मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


नीमा की आँखों में आँसू थे। भैया फ़ोन करना, खत लिखना। माँ ने तो खाने की चीज़ें इस तरह पैक की थीं कि जैसे में दुबई नहीं अंदमान–निकोबार जा रहा था। – 'बेटा ये कमल के लिए है और ये तुम्हारे लिए, अपना खयाल रखना, यहाँ की चिंता बिल्कुल मत करना।' भाभी रो पड़ी थी। माँ से भी बढ़कर जो ममता थी उसकी। कुछ बोली ही नहीं। अपने आँचल से आँसू पोंछती रही। मैं ही उसके करीब गया और मैंने कहा – 'भाभी चिक्की का खयाल रखना, हो सके तो ताश और शतरंज खेलने चले जाना उसके घर।' भाभी ने सुमधुर आवाज़ में कहा – 'जल्दी आना बेटा, अगली बार आओगे तो चिक्की से तुम्हारी शादी कराके ही रहूँगी।' रह गई चिक्की। होटल से छुट्टी ले रखी थी उसने।– 'एक को मैं छोड़ आई हूँ और दूसरा मुझे छोड़कर जा रहा है। इतना दुःख तो उस दिन भी नहीं हुआ था जिस दिन मैंने अपने पति को छोड़ने का फैसला किया था।' चिक्की ने पहली बार अपने प्यार का इकरार किया था शब्दों में –

'दुबई के अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे पर आपका स्वागत है।' हवाई सुंदरी की सुमधुर वाणी जब कानों ने सुनी तब जाकर पूरा विश्वास हो गया कि मैं दुबई पहुँच चुका था। सपनों का शहर दुबई अपनी बाहें फैलाकर मेरा स्वागत कर रहा था। 'अस–सलाम आलेकुम', सब्बाहेल–खेर (गुड मार्निंग), शुक्रन आदि अरबी शब्दों के माहौल ने समा बाँध लिया था। डयूटी फ्री के ब्लैक लेबल, शिवास रिगल और छोटी–मोटी चीज़ों की फ़रमाईश कमल ने की थी सो शॉपिंग खतम कर अराइवल लाउंज से बाहर निकला तो केके और केके मेरा मतलब है केके और श्रीमती केके मेरे आने की खुशी में मुस्कुराहट बिखरते हुए नज़र आए थे। फोर व्हील ड्राइव में बैठने की बारी आई तो कालिंदी ने कहा – 'आप आगे बैठिए, मैं केतन के साथ पीछे बैठ जाऊँगी।' नन्हें केतन को लाड़–प्यार से पुचकारने के बाद मैं कमल के साथ वाली सीट पर जा बैठा। साइड मिरर में देखा तो पीछे केतन फोर व्हील ड्राइव मैं बैठा हुआ था और गाड़ी स्टार्ट कर रहा था। एक अजीब–सी मुस्कान मेरे चेहरे पर छा गई।

– 'क्यों बे, सपने बुनने लग गया क्या?' कमल की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया। 'हाँ यार तू बिलकुल ठीक है' मैंने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा। गुज़रते रास्ते, गाड़ियाँ, इमारतें, गोल चौराहे, पुल, अरब महासागर . . .देखते–देखते मैं मुंबई को धीरे–धीरे भूलने लगा था। कमल की पूछताछ जारी थी के अचानक कालिंदी ने कहा – 'कमल रेडियो तो चला।' मैं समझ गया वो शायद हमारी बातें सुनकर बोर हो गई थीं। रेडियो ऑन करने पर गाना सुनाई दिया – छोड़ आए हम वो गलियाँ . . .

