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कंपनी की वार्षिकी के उपलक्ष्य में आज सभी यात्रियों को फूलों के गुलदस्ते भेंट किए गए थे और शैंपेन पिलाई गई थी। रात के नौ बज चुके थे। रीटा को सामान उतारने की चिंता थी। अक्सर सामान पट्टी पर काफ़ी देर तक इंतज़ार करना पड़ता है। बाहर निकलते आधा पौना घंटा लग सकता है और फिर टैक्सी तय करने में, ट्रैफ़िक में उलझते-रुकते, घर जाने में एक घंटा और। दिन भर की थकान अलग। सोने से पहले नहाना भी है। रीटा तो इस गर्मी में बिना नहाए धोए सो ही नहीं पाएगी।

जल्दी-जल्दी वह सबसे पहले सामान पट्टी पर जा पहुँची। संगीता के पहुँचने तक वह अपनी और उसकी सुटकेस ट्रॉली व होलडॉल उतार चुकी थी। उसके आते ही वह दुलकी चाल बाहर की ओर लपकी।
संगीता ने पूछा भी... ''चेक कर लिया सब?''
''हाँ...हाँ...चलो अब। नहीं तो रात को टैक्सी वाले नखरे करते हैं। चेक क्या करना है? मेरा सूटकेस तो सैम्सोनाइट के स्पेशल रेंज की सेल में से ख़रीदा था। रंग मैंने एकदम एक्सक्लूजिव लिया था- हल्का खाकी। ताला भी मैं लंदन वाला लगाती हूँ। याद है जब तुम्हारे साथ गई थी चार-छह ख़रीद लाई थी। यहाँ के ताले तो सेफ़्टीपिन से खुल जाते हैं।''

रीटा को बस मौका मिल जाए अपनी ऊँची पसंद की शान मारने का!
इंदिरा गांधी हवाई अड्डे से सफदरजंग एन्क्लेव तक का रास्ता सिर्फ़ बीस मिनट में तय हो गया। टैक्सी वाले ने तीनों अदद सामान कोठी में पहुँचा दिए। यह उनके एक मित्र परिवार का घर था। आजकल वह लोग गर्मियाँ बिताने यूरोप गए हुए थे और अपना गेस्टरूम इनके लिए खुला छोड़ गए थे। संगीता और रीटा यहीं ठहरी थीं।
''बहन जी तुम पहले हाथ मुँह धो लो। मैं तब तक पुत्तूलाल से चाय बनाने को कह कर आती हूँ।''

संगीत ही पहले गुसलखाने में चली गई। रीटा ख़ानसामा को बुला लाई। रात के लिए पानी आदि की हिदायतें दीं और अपना सूटकेस मेज़ पर रखवाया ताकि खोलने के लिए झुकना न पड़े।
तभी संगीता तरोताज़ा होकर आ गई। रीटा ने सूटकेस की बाहर की पॉकिट की जिप खोली, परंतु हाथ अंदर डालते ही सकपका गई।
''क्यों क्या हो गया रीटा?''
''बहन जी, मेरा तो कुछ सामान निकल गया लगता है। इसमें मैं अपने स्लीपर रखती हूँ।''
''पुरानी जूतियाँ कोई क्यों लेने लगा। ठीक से देखो।''
''नहीं बहन जी, मेरा छोटा तौलिया और अंदर के कपड़े भी नहीं हैं।''
''ताला खोलकर देखो, अंदर रखकर भूल गई होंगी।''

