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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
यू.के. से शैल अग्रवाल की कहानी ...एक बार फिर


श्रुति एक बार फिर स्कूल में खेले नाटक की वही एलिस थी जो आज तक वन्डरलैंड में ही घूम रही है।

कंचन, मधुर और रिया तीनों ही तो थीं साथ, उसकी अभिन्न और प्यारी सहेलियाँ। तीस साल में पहली बार ऐसा हुआ था कि चारो एकसाथ थीं, एक ही शहर में थीं और एक ही छत के नीचे थी। गरिमा गर्ल्र्स कौलेज की चार होनहार छात्राएँ---- ऐसी छात्राएँ जिनसे हर शिक्षिका को कई कई अपेक्षाएँ थीं, परन्तु हर अपेक्षा और महत्त्वाकाँक्षा को झुठलाती, अपनी अपनी गृहस्थी में ही रमी रह गईं थीं, चारों। कला और प्रतिभा को पुरानी किताब और कौपियों की तरह ही वक्त की दराज में रखकर भूल चुकी थीं वे। इस मिलाप ने आज फिर उन्ही मीठे दिनों की यादों को तरोताजा कर दिया था। आखिर क्यों नहीं --पूरे तीस साल बाद मिली थीं वे और पुराने दिनों को पुन: साथ-साथ जी लेने का इससे ज्यादा खूबसूरत और क्या तरीका हो सकता
है कि वक्त के उड़न खटोले में बैठकर, उन्ही पुराने दिनों, पुरानी यादों को ज्यों-का-त्यों वापस जी लिया जाए।

पुराना जादू फिरसे जग पाएगा या नहीं, नहीं जानती थीं वे परन्तु लक्ष्य तो बस एक वही था--- पुरानी भूख को जगाना और तृप्त करना। जिम्मेदारियों और परिवार के दायित्वों को क्लोकरूम में टाँगे कोटों की तरह भूलकर वे पुरानी यादों में डूब चुकी थीं... पलपल का भरपूर आनन्द लेती और पुराने और बेफिक्र मस्त दिनों को एक-एक करके शीशे में उतारती।

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