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					 आज उन्ही 
					हाथों ने उसके बदन....उसके दिलो दिमाग़ को चूर चूर कर दिया है। 
					नील के निशान ने उसकी तीस वर्षों की तपस्या को तार तार कर दिया 
					है। नील का निशान तो समय के साथ धुँधला होकर मिट जाएगा पर मन 
					पर लगा ये झटका... ये ज़ख्म कैसे भरेगा....। रिसता रहेगा। क्या 
					यह मेरे दिये हुए संस्कार हैं? सीमा कुछ समझ नहीं पा रही - 
					बिल्कुल ब्लैंक हो गई थी।  
					 
					समीर घर में केवल अपने पिता से डरता था। बच्चों को डराना सीमा 
					की प्रकृति में शामिल नहीं था। बस यही जी चाह्ता था कि हरदम 
					दिल में समाय रक्खे अपने बच्चों को....। ख़ासतौर से समीर 
					को....एक ही तो बेटा था, वो भी बीच का, निग्लेक्टेड.... 
					सैंड्विच बना हुआ .... बहनें तंग करतीं तो जवाब में उनसे बढ़ 
					चढ़ कर वो परेशान करता। बड़ी वाली तो सह लेती पर छोटी इतना 
					चिल्लाती के सम्भालना मुश्किल हो जाता और फिर समीर की धुनाई तो 
					पक्की होती। वो भी....पक गया था मार खा खा कर। मार तो उसको 
					पड़ती पर चोट —चोट हमेशा सीमा को लगती। धड़ाधड़ शीशे के बरतन 
					जब बरसना शुरू होते तो....कभी हाथों और दुपट्टे के पल्लू से 
					समीर का सिर छुपाती तो कभी कोहनियाँ ऊँची करके उनके पीछे अपना 
					मुँह बचाती। समीर को अपनी छाँव में लेकर भागती तो पीछे से एक 
					जूता उसकी कमर पर पड़ता। वह जूते की चोट को सह जाती। उसे संतोष 
					इस बात का होता कि जूता उसके पुत्र के शरीर तक नहीं पहुँच 
					पाया।  
					 
					“माँ आप कॉन्फ़रेंस में जाएँगी ना? ”  
					“हाँ, सोच तो रही हूँ ” 
					“कब से शुरू है कॉन्फ़्रेंस ? ” 
					“२४ सितम्बर से। ”  
					“आप कितने दिनों के लिए जाएँगी ? ” 
					“हमेशा के तरह तीन रातें चार दिन। मगर मैंने अभी फैसला नहीं 
					किया है कि जाऊँगी या नहीं। ” सीमा ने जवाब दिया। 
					 
					“माँ आपको अवश्य जाना चाहिए अगर एक बार सिलसिला टूट गया तो फिर 
					आप आइन्दा भी नहीं जाना चाहेंगी। ” समीर ने इतने अपनेपन से कहा 
					कि सीमा ने उसी समय फ़ैसला कर लिया कि समीर ठीक ही तो कह रहा 
					है। उम्र के इस पड़ाव पर पहुँचकर बहुत से काम समय से पहले ही 
					छोड़ दिए जाते हैं । सीमा वक़्त से पहले बूढ़ी नहीं होगी....। वो 
					हमेशा कहती थी कि उम्र को रोकना और आगे बढ़ाना बहुत कुछ अपने ही 
					हाथ में होता है । उसने फैसला कर लिया कि वह कॉन्फ़्रेंस में 
					अवश्य भाग लेगी।  
					 
					सीमा की समझ में नहीं आ रहा था कि वह लेबर पार्टी की 
					कॉन्फ़्रेंस में आई थी या अमीरों की पार्टी में ....! हर 
					पॉलिसी ओल्ड लेबर से हट कर न्यू लेबर को छूती हुई टोरी पार्टी 
					की गोद में जा बैठी थी। सीमा उकताने लगी थी....। आख़िर क्यों आ 
					गई? क्या सब कुछ बदल जाएगा.... क्या हर अच्छी चीज़ इसीलिये बदल 
					जाएगी क्योंकि बदलाव जीवन की सच्चाई है ?....। 
					 
					“अरे माँ आप वापिस भी आ गईं? अभी तो कॉन्फ़्रेंस चल रही है। 
					सुबह टी.वी. पर दिखा भी रहे थे। ” समीर उस दिन काम से आया तो 
					माँ घर में मौजूद थी। माँ ने देखा...। पुत्र के साथ एक युवती 
					भी थी। ज़ाहिर है उसकी आँखों में एक सवाल उभरा जो ज़बान तक 
					नहीं आया। मगर पुत्र को सवाल समझ में आ गया।  
					“माँ इससे मिलो ये... नीरा है। ” 
					 
