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कला और कलाकार

अश्वारोहीजहाँगीर सबावाला

जहाँगीर सबावाला का जन्म मुंबई में १९२२ में हुआ और विश्व के सर्वाधिक प्रसिद्ध कला विद्यालयों में उनकी शिक्षा हुयी। १९४४ में जे जे स्कूल से डिप्लोमा प्राप्त करने के बाद वे यूरोप गए और १९४५ से १९४७ तक लंदन के हीथरले स्कूल आफ आर्ट में, १९४८ से १९५१ में पेरिस के एकेडेमिक आन्द्रे ल्होते में, १९५३ से १९५४ तक एकेडेमिक जूलियन तथा १९५७ में एकेडेमिक डि ला ग्रैन्डे चौमियेरे में अपनी शिक्षा जारी रखी।

देश विदेश में भ्रमण करते हुए चप्पा चप्पा घूम लेने के बाद १९५१ में जब उन्होंने बंबई में पहली प्रदर्शनी की, तभी से उनकी कला को अनेक प्रत्याशाओं के साथ देखा जाने लगा। उनके प्रारंभिक चित्र प्रभावशाली थे और लगभग १० वर्षो तक घनवादी शैली में चित्र बनाने के बाद १९६६ में जब उन्होंने अपने नये चित्र प्रदर्शित किये तो उनकी बिलकुल नयी रहस्यवादी शैली ने लोगों को चौंका दिया। इस प्रदर्शनी में सर्वाधिक चर्चित 'घुड़सवार' नाम का चित्र था। इस चित्र में एक अजब रहस्यमयता और रेगिस्तान की भ्रांति मालूम होती है। बद्ध झील नामक नीचे दिये गए चित्र में भी इस रहस्यमयता के दर्शन होते हैं।

देश विदेश की अनेक एकल दीर्घाओं में उन्होंने अपने चित्रों को प्रदर्शित किया जिसमें 'आर्ट नाउ इन इंडिया प्रदर्शनी', 'वेनिस द्विवार्षिकी', काउन्सिल आफ ग्रेट ब्रिटेन की कला प्रदर्शनी, सातवीं भारतीय त्रिवार्षिकी, मुम्बई की 'मास्टर्स आफ इंडिया' प्रदर्शनी, दक्षिण एबे की इस्लामिक और भारत कला प्रदर्शनी, लंदन और क्रिस्टी की समकालीन भारतीय कला प्रदर्शनी, लंदन प्रमुख हैं।

उन्हें १९५० में सैलोन नेशनल इंडिपेंडेंट, पेरिस, १९५४ में वेनिस द्विवार्षिकी, १९६५ में कामनवेल्थ कला महोत्सव लंदन, समकालीन भारतीय कला वाशिंगटन १९७५, एशियाई चित्रकार प्रदर्शनी फुकूका आर्ट संग्रहालय टोकियो १९७९ और आधुनिक भारतीय कला हिसशोर्न म्यूज़ियम वाशिंगटन १९८२ जैसी प्रसिद्ध कला प्रदर्शनियों में अपने चित्रों को प्रदर्शित करने का अवसर मिला।

अनेक अन्तर्राष्ट्रीय कलाकृतियों की नीलामियों में तो उनके चित्र शामिल किये ही गए, उन्हें १९६६ में व्हाइटले की 'सी आई एम ए' गैलरी द्वारा आयोजित चमत्कार फैन्टेसी इन इंडिया आर्ट में भी भाग लेने का अवसर मिला।

टाटा मकग्राहिल और ललितकला अकादमी, नयी दिल्ली जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं ने जहाँगीर सबावाला के ऊपर तीन विशेष प्रबन्ध प्रकाशित किये हैं। उनके जीवन और कार्य के विषय में निर्मित एक फिल्म 'कलर्स आफ एबसेन्स' १९९४ में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है। भारत सरकार द्वारा उन्हें १९७७ में पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।

उनके चित्रों को देख कर सहज आभास होता है कि तूलिका कैनवस और रंग नहीं यह सिर्फ शैली होती है जो कलाकार के व्यक्तित्व को बनाती है और सबावाला जैसा कला व्यक्तित्व तीव्र लगन, अटूट मेहनत और लंबी साधना से विकसित होता है। १९५१ में मुम्बई के होटल ताज में उनकी पहली कला प्रदर्शनी लगी थी और उनकी अन्तिम कला प्रदर्शनी "रिकोर्सो" आईकोन गैलरी, न्यूयार्क २००९ में आयोजित हुई थी।

सर कावाजी जहाँगीर का यह पोता, अपने अंतिम समय मुम्बई में, आठ घंटे रोज अपने स्टूडियो में कैनवस के सामने कला के रहस्यों को चित्रित करने में व्यतीत करते रहे। १ सितंबर २०११ को उनका निधन हो गया।

 
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