शुक्रवार का दिन मतलब रविवार का दिन। रसोईघर को छुट्टी। वैसे भी कालिंदी को खाना पकाना पसंद नहीं था। दोनों मियाँ–बीवी होटल से ही खाना मंगा लेते या होटल जाकर खा लेते। कपड़े वॉशिंग मशीन में धुल जाते। घर पर एक श्रीलंकन आया आ जाती जो बाकी सारे काम कर देती। कालिंदी नौकरी करती थी एक जानी–मानी परफ्यूम कंपनी में। घर का सारा काम श्रीलंकन आया से या अपने पति से ही करवाती थी, अब उसे एक और असिस्टेंट मिल गया था – धनेश देसाई। दिन भर मुझे घुमाने–फिराने के बाद रात को चायनीज़ डिनर खिलाकर जब थके–माँदे हम घर लौटे तो कालिंदी ने एक काग़ज़ का टुकड़ा मेरे हाथ थमा दिया। – 'ये रहा आपका बिल' स्नेहपूर्वक उसने कहा। मैंने देखा – मुझपर किए हुए हर छोटे–मोटे खर्चे का हिसाब अपने सुंदर हस्ताक्षर में लिखकर दिया था उसने। – 'बुरा मत मानो धनेश और हाँ ये बात कमल को मत बताना वर्ना ख़ामख़ाह नाराज़ हो जाएगा मुझसे। पर तुम जानते तो हो कितना खर्चीला है वह। अगर मैं न होती तो कभी का कंगाल हो चुका होता मेरा पति।' मैंने हामी भर दी। विज़िट विसा चार्जेस इतना, ब्रेकफास्ट इतना, लंच इतना, डिनर इतना, कुल मिलाकर इतने दिरहम। उसी पल मुझे लगा कि एक बिल मुझे भी देना चाहिए – ब्लॅक लेबल : शिवास रिगल : इतने दिरहम। सारे खर्चों का हिसाब। मुझमें और कालिंदी में फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि वो फ़लाना परफ्यूम कंपनी के बिलिंग डिपार्टमेंट में काम करती थी और मैं जो कुछ भी छोटी–मोटी कमाई करता था, सारी कमाई अपने दोस्तों को खिलाने–पिलाने में खर्च कर देता था। न कभी बाबूजी को पता चलता था न मनीष भैया को।

मैंने अपने आप से कहा – दुबई तक मैं कमल की वजह से ही तो आया और आगे चलकर पता नहीं कितने एहसान वो करेगा मुझपर। दोस्ती की आबरू रखने के लिए दूसरे दिन सुबह ही मैंने रुपए और डॉलर्स एक्स्चेंज कर कालिंदी के हाथों थमा दिए। उसने कहा – 'थैंक्यू, अरे इसकी इतनी क्या जल्दी थी? आराम से दे देते।' जल्दी उसे नहीं थी पर मुझे थी, अगर देर करता तो दोस्ती मुझसे रूठ जाती। कुछ दिन यों ही गुज़र गए। मैं आवेदन भेजता रहा। कुछ इंटरव्यू के फोन आए। वही नकारात्मक उत्तर आपको दुबई का अनुभव नहीं है। यहाँ एम. कॉम. या सी. ए. की ज़रूरत है कहाँ? अकाउंटिंग पैकेज है हमारे पास, आप ज्यादा तनख्वाह की माँग कर रहे हैं, इतनी तो हम अपने मैनेजर को भी नहीं देते। अब इसी तन्ख्.वाह में जॉइन कर लो, बाद में देखेंगे। हम ज़रूर कुछ करेंगे। दिन भर घर बैठता फोन का इंतज़ार करता।

मेरी हरकतों से कमल और केतन ज़्यादा परेशान थे। कालिंदी कहती पता नहीं मुझे तो इसकी बातें ही समझ में नहीं आतीं। दिन भर टीवी देखता रहता है, कपड़े नहीं धोता, पानी–बिजली पहले इतना बिल नहीं आता था। मैं तो सोच रही हूँ उससे कहूँ कि केतन को संभाले ताकि क्रेच का खर्चा बच जाए।' कमल कहता था– 'तुम्हें जो करना है करो, मुझसे मत पूछो। दो–चार बार तो कालिंदी केतन को मेरे हवाले कर चली गई। मुझे बेबी सिटिंग का कोई अनुभव नहीं था। बच्चे ने मुझे इतना तंग किया के मैं सोच में पड़ गया के आख़िर ये लोग मुझसे चाहते क्या हैं? थोड़े ही दिनों में बात सामने आ गई – कालिंदी ने अबकी बार हिसाब में कमरे का किराया भी जोड़ा था। मेरा माथा ठनका। खुद तो कंपनी के दिए हुए फ्लैट में रहते हैं और मुझसे किराए की उम्मीद। मैंने सोचा अब बहुत हो गया। इस सोच का कारण यह भी था के बाबूजी के दिए हुए रुपए और डॉलर्स अब कम ही बचे थे। शुरुआत में फोर व्हील ड्राइव का लुत्फ़ उठाया था मैंने पर बाद में टैक्सी, बस, आबरा(बोट) और नज़दीकी जगहों पर ये ग्यारह नंबर की बस (अपने दो पैरों की तरफ़ इशारा करता है) से जाने लगा। मैंने अपना फ़ैसला उठकर सुना दिया – 'मैंने अपने लिए रहने की जगह ढूँढ ली है कल चला जाऊँगा।' कमल कुछ नहीं बोला – 'ठीक है जैसे तेरी मर्ज़ी। हमसे जितना बन सका हमने किया आगे तू जाने। तुझे चाहिए तो मैं तेरे नये मकान तक छोड़कर आऊँ।' मैंने कहा – 'नो थैंक्स यार मैं खुद चला जाऊँगा।' कालिंदी ने कहा था – 'विकएँड पर कभी–कभार आते रहना। मैंने कहने के लिए कह तो दिया था – ज़रूर आऊँगा पर मेरा मन वहाँ जाने के लिए कभी नहीं माना और न ही कभी मैं वहाँ गया। अपना बैग उठाया टैक्सी में डाला और कहा – 'मुर्शिद बाज़ार, देरा।' टैक्सी में रेडियो पर गाना बज रहा था पुरानी फ़िल्म का – सबका है तेरी जेब से रिश्ता, तेरी ज़रूरत कोई नहीं। बचके निकल जा, इस बस्ती
में करता मोहब्बत कोई नहीं।