					“हेलो नीरा....! ” माँ ने पूछा, “कुछ खाओ पियोगे तुम लोग, या 
					फिर बाहर से खा कर आ गए हो? ” सीमा को बाहर खाना बिलकुल पसंद 
					नहीं था। वह स्वास्थय की ख़राबी के लिए हमेशा बाहर के खाने को 
					ही दोष देती थी। खाना घर का और ताज़ा पका होना ज़रुरी है। वह 
					स्वयं तो शाकाहारी थी। पर दूसरों को केवल रेड मीट खाने से 
					रोकती थी। मगर उसकी सुनता कौन था? पति देव तो दोनों समय रेड 
					मीट ही खाते थे। बीफ़ के बहाने अपनी अम्मां को भी याद किया 
					करते थे कि क्या कबाब बनाती थीं बस मज़ा आ जता था.... 
					उफ़....बीफ़....! सीमा अपने होठों को भींच लेती....साँस रोक 
					लेती कि कहीं उसको बीफ़ की महक ना आ जाये?  
					“येस मामा डार्लिंग हम खा ही कर आए हैं क्योंकि आप तो थीं नहीं 
					इसी लिए बाहर ही खा लिया था...।” 
					 
					सीमा आज की पीढ़ी के मिज़ाज को समझती थी इसीलिए प्रश्न हमेशा 
					सोच समझ कर पूछा करती थी। अब ते ज़माना ही बदल गया था। पहले 
					बच्चे अपने माँ बाप से प्रश्न पूछते डरते थे। आजकल माँ बाप 
					एहतियात बरतते हैं। 
					 
					फिर भी सीमा ने समीर को करीब बुलाकर मालूम करना चाहा ये नीरा 
					कौन है और रात को घर में क्यों लाया है। क्या उसे अभी वापिस भी 
					ले जाना है...? 
					“माँ रात को यहीं सो जाएगी...।” समीर ने थोड़ा झिझकते और आवाज़ 
					को काफ़ी गंभीर बनाते हुए उत्तर दिया।  
					 
					सीमा उसके और करीब आ गई और तकरीबन सरगोशी करते हुए बोली, “मुझे 
					ये पसंद नहीं है और अगर वापस आकर तुम्हारे पिता सुनेंगे तो मुझ 
					पर बहुत नाराज़ होंगे।” 
					“वो आएँगे तो ये चली जाएगी.....।”  
					“नहीं बेटे हमारा यह कल्चर नहीं है। यहाँ तुम्हारी बहन के सात 
					आठ वर्ष के बच्चे आते हैं वो क्या समझ पाएँगे इस रिश्ते को 
					उनको क्या बताया जाएगा। ” 
					“माँ दिस इज़ नॉट माई प्रॉब्लम ...! ” 
					सीमा ने उसी समय समीर की आवाज़ और चेहरे के भाव पढ़ लिए थे ३७ 
					वर्ष से झेल रही थी समीर के दोहरे उसूलों को।  
					जहाँ माँ और बहनों का मामला होता फ़ौरन देसी बन जाता और अपने 
					मामले में पश्चिमी मूल्य रखता।  
					 
					सीमा सब सह लेती... उसके दिमाग़ में समीर के बचपन की पिटाई 
					की यादें छपी हुई हैं... उसको दया आ जाती और वो चुप हो जाती 
					पर उसने कभी ये नहीं सोचा था कि उसके ये फ़ैसले समीर के लिए 
					कितने हानिकारक हो सकते हैं वो तो माँ के स्नेह से लबालब 
					थी.... पुत्र की कमज़ोरियाँ भी स्नेह के आगे दब जातीं। 
					 
					सीमा ऊपर पहुँची तो मालूम हुआ के उसके कम्पयूटर पर तो नीरा का 
					राज है। इसके मतलब हुए जिस दिन वो गई उसी दिन नीरा आ गई 
					होगी....तो फिर क्या....नहीं नहीं समीर ऐसा नहीं है....। उसने 
					नीरा को दूसरे कमरे में शिफ़्ट करना चाहा तो समीर आ पहुँचा । 
					 
					“माँ इसे रात को नींद नहीं आती तो आपका कंप्यूटर यूज़ करती है। 
					” 
					“बेटे मेरा कंपनी का कंप्यूटर है मैं नहीं चाहती इसको कोई और 
					भी हाथ लगाए। ” 
					“कम ऑन माँ....। ” 
					सीमा ने कहा, “अच्छा आज रहने दो मैं भी थकी हुई हूँ और कल तो 
					यह चली ही जाएगी। ” 
					“नहीं माँ इसका रहने का कोई बंदोबस्त नहीं है। ” 
					“अरे तो फिर कहाँ से उठा लाए हो? ” सीमा ने नाराज़ होते हुए पर 
					आवाज़ को बिना ऊँचा किये पूछा । सीमा को हमेशा से नफ़रत थी 
					ऊँची आवाज़ में ग़ुस्सा करने से। उसका ख़्याल है जब कोई ग़लत 
					बात को सही बात साबित करना चाहता है तभी ज़ोर ज़ोर से बोलने 
					लगता है। और फिर आगे वाले की भी तो कोई इज्ज़त होती है चाहे 
					बड़ा हो या छोटा...! अक्सर उसका पति सोचता कि सीमा चिल्लाकर 
					एक्सप्लेन नहीं कर रही तो इसके मतलब हैं झूट बोल रही है। सीमा 
					सोचती इस बात में अवश्य परवरिश का हाथ होता है। कैसे माहौल में 
					कौन पला है ऐसे ही क्षणों में असलियत मालूम हो पाती है।  
					वो अपने कमरे में सोने चली गई।  
					 
