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पीले शर्ट वाले ने मुझे बताया कि उसका नाम पीटर हैरिंगे है और वह इस असेस्मेंट सेंटर की देख-रेख अपने अन्य सहयोगियों और सदस्यों के साथ करता है। आगे उसने असेस्मेंट सेंटर का उद्देश्य बताते हुए मुझे संबोधित करते हुए कहा, 'मिस रॉजर्स नहीं..नहीं, स्टेला, क्यों ठीक है न? हम इस सेंटर में सबको उनके पहले नाम से ही बुलाते हैं क्यों कि यहाँ कोई बॉस नहीं है सब दोस्त हैं। हम सब मिल कर आपस में विचार-विमर्श कर सेंटर का प्रबंधन करते हैं। यह असेस्मेंट सेंटर एक प्रगतिशील प्रयोगशाला है।' मैं चुप, वह जो कुछ कह रहा था वह सब मेरे लिए बिल्कुल नया था, मेरे अबतक के अनुभव के बाहर। आज तक किसी ने मुझसे इस तरह सम्मान देकर बात नहीं की थी। मैं बार-बार अंदर ही अंदर संकुचित हो जाती। आगे उसने मेरा ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए मुझे मेरे पहले नाम से संबोधित करते हुए कहा, 'स्टेला!' हमारी पूरी कोशिश होती है कि इस असेस्मेंट सेंटर में आने वाली हर किशोरी को आठ-दस हफ्ते के अंदर या तो किसी अच्छे परिवार में जगह मिल जाए या वह किसी वोकेशनल ट्रेनिंग में लग जाए या फिर छोड़ी हुई अपनी पढ़ाई चालू कर लें।' उसने कुछ किताबें और कॉमिक्स मेरे हाथ में देते हुए कहा, 'इस समय सेंटर में दस लड़कियाँ है जिनमें से तीन लड़कियों के फ़ोस्टर पैरेंट्स मिल चुके हैं, वे दो-तीन दिन में चली जाएँगी।' मेरा क्या होगा? क्या मुझे भी कोई फोस्टर करेगा? मैं अपने भविष्य की कोई तस्वीर नहीं बना पा रही थी। मेरी हीन ग्रंथियाँ मुझे अपने शिकंजे में कस रही थीं। मेरा उदास चेहरा, रीढ़ की झुकती हड्डी और सिकुड़ते कंधे मेरे अंदर की बेचैनी को मुखर कर रहे थे... पीटर थोड़ी देर मुझे गौर से देखता रहा फिर कुर्सी से उठते हुए स्मित हास्य से बोला, 'आओ स्टेला, चलो! तुम्हें सेंटर के भूगोल से परिचित करा दूँ।'

मैं बेमन से उठ खड़ी हुई और उसके साथ भारी क़दमों से चल पड़ी।
पीटर जो कुछ कह रहा था वह सब पूरी तरह से मेरी समझ में नहीं आ रहा था। पर उसके व्यक्तित्व में कुछ ऐसा था कि उसके साथ चलने में मुझे तनाव नहीं अजब-सा सकून और भरोसे का आभास मिल रहा था। सेंटर का रख-रख-रखाव, सुंदर, प्रियदर्शी निखरे हुए शोख रंग इस तरह के थें मानो मुझसे कह रहे हों, आओ मुझे आजमाओ, मुझे जानो, मुझे परखो। यहाँ दुराव या चुनौंती नहीं दोस्ती जैसा कुछ आभास हो रहा था।

निचले तल्ले पर बने लाउँज, किचन, लाइब्रेरी आदि दिखाने के बाद सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उसने पहले तले पर एक सीधी रेखा में बने वाशरूमस की ओर इंगित करते हुए कहा, 'इस तल्ले पर पाँच वाशरूम और एक फैमिली रूम है जिसमें टेलिविजन और हल्के-फुल्के रीडिंग मैटीरियल रखे होते है। उसके बगलवाला वह बड़ा-सा कमरा जिम है जिसे मार्टिन सुपरवाइज़ करता है। उसके सामनेवाला कमरा, वह रंग-बिरंगे दरवाज़ेवाला, हमारी नाट्यशाला है जिसका प्रबंधन शोहेब और सुब्रीना करते है।' ऊपर तीसरे तल्ले की सीढ़याँ चढ़ते हुए पीटर ने कहा, शोहेब अच्छा खासा जोकर है, नकले बनाने में तो ऐसा उस्ताद है कि इंसान हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाता है।' पीटर मुझसे इस तरह बात कर रहा था जैसे कि मैं उस पर थोपी गई कोई अनाथ नहीं, उसकी कोई मेहमान हूँ। मुझे उसकी बातें अच्छी लग रही थीं। मेरे अंदर के फ्यूज़ बल्ब धीरे-धीरे जलने से लगे थें और मैं अपनी तंग गलियों से बाहर आने लगी...

