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लंदन से एक बार फिर फ़ोन आया है। बीस तारीख़ को आ रही हैं छोटी जान। बीस तारीख़ सकीना का जन्मदिन बीस फ़रवरी, उसके पुत्र परवेज़ का जन्मदिन बीस नवम्बर! मोहसिन और सकीना की शादी बीस मार्च! मोहसिन गोली से बाल बाल बचा - बीस जुलाई! और अब छोटी जान का आगमन - बीस सितम्बर! बीस तारीख़ का सकीना के जीवन में बहुत महत्व है।
''सुनिए, आप मौलवी जी से पूछिए कि छोटी जान का बीस तारीख़ को आना क्या अल्लाह की किसी ख़ास मरज़ी से हो रहा है।''
''मुझे नहीं लगता कि इस मामले में मौलवी साहब कुछ बता सकते हैं। वह रस्तोगी न्यूमोरोलोजिस्ट है, उससे बात करता हूँ। यह नम्बरों और तारीख़ों के बारे में उसकी नॉलेज बेहतर है''
''हाँ बात करके देखिए। शायद ये बीस तारीख़ हमारा काम बनवा दे''
''लेकिन छोटी जान ने कहा है कि उनके साथ दो जर्नलिस्ट भी हैं। हमें कमरे में कुछ फ़र्नीचर तो रखवाना ही पड़ेगा।''
''हाँ उन्नीस तारीख़ से एक हफ़्ते के लिए टेंट वाले से भाड़े पर ले लीजिए। एक तो सोफ़ा सेट ले लीजिए दो टेबल खाना लगाने के लिए साथ में डोंगे, प्लेटें, कटलरी वगैरह बारह लोगों के के लिए आर्डर कर दीजिए. उस्मान मियाँ को कह दीजिए।''
''बीस की दोपहर का खाना भी आफ़ताब के रेस्टोरेंट से आर्डर कर देता हूँ।''
''रहने दो जी... घर में सस्ता पड़ेगा।''
''मैं तो तुम्हें आराम देने के ख़्याल से कह रहा था। रोज़ा रख कर तुम्हें डबल मेहनत पड़ जाएगी।''
''आप मेरी फ़िक्र छोड़िये। और फिर छोटी जान तो, आपने बताया, कि लहसुन और प्याज़ भी नहीं खाती हैं।बस एक डिश गोश्त की बना लूँगी और एक चिकन की बाकी सब तो वेजिटेरियन ही बनाना है। अम्मा कह रही हैं कि अचारी करेले और अरहर की दाल तो वे ही बनाने वाली हैं। छोटी जान को बचपन में ये दोनों चीज़ें बहुत पसन्द थीं।''
''चलो फिर मीनू तुम ही तय कर लेना।''
''ज़रा बच्चों को एक एक जोड़ा नया बनवा दीजिए। छोटी जान तो घर की हैं मगर फूफा जान के सामने पुराने कपड़ों में कैसे दिखेंगे। वैसे भी ईद पर तो लेने ही हैं, थोड़ा पहले ही ले लेते हैं।''
''हाँ ये भी ठीक रहेगा। तुम परेशान न होना। मैं इन्तज़ाम कर लूँगा। पहले तो रस्तोगी से बात कर लेता हूँ। शायद यह बीस तारीख़ हमारी ज़िन्दगी में एक नया रास्ता खोल दे।''
''इंशा-अल्लाह!''
इन्तज़ार की घड़ियाँ भी अजीब होती हैं। कभी कटती नहीं और कभी धड़ाधड़ दौड़ती हैं। मोहसिन का जी चाह रहा है कि संध्या ठाकुर से जा कर पूछ ले कि बीस तारीख़ का पूरा प्रोग्राम क्या है। उहापोह मची है और बीस तारीख़ का सवेरा भी हो गया है। सुबह के आठ बज गए हैं और मोहसिन के दिल में धुकधुकी हो रही है। आज वह सुबह-सुबह दीवार के पास तक चलकर आया है। दीवार को छू भी लिया है दीवार के इस तरफ़ पलस्तर नहीं किया गया है बस ईंटों में बेढब सा सीमेन्ट दिखाई दे रहा है। दीवार के दूसरी तरफ़ पूरी तरह से पलस्तर किया गया है। मोहसिन दीवार को ताके जा रहा है और मन ही मन दुआ कर रहा है - या अल्लाह छोटी जान के हाथों में ऐसी बरक़त बख़्शना कि ये दीवार उनके हाथों से ही टूटे!

