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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
यू.के. से उषा राजे सक्सेना की कहानी इंटरनेट डेटिंग


उस दिन स्काइप पर सौम्या, ममी-पापा से उनके विवाह की पचीसवी वर्षगाँठ लंदन में मनाने की योजना पर बातचीत कर रही थी कि ममी ने बात को बीच में ही काटते हुए कहा, ‘सौम्या, अब तू प्रोफेशनल हो गई है साथ ही रीयल स्टेट रैशब्रुक ऐंड सन्स में फिफ्टी परसेन्ट की पार्टनर है। मकान, कार, भारी बैंक-बैलेन्स सबकुछ है तेरे पास। अब अपनी शादी की सीरियसली सोच! तू इतने लोगो से मिलती-जुलती है। कोई तो तुझे पसंद होगा ही!’

‘हाँ बेटा बता, हमारी तरफ से तुझे पूरी छूट है। लड़का तेरे जोड़ का हो और तेरी पसंद का हो, तुझे वह खुश रखे बस्स। जात-बिरादरी, रंग-नस्ल वगैरह की हमें कोई चिंता नहीं है। तुझे पढ़ाते-लिखाते, तेरा कैरियर बनाते-बनाते, हम लोग जात-बिरादरी और देश-काल की संकीर्णताओं से मुक्त हो चुके हैं। और फिर एक ही तो बेटी है मेरी। तेरी खुशी में हमारी खुशी है।’ डैडी ने भी ममी के स्वर में स्वर मिलाया।

‘हाँ, डैडी अभी तक तो मैंने शादी-वादी के बारे में सोचा ही नहीं। बस पढ़ाई-लिखाई, कैरियर वगैरह बनाने में व्यस्त रही। पर अब इधर कई बार घर में अकेला-अकेला सा लगा है। अक्सर ऐसी कई समस्याएँ भी आ जाती हैं जिस पर मन करता है किसी अपने की व्यक्तिगत राय मिल जाएँ।’ फिर उसने संजीदगी से आगे कहा, ‘माँ, वैसे इस प्रोफेशन में मिलना-जुलना तो बहुत लोगो से होता है पर अभी तक कोई ऐसा नहीं मिला जो मुझे कुछ अपना सा लगे। आप लोग देखिए न डैडी।

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