'सच. मुझे भी नकलें बनाने में बड़ा मज़ा आता है। पार्क हाउस में जब मैं ननों की नकलें उतारती तो मेरे साथी खूब हँसते पर मैं चिल आउट कॉर्नर में सज़ा पाती।' कहने को तो मैं कह गई पर फिर अपने आप में किसी साही (हेजहॉग) की तरह सिकुड़ गई।
उसने शायद मेरा पिछला वाक्य नहीं सुना या सुना तो अनसुना कर दिया।
'अरे वाह! यह तो बड़ी बढ़िया बात है स्टेला। तो तुम विदूषक हो। हम यहाँ अपने सेंटर में हर महीने एक कॉमेडी शो करते है। स्थानीय वृद्धाश्रम के शौकीन उसे देखने आते हैं। तुम्हें यहाँ अपने इस हुनर को विकसित करने के बड़े अवसर मिलेंगे।'
'अरे! नहीं'
'अरे! हाँ' पीटर ने मेरी नकल बनाई, मैं हँस पड़ी। मेरे अंदर जमी बर्फ़-शिला पिघलने को आतुर हुई...' मैंने कहा,
'वह डंगरी पहने, पोनी डेल वाला लॉरल, शोहाब था क्या?' मेरी झिझक टूट रही थी।
'हाँ, पक्का जोकर है, मसखरा। पर अपना काम पूरी मुस्तैदी से करता है।'
'अच्छा, लगता तो सिर्फ़ मस्खरा है।'
'वह तो तुम्हें सहज करने के लिए उसने महज़ एक प्रयास किया था।' मैं फिर यों ही फिस्स से हँस पड़ी। उससे बात करना मुझे अच्छा लग रहा था।

सेकेंड फ्लोर पर दस कमरे थे। पाँच नंबर के कमरे पर मेरे नाम का लेबल चिपकाते हुए पीटर ने कहा, 'लो यह रहा तुम्हारा कमरा।' साथ ही कमरे में लगे लॉकर की चाबी देते हुए बोला, 'और यह रहा तुम्हारा लॉकर। तुम अपने कपड़े और मेकअप आदि का सामान इसमें रख, इसे लॉक कर सकती हो।' मेरा अपना कमरा, मेरा अपना लॉकर इतनी सुलभताएँ! यक़ीन नहीं आ रहा था।