टैक्सी रुकी। खुदा हाफ़िज़ कह कर टैक्सी वाला किराया लेकर चला गया। मैंने दूसरे माले तक का सफ़र सीढ़ियों से ही तय किया। लिफ्ट थी मगर आउट ऑफ ऑर्डर का बोर्ड टंगा हुआ था। पुरानी बिल्डिंग दूसरे माले पर २०७ के बाहर नेम प्लेट थी मिसेस सुनीता पुनवानी। मैंने दरवाज़े पर दस्तक दी। सुनीता आँटी ने ही दरवाज़ा खोला– 'आओ, अंदर आओ धनेश, ये रहा तुम्हारा कमरा। किसी चीज़ की तकलीफ़ हो तो ज़रूर याद करना मुझे। तीसरावाला जो बेड स्पेस है वो तुम्हारा है। सब काम पर गए हैं।' मैंने पूछा – 'आपके मिस्टर सुनीता आँटी मेरा मतलब है पुनवानी अंकल . . .' बिना किसी झिझक के उसने कहा – 'जुमेराह जेल में हैं। टेक्स्टाइल मार्केट में अपनी दूकान थी, कर्ज़े अदा न कर पाने की वजह से पुलिस केस हो गया। घर चलाने के लिए मुझे कमरे किराए पर देने पड़े। बस गुज़र–बसर ज्यों–त्यों हो ही जाता है। एक बेटा है मेंटली रिटार्डेड। एक बात कहूँ बेटा ज़िंदगी से कभी हारना नहीं चाहिए, जिंदगी को हराना चाहिए।' मैंने कहा – 'सॉरी आँटी आपको
. . .' उसने कहा – 'कोई बात नहीं बेटा। जाओ तुम आराम करो।'

मैं अपने में कमरे में आया – मतलब इस कमरे में आया। उस दिन से लेकर आजतक इसी कमरे में हूँ। क्या कहा? मैंने कमरा कहा इस बात पर आपको हैरानगी तो ज़रूर हुई होगी। क्योंकि दिखने में ये किसी अस्तबल से भी बदतर है। जानता हूँ, मानता हूँ आपकी बात को मगर एक बात बता दूँ, आपको यहाँ इंसान बसते हैं, ऐसे इंसान जिनमें इंसानियत
नामकी चीज़ अभी तक बाकी है। आइए मैं आपका परिचय करा दूँ इन पाँच इंसानों से – इन पाँच बेडस से।

नंबर १ है जयदीप भट्टाचार्य कोलकाता से आया हुआ एक बंगाली। पढ़ा–लिखा डबल ग्रेज्युएट उम्र ३७ साल। अल फलाह कैफेटेरिया में वेटर की नौकरी कर रहा है। तनखा ८०० दिरहम्स, टिप अलग। शादी–शुदा है– दो बच्चे हैं। परिवार कोलकाता में है। आठ साल से परिवारवालों से मिला नहीं। कोल्हू के बैल जैसे काम करता है। तनखा मिलते ही परिवारवालों को भेज देता है। टिप के पैसों से किराया और खुद के दूसरे खर्च उठाता है। पढ़ने का बहुत शौक रखता है। अंगे्रज़ी किताबें पढ़ता है। ये जो बिखरी हुई किताबें हैं न, उसकी हैं।