					तीन दिन की कॉन्फ़्रेंस ने थका दिया था कुछ तो दुखी कर देने 
					वाली नई राजनीति थी, बिलकुल दक्षिण पंथी दल होने का अनुभव होने 
					लगता है। मैंने इस लिए तो नहीं इस पार्टी की मेम्बरशिप ली 
					थी...!!  
					 
					वह बोर होकर पहले ही चली आई थी और यहाँ आकर भी उसे दुःख ही हुआ 
					था। औरत जिधर जाती है उधर दुःख ही झेलने पड़ते हैं। समीर के 
					बारे में सोचने लगी। कहता है कि जब बाप आएगा तो नीरा यहाँ से 
					चली जाएगी। तो क्या वो ये सोच रहा है कि उसकी माँ को ये तौर 
					तरीके पसंद हैं। वो फिर घबराने लगी कि कल वीकेंड है। बिटिया और 
					दोनों बच्चे आएँगे, दामादजी तो छुट्टी वाले दिन भी काम करते 
					हैं। ससुर के ऊपर तो वो पड़ गए हैं । सीमा ने भी छुट्टी का दिन 
					पति के साथ कभी नहीं बिताया था। वो वीकेंड घर में रुक जाते थे 
					तो ऐसा लगता जैसे बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं। पूरे दिन टी वी 
					के सामने आराम कुर्सी पर लेटे नख़रे दिखाते रहते और सीमा नख़रे 
					उठाने की तो मशीन बन चुकी थी। 
					 
					नख़रे तो सभी उठवाते थे क्योंकि उसका कुसूर था पति का कहना 
					मानना और हर तेहरवें महीने एक नया सा प्यारा सा मॉडल पैदा कर 
					देना। बेटे की बारी में भी सीमा को मेनेजर के साथ ही भेजा था, 
					पहले चैक-अप के लिए। उसको कितनी शर्म आ रही थी की डॉक्टर 
					समझेगी की मेनेजर ही आने वाले बच्चे का बाप है। हुआ वही जिसका 
					डर था... अपने पति को भी अन्दर बुला लो। डॉक्टर ने कहा था। 
					हालाँकि मैनेजर उसके पति से अधिक जवान और ख़ुशमिजाज़ था पर 
					सीमा को ये रिमार्क अच्छा नहीं लगा। वो उसी समय बहुत कुछ सोचने 
					पर मजबूर सी हो गई। शर्मिंदा तो मैनेजर भी था। वो कब चाहता था 
					कि उससे बड़ी उम्र की महिला को उसकी पत्नी समझा जाये।  
					 
					मैनेजर ने सीमा से पहले ही साहब को जाकर ख़ुशख़बरी दे दी थी कि 
					बेटा है तो सुना कि वो खुश हुए थे। उतने ही ख़ुश वो आज भी थे 
					बेटे से...! 
					बच्चा पैदा करने सीमा बड़ी बहन के पास भेज दी गई थी। 
					 
					वहाँ भी घर में अकेले ही समय काटना होता क्योंकि बहन डॉक्टर 
					थीं। फिर भी वो खुश थी कि जब बेटा लेकर जाएगी तो सब कितने खुश 
					होंगे और शायद बेटे से खेलने के लिए पति भी जल्दी घर आ जाया 
					करेंगे।  
					 
					बेटा हुआ तो सीमा की टेल-बोन उखाड़कर आया। छह महीने तो बिस्तर 
					ही में पड़े पड़े बेटे की देख भाल की। सारी रात रोता था। सीमा 
					अकेले जाग जागकर साथ साथ आप भी रोने लगती थी। कितना अच्छा होता 
					था पुराने ज़माने में कि परिवार का हर बच्चा सबका बच्चा समझा 
					जाता था। सभी मिलजुलकर पाल लिया करते थे। अब तो सभी कुछ बिखर 
					गया था।  
					 