रीटा ने लपक कर हैंडबैग में से चाबी का गुच्छा निकाला। ताला खोलना चाहा पर वह खुला ही नहीं। संगीता ने उसकी बदहवासी को शांत करने की गरज से एकदम नरम स्वर में समझाया, ''परेशान ना हो। इसका मतलब यह हुआ कि यह सूटकेस तुम्हारा नहीं है। 'पुष्पक' को फ़ोन करो।''
''यह हो ही कैसे सकता है? सूटकेस हू-ब-हू वही है। ताला तक मेरे जैसा लगा हुआ है, वही लंदन वाला। सामान-पट्टी पर सबसे पहले हमारा सामान बाहर आया। पहले तुम्हारा सूटकेस फिर मेरा और तीसरा होल्डाल- तीनों साथ-साथ। मैंने तीनों उतारे और ट्रॉली पर रखे।''
''अच्छा तो ज़रा उलट-पलट कर देखो।''
रीटा ने चारों तरफ़ से चेक किया। एक कोने में नन्हा-सा नाम चिन्ह नज़र आया- एम.जी.।
''मैं तो मारी गई।''
''घबराओ नहीं। पुष्पक के दफ़्तर में फ़ोन करते हैं। ज़ाहिर है कि किसी और को भी यही शिकायत होगी। अगर उसने भी दर्ज़ की होगी तो सुबह तक अदला-बदली करवा लेंगे। धीरज से काम लो।''

रीटा ने फ़ोन लगाया। बहुत कोशिशों के बाद एक रात के कर्मचारी ने फ़ोन उठाया और विनम्रता से बताया कि वार्षिकी के चक्कर में सारे कार्यकर्ता एक विमान में बैठे उत्सव मना रहे हैं। पीने-पिलाने के दौर चल रहे हैं। कोई आने वाला नहीं। अतः सुबह के कार्यकर्ता जब काम पर आएँगे तभी बात हो पाएगी।

संगीता ने ताला तोड़कर देखने की सलाह दी तो रीटा ने इंकार कर दिया।
''अगर सूटकेस के मालिक ने क्रिमिनल केस बना दिया तो मेरी नौकरी पर आ बनेगी। मेरा अंतर्राष्ट्रीय वीज़ा भी कैंसल हो जाएगा। कुछ और सोचो। मेरा तो सब गया। कितने चाव से मैंने चेन्नई में खरीदारी करी थी। मुझे हमेशा नज़र लग जाती है। सब जलते हैं कि मैं इतना क्योंकर खर्चती हूँ। यह नहीं सोचते कि और है ही क्या मेरी ज़िंदगी में। पहन ओढ़ ही तो लेती हूँ।''

संगीता को गुस्सा आ गया। क्या रीटा उस पर ईर्ष्या का आरोप लगा रही थी? फिर भी वह अपने मृदु स्वभाव को कम से कम इस कठिन समय में खोना नहीं चाहती थी। अपने को संयत कर चुप मार गई। थकी हुई थी। बिस्तर पर धम्म से लेट गई। शरीर का पोर-पोर दुख रहा था, पर चिंता खाए जा रही थी। ना ना करते भी पच्चीस तीस हज़ार की साड़ियाँ थीं और पुरानी अलग से। कितना ही समझाओ रीटा को पर छुट्टियों पर जाते समय ऐसे तैयारी करती है जैसे फैशन परेड में जा रही हो। मैचिंग के जेवर, पश्मीने की शॉलें, बीस-बीस डॉलर के विदेशी जांघिये, चोलियाँ। फिर मेकअप के सामान की तो पूछो ही मत। परफ्यूम के ब्रांड से प्रदर्शित होता है कि आपकी उम्र कितनी है। जितना पुराना नाम होगा आपको उसी ज़माने के कोष्ठक में आँका जाएगा। अच्छी खासी लाख डेढ़ लाख की चपत लग गई रीटा को इस समय। संगीता को मन का मलाल बेचैन किए जा रहा था। कनपटियाँ जल रही थीं। कलेजा बैठा जा रहा था। मतली-सी आने को हो रहा थी।

रीटा अलग छटपटा रही थी। बदलकर पहनने को रात का ढीला चोंगा भी नहीं था। फैशनेबल सूट बदन पर कस रहा था। दुखी मन से वह अपने पर ही गरियाती रही, फिर दाँत पीसकर माथे पर हाथ मारने लगी। उसके निरंतर पश्चाताप व बैन करने से संगीता के आँसू बह निकले। झपट कर उठी, उसे गले लगाया और थोड़ा पानी पिलाया

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