सेंटर की बनावट और साज-सज्जा पार्क हाउस के पुराने-फीके ढंग के रख-रखाव के बिल्कुल उल्ट आधुनिक, नए रंगो में रचा-बसा था। ऐसा स्वतंत्र, प्रियदर्शी वातावरण! अचानक पिघलती शिला फिर हिम खंड बन गई। एक बिल्कुल नए तरह के भय और आशंका से मेरा दिल दहलने लगा। कैसे रह पाऊँगी इस खुले, उन्मुक्त, शोख़ वातावरण में? मुझे तो ट्टुओं की तरह बँधे पाँव से चलने की आदत है। पीटर ने जाने कैसे मेरे अंदर होने वाले हलचल को पहचान लिया। उसने एक बार फिर हल्के से मेरा कंधा थपथपाया और मुझे समझाते हुए बोला,
'यह जगह संरचनात्मक है। पुनर्वास का है। घबराओ मत स्टेला। यहाँ और भी तुम्हारी ही जैसी कठिन परिस्थितियों की दास बन कर रह गई लड़कियाँ रहती हैं। अभी साढ़े तीन बजे है। दस-पंद्रह मिनट में लड़कियाँ ट्रेनिंग सेंटर से वापस आ जाएँगी, फिर सेंटर का सन्नाटा ऐसा टूटेगा कि लगेगा ही नहीं कि यहाँ कभी सन्नाटा था।'
पीटर के बोलने का ढंग उसके स्वरों का उतार-चढ़ाव उसके शब्द-शब्द मेरे खंडित हो रहे आत्मविश्वास को मानो किसी अदृश्य फेविकोल से जोड़ते हुए आश्वस्ति में बदल रहे थे। मेरे अंदर आशा की एक लहर थरथराई... ऐसा सह्रदय, ऐसा संवेदनशील और मेरे मन में उठते हर तरंग को समझनेवाला पथ-प्रदर्शक अगर पहले मिल गया होता तो...
'देखो ये लड़कियाँ बिलकुल भिन्न शहरी परिवेश से आती हैं अतः ये तुमसे बहुत भिन्न मुँहफट, चुलबुली, दादा टाइप और दंगेबाज़ हैं। पर सब दिल की अच्छी हैं। जैसी भी हैं उन सबमें कई अच्छे जन्मजात गुण भी है। उनके ये गुण उनकी परिस्थियों और परिवेश ने कुचल कर अवरुद्ध कर दिए हैं। पर धीरे-धीरे उनमें आत्मविशवास के साथ जीवन के प्रति नए दृष्टिकोण भी पनप रहे हैं।' मेरे आँखों में आश्चर्य उभर आया, यह पीटर क्या मुझे, मेरे ही बारे में इन लड़कियों के बहाने से बता रहा है।
'पीटर, तुमने मेरी रिपोर्ट पढ़ी?' मैं थोड़ी सतर्क हुई।
'नहीं, मैं रिपोर्ट असेस्मेंट के बाद पढ़ता हूँ।' मेरी बायीं बाँह को अपनी मुट्ठी के गाठों से सहलाते हुए उसने मुझे आश्वस्त किया।
'क्यों?'
'क्यों कि मैं पहले खुद किताब पढ़ता हूँ फिर आलोचकों की प्रतिक्रिया पर गौर करता हूँ।' वह मेरी ओर देखकर मुस्कराया, प्रतिक्रिया में मैं भी मुस्करा उठी। मैं फिर सहज हो उठी।
'तुम मेरी रिपोर्ट कभी मत पढ़ना पीटर?' मैंने बच्चों की तरह मचल कर कहा,
'नहीं पढूँगा। नहीं पढूँगा।' उसने अपने कानों को हाथ लगा, भौंहों को ऊपर उठा, गोल-गोल आँखें घुमा, सीने पर क्रॉस बना, जोकरों सा हसोड़ मुँह बनाया। मैं खिलखिला कर हँस पड़ी।
'तुम हँसती हो तो आकर्षक लगती हो। तुम्हारे आँखों की चमक बढ़ जाती है और तुम्हारे नन्हें-नन्हें दाँत मोतियों से दमकने लगते है।'
'पीटर!' मैं चीखी 'तुम मेरा मज़ाक मत उड़ाओ! अगर मैं ऐसी ही खूबसूरत होती तो अब तक किसी ने मुझे गोद क्यों नहीं लिया, किसी ने मेरी फोस्टरिंग क्यों नहीं की। मेरा बाप मुझे ठोकरें क्यों मारता रहा था।' मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े। मेरी आवाज़ काँपने लगी,
'मैं क्यों लावरिसों की तरह एक जगह से दूसरी जगह फेंकी जाती रही, जबकि मेरे सभी भाई बहन और साथी एक-एक कर के चयनित होते गए, अच्छे ऊँचे घरों में स्थापित होते रहे और मैं अपमानित और कुंठित होती रही। मुझे नहीं मालूम मेरा अपराध क्या है?' कहते-कहते मैं बिस्तर पर गिर, घुटने में सिर छिपा, फूट-फूट कर रोने लगी। पीटर वहीं पास पड़ी कुर्सी पर बैठा थोड़ी देर मुझे रोता देखता रहा, फिर उठ कर नीचे चला गया, जब लौटा तो उसके हाथ के ट्रे में चाय के दो मग, सैंडविच और पानी के गिलास थे। उसने पानी का गिलास मुझे पकड़ाते हुए कहा, 'यह अच्छा हुआ कि तुम रो पड़ी। जाने कबसे यह रुदन. यह घुटन तुम्हारे अंदर कैद थी। कभी-कभी रो लेना सेहत के लिए अच्छा होता है।' उसने पास रखे टिश्यू बॉक्स को मेरे हाथ में पकड़ाते हुए कहा, 'यह जीवन विसंगतियों से भरा हुआ है। इसका कोई समीकरण नहीं है।'
'क्यों? क्या, तुमने यह नाटक, ये शब्द, यह व्यंग्य मुझे रुलाने के लिए कहे थे, पीटर? तुम भी और लोगों की तरह मुझे जंगली, बेवकूफ और मंदबुद्धि समझते हो।' मेरे देह की सारी नसें तनी हुई थीं। मेरी आँखों से चिनगारियाँ निकल रही थीं।