					आज उस नील की जलन उस हड्डी के दर्द से कहीं अधिक महसूस हो रही 
					है जो समीर के पैदा होने पर उखड़ी थी। दूसरे कमरे में खटपट की 
					आवाज़ होती तो सीमा को आशा बँधती कि शायद अब बस समीर आकर अपनी 
					मज़बूत वार्ज़िशी बाँहों में माँ को सँभालेगा और शर्मिन्दगी के 
					आँसू बहायेगा... माँ के आँसुओं के साथ। और उसका दर्द उसकी जलन 
					सब ठीक हो जायेगा।  
					 
					मगर वो तो बैठा उस जवान लडकी की दिलजोई कर रहा था और एक्सप्लेन 
					कर रहा था कि आज जो कुछ भी हुआ वो माँ की उम्र ज़यादा हो जाने 
					और काम बढ़ जाने के साथ ही अधिकतर अनुचित व्यवहार की आदत पड़ 
					जाने के कारण हुआ है। वो आइन्दा ख्याल रखेगा कि घर का माहौल 
					ठीक रहे। नीरा धीरे धीरे मद्धम सुरों में उसके कान में रस 
					घोलती जाती और वो और अधिक माँ के जहालत भरे व्यवहार से 
					शर्मिंदा होता जाता। 
					आज सीमा को जिल की बहुत याद आई। 
					कितनी सुशील और कितनी घरेलू नीली आँखों वाली अंग्रेज़ लड़की थी 
					वो। लगता ही नहीं था कि इस देश कि पैदाइश हो। समीर से कितना 
					प्यार करती और सीमा से अक्सर कहती '' सीमा, युअर सन इज़ सो 
					हैण्डसम। इट वाज़ लव ऐट फ़र्स्ट साइट।'' सीमा उसकी चुटकी लेने 
					को कहती ''ऐसा तो कोई हैण्डसम नहीं, तुम्हारी नज़र ही कमज़ोर 
					होगी....!' वो सीमा से लिपट जाती, आप कितनी शैतान हैं...!!'' 
					सास बहू के ये मज़ाक चलते रहते। सीमा ख़ूब जी भरकर प्यार से 
					अपने बेटे को देखा करती कि सच ही तो कहती है जिल, है तो सुन्दर 
					मेरा बेटा। जिल को समीर की गहरी आवाज़ और सही अंग्रेज़ी बोलने 
					का अन्दाज़ भी बहुत अच्छे लगते। वो इस बारे में भी सीमा से 
					बेधड़क बात करती। 
  
					सीमा सोचती मैंने कितना अच्छा किया जो पति के विरोध के बावजूद 
					भी शादी होने दी इन दोनों बच्चों की। उसने पति के सामने पहली 
					बार जीवन में मुँह खोला था कि समीर को वही करने दिया जाए जो वह 
					चाहता है क्योंकि अब तो वो नौकरी कर रहा था। एक फ़्लैट भी 
					ख़रीद लिया था शहर के बीचो बीच, टेम्स के किनारे। किराए पर दे 
					रखा था। सीमा को कितना गर्व होता अपने सुंदर बेटे पर कि वो 
					केवल सुंदर ही नहीं है समझदार भी है। कैसे पिटा करता था 
					बेचारा... ! एक दम से सीमा उदास हो जाया करती और दुआ करती कि 
					हे भगवान अब मेरे बच्चे को कभी भी ऐसे दुःख ना देखने पड़ें... 
					जो झेलना था उसने बचपन में झेल लिया है। 
					कभी कभी तो वो भगवान को चुनौती 
					भी देने लगती कि ख़बरदार !... अब मेरे प्यारे बेटे को अपनी शरण 
					में ही रखना वरना...! आप ही मुस्कुरा देती। हे! प्रभू यह औलाद 
					भी क्या बला होती है।? क्यों इतना प्रेम होता है इनसे...! ये 
					जवाब में तो कुछ भी नहीं देते फिर भी बुरा नहीं लगता। इनके 
					दुर्व्यवहार भी भुला दिए जाते हैं।  
					 
					पर पति की चोट तो हमेशा ज़िन्दा रहती है। मैं क्यों ना याद 
					रखूँ मेरी औलाद थोड़ी है मेरा पति। उनकी माँ तो सब भुला देती 
					थीं। उसके यहाँ तो पूरा परिवार साथ ही रहता था। कैसे कैसे 
					चिल्लाते थे उसके पति अपनी माँ पर। वह भी खूब चिल्लाती थीं। 
					ऐसा लगता था जैसे पक्के गाने का अभ्यास हो रहा हो। दोनों में 
					से पहले जो तीव्र ध और तीव्र नी वाले अन्तरे में जाता वही अपनी 
					जीत समझ लेता और सामने वाले को सर पकड़कर बैठ जाना होता। जैसे 
					घोर बरसात के बाद परनाला मद्धम सुरों में बह रहा हो। अम्मां की 
					आँखों से ऐसे ही आँसू बह रहे होते। सीमा उनके पास जाकर बैठ 
					जाती और आहिस्ता से पति की ओर से माफ़ी माँगने लगती। पति ने तो 
					कभी भी माँ से माफ़ी नहीं माँगी थी। वो तो पैसे वाले बेटे थे। 
					माँ ने तो उनको केवल जन्म दिया था। मेहनत तो उन्होंने आप ही की 
					थी बड़ा आदमी बनने के लिए।  
					 