दस बज गए हैं। सकीना रसोईघर में काम किए जा रही है। आज गोश्त में खास तौर पर चाप्स मँगवाई गई हैं और चिकन मुग़लई स्टाइल का बनाया गया है। भावज ने आज बरसों बाद किचन में कदम रखा है। वह मसालों के साथ-साथ अपनी मुहब्बत भी उंडेल रही हैं। वहीं से मोहसिन को आवाज़ भी दे रही हैं,''अरे मोहसिन पता तो लगइयो कहाँ तक पहुँचा है काफ़िला मेहमानों का? मैं भी अजब अहमक हूँ अपनी बिट्टो को ही मेहमान कहे जा रही हूँ'' अरहर की दाल में ज़ीरे का छौंक लगा कर उस पर हरा धनिया छिड़क रही हैं भावज। आम के अचार के मसाले से भरवाँ करेले बना रही हैं। सक़ीना ने मीठे के लिए बाज़ार से रसमलाई मँगवाई है तो घर में सिवइयाँ बनाई हैं। लगता है कि रमज़ान महीने के बीचो बीच अचानक चाँद दिखने की उम्मीद में आज ही ईद मनाई जा रही हो। भावज के दिल का चांद तो आज दोपहर ही निकलने वाला है।

मोहसिन का मोबाइल बज उठा है। काफ़िला बनारस से संध्या ठाकुर की बहन रूपा सिंह के घर से नाश्ता करके चल पड़ा है। मोहसिन परेशान है। पहले केवल संध्या ठाकुर उनके हक़ पर डाका डाल रही थी। अब उसकी बहन भी साथ जुट गई है। एक डेढ़ बजे तक स्कूल पहुँच जाएगा काफ़िला। मोहसिन से वहीं आने को कह दिया गया है ताकि वह उन्हें अपने घर ले जा सके। क्या संध्या ठाकुर की बहन से छोटी जान ने बात की होगी?

सकीना बच्चों को नहाने को कह रही है। आज उन्हें नहा कर नये जोड़े पहनने हैं। बच्चे ख़ुश हैं मगर फिर भी कुछ सहमे सहमे हैं। आज उनके घर एक अमीर रिश्तेदार आऩे वाला है। निलोफ़र सलाद काट कर माँ का हाथ बँटा रही है। अरशद और नवाब बरतन धोकर पोंछ रहे हैं और मेज़ पर लगा रहे हैं। घर में सही तौर पर त्यौहार का माहौल है। अचानक घड़ी की सुइयाँ आहिस्ता आहिस्ता चलने लगी हैं। घड़ियाँ प्रतीक्षा की जो हैं।

मोहसिन सोच में डूबा है। उसने आज छोटी जान को दिखाने के लिए ट्रैक्टर किराए पर ले रखा है, एक टोयोटा क्वालिस भी मँगा ली है। ड्राइवर नहीं बुलाया। ख़ुद ही चलाएगा। दोनों बेटे बार-बार क्वालिस को छूकर देख रहे हैं। मोहसिन ने अपने बाल भी एक दिन पहले ही रंग लिए हैं। मूँछों को भी काला किया है। साढ़े बारह बज गए हैं। यानि कि काफ़िला किसी भी पल राजकीय उच्चत्तर कन्या विद्यालय तक पहुँच जाएगा। सोचते ही मोहसिन के पेट में मरोड़-सा उठा है। लपक कर लैट्रिन में दाखिल हो गया है। आज उसने हाथ धोने के लिए भी अस्थायी वाश बेसिन टेन्ट वाले से ही किराये पर ले लिया है। दुकान वाले को उसकी बात ठीक से समझ नहीं आई, वह ग़लती से दो वाश बेसिन ले आया है। मोहसिन दोनों वाश बेसिन में पानी भर रहा है।