'नहीं!' पीटर ने छोटा-सा उत्तर देकर मानों मुझे ख़ारिज कर दिया। मेरे तन-बदन में आग लग गई, मैंने आग्नेय नेत्रों से उसे देखते हुए कर्कश आवाज़ में कहा,
'झूठ, पीटर, झूठ! मैं जानती हूँ कि मैं ख़ूबसूरत नहीं हूँ। तुमने मुझे ख़ूबसूरत क्यों कहा? मेरी दुखती रग पर कटाक्ष क्यों किया? इमांदारी से जवाब दो।' मैं फिर आवेश में आकर सुबकने लगी।
'स्टेला, मैंने तुम्हें खूबसूरत नहीं कहा।' पीटर की प्रौढ़ आवाज संतुलित और गंभीर थी। जाने कैसे मैं दत्तचित्त उसे सुनने के लिए तैयार हो गई।
'मेरे शब्दों को याद करो। मैंने कहा था जब तुम हँसती हो तो आकर्षक लगती हो।'
'एक ही बात' मैं फिर ज़िद पर उतर आई।
'नहीं, यह एक ही बात नहीं है। एक तीखे नाक-नक्श वाला खूबसूरत इंसान यदि हीन ग्रंथियों से ग्रसित, सदा मुँह लटकाए रहता है तो उसके तीखे नाक-नक्श पर किसी की दृष्टि नहीं पड़ती है, इस लिए वह आकर्षक नहीं लगता, उसकी खूबसूरती किसी को नज़र नहीं आती। पर एक साधारण मुखाकृति वाला भी जब खिलखिलाकर हँसता है तो वह आकर्षक और खूबसूरत हो उठता है।' उसने मेरी आँखों में सीधा देखते हुए कहा,
'तुम्हारी बातों में सच्चाई है।' मैं फिर सहज होने लगी। मेरी ग्रंथियाँ खुल रही थीं। मुझे पीटर से इस असभ्यता से बात करने का कोई हक़ नहीं है। मैंने अपने आप को मन ही मन धिक्कारा।

'सॉरी पीटर, मुझे तुमसे इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए।'
पीटर ठहाका मार कर हँस पड़ा, उसकी हँसी मुझे अच्छी लगी।
'क्यों नहीं करनी चाहिए? तुम्हें किसी की कोई बात ठीक नहीं लगती तो तुम्हें पूरा अधिकार है कि तुम अपना विरोध जाहिर करो। अगर हम अपनी प्रतिक्रियाओं को अभिव्यक्त नहीं करेंगे तो लोग हमें सुनेंगे कैसे? हमारे इस सेंटर में भिन्न-भिन्न परिवेश के लोग आते हैं। कुछ अपराधी प्रवृत्ति के होते है उनकी सोच बिल्कुल अलग होती है। पर हम यहाँ खुलकर आपस में एक-दूसरे के विचारों पर टिप्पणियाँ देकर अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ जाहिर करते है। इसी तरह हम एक-दूसरे को कभी एकबारगी, कभी धीरे-धीरे समझने लगते है।' पीटर की आँखों में सच्चाई और ईमानदारी थी। मैं फिर सहज होने लगी, मेरी ग्रंथियाँ फिर खुलने लगी, अतः वाचाल हो उठी,
'मालूम पार्क-हाउस की ननें गोरी-चिट्टी होने के बावजूद मुझे कभी सुंदर नहीं लगीं, वे मुझे हमेशा चुड़ैल लगतीं, पर बूढ़ी डैमियन का झुर्रीदार चेहरा फरिश्ता-सा कोमल लगता, वह मेरी, मरियम थी।'