					बन तो गए थे बड़े आदमी पर संस्कारों का ज़िक्र तो उनके शब्दकोश 
					में था ही नहीं। मामूली बात थोड़ी थी कि माँ को महीने के पैसे 
					देते थे... तो क्या हिसाब माँगना उनका हक़ नहीं बनता था ! 
					बेचारी अम्मां... ! पढ़ी लिखी तो थीं नहीं। हिसाब याद कैसे रख 
					पातीं ? 
					 
					सीमा ने कभी सोचा भी नहीं था कि कभी उसका बेटा बाप के 
					पदचिन्हों पर चलेगा... उन्ही को ठीक और सही ठहराएगा। जिल ये भी 
					तो बड़े गर्व से कहा करती थी, “सीमा मैं कितनी लकी हूँ कि मेरा 
					समीर अपने बाप से बिलकुल अलग है। हर तरह से, सुंदर तो है ही पर 
					खुले विचारों का भी है। उज्जवल है अपने विचारों में। साफ़ 
					सुथरा। ” 
					 
					आज सीमा का जी अपने से अधिक जिल को याद कर कर के रो रहा था। 
					समीर का अस्थिर मन ना जाने क्या क्या सोचा करता। कानों में शूं 
					शूं कि ध्वनि गूंजने लगी। डॉक्टरों ने टिनिटस बता दिया। ''ये 
					बीमारी तो अक्सर लोगों को हो जाती है। बहुत आम है आजकल। अक्सर 
					परेशानियों से होती है।'' जिल ने समीर को तसल्ली देने के लिए 
					कहा और सवेरे जल्दी उठने के ख़्याल से जल्दी ही सो गई। वो भी 
					अपनी कंपनी में ऊँचे पद पर काम करती थी औए सवेरे उठ कर समीर का 
					नाश्ता भी बनाती, घर को साफ़ सुथरा करने के बाद ही घर से 
					निकलती। सीमा को जिल की सारी आदतें बेहद पसंद थीं। इसी लिए सास 
					बहू में गाढ़ी छनती थी। दोनों जैसे सहेलियाँ बन गई थीं। अँगरेज़ 
					तो वैसे भी कभी एक दूसरे से उम्र नहीं पूछते... और ना ही उनका 
					पता, उनका पेशा या कौन कौन सी कार चलाता है या कैसे आता जाता 
					है। किसी को किसी की कोइ खोज नहीं रहती आपस में। केवल दोस्ती 
					का रिश्ता होता है या नहीं भी होता.... तो भी दुश्मनी नहीं 
					होती।  
					 
					समीर जिल से नाराज़ रहने लगा था। वो सीमा से कहती ना जाने समीर 
					को क्या हो गया है... देर में घर आता है। पूछने पर कुछ भी नहीं 
					बताता। कभी कभी खाना भी नहीं खाता। मैं ऑफिस से आकर पका कर 
					रखती हूँ। सीमा मैं भी तुम्हारी तरह ही ताज़ा खाना खिलाती हूँ 
					समीर को। फ्रिज में रखे खाने में तो सारे तत्त्व मर जाते हैं। 
					पर समीर गरम गरम खाना देखकर भी नहीं खाता। ''एक दिन मुझे अपने 
					घर इन्वाइट करो समीर के सामने ही, मैं आ जाऊँगी और सब कुछ आप 
					ही देखकर फिर समीर से बात करूंगी।” परेशान सीमा ने अपनी गंभीर 
					आवाज़ में कहा।  
					 
					“अम्मा, उसको मेरा कोइ ख़्याल नहीं। टिनिटस हो गया है। रातों को 
					नींद नहीं आती। सारी रात पंखा चला कर सोता हूँ। तब कहीं जाकर 
					चैन मिलता है जब पंखे की आवाज़ कान की शूं शूं की आवाज़ से ताल 
					मिला लेती है। ”  
					''तो इसमें जिल का क्या कुसूर''? सीमा ने समीर से हैरान होते 
					हुए पूछा।  
					“पत्नी है मेरी मेरा ख्याल रखना उसका फ़र्ज़ है।”  
					 
					“क्या खाना नहीं बनाती या घर गन्दा रखती है या बराबर से कमाकर 
					नहीं लाती?” एक ही साँस में सीमा ने प्रश्नों की बौछार कर दी। 
					वो इस समय एक औरत बनकर दूसरी औरत की ओर से एक मर्द से सवाल कर 
					रही थी। अपने बेटे से नहीं।  
					 