मोबाइल फिर बजा है। छोटी जान स्कूल पहुँच गई हैं। भावज ने डांट लगाई है,''अरे अभी तक घर में घुसा हुआ है। तुझे तो वहाँ पहले से खड़ा रहना चाहिए था। वह जब गाड़ी से उतरती तो उसका इस्तेकबाल करता। अब तो वो लोगों से घिर जाएगी। उसे मिलेगा कैसे?''
''अरे अम्मा तुम चिन्ता न करो। मैं उनसे बात कर लूँगा।''
मोहसिन क्वालिस के स्टीयरिंग व्हील पर बैठ गया है अरशद और नवाब भी साथ हो लिए हैं। आज़मगढ़ है ही कितना बड़ा? बस पाँच सात मिनट में इस्कूल के बाहर पहुँच गया। वहाँ भी कुछ त्यौहार का सा माहौल लग रहा था। मोहसिन ने देखा कि लखनवी शलवार सूट पहने, कटे बालों वाली एक महिला को स्कूल की प्रिंसिपल हार पहना रही थी। जीन के नीले रंग का कुर्ता पहने एक पुरुष उनके फ़ोटो खींच रहा था। यह ज़रूर उन पत्रकारों में से एक होगा - सोचने लगा मोहसिन। एक बुज़ुर्ग से सज्जन के साथ लाल कमीज़ पहने एक और पुरुष खड़ा था। मोहसिन को अन्दाज़ लगाने में ज़रा भी कठिनाई नहीं हुई कि बुज़ुर्ग दिखाई देने वाले सज्जन उसके फूफा हैं और लाल कमीज़ वाला दूसरा पत्रकार। फिर ये पाँचवा इऩ्सान कौन हो सकता है जिसके लिए छोटी जान खाना बनाने की बात कह रही थीं। कोई और दिखाई भी नहीं दे रहा। मोहसिन ने हाथ हिला कर छोटी जान को बताना चाहा कि वह आ चुका है। मगर छोटी जान अपने प्रशंसकों से घिरी हुई थीं।

मोहसिन ने देखा कि प्रिंसिपल छोटी जान को अपने कमरे में ले गईं। साथ ही कैमरे वाला पत्रकार, बुज़ुर्ग सज्जन और लाल कमीज़ वाला भी अन्दर चले गए। मोहसिन कमरे के भीतर घुसने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। उसने बाहर से देखा कि प्रिंसिपल ने छोटी जान को अपनी कुर्सी पर बिठा दिया है। छोटी जान थोड़ा शर्माते हुए मुस्कुरा रही हैं और प्रिंसिपल से बात कर रही हैं। कैमरे वाला पत्रकार फ़ोटो खींच रहा है। बुज़ुर्ग सज्जन न तो मुस्कुरा रहे हैं और न ही बातचीत में कोई दिलचस्पी दिखा रहे हैं। वे और लाल कमीज़ वाला आपस में बात कर रहे हैं।

छोटी जान के लखनवी शलवार सूट का सफ़ेद रंग उनके व्यक्तित्व को भव्यता प्रदान कर रहा है। छोटी जान स्कूल में जिधर भी जा रही हैं उनके पीछे अध्यापकों और विद्यार्थियों की भीड़-सी चल पड़ती है। मोहसिन ने कभी सोचा भी न था कि छोटी जान इतनी बड़ी हस्ती हो सकती हैं। थोड़ी देर बाद ही संध्या ठाकुर भी आ गई हैं। उन्हें भी जब छोटी जान को दी जाने वाली इज़्ज़त का अहसास हो गया, तो वे भी बुज़ुर्ग सज्जन के साथ बातचीत में व्यस्त हो गईं। वे तीनों अब आपस में बात कर रहे थे। अचानक वह कैमरे वाला पत्रकार आकर इन तीनों के चित्र खींचने लगा। छोटी जान के निकट एक बन्दर आकर उनके साथ खेलने की मुद्रा में आ गया। छोटी जान भी उसके साथ बात करने लगीं। फ़ोटोवाले का कैमरा खटाखट वाली मुद्रा में आ गया।

मोहसिन ने देखा कि छोटी जान ने कैमरे वाले पत्रकार को नज़दीक बुलाया और उसे कुछ कहा। उसने अपना पर्स निकाला और हज़ार हज़ार के कुछ नोट गिन कर एक लिफ़ाफ़े में डाले और वह लिफ़ाफ़ा छोटी जान को दे दिया। छोटी जान ने प्रिंसिपल के कान में कुछ कहा और वह लिफ़ाफ़ा उनके हवाले कर दिया। मोहसिन को लगा जैसे उसके हिस्से के कुछ पैसे बँट गए हों। किसी ने उसके हक़ पर डाका डाल दिया हो। उसने अपने पुत्रों की तरफ़ देखा, वे दोनों इन सभी बातों से अनभिज्ञ आपस में बातें कर रहे थे।