पीटर मेरी बातें सुन कर मुस्कराया, उसकी मुस्कराहट ने मुझे कुछ और आश्वस्ति प्रदान की।
'मुझे खुशी है कि तुम अपने आप से बाहर आ रही हो। आश्वस्त हो रही हो।' कहते हुए पीटर ने ट्रे में रखे हुए सैंडविच की ओर इंगित करते हुए कहा, 'यह रहा तुम्हारा लंच। चाहो तो तुम आराम करो अन्यथा नीचे ऑफ़िस में आ जाओ। शायद असेस्मेंट सेंटर के बारे में तुम और कुछ भी जानना चाहो।'
'हाँ, ठीक है पीटर, मैं फ्रेश होकर आती हूँ।'
'अरे हाँ' चलते-चलते वह बोला, 'कल सुबह तुम्हारा असेस्मेंट होगा, तुम्हारे स्कोर पर, तुम्हारी रुचि के अनुसार, तुम्हें वोकेशनल ट्रनिंग के लिए भेजा जाएगा। और सुनो एक खुशखबरी, तुम्हारे बेनेफिट (अनएम्प्लॉएमेंट भत्ता) के पेपर्स आ चुके हैं कल मार्टिन के साथ जा कर जायरो बैंक में अपना एकाउंट खोल लेना। अब तुम आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो, बैंक में आए पैसों का प्रबंधन तुम कैसे करोगी यह तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है। बैंक के कागज़, पिन नंबर, चेकबुक, क्रेडिट कार्ड बेहद सँभाल कर लॉकर में रखना होगा। ठीक। पैसे भी सँभाल कर खर्च करने होते है। इन पैसों की बजटिंग करनी होती है, तब कहीं जाकर पूरे हफ़्ते का खर्च चल पाता है।'
इतनी जटिल, इतनी सुंदर बातें, इतने धीरज और विस्तार से! जीवन में पहली बार किसी ने मुझे इतना महत्व और समय दिया। कृतज्ञता से मेरा दिल भर आया।
मैंने 'हाँ' में सिर हिलाते हुए पीटर को आश्वस्त किया।
उसने उँगलियाँ मोड़ कर गाठों से मेरे गाल को सहलाया।
'मुझे यहाँ कब तक रखा जाएगा?'
'तुम्हारे अगले जन्मदिन तक, जबतक तुम सतरह वर्ष की नहीं हो जाओगी।'
'फिर?'
'इस एक वर्ष में तुम्हें वाह्य संसार से ताल-मेल बैठाने के अवसर बार-बार मिलेंगे, टेम्पिंग (शॉर्ट-टर्म की नौकरियाँ) करने को मिलेगी और तुम समाज में रहना और उसके ऊँच-नीच को समझना सीख जाओगी। '
'और कोई प्रश्न माई डीयर?'
'अभी नहीं, इतना सबकुछ पचा सकना आसान नहीं है मेरे लिए। मुझे जीवन का कोई अनुभव नहीं है। मैं सदा आश्रिता रही। पर मैं तुम्हारी आभारी हूँ, तुमने मुझे इतना समय दिया।' वह फिर वही मीठी हँसी हँसा,
'यह तो मेरी नौकरी है। रिलैक्स, ओ. के. फिर मैं चलता हूँ।'
'यस पीटर।' लोग इतने भी अच्छे और सहज हो सकते हैं। सहसा मुझे लगा कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रही हूँ।

पीटर के जाने के बाद मैंने उस छोटे से कमरे के दीवारों की ओर देखा जिस पर नन्हें-नन्हें सुर्ख़ फूलोंवाला हल्के नीले रंग का पेपर लगा हुआ था। एक कोने में टेबुल चेयर, पलंग और लॉकर के साथ एक सुर्ख रीडिंग लैम्प। कमरे की साज-सज्जा मुझे अच्छी लगी, यह मेरा अपना कमरा है। सोचते हुए लॉकर में कपड़े रख कर मैंने उसका दरवाज़ा बंद किया और बिस्तर पर आ कर लेट गई। कब आँख लगी पता नहीं।
अचानक भयंकर शोर-गुल के साथ धम-धम सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ आनी शुरू हो गई। ऐसा लग रहा था मानों भूचाल आ गया हो। शायद मैं सपना देख रही थी अचानक तेरह से लेकर सोलह वर्ष की सात-आठ लड़कियाँ धक्कम-धुक्का करती बिना किसी पूर्व सूचना और औपचारिकता के कमरे में घुस आई। न किसी ने मेरा नाम पूछा, न ही अपना नाम बताया बस मुझे देखते ही पूछने लगीं कि मैं किस अपराध के कारण यहाँ भेजी गई हूँ?

