों को आसानी से जगह मिल जाएगी।" रामशरण ने अचानक हँसते हुए आगे कहा,
"तब आसी बिना दाँतों के छड़ी लेकर साथ घूमेंगे और जीवन की कीमती घड़ियों को याद करेंगे।"
"तुम ठीक कहते हो रामशरण। हमारा भी एक दिन वही हाल होगा जो यहाँ के बुजुर्गों का होता है। अकेले, बिलकुल अकेले। अपनों से अलग।"
"तूसी पंजाब के शेर हो। चिंता दी कोई लोड (आवश्यकता) नहीं है।"

समय को बीतते देर नहीं लगती। आज स्वदेश वापसी के लिए एअरपोर्ट पर आ गया। उसका परिवार उसे विदाई देने आया है। सामान और टिकट की जाँच कराकर वह सुरक्षा जाँच की तरफ़ आगे बढ़ रहा है। वह आवश्यकता से अधिक सामान लेकर जा रहा है। सभी को उपहार देना है। रामशरण की पत्नी कहती,
"तुम्हें बीस ग्राम का कोई एक पत्र भी नहीं लिखता, और तुम उन सभी के लिए कुछ न कुछ उपहार ज़रूर ले जाते हो। वे जब भी फ़ोन करते हैं तो केवल अपनी माँग को बताने के लिए। आपके जन्मदिन पर कभी फ़ोन किया। होली, बैसाखी किसी ने कोई कार्ड भेजा?"
"एक ख़त लिख देने से क्या होता है भागवान! हम अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं। केवल बदले से ही हर कुछ नहीं करना चाहिए।"

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