नंबर २ बलराम मेनन उम्र ३० साल। नॉवेल्टी ऑडियो वीडियो कैसेटस शॉप में नौकरी। गाने सुनने और गाने का बड़ा ही शौकीन। रात को सोते समय या अकेले में वॉकमन सुनता रहता है। मोहम्मद रफी साहब के गाने मतलब – दूसरा कोई उनके जैसा नहीं गा सकता। सोनू निगम मिमिकरी आर्टीस्ट है वगैरह–वगैरह। उसके साथ कोई रफी साहब के ख़िलाफ़ एक लफ़्ज़ नहीं बोल सकता। अगर ये बाथरूम चला जाए तो यहाँ रेडियो लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

नंबर ३ अब मैं हूँ, मगर मुझसे पहले एक ललित पंडया नामक गुज़राती लड़का रहता था। नाइट क्लब से हर रात – रात क्या सुबह के चार बजे लौटता था। मसाफी की बोतल में पानी नहीं सिगरेट के टुकड़े पड़े मिलते। अपने परिवार से दूर रहने का ग़म उसे सताता था इसलिए उसने नौकरी छोड़ दी पर उसके मालिक ने चोरी का इल्ज़ाम लगाकर उसे पुलिस के चक्करों में लगा दिया। अंत में तंग आकर ये जो खिड़की देख रहे हैं ना आप – यहाँ से छलाँग लगाकर उसने अपनी जान
दे दी। नंबर तीन का ये बेड वैसै भी पनौती ही माना जाता है। मुझे ललित के बारे में तीन दिन बाद पता चला।

नंबर ४ जॉर्ज जोसेफ इंश्योरेंस कंपनी में कमिशन बेसिस पर नौकरी करता है। सूटेड–बूटेड ये २६ साल का नौजवान बात करने में बहुत ही चालाक है। शादी हुई नहीं है और न ही कभी करने का इरादा है। पूछो तो कहता है अरे यार सैलरी वाली जॉब थोड़े ही है और फिर कमिशन न मिली तो नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या। चलिए कोई तो एक समझदार आदमी है इस दुनिया में – इसकी दार्शनिक बातें सुनकर मैं सोचता।

नंबर ५ गुलज़ार चाचा। उम्र ५० साल। पहले प्रायवेट टैक्सी चलाते थे अब कारलिफ्ट करते हैं। ताल्लुक रखते हैं पाकिस्तान से। जिस तरह अपनी नमाज़ें पढ़ना नहीं भूलते उसी तरह किसी की मदद करने से कभी नहीं चूकते। हर बात में अल्लाह का करम है, अल्लाह का फ़ज़ल है। बीवी के इंतकाल के बाद बेटे को यहाँ लाने की लाख कोशिशें की मगर नाकामयाब रहे। आख़िर में बेटा बगैर वीसा के, पासपोर्ट के ओमान की सीमा पार करते वक्त पुलिस के हाथों पकड़ा गया, अब जेल में बंद है। किसी बात का कभी ग़म नहीं करते। न दुनियावालों से शिकायत करते हैं और न ही अल्लाह से। खुश रहते हैं
और सबकी खुशी चाहते हैं।

सब वक्त का कमाल है, वक्त का खेल है, वक्त बदलता रहता है। हम इंसान वक्त के हाथों मजबूर है। अरे हाँ वक्त (घड़ी की ओर देखता है – फिर खुद से) अभी थोड़ा वक्त बचा है, थोड़ा काम कर लूँ। (बैग निकालता है, खोलता है कुछ चीज़ें यहाँ वहाँ से उठाकर बैग में डालता है। डालते वक्त किसी दूसरे के मोजे या बनियान हाथ में आ जाते हैं। उनका साइज़ दर्शकों को दिखाकर कहता है – नहीं ये मेरा नहीं है – हँसता है फिर दर्शकों से) ये सब तो होता रहेगा लेकिन अगर आप बोर होकर यहाँ से उठकर जाने लगें तो मुझे ज़रूर बुरा लगेगा।