किस अपराध के कारण मैं यहाँ भेजी गई हूँ? यही प्रश्न तो मैं अपने से बार-बार करती आई हूँ। इतने अजनबियों के बीच अपने को घिरा पाकर मैं हड़बड़ा गई, उन्हें जवाब देने के लिए मैं फिर दुबारा से जल्दी-जल्दी सोचने लगी कि मैं यहाँ क्यों भेजी गई हूँ? पर मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। मुझे अपना किया कोई भी अपराध याद नहीं आ रहा था। अतः मैंने हकलाते हुए कहा, 'म...म...मुझे नहीं मालूम।'
'ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम्हें अपना अपराध ही नहीं याद हो फ़किंग इडियट (ब...मूर्ख)?' एक ने मुझे मुँह बिराते हुए कहा, 'झूठ बोलती है साली।'
एक लंबी-सी लड़की ने, मेरे चेहरे को अपने सख़्त हाथो में उठाकर मेरी आँखों में आँखें डाल कर पूछा,
'तू दोगली (बास्टर्ड) है?। ' शब्द का सही अर्थ समझे बिना मैं बोली,
'नहीं'
'डमडम (बेवकूफ़)!' पीछे से किसी ने उँची आवाज़ में कहा,
'पाकी है साली!'(पाकिस्तानी का संक्षिप्त, हिंदुस्तानियों और पाकिस्तानियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला गाली जैसा नकारात्मक शब्द)

मैं सिर झुका, दोनों हाथो में चेहरा थामें आँख बंद कर वहीं पलंग पर धम्म से बैठ गई। जीजस इतनी गंदी ज़बान। ऐसी गालियाँ। पार्क हाउस की नने तो इन्हें सूली पर चढ़ा देतीं। मेरा जीवन भले ही कितना अपमानजनक रहा हो पर किसी ने ऐसी भद्दी और बत्तमीज़ी की बातें मुझसे नहीं करी थीं। मेरा दिल बुरी तरह से धड़क रहा था। मुझे लग रहा था अब ये लड़कियाँ मुझे ज़रूर पीटेंगी...पीटर-पीटर! कहाँ गया पीटर? क्या इन्हीं भयंकर लड़कियों के साथ मुझे रहना होगा? घबराहट से मेरे हाथ-पाँव ठंडे होने लगे।
'चल, छोड़ यार, यह तो बेकार समय की बरबादी है (वेस्ट ऑफ़ टाइम)।' एक ने धीरे से कहा।
'सचमुच डर गई।' किसी और ने कहा और धीरे-धीरे सब वहाँ से खिसक गई।
थोड़ी देर बाद जब मैंने आँखें खोली तो वहाँ अभी भी एक ललछौंहे घुंघराले बालों वाली गोरी पर फ्रेकल्ड चेहरे (हल्के भूरे तिलों से भरा) की बारह-तेरह वर्ष की मुझसे भी छोटे क़द-काठी की दुबली-पतली लड़की खड़ी मुझे बिल्ली की तरह घूर रही थी।
'क्या तुमने सचमुच कोई अपराध नहीं किया, पाकी?'
'किया था एक बार ननरी के किचन में से पेस्ट्री चुराई थी। पर किसी ने मुझे चुराते हुए नहीं देखा। मैं पकड़ी नहीं गई।' मैंने कहा।
'छीः' उसने बुरा-सा मुँह बनाते हुए कहा, 'यह भी कोई अपराध है, यह तो बड़ी बचकानी हरकत है?' मेरे नादानी पर वह चहकी और बहस कर जल्दी-जल्दी बोली, 'मैं तुम्हें कार चुराना सिखाऊँगी। ईज़ी-पीज़ी (बेहद आसान)। कार चुराने का अपना मज़ा है। गाड़ी चुराओ, खूब तेज़ दौड़ाओ और फिर किसी पॉश गाड़ी से टक्कर मार, नौ दो ग्यारह हो जाओ। पकड़े जाओ तो फ़किंग रिमॉन्ड कस्टडी (पुनर्वास सुधार-संरक्षण) और जुविनाइल केस (किशोर-अपराध)। समझी स्टुपिड पाकी।' कहते हुए, जाने ही वाली थी कि मैंने उसका हाथ पकड़ कर कहा,
'तुमने मुझे पाकी क्यों कहा? मैं पाकी नहीं हूँ। मैं स्टेला रॉजर्स हूँ। मेरा बाप गोरा था। मैं गोरी हूँ।'

