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कला और कलाकार

अकबर पद्मसी

अकबर पदमसी का जन्म बंबई के एक प्रतिष्ठित व्यवसायी परिवार में सन १९२८ में हुआ। उनकी रुचि कला में तब हो गई जब उनकी उम्र इतनी भर थी कि आस-पास कि वस्तुओं को वो बस समझ पा रहे थे, पेंसिल और कागज़ का ज्ञान हो गया था और रेखाओं से मन के चित्र बना पाने में वो सक्षम थे। स्कूल में ही उनकी रेखाएँ सुंदर और सधी होने लगीं, जो आम बच्चों से बिलकुल अलग थीं। उनके कला अध्यापक ने पदमसी को सर जे जे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिले के लिये प्रोत्साहित किया और सन १९४६ में वे सीधे द्वितीय वर्ष में दाख़िल हो गए।

उस समय महाविद्यालय में प्राध्यापक पलशीकर ने पदमसी को कला के गूढ अर्थों को समझने में मदद की। कला में सौंदर्यबोध और इतिहास को पदमसी ने बारीकी से पढ़ा और समझा। उसी समय वे गायतोंडे, रज़ा, तैयब मेहता की मंडली मे शामिल हुए। सन १९४७ में बांबे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप का गठन हुआ, पदमसी ने इस समूह से समीप्य बनाये रखा।

सन १९५१ में, पढ़ाई पूरी करने के बाद वे पेरिस चले गए और एकाकी जीवन जीना लगे। जहाँ प्रारंभिक वर्षों में उन्होंने पदमसी, रज़ा और सूज़ा के साथ अपनी कृतियों को प्रदर्शिन किया। सन १९५६ में पदमसी को पेरिस की एक प्रतिष्ठित गैलरी ने अपने कलाकार के रूप में चुना और इन्हीं दिनों लोग उनकी कला को जानने लगे। इस समय पदमसी के चित्र रूपात्मक शैली में होते थे। कुछ पोर्ट्रेट की तरह दिखने वाले मानव चित्र जिनमे ज़्यादातर मुड़े सर और प्रभावशाली नेत्रों वाली आकृतियां होतीं। मन से उतपन्न इन चित्रों को रज़ा ने ‘प्रॉफ़ेट’ कहा जिसने पदमसी को एक बड़े कलाकार के रूप में केवल स्थापित किया बल्कि उनके विचारों और दृष्टिकोण पर भी बड़ा प्रभाव डाला।

पदमसी की कला पर अनेकों प्रभाव हैं, देशी और विदेशी। जहाँ पाश्चात्य कला का उन पर प्रभाव पड़ा वहीं वो पश्चिम के आध्यात्म से भी प्रभावित रहे। भारत में संस्कृत पढ़ी और दर्शन और आध्यात्म की बारीकियों को समझा। उपनिषद और भागवत गीता का उनके विचारों और कला पर बड़ा प्रभाव पड़ा।

१९६५ में पदमसी को रॉकफ़ेलर फेल्लौशिप मिली और उन्होंने न्यूयॉर्क में रहते हुए तत्कालीन कला को समझा। १९६७ में एक वर्ष के लिए विस्कोसिन विश्वविद्यालय गए और वहाँ कला की शिक्षा दी। पदमसी की कला में सतत बदलव दिखता है, वे कला में नित नये प्रयोगों पर ध्यान रखते हैं। सन १९७० से ८३ के बीच उन्होने एक लैंडस्केप शृंखला बनाई, जिसे मेटास्कपे नाम दिया। मन में उपजनेवाले इन चित्रों में, हम पहाड़, नदी, नाले, सूर्य, और प्रकृति के विभिन्न प्रतीक देख सकते हैं। पर वास्तव में ये चित्र मौन में देखने वाले पदमसी के अंतरमन के प्रतिरूप हैं।

पदमसी ने लगभग हरेक माध्यम में कला को मूर्त रूप दिया है, चाहे वो एचिंग हो या ऑयल, या चारकोल और ग्रेफएट। पदमसी के सभी चित्रों में आध्यात्मिक भाव दिखता है जो वो अपने मन की आँखों से शून्य में ढूंढते हैं और कागज़ कैनवास पर उकेरने का प्रयास करते हैं। पदमसी ने कम्प्यूटर पर आधारित अमूर्त शैली में भी प्रयोग किए हैं और हाल ही में छाया चित्रों की भी एक शृंखला निकली है।

पदमसी को १९९७-९८ में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कालिदास सम्मान तथा २००४ में ललित कला रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पदमसी मुंबई में रहते हुए कला साधन जुटे हैं।

१५ सितंबर २०१५

 
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