हाँ, तो पहले दिन शाम को हम पाँचों निवासी एकत्रित हुए। मुझसे मिलकर सबों ने खुशी जताई। जयदीप ने पहले दिन किताब नहीं पढ़ी सब उसका मज़ाक उड़ा रहे थे। होटल की नौकरी इस कमरे में की पहली बार बलराम ने वॉकमन की बजाए रेडियो चलाया। जॉर्ज ने इस फ्रिज में से (कह कर फ्रीज खोलता है अंदर जॉर्ज ने अपने कपड़े रखे हुए हैं दो–तीन दारू की बोतलें टूथ–ब्रश, टूथ–पेस्ट, सोप आदि रखे हुए हैं) जॉनी वॉकर, रेड लेबल की बोतल खोली गुलज़ार चाचा के लिए सुनीता आँटी से माँगकर पेप्सी की बोतल लाई गई। चीअर्स एवरी बडी चीअर्स चीअर्स तब तक खुशी मनाते रहे जब तक के सुनीता आँटी ने दरवाज़े पर दस्तक देकर ये नहीं कहा – 'कल शुक्रवार नहीं है, काम पर जाना है ना !' सुनीता आँटी
की आवाज़ में अपनापन था।

जो खुशी मुझे अपने परिवारवालों के बीच या फिर केके के घर में नहीं हासिल हुई थी, उस खुशी का एहसास मैं महसूस कर रहा था। दोस्तों मेरी आँखों से आँसू बह निकले। खुशी के आँसू, खुशियों के शहर दुबई में।

दूसरे दिन सुबह बलराम गा रहा था रफी साहब का गाना – आँचल में सजा लेना कलियाँ . . .हम पाँचों के बीच बाथरूम सिर्फ़ एक ही था। सूटेड–बूटेड जॉर्ज ब्रश कर रहा था।

चूँकि बलराम बाथरूम के अंदर गा रहा था, सब उसे आवाज़ देकर बुला रहे थे – रफी साहब गाना बंद कीजिए हमें भी बाथरूम जाने का मौका दीजिए। मुझे कहीं नहीं जाना था। बैठकर तमाशा देख रहा था और मज़े ले रहा था। जॉर्ज से पूछ बैठा – 'अबे तू नहाएगा नहीं क्या?' जॉर्ज ने ब्रश नीचे रख कर जवाब दिया –
'शाम को, अभी थोड़ी ना अपॉइंटमेंट है यार। अभी जाकर क्लाइंटस को फ़ोन करूँगा अपॉइंटमेटस लूँगा।' –
'तो फिर ये सूट–बूट– . .'
.'यार जब तक ऑफिशियल ड्रेस पहनकर नहीं बैठूँ ऑफिशियल बात करने का मूड कैसे बनेगा' अरे भैया, बिज़नेस की
बात करने के लिए वैसा माहौल बनाना ज़रूरी है।'

जयदीप हाथ में किताब लेकर जा रहा था डयूटी पर। मैंने पूछा – 'ये क्या?' बोला – 'वेटर की नौकरी से जब थोड़ी बहुत फुरसत मिल जाएगी ना तो पढ़ लूँगा। पढ़ने का शौक है ना तो पढ़ना थोड़े ही छोड़ूँगा।' गुलज़ार चाचा ने मुझे सलाम कर पूछा – 'बच्चा तुमको किधर जाने का होगा मैं छोड़ दूँगा।' मैंने कहा – 'नहीं,' – 'अरे डरो मत बच्चा, इधर बैठ के क्या करेगा चलो हमारे साथ तुमको घुमाएगा दुबई का सैर कराएगा। चार दोस्तों से मिलाएगा सलाम–दुआ कराएगा चलो–चलो।' मुझे खींचकर साथ ले गए। काफ़ी दिनों से घर पर फ़ोन नहीं किया था। प्रीपेड कार्ड ख़रीदा फ़ोन मिलाया – बाबूजी, माँ, भाभी, भैया और नीमा सबसे खूब बातें की। सबने यही कहा – 'निराश मत हो अभी वक्त बाकी है ना विज़ीट विसा एक्स्पायर होने में।' उनकी तसल्ली और इन मिसेस सुनीता पुनवानी के चार और किरायेदारों की संगत में कुछ और दिन हँसी–खुशी गुज़र गए। यहाँ हर कोई दुखी होने के बावजूद खुश होने का अभिनय बखूबी निभाता था। सुनीता आँटी ने खाना पकाने की सुविधा दी थी। जिसका जो मन करे पकाता खाता और खिलाता। घरों से पार्सल आने पर सब साथ मिलकर आपस में बाँटकर खाते खिलाते। चिठ्ठियाँ पढ़कर सुनाते। एक दूसरे को सलाह देते, टाइमपास के लिए कैरम खेलते, ताश खेलते, शतरंज खेलते। पासवाले कमरे के लड़कों को बुलाकर मैदान में क्रिकेट या फूटबॉल तक खेलने चले जाते। कमरे को अक्सर गंदा ही रखते, पर वक्त मिलने पर मिल–जुलकर सफ़ाई करने का प्रोग्राम बना लेते। फ़िल्में देखते कभी
थियेटर चले जाते।