					''फिर भी, जब मैं रातों को जगता हूँ तो इसको भी जागना चाहिए। 
					ये तो कानों में म्यूजिक सुनने का प्लग लगाकर सो जाती है, गाने 
					सुनते सुनते।'' समीर ने अपनी कड़वाहट एक ही साँस में उगल दी। 
					सीमा सन्नाटे में रह गई। हे राम ! बिलकुल बाप, पूरा बाप।! ये 
					क्या हो गया कब हो गया.. क्यों हो गया...! मैं तो खुश थी की 
					अच्छी संस्कारी लड़की से शादी करेगा तो इंसान बना रहेगा। ये तो 
					जानवर का जानवर ही रह गया। बिलकुल ख़ामोश हो गई सीमा।  
					 
					डॉक्लैण्ड के अपार्ट्मेण्ट के साथ ही टेम्स नदी में खड़ी तमाम 
					किश्तियाँ जैसे डूबने लगी हों। उन किश्तियों में रहने वाले 
					जैसे मदद को चिल्ला रहे हों। उसको जिल की आवाज़ भी कहीं दूर से 
					सुनाई दे रही थी। सहायता के लिए चिल्लाते हुए। अपने पति की 
					मोहिनी सूरत को आँखें फाड़ फाड़कर एक टक देखते हुए। जैसे आज वो 
					उसके चेहरे के आकार को अपने मन में बैठा लेना चाहती हो। हमेशा 
					के लिए... 
					“माँ, मैं उसको दो फ़्लैट्स, आपके दिए तमाम जेवर और पाँच हज़ार 
					पाउण्ड कैश भी दे रहा हूँ। ज़ेवर देने में आपको समस्या तो नहीं 
					होगी क्योंकि आप औरतों को जेवर से बहुत प्यार होता है'?”  
					 
					कितना कड़वा बोलता है, ये मेरा बेटा तो लगता ही नहीं, जैसे बाप 
					कहीं और से ले आया हो...! 'मेरा तो जी चाह रहा है मैं उसको 
					अपने ज़ेवर ही नहीं बल्कि अपने हिस्से की जो कुछ भी खुशियाँ रह 
					गयी हैं वो भी दे दूँ। ''क्यों ऐसा जी क्यों चाह रहा है। मुझ 
					से रक्तसंबंध है या उससे?'' खून का रिश्ता क्या होता है। उसका 
					क्या महत्व होता है, उसकी क्या अहमियत होती है और दिलों के 
					रिश्ते की क्या, ये बातें तुम नहीं समझोगे।  
					 
					समीर दफ्तर ही में था तो जिल सीमा के पास आ गई। सीमा से उसके 
					कंधे पर सर रखकर रोने की बाक़ायदा इजाज़त माँगी और सीमा के आँख 
					उठाकर देखने से पहले ही उससे लिपट कर उसके कंधे भीगा दिए। अपने 
					दुःख जैसे उसके कन्धों पर डाल दिए हों। ख़ामोश बैग उठाया और 
					जाने लगी तो सीमा ने कुछ कहना चाहा, पर वो चली गई। 
					 
					आज ना जाने उसको जिल क्यों इतनी याद आ रही है।? शायद वो होती 
					तो समीर को समझा लेती पर ये नीरा ना जाने कहाँ से उठा लाया है। 
					मैं इस तरह इसको अपने घर में नहीं रहने दूंगी। 
					 
					“ अगर आप ये समझ रही हैं कि मैं इसके साथ कोई ग़लत रिश्ता रखता 
					हूँ तो माँ ये बीमार मानसिकता की पहचान है। ये केवल एक दोस्त 
					है। जैसे एक लड़का दोस्त हो। ये परेशान है इसलिए कुछ दिनों के 
					लिए यहाँ ले आया हूं। ”  
					“ तो आजकल बेला कहाँ गयी? ” 
					“ वो फ्रांस गई हुई है अपने घर वालों के पास। ” 
					“ कब तक आएगी? ” 
					“ मुझे नहीं मालूम। वहीं बैठकर अपनी थीसिस भी लिखेगी। ” 
					“ क्या अब आएगी ही नहीं। सीमा ने डरते डरते पूछा। ” 
					 
					सीमा को ऐसे तो पसंद वो भी नहीं थी। पर कम बुरी थी। जिल उसको 
					बहुत याद आती थी पर कभी भी उसका ज़िक्र नहीं करती। सोचती समीर 
					को दुःख होगा कि माँ मेरी मदद नहीं करना चाहती मेरे लिए दूसरी 
					पत्नी की तलाश में।  
					 