छोटी जान अपने साथियों के साथ अपनी सफ़ेद इनोवा वैन की तरफ़ बढ़ीं। स्कूल की लड़कियों ने जो एक बार आटोग्राफ़ लेने का सिलसिला शुरू किया तो थमने में ही नहीं आ रहा था। छोटी जान हँसते-हँसते सभी को ख़ुशियाँ बाँट रही थीं। संध्या ठाकुर ने उनको अपनी कार में बिठा लिया और बाकी सभी लोग इनोवा में समा गए। काफ़िला चल दिया। मोहसिन ने अपनी क्वालिस वैन उनके पीछे लगा ली।

छोटी जान की गाड़ी संध्या ठाकुर के घर के सामने जा कर रुक गई। मोहसिन ने देखा कि छोटी जान दीवार की तरफ़ इशारा करके संध्या ठाकुर से कुछ बात करने लगी। संध्या ठाकुर के चेहरे पर शर्मिन्दगी के भाव उभरे। वे जैसे छोटी जान को कुछ आश्वासन देती सी दिखाई दीं। इतने में मोहसिन की जेब में मोबाइल बज उठा। छोटी जान ही बात कर रही थीं, ''जी छोटी जान, मैं मेन रोड पर आपका इन्तज़ार कर रहा हूँ। इस्कूल से आपके साथ ही साथ आया हूँ।''
''अरे तुम स्कूल तक आए थे क्या? फिर मिले क्यों नहीं?''
छोटी जान संध्या ठाकुर की कार से उतरीं और मोहसिन जा कर उनसे तपाक से मिला,''छोटी जान! कैसी हैं आप?''
छोटी जान ने उसे गले से लगा लिया,''देखो मोहसिन मैंने संध्या जी से बात कर ली है। अब तुम मेरे पीछे इनसे मिल कर इनकी मदद माँग लेना। अब यही तुम्हारी मुश्किल हल करेंगी।''
''जी छोटी जान'' मोहसिन ने संध्या ठाकुर को सलाम करते हुए कहा। उसे संध्या ठाकुर का चेहरा दीवार में से निकले रास्ते जैसा दीखने लगा।

छोटी जान संध्या ठाकुर की कार से निकल कर मोहसिन की क्वालिस में बैठ गईँ हैं। दोनों बेटे पीछे की सीट पर बैठे अपने मेहमान को टुकर-टुकर ताके जा रहे हैं।
''भावज कैसी हैं मोहसिन? और सकीना? उससे तो आज पहली बार मिलने जा रही हूँ। और इन दोनों के क्या नाम हैं?''
''यह नीली कमीज़ वाला बड़ा है अरशद दूसरे का नाम नवाब है। बेटी का नाम निलोफ़र है। बड़ा वाला सेकंड ईयर कामर्स में है, निलोफ़र प्लस टू के फ़ाइनल यानि कि बारहवीं में है और नवाब मियाँ दसवीं में हैं। सक़ीना और अम्मा आपका इन्तज़ार कर रही हैं।''
''देखो मोहसिन अभी लोहा गरम है, तुम जल्दी से संध्या ठाकुर से बात कर लेना। अगर देर हो गई तो मामला ठंडा हो जाएगा। वह कम से कम दिखा तो रही है कि उसका इस सारे झगड़े से कुछ लेना देना नहीं है।''
''आप तो कह रही थीं कि पाँच लोग खाना खाएँगे। आप लोग तो चार ही हैं।''
''अरे मोहसिन, हमारा ड्राइवर भी तो खाना खाएगा! उसके समेत तो पाँच ही हुए न?''
''ओह, मैंने सोचा ही नहीं। आपका प्रोग्राम अचानक कैसे बन गया?''
''अरे मैं जनवरी में दुबई गई थी हिन्दी कान्फ़रेन्स में हिस्सा लेने। वहाँ यह जो लाल और नीली कमीज़ वाले पत्रकार हैं न, हमारे साथ ही थे। नीली कमीज़ वाले मेहरा जी हैं, लन्दन से हैं और लाल वाले हिन्दी की एक मैगज़ीन से हैं। इन दोनों ने ही हमारे ट्रिप को सँभाल रखा है। हम कहाँ जाएँगे, कहाँ रहेंगे, क्या खाएँगे, इस सब का खयाल ये दोनों रखते हैं। वैसे तुम्हारे फूफा का खयाल भी यही रखते हैं। यहाँ से मैं गया जाऊँगी और फिर वापस कानपुर और दिल्ली। वहाँ से दुवई और फिर लंदन। यह पूरा ट्रिप लिटरेरी है। बस यहाँ आज़मगढ़ आई हूँ आप लोगों से मिलने और अपना बचपन दोबारा जीने।''

