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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
कैनेडा से डॉ. शैलजा सक्सेना की कहानी शार्त्र


आज तक अनेकों साक्षात्कार मैंने लिए हैं, अनेकों कहानियाँ सुनी हैं पर यह साक्षात्कार बिल्कुल भिन्न था। इसके बाद जीवन के प्राप्य को मैंने कुछ दूसरी ही दृष्टि से देखना शुरू कर दिया।

वह आवश्यक कागज़ों को भर कर फाइल सँभाले थोड़ी उद्विग्नता से कुर्सी में सधी बैठी थी। मैंने पहली बार उसे इसी अवस्था में देखा था। काले चमड़े से मढ़ा शरीर, चमकती सफेद आँखें और चमकते सफेद दाँत। थोड़ा भारी शरीर। काले बालों के बीच हाईलाइट की हुईं लाल लटें, मुझे किसी ने बताया था कि अफ्रीकी महिलाएँ प्राय: विग पहनती हैं क्योंकि उनके बालों का प्रकार उन्हें आधुनिक केश-सज्जा नहीं करने देता। उसके बालों को देख कर मैं क्षण भर को सोच में पड़ी थी कि क्या यह भी विग है? अगर सुंदरता में शरीर के गोरे होने की शर्त न हो तो उसे सुंदर कहा जा सकता था।

मैं उसे ''हलो'' कह कर, मौसम का हाल पूछती साक्षात्कार के कमरे में ले आई थी। नाम पूछने पर बताया, ''शार्त्र लूले''
इसका अर्थ क्या होता है, पूछने पर वह बोली, ''प्रसन्नता, खुशी...''
''क्या तुम खुश हो?'' मैंने हँस कर मज़ाक के स्वर में कहा।
''आपको मुझे देख कर क्या लगता है, आप बताएँ?'' उसने भी हँस कर कहा।

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