					समीर अगर परिपक्व दिमाग़ का होता तो सीमा विवाह के लिये 
					लड़कियों की लाइन लगा दे। पर उसको बेटे पर भरोसा ही नहीं था। 
					कहीं सीमा की पसंद की लडकी आ गई तो समीर उसके साथ ना जाने क्या 
					व्यवहार करेगा। लव मैरिज का जनाज़ा तो उठ चुका था।  
					 
					“माँ आपसे कितनी बार बताया है की बेला ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी 
					से पी.एच.डी. कर रही है आप बार बार ग़लत सवाल क्यों पूछती हैं। 
					वो अपने माँ बाप के पास गई है। अब ख़ाली थोड़ी बैठेगी, जब तक 
					वहाँ है थीसिस लिखती रहेगी।” अच्छी भली डांट पड़ गई थी सीमा को। 
					हर समय इतनी पढ़ी लिखी और एक्ज़ेक्यूटिव पोज़ीशन की माँ को 
					कैसा उल्लू समझा करता था।  
					 
					सिर्फ़ उल्लू समझता तो भी शायद इतना बुरा ना लगता क्योंकि 
					उल्लू कि फ़ोटो तो निशानी होती है अकल्मंदी की। गधा भी समझे तो 
					भी सीमा बुरा नहीं मानेगी क्योंकि वो भी एक मेहनती जानवर होता 
					है और अपनी ताक़त से बढ़ कर काम करता है। समीर उसको एक जढ़ 
					मूड़ नकारा औरत समझता है। जब बचपन में पिटा करता था तो गोदी 
					में घुस घुसकर कहता था अगर आप ना होतीं तो ये पिताजी तो मुझे 
					मार ही डालते। माँ आप भी तो बड़ी पोज़ीशन पर हैं फिर आप क्यों 
					नहीं थकतीं? आज उसे अपनी माँ में कोई अच्छे गुण दिखाई ही नहीं 
					देते। कैसे सब कुछ बदल जाता है। मेरे अपने ही बेटे में अपने 
					ननिहाल का एक भी गुण नहीं आया... पूरा असर अपने पिता के ख़ून 
					का दिखाई देता है।  
					 
					सीमा ने सोचा अब स्वयं ही जाकर बरफ़ निकाले और सेंक करे। शायद 
					कुछ आराम आ जाए। कैंसर के बाद से बाईं ब्रेस्ट के पास का 
					हिस्सा कुछ ज़यादा ही सेंसिटिव हो गया है। बग़ल से सात 
					लिंफ़-नोड्स निकाल दिये गये थे। इसलिए उधर के हिस्से में चोट 
					का असर दुगना होता था। आज तो चोट उधर ही लगी थी केवल जिस्म पर 
					ही नहीं उसके अहम् को कितनी बड़ी ठेस लगी थी ये केवल वही जानती 
					थी।  
					 
					सोचा पहले जाकर कपड़े बदल ले। अब तक तो सब सो गए होंगे। उसको 
					मनाने कोइ नहीं आएगा। कपड़े बदलने गई तो बाज़ुओं को देख कर 
					आँखें मूँद लीं। दोनों बाज़ुओं पर जैसे काले रंग के बाज़ूबंद 
					बाँध दिए गए हों। कैंसर वाली तरफ़ का नील लगभग काला हो चला था। 
					वहीं तो जलन हुए जा रही थी।  
					 
					वह शर्म से गड़ी जा रही थी कि आज यह नौबत आ गई है कि समीर उस 
					नीरा के कारण उस पर हाथ उठा दे...। अपनी पूरी ताक़त उसपर निकाल 
					दी। कैसे दरवाज़े के ऊपर रखकर दोनों बाज़ू भींच दिए थे कि अब 
					रहिये यहीं। बाहर ना निकलिएगा। अगर आपने नीरा की बेईज्ज़ती की 
					तो मुझसे बुरा कोई ना होगा।  
					 
					सीमा अपने को छुड़वाने के लिये दुहाई देती रही पर ऐसा लगता था 
					जैसे समीर बाप का बदला उससे ले रहा हो। बाप ही की तरह वहशी बन 
					गया था, चेहरा वैसा ही भयानक हो गया था....हाँ वही चेहरा जिसे 
					वह सुन्दर कहती रही है.... साँस रोके गुर्रा रहा था माँ पर की 
					आपने नीरा को घर से जाने को कहकर उसकी बेज्ज़ती की है। उसके 
					बदले में वो माँ की इज्ज़त का जनाज़ा निकाल रहा था। 
					 
					बेटी को जब मालूम हुआ कि माँ कॉन्फ़्रेंस से जल्दी आ गई है तो 
					वो भी मिलने चली आई और नीचे किचन में बच्चों को खिलाने पिलाने 
					में व्यस्त हो गई। अगर वह इस समय ऊपर होती तो सीमा तो शर्म से 
					गड़ ही जाती। 
					 
