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कला और कलाकार

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लक्ष्मण पै  

कलाकार लक्ष्मण पै का जन्म १९२६ में भारत के गोआ नामक प्रांत में हुआ और कलाशिक्षा जे जे स्कूल आफ आर्टस मुम्बई में। १७ वर्ष की आयु में उन्होंने इस स्कूल में प्रवेश किया, १९४७ में चित्रकला में डिप्लोमा लिया, एक साल बाद ही स्कूल के प्रतिष्ठित मेयो पदक को जीता और १९५० तक वहीं अध्यापन भी किया। १९५१ में वे पेरिस चले गए और दस वर्षो के रचनात्मक अनुभव के बाद भारत लौटे। उनका कहना है, "एक कलाकार अपनी मिट्टी से कट कर नहीं रह सकता।"

आज वे देश–विदेश में ८३ से अधिक एकल प्रदर्शनियाँ कर चुके हैं। पद्मश्री से सम्मानित होने के साथ साथ उन्होंने ललितकला अकादमी के पुरस्कार को तीन बार १९६१, १९६३ और १९७२ में जीता है। भारत सरकार द्वारा उन्हें १९८५ में पद्मश्री से सम्मानित का गया, १९८७ में गोआ सरकार द्वारा सम्मानित किया गया तथा १९९५ में उन्हें नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुआ। वे १९७७ से १९८७ तक गोआ में कालेज आफ आर्ट के प्रधानाचार्य भी रहे।

लक्ष्मण पै ने अपने चित्रों में भारत की अलंकृत शैली को आधुनिकता का रंग दे कर एक नयी शैली का सृजन किया हैं। लयात्मक रेखाओं के बहते हुए अंदाज़ और दीप्तिमान रंगों से सजे हुए उनके चित्रों का आकर्षण देखते ही बनता है। लक्ष्मण की कला में न केवल विषय वस्तु अपितु माध्यमों की विविधता भी देखने को मिलती है। उन्होंने जलरंग, तैल, एक्रिलिक और इंक सभी माध्यमों में काम किया है यहाँ तक कि लकड़ी पर नक्काशी कर के कलाकृतियाँ बनाने के भी प्रयोग वे कर चुके हैं। लक्ष्मण पै ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के अनेक रूपों को अपने चित्रों में आकार दिया है और साहित्य व समाज के अनेक विषयों को अपने रंगों में संजोया है।

उनकी कलाकृतियाँ अनेक व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक कला संग्रहालयों में रखी गई हैं। इसमें से म्यूजियम ऑफ आर्ट पेरिस, न्यूयॉर्क पब्लिक लायब्रेरी, बर्लिन म्यूजियम, बेन एण्ड ऐबे ग्रे फाउंडेशन लॉस एंजेल्स, नेशनल गैलरी ऑफ माडर्न आर्ट नई दिल्ली, पंजाब, मद्रास व नागपुर प्रमुख हैं।

इसके अतिरिक्त विविध विषयों पर आधारित उनके चित्रों की शृंखलाएँ काफी चर्चित रही हैं। इनमें जयदेव की गीतगोविन्द (१९५४), रामायण (१९५८-७१), महात्मा गाँधी का जीवन (१९५८), बुद्ध का जीवन (१९५९), कालिदास की ऋतुसंहार) (१९६३), इंडियन म्यूजिक म्यूजिकल मूड्स (१९६५) कश्मीर पोर्ट्रेट्स (१९६५), पुरुष एवं प्रकृति (१९६६), नृत्य भंगिमाएँ (१९६७), कांगड़ा पोर्ट्रेट्स (१९७२), राजस्थान (१९९२), नवरस (१९९१), ऋतुओं का उत्सव (१९९३), कामसूत्र में पुरुष और प्रकृति (१९९४), जीवनोत्सव (१९९५), कल्पनाएँ (१९९६), काम-क्रोध-मोह-मोक्ष (१९९७-९८), शृंगार आयाम (२०००), जीवन वृक्ष (२००१), वसंत पुष्प (२००१), मानवाकार (२००२), स्त्रीआकार (२००३), पुष्पित पुष्प (२००४) प्रमुख हैं। उन्होंने गोआ के पत्रदेवी मेमोरियल में १९८५ में दो बड़े भित्ति चित्रों की रचना भी की है।

बाई ओर प्रदर्शित उनके चित्र का शीर्षक चिड़िया और पंतंगे तथा ऊपर दिया गए चित्र का शीर्षक शृंगार है। लक्ष्मण पै दिल्ली में रहते व कार्य करते हैं।
 

 
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