हमेशा इस बात का ख़याल रखते कि मैं तनहा न रहूँ। मैं भी इतना घुलमिल गया था, पता ही नहीं चला के वक्त कैसे गुज़र गया और आज मेरा विज़िट वीसा एक्स्पायर होने का दिन आ गया था। मुझे आज वापस जाना है अपने देश – भारत। अपने देश लौटने की खुशी किसे नहीं होती मगर मैं दुखी हूँ। अपनी आयु के पच्चीस सालों में इतना दुखी मैं कभी नहीं हुआ था। क्या वजह थी? दुबई आकर इन तीन महीनों में मैंने ज़िंदगी का एक अलग रूप देखा है, जीने का एक अलग मतलब पाया है, इस परदेस में रहनेवाले देशवासियों से कितना कुछ सीखा है। हे भगवान, मैं वापस क्यों जा रहा हूँ। क्या करूँगा वहाँ वापस जाकर? फिर वही घर, वही परिवारवाले, वही ताने, वही गिले–शिकवे, शर्माजी की शिकायतें और वही चिकी। इन तीन महीनों में उसने कभी फ़ोन नहीं किया था। भाभी ने बताया था – 'धनेश, मालूम नहीं किधर रहती है, क्या करती है, ज़्यादा बात नहीं करती, तुम्हारे लिए पूछती तक नहीं।' क्या चिकी मुझे भूल गई थी। एक वही तो थी मेरी अपनी जिसपर मैं अपना रोब जमा सकता था। जिसकी दुनिया में मैं और मेरी दुनिया में वो थी। ये क्या हो गया भगवान? अगर मैं नौकरी पाकर वापस जाता तो मेरा वहाँ निश्चय ही स्वागत होता। अब तो मैं ऐसे महसूस कर रहा हूँ जैसे किसी मैदान–ए–जंग से एक हारा हुआ सिपाही लौट रहा हो। हे भगवान मैं सफल न हो सका। एक नौकरी नहीं
हासिल कर सका मैं यहाँ? अब क्या मुँह दिखाऊँगा अपने घरवालों को? कितने दुःख की बात है कितनी शर्म की बात . .

(कहकर फूट–फूट कर रोने लगता है। धीरे धीरे अंधेरा छा जाता है। प्रकाश होने पर कमरे मे युवक अपना समान पैक कर रहा है। टेलिफ़ोन की घंटी बजती है, वह फोन उठाता है।)

'हैलो, चिकी क्या बात है, फ़ोन क्यों नहीं किया इतने दिन। आय मिस यू चिकी। विश्वास करो मुझे तुम्हारी बहुत याद आती है। क्या? तुम्हारे हसबैंड को तुम्हारे बेटी की लीगल कस्टडी कोर्ट ने दी? अ.फ़सोस हुआ सुनकर। हाँ, मैं आज लौट रहा हूँ। यार मेरी नौकरी का कुछ भी नहीं हुआ। वैसे उम्मीद तो दिखाई है कुछ लोगों ने लेकिन यहाँ से लौटने पर पता नहीं अब ये लोग वीज़ा भेजेंगे भी कि नहीं। क्या तुम भी यहाँ आना चाहती हो? हम आएँगे। हम साथ आएँगे और काम ढूँढेंगे, पर मेरे पास बिलकुल पैसे नहीं हैं। बाबूजी से लिए हुए पैसे भी मैं लौटाना चाहता हूँ। मुझे बेकार रहना पसंद नहीं है। मैं बेरोज़गार नहीं कहलाना चाहता मैं नालायक, निकम्मा नहीं हूँ। तुम जानती तो हो यार बस मुझे तुम्हारा साथ चाहिए। मैं तुमसे शादी करूँगा। हम दुबई में रहेंगे इकठ्ठे। सच चिकी, मेरा विश्वास करना। बाय, लव यू, ओके मैं आ रहा हूँ चिकी बस मेरा इंतज़ार करना और याद रखना अंधेरा टलेगा फिर दीप जलेगा, फिर दीप चलेगा।' (रिसीवर नीचे रखता है।)

पृष्ठ : . . .

(पर्दा गिरता है)

९ मई २००६

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।