मोहसिन की क्वालिस मुख्य सड़क से हट कर कच्चे रास्ते की तरफ़ मुड़ ही रही थी कि छोटी जान ने मोहसिन से पूछा, ''अरे, ये तो बड़ा पुल है न?''
''जी छोटी जान।''
''अरे ये तो कितना छोटा लगने लगा है। हमारे बचपन में तो यह बहुत बड़ा लगा करता था। इसके जो ये गोल दायरे बने हैं, इनमें घुस कर हम बैठ जाया करते थे''
मोहसिन बस मुस्कुरा भर देता है। अब क्वालिस कच्चे रास्तों में झटके देती आगे बढ़ रही है और उसके पीछे पीछे इनोवा भी आ रही है। छोटी जान खेतों को देख रही हैं और बीते वक्त को याद कर रही हैं। आज स्कूल में मिले स्नेह ने उन्हें भावनाओं से ओतप्रोत कर दिया है। वे सोच रही हैं क्या इतनी भावनाओं को वे सँभाल पाएँगी? उन्हें वह पीपल का पेड़ नहीं दिखाई दे रहा न ही कैरी का,''मोहसिन वहाँ एक पीपल का पेड़ हुआ करता था और उधर दूसरी तरफ़ कैरी का। उनका क्या हुआ।''
''छोटी जान आप तो पचास साल पुरानी बातें कर रही हैं। अब तो कई पेड़ कट चुके हैं।''

अपने प्रिय पेड़ों के कट जाने का दु:ख छोटी जान को भीतर तक भिगो गया है। क्वालिस रुकने लगी है। छोटी जान ने कुछ पलों के लिए आँखें भींच कर बन्द कर ली हैं। गाड़ी पूरी तरह से रुक जाती है। मोहसिन उतर कर छोटी जान की तरफ़ का दरवाज़ा खोलता है। छोटी जान उतरती हैं। उनके पीछे की इनोवा से फूफा जान, और दोनों पत्रकार उतरते हैं।

सबसे पहले सकीना आकर छोटी जान के गले मिलती है। फिर पीछे होकर छोटी जान के चेहरे को अपनी आँखों में उतारती है। भावज अन्दर बैठी हैं। छोटी जान ख़ुद आगे बढ़कर भावज के गले मिलती हैं। भावज अपना रोना रोक नहीं पाती हैं। उनकी कम देखती आँखें भी आँसुओं की धार की तेज़ी को महसूस कर लेती हैं। छोटी जान भावज के हाथ अपने हाथों में लेकर बैठ जाती हैं। नीले कुर्ते वाला पत्रकार भावज के पाँव छूता है। फिर लाल कमीज़ वाला भी वही करता है। फूफा जान को गर्मी महसूस हो रही है। पंखे का रुख़ उनकी तरफ़ कर दिया जाता है।

