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कला और कलाकार

प्रो. उमेश कुमार सक्सेना

३ फरवरी १९५७ को लखनऊ में जन्मे प्रो. उमेश सक्सेना ने कला की शिक्षा लखनऊ कॉलेज आप आर्ट्स एंड क्राफ्ट से हुई। ४० वर्षों तक कला के अध्यापन (१८ वर्ष केंद्रीय विद्यालय में तथा २२ वर्ष कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ) के बाद संप्रति वे अवकाश प्राप्त कर कला साधना में लीन है। उन्होंने राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के अनेकों पुरस्कार प्राप्त किए हैं और शिक्षण के साथ-साथ कला साधना में रत रहते हुए कला रूपों को निरंतर समृद्ध किया है। उनके चित्रों के संग्रह राष्ट्रीय कला संग्रहालय नई दिल्ली, ललित कला अकादमी नई दिल्ली, ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश एवं देश विदेश के अनेक संग्रहालयों एवं व्यक्तिगत संग्रहों में सुरक्षित हैं।

प्रो. उमेश कुमार सक्सेना ने कला सर्जना की यात्रा में दृश्य तथा आत्मिक बोध को रचा और सौंदर्य बोध के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों को सांद्र किया है। उनके प्रारंभिक चित्रों में स्टोनस्केप्स हैं, जहाँ पत्थरों को सुंदर, सुनियोजित ढँग से आकार और आकाश देते हुए व्यवस्थित किया गया है। उनके बाद वाले चित्र पारदर्शी रंगों की लयात्मक अभिव्यक्ति हैं जो भारतीय दर्शन और प्राचीन इतिहास और साहित्य को विशिष्ट शैली मे प्रस्तुत करते हैं। स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ते हुए उनके चित्र सघनता से तरलता की ओर विकसित हुए हैं।

उनकी नवसृजित चित्र शृंखलाओं में किसी विस्तृत दृश्य को न दिखाकर आकारों का भाव परक अध्ययन किया गया है और उन्हें रंगों की सुखमय और सूक्ष्मतम पर्तों में चित्रित किया गया है। प्रो. उमेश कुमार सक्सेना के चित्रों में भरे हुए रंग के रंग प्रकृति के मानस पर पड़े हुए प्रभावों से लिये गए हैं, ये चटक रंग हैं लेकिन मौलिक नहीं, ये रंग उनकी कलात्मक दृष्टि से बने हुए हैं। विगत कुछ वर्षों से चटक रंगों की सपाट सतह पर वह कार्य रहे हैं।

नीला रंग (कोबाल्ट ब्लू) उन्होंने उड़ान भरते समय आसमान से सहेजा है तो मैजेंटा रंग कश्मीर में ऊजमर्ग जाते समय केसर के खिले हुए फूलों से ग्रहण किया है, धानी रंग धान के खेत से लिया और पीला रंग कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ के बाहर प्रचुर मात्रा में खिले हुए अमलतास के फूलों से लिया। इस शृंखला पर वे विगत अनेक वर्षों से कार्य कर रहे हैं। ५x५, ६x६, १३×५, २४×१३ फुट के वृहत कैनवस पर नीले या अन्य गहरे रंगों की पृष्ठभूमि में सफेद या अन्य हल्के रंगों से उभरते आकार दर्शक से सीधा संवाद करते हैं। इन चित्रों में मुख्य रूप से पहाड़, प्राकृतिक दृश्य, तितली, मत्स्याकार एवं अन्य विविध पुष्पों और कलियों के आकार सम्मिलित हैं। सूर्य अथवा चाँद का संयोजन कई चित्रों में देखा जा सकता है। एक अन्य चित्र में हरित पृष्ठभूमि में पल्लवों के झुंड के पार्श्व में तीन मानवाकृतियों के चेहरे दृष्टव्य हैं। ये चेहरे आशान्वित से जान पड़ते हैं।

प्रो. उमेश कुमार सक्सेना के रेखांकन ओज़पूर्ण और प्रवाहयुक्त हैं। ये रेखांकन स्वतंत्र रूप से अपनी संपूर्ण सत्ता प्रस्तुत करते हैं। ये मात्र आकार या दृश्य की प्रस्तुति नहीं है अपितु अर्थ एवं बोध में डूबे हुए अभिव्यक्त होते हैं। उनके द्वारा रचित ३००० से अधिक रेखांकन पशु पक्षियों, फूल पत्तियों एवं अन्य मानवीय आकारों की लय, सौंदर्य एवं त्वरित गति के कारण विशेष रूप से आकर्षित करते हैं।

१ नवंबर २०२२

 
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