					वह अभी अपने दुःख को ठीक से महसूस भी नहीं कर पाई थी कि 
					दरवाज़े पर घण्टी बजी। दरवाज़ा सीमा की बेटी ने ही खोला। सीमा 
					भूल ही गई थी कि बेटी और नाती अभी घर में ही हैं। बाहर पुलिस 
					खड़ी थी। बेटी ने पुलिस को फ़ोन करके बुलवा लिया था। यानि वह 
					सब सुन रही थी। वह यहीं की पली बढ़ी है। इस देश के हक़ और 
					कानून से पूरी तरह वाक़िफ़ है।... मगर उनके ख़ानदान में पहली 
					बार पुलिस घर में आई थी। सीमा को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह 
					पुलिस को क्या कहे। बेटी ने आगे बढ़ कर सारी बात पुलिस को समझा 
					दी। 
					 
					पुलिस की आवाज़ सुन कर समीर और नीरा भी नीचे आ गए... समीर घबरा 
					गया... नीरा के जैसे होश ही उड़ गये थे... पुलिस ने सीमा से 
					सीधे एक ही सवाल किया था, “क्या आप अपने बेटे को अभी घर से 
					निकालना चाहती हैं ?” 
					 
					समीर के चेहरे पर बदहवासी देख कर सीमा को ठीक वही महसूस हुआ 
					जैसे वह बचपन में अपने पिता के हाथों पिट रहा हो। उसके भीतर की 
					माँ जैसे टूट रही थी। पुलिस देख कर शायद वह भी बुरी तरह से 
					घबरा गई थी।  
					 
					उस घबराहट में भी सीमा ने पुत्र को अकेला नहीं छोड़ा, “नहीं 
					ऑफ़ीसर, मेरे बेटे का इस घर पर पूरा हक़ है। मगर मैं इस आवारा 
					लड़की को इस घर में नहीं रहने दूंगी।” 
					 
					पुलिस ने समीर को आदेश दिया कि लड़की को उसी वक़्त घर से बाहर 
					करे।... नीरा के साथ ही शायद पुत्र और माँ का रिश्ता भी घर से 
					बाहर चला गया था। माँ वही थी... वहीं खड़ी थी। 
					 
					नीरा को कहीं छोड़ कर समीर घर वापिस आ गया है... घर के ऐशो 
					आराम से दूर रह पाना शायद उसके लिये संभव भी नहीं था।... उसकी 
					नज़रों में माँ के प्रति बस एक ही भाव था... सीमा तय नहीं कर 
					पा रही कि वो भाव क्या हैं... शत्रुता.... नफ़रत... या फिर 
					.... ! ! 
					 
					कभी कहता है आप कॉन्फ़्रेस में ज़रूर जाएँ और कभी दोस्तों के 
					साथ बाहर खाना खाने की सलाह देता है.... “माँ जब पापा आपको 
					नहीं ले जाते तो आप ख़ुद जाना शुरू कीजिये...” और आज जब माँ ने 
					उसके नीरा के साथ कमरे में अँधेरे में बंद देखकर समझाना चाहा 
					तो जो मुँह में आया बकता चला गया.... बाज़ारू ज़बान..! बिल्कुल 
					बाज़ारू... !  
					 
					भला कौन अपनी माँ को छिनाल कह सकता है... अपने यारों के साथ 
					घूमती हैं.... क्या फ़र्क रह गया पति और बेटे में... वो भी तो 
					अपनी कमज़ोरियाँ छुपाने के लिए यही इल्ज़ाम लगाता रहा है... 
					समीर की ज़बान की कटुता की चोट जितनी गहरी लगी थी उतना तो 
					बाजुओं पर पड़े नील के निशान का दर्द भी नहीं चुभ रहा था.... 
					अपनी जवानी का एक एक क्षण.. एक एक क़तरा... इकलौते बेटे के नाम 
					लिख दिया था... सोचती थी कि बाप के वक़्त की भरपाई भी वह ही 
					करेगी। आज इस उम्र में.... माँ पर इतना बड़ा आरोप..! 
					 
					बेटी रात को घर में ही रह गई है। वह और उसका पति अपने पिता के 
					कमरे में आराम से सो रहे हैं... सीमा शरीर के दर्द से लड़ रही 
					है.... आत्मा के घाव सहला रही है.... मुँह में धनिये के बीजों 
					का स्वाद है मगर दिल में एक डर भी है... कहीं अपने ग़ुस्से में 
					समीर उसकी हत्या तो नहीं कर देगा ? ... नहीं .. नहीं... यह 
					नहीं हो सकता... आख़िर पुत्र है। भला ऐसा कैसे कर सकता है। मगर 
					दिल का डर उसे सोने नहीं दे रहा। बिस्तर पर करवटें बदल रही 
					है... 
					 
					एकाएक बिस्तर से उठती है सीमा और भीतर से कमरे की सांकल चढ़ा 
					देती है।  |