सकीना अपनी बेटी को लाती है। छोटी जान से मिलवाती है। न जाने क्यों नये कपड़ों के बावजूद, छोटी जान की मौजूदगी में, उसे अपने बच्चे साफ़ सुथरे नहीं लगते। छोटी जान का गोरा चिट्टा रंग और सफ़ेद शलवार कमीज़ की भव्यता के सामने हर चीज़ बौनी होती जा रही है। सकीना महसूस करती है कि बातचीत के लिए कोई नया विषय बन नहीं पा रहा है। वह जल्दी से खाना लगवा देती है। छोटी जान, फूफा और दोनों पत्रकार महसूस कर रहे हैं कि सारा फ़र्नीचर किराए का है। सब चुप हैं। एक मेज़पोश पर मदीना टेंट हाउस कढ़ाई करके लिखा भी हुआ है। छोटी जान भरपूर कोशिश कर रही हैं कि वातावरण सहज बना रहे। लेकिन कोई भी सहज नहीं है। बस भावज की ख़ुशी एकमात्र सहज भावना दिखाई दे रही है। छोटी जान ने अपनी प्लेट में करेला, आलू की सूखी सब्ज़ी और दाल की कटोरी रख ली है। फूफा की प्लेट में केवल मीट है। लाल कमीज़ वाले पत्रकार की प्लेट ऊपर तक भर गई है। नीली कमीज़ वाले का कैमरा फ़ोटो खींचे जा रहा है। छोटी जान के बोलने से पहले ही फूफा जान कह उठते हैं, ''अरे मेहरा जी, अब आप भी प्लेट बना लें। फ़ोटो तो होती रहेंगी।''
''जी, भाई साहब'' और वह भी अपनी प्लेट लगाने लगता है। सभी लोग अलग अलग व्यंजनों की तारीफ़ कर रहे हैं। भावज ख़ुश है क्योंकि दाल और करेले की तारीफ़ सभी कर रहे हैं। भावज छोटी जान के साथ उनके बचपन की बातें कर रही हैं। फूफा जान मीट खा चुके हैं। अब चिकन के साथ रोटी खा रहे हैं। लाल कमीज़ वाला पत्रकार अब चावल पर मीट का शोरबा और चाप्स डाल रहा है। नीले कुर्ते वाला पत्रकार करेले का मज़ा ले रहा है। छोटी जान का खाना भी चिड़िया के चुग्गे जैसा ही होता है। उनके सामने रसमलाई का दोना और सिंवइयाँ रख दी गई हैं। छोटी जान के भीतर की बच्ची अचानक मचलने लगी है। वे थोड़ी सी सिंवइयों के ऊपर एक रसमलाई डाल कर थोड़ा रस भी डाल लेती हैं। फिर तो फूफा जान को छोड़ कर सभी ऐसा ही करते हैं।

हाथ धोने के लिए सब बाहर की तरफ़ आ जाते हैं। वही टेंट हाउस वाले वाश बेसिन पर हाथ धोए जाते हैं। छोटी जान पूछ लेती हैं, ''अरे मोहसिन यह पानी की टंकी कैसी? क्या कोई पार्टी वगैरह रखी थी?''
मोहसिन बात को टाल जाता है। छोटी जान ने मोहसिन को कहा कि वे घर देखना चाहेंगी। घर के नाम पर जो कुछ बचा था, वह छोटी जान को ज़ख़्मी किए जा रहा था। उनके घर के गोल खम्भों वाला बरामदा देखने के लिए लोग दूर-दूर से देखने आया करते थे। छोटी जान, फूफा और दोनो पत्रकार उस बरामदे तक पहुँचे। किसी भुतहा फ़िल्म का दृश्य लग रहा था। कई खम्भे टूट फूट गए थे। रंग पीला पड़ गया था। मकड़ी के घने जाले लटक रहे थे। ''ये कैसे हो गया?'' छोटी जान अपनी निराशा को अभिव्यक्त किए बिना रह नहीं पाई। मोहसिन चुप ही रह सकता था।

छोटी जान ने जब कुआँ देखा तो उसे पाट दिया गया था,''छोटी जान ये बच्चे छोटे थे न तो हमें लगा कि कहीं गिर गिरा न जाएँ। इस लिए कुएँ को पटवा दिया'' छोटी जान को अपना बचपन याद आए जा रहा था जो इस कुएँ के इर्द गिर्द ही बीता था।
''हमारे दादा जान की कब्र कहाँ है। है या वह भी...'' छोटी जान दुआ मना रही थीं कि कहीं वह कब्र भी हटा न दी गई हो।
''वह है, मगर झाड़ झंखाड़ खासे बड़े हो गए हैं, इसलिए दिखाई नहीं दे रही। दरअसल कुछ हिन्दुओं ने उस पर दीया वगैरह जलाना शुरू कर दिया था। इसलिए हमें बताना पड़ा कि हमारे दादा की कब्र है, किसी पीर या औलिया की नहीं। हमें तो यह भी डर था कि कहीं इस कब्र के ऊपर कोई मन्दिर खड़ा करने की संध्या सिंह की कोई चाल न हो। इस तरह वह हमारी बची खुची ज़मीन भी मार सकती थी।''