वह हाथ छुड़ा कर भागते-भागते कहती गई,
'रंग गोरा होने से क्या होता है पाकी, तेरी काली आँखे बोलती हैं, तू दोगली है। दोगली तो मैं भी हूँ। मेरा बाप काला (अफ़्रिकन) और माँ गोरी (अंग्रेज़) थी, दोनों सड़क दुर्घटना में मारे गए! मुझसे दोस्ती करोगी?।'
मेरी आँखों के आगे से जैसे उसने कोई पर्दा हटा दिया, बिस्तर पर पड़े-पड़े मेरे दिमाग में रह-रह कर मेरे जन्म और ज़िंदगी से जुड़े तरह-तरह के दर्दनाक नस्ली सवाल उछल-उछल कर मेरे ज़ेहन में आने लगे।

'मैं कौन हूँ?' 'मैं स्टेला रॉजर्स हूँ।' 'नहीं तुम रॉजर्स नहीं हो?' मेरे दिमाग के किसी कोने से उत्तर आया। 'मैं रॉजर्स क्यों नहीं हूँ मेरे बर्थ सर्टिफिकेट से लेकर मेरे स्कूल सर्टिफिकेट पर मेरा नाम स्टेला ऱॉजर्स लिखा हुआ है।' मेरा दिमाग चकरघिन्नी-सा धूमता भन्ना रहा था पर साथ ही कई उलझे तार सुलझ भी रहे थे। 'तुम्हारी आँखें नीली और रंग डैनियल रॉजर्स की तरह गोरा-चिट्टा नहीं है।' 'तो?' 'तो क्या? 'डैनियल रॉजर्स तेरा बाप नहीं था, इसीलिए वह तुझे ठोकरें मारता था, उसे तेरे सूरतो-शक्ल से चिढ़ थी। तेरा गंदुभी रंग और काली आँखें उसके पौरुष को ललकारता था। तेरे और भाई बहन उसकी तरह चिट्टे गोरे-और नीली-भूरी आँखों वाले हैं।' 'तो?' 'तेरी माँ ने अपनी सुविधा के लिए तुम सब भाई बहनों को 'रॉजर्स सर नेम' की छतरी पकड़ा दी।' 'तो?' 'तो क्या मूर्ख, तू उस छतरी में छेद थी...।' खुद से बातें करते-करते जाने कबतक मैं रोती-सिसकती रही मुझे याद नहीं, शायद रोते-रोते मैं सो गई।

जब मैं सुबह उठी, वहाँ कोई नही था, वे लड़कियाँ कौन थी? क्या मैं कोई भयानक सपना देख रही थी? सोचते-सेचते नहा-धोकर जब मैं नीचे आई पीटर आफ़िस मे बैठा कुछ काम कर रहा था। मैंने दरवाज़े को हलके से खटखटाया,
'अंदर आओ स्टेला...' वही कल वाली विहँसती, आश्वस्त करती आवाज़।
'गुड मॉर्निंग!'
'हाय! तुम बैंक जाने के लिए तैयार हो? मार्टिन आता ही होगा।'
'अभी पाँच मिनट का समय है। मुझे तुमसे कुछ पूछना है?' मेरी सहमी आवाज़ में आवेग का कंपन था।
'पूछो न, मैंने तो कल भी तुम्हारा इंतज़ार किया, पर शायद तुम थकी थी। शोहाब और सुब्रीना ने बताया तुम गहरी नींद सो रही हो।' वही सहज, संतुलित और आश्वस्त करने वाला अंदाज़ कहीं कोई उपालंभ नहीं।
'मेरा क्या अपराध है? मुझे अपराधियों के साथ क्यों रखा गया है? मैंने थरथराती आवाज़ में उससे पूछा।
'तुम्हारा कोई अपराध नहीं है!' उसके स्वर में सांत्वना थी 'तुम अपराधियों के साथ नहीं, अपनी हम-उमर किशोरियों (टीनएजर) के साथ हो, जो तुम्हारी ही तरह किसी दूसरे तरह के विक्टिम ऑफ सरकमस्टाँसेज ( परिस्थितियों की सताई) की शिकार रही हैं।'

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२४ मार्च २००८

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