छोटी जान मोहसिन की कोई भी बात सुन नहीं पा रही थीं। उनकी आँखों से आँसू बहने लगे और हिचकियाँ बँध गईं। फूफा ने आगे बढ़ कर छोटी जान को आग़ोश में ले लिया, और छोटी जान उनके कन्धे पर सिर रख कर फफक पड़ीं। मोहसिन को समझ नहीं आ रहा था कि उसकी प्रतिक्रिया क्या हो, सकीना हड़बड़ा कर घर के अन्दर चली गई, लाल कमीज़ वाला पत्रकार खम्भों को देखता रहा औऱ नीले कुर्ते वाला पत्रकार फूफा के कन्धों पर रोती छोटी जान के आँसुओं को अपने कैमरे में कैद करता रहा।
छोटी जान के आँसू थमे। टेंट से लाए गए वाश-बेसिन पर उन्होंने मुँह धोया और छोटे तौलिए से मुँह को पोंछ लिया। फिर अचानक उनके भीतर की छोटी-सी लड़की ज़िन्दा हो उठी। वे पैदल चलती हुई दूर बहती नदी की ओर चल दीं जहाँ कभी मछलियाँ पकड़ा करती थीं। फूफा के लिए वहाँ तक चल पाना संभव नहीं था। लाल कमीज़ वाला पत्रकार वहीं फूफा से बातें करता रहा। मोहसिन छोटी जान के पीछे-पीछे चल पड़ा और नीले कुर्ते वाला पत्रकार ऐसा कोण ढूँढने लगा जहाँ से नदी छोटी जान के सिर से निकलती दिखाई दे सके। छोटी जान को पता ही नहीं चला कि कब नदी अपना स्थान छोड़ उनकी आँखों से बहने लगी।

वापस आकर छोटी जान ने फूफा के कान में कुछ कहा। फूफा अपना ब्रीफ़केस एक कोने में ले जाकर कुछ खोजने लगे। उन्होंने छिपाते हुए कुछ गिना और एक लिफ़ाफ़े में डाल कर छोटी जान को दे दिया। छोटी जान ने फूफा के कान में फिर कुछ कहा। फूफा ने इन्कार में गर्दन हिला दी। छोटी जान को स्वयं ही वह लिफ़ाफ़ा सक़ीना और मोहसिन को देना पड़ा। सब चलने को तैयार थे। अबकी बार छोटी जान अपनी इनोवा में ही बैठीं। मोहसिन अपने दो पुत्रों के साथ क्वालिस में आगे आगे नेहरू हॉल की तरफ़ रास्ता दिखाते हुए आगे बढ़ रहा था। उसके दिल और दिमाग़ में एक ही सवाल खलबली मचाए था कि लिफ़ाफ़े में कितना होगा? किन्तु उसके लिए नेहरू हॉल तक जाना और वहाँ रुकना मजबूरी थी।

छोटी जान और फूफा को तिलक लगा कर फूलों की माला पहनाई गई। उनके गले में लहरिया प्रिन्ट की चुनरी डाली गई। फिर दोनों पारम्परिक दीया जलाने लगे। मोहसिन चुपके से उठा और मोबाइल से अपने घर फ़ोन मिलाने लगा।
मोबाईल फ़ोन में रिसेप्शन नहीं मिल रहा था। मोहसिन ने दो एक बार फ़ोन को झटका फिर देखा, किन्तु कुछ दिखाई नहीं दिया। एक दो बटन दबाए, किन्तु कुछ हासिल नहीं हुआ।

मोहसिन का दिल कार्यक्रम में नहीं लग रहा था। मन ही मन हिसाब किए जा रहा था,''फ़र्नीचर, क्वालिस, ट्रैक्टर, और खाना वगैरह मिला कर कुल नौ दस हज़ार रुपये तो ख़र्च हो ही गए होंगे। अगर छोटी जान इस से कुछ कम दे गईं तो बहुत नुक़सान हो जाएगा। एक बार फिर फ़ोन की तरफ़ देखता है। हॉल में स्थान बदलता है। किन्तु रिसेप्शन है कि मिल ही नहीं रहा। सोचता है कि हॉल के बाहर जा कर कोशिश करे।

अचानक पूरा हाल तालियों से गूँज उठा। मोहसिन ने सहसा पलट कर देखा, फ़ोन बन्द कर दिया और तालियाँ बजाने लगा।

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२२ मार्च २०१०

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