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                        सिंगापुर, 
                        बैंकाक और पटाया का त्रिकोण (२)--दीपिका 
                        जोशी
 
 
 बैंकाक 
                          शहर से २५ कि.मी. दूर थॅचिन नदी पर रोज़ गार्डन का विलेज 
                          शो आकर्षण का एक प्रमुख केन्द्र है। हरियाली और फूल जिधर 
                          नज़र घुमाओ नज़र आते हैं और आँखों को बहलाते है। मगर एक 
                          बात यहाँ खटकी वह ये कि रोज गार्डन में हमें कहीं रोज का 
                          नामोनिशान नहीं मिला। यहाँ के विलेज शो में थाई 
                          लोकनृत्य, बांबू नृत्य, थाई बॉक्सिंग, तलवार युद्ध का 
                          प्रदर्शन, साथ-साथ थाई शादियों की रस्म को प्रस्तुत करने 
                          का ढंग बड़ा ही खूबसूरत है। इस सब कार्यक्रमों का अन्त 
                          हाथी के खेलों से होता है। यहाँ चार-पाँच घण्टे गुज़रने 
                          का पता ही नहीं चला, घड़ी शाम के पाँच बजे हुए दिखा रही 
                          थी।  सफारी 
                          वर्ल्ड में जब जाते हैं तो सब प्राणी अपने ईद-गिर्द 
                          घूमते हुए पाते हैं। अपनी कार में बैठ कर बंद शीशों के 
                          बाहर जिराफ, हिरन को अपने पास आते देख दिल खुश हो जाता 
                          है। सब प्राणी झुंड में घूमते हैं। अपनी कार के सामने से 
                          रास्ता पार करनेवाले मोर, बतख़ को प्राथमिकता दी जाती 
                          है। अनगिनत जानवर ऐसे ही मुक्त रहते हैं। दो फुट की दूरी 
                          पर आराम से बैठे बाघ, सिंह, यहाँ सभी आज़ाद हैं। गेंडा, 
                          भालू, हाथी सब साथ में रहते हैं।  यह सब 
                          देखकर मुझे चिड़ियाघर के बंद प्राणियों की याद आई। यदि 
                          सब जगह ऐसे मुक्त जीवन इन प्राणियों को मिले तो इन्हें 
                          क्या शिकवा हो सकता है? कितने मजे में हैं यहाँ सारे। 
                          यहीं पर एक मरीन पार्क है। यहाँ सील, डॉलफिन और बाकी 
                          लुप्त होती जा रही मछलियों की तरह-तरह की जातियाँ हैं। 
                          निरागस डॉलफिन की करतबें कोई नहीं भूल सकता। दो डॉलफिन 
                          बड़ी आसानी से संतुलन बनाए रखते हैं। हर करतब के बाद 
                          उन्हें एक मछली बख्शीश के तौर पर मिलती है। ऐसा कहते हैं 
                          कि डॉलफिन को ज़िन्दा मछली निगलना अच्छा लगता है, लेकिन 
                          यहाँ ये पराधीन जीव मरी हुई मछली खाने के लिए मजबूर किए 
                          जाते हैं।  बैंकाक 
                          से ३० कि.मी. की दूरी पर क्रोकोडाइल फार्म है जो दुनिया 
                          का सबसे बड़ा मगरमच्छ संग्रहालय है और गिनीज बुक में 
                          अपना नाम दर्ज कर चुका है। ३०,००० से ज़्यादा मगरमछ यहाँ 
                          है जिन में से कोई ताज़े पानी के और कुछ समुद्र के पानी 
                          के आदी हैं। बाकी प्राणियों के जैसे ही इसका भी खेल 
                          दिखाया जाता है।  अब 
                          पटाया का नज़ारा देखने निकली थी हमारी चौकड़ी। बैंकाक के 
                          समुद्र में किनारे से तेज़ दौड़ती मोटरबोट से हमारा सफ़र 
                          शुरू हुआ। खौलते समुद्र की लहरों पर बोट पटक-पटक कर हमें 
                          एक जगह बैठने भी नहीं दे रही थी। उछलते कूदते समुद्र के 
                          बीच में ही बनाए गए एक प्लेटफार्म पर हम उतरे। दूर से 
                          दिखाई दे रहे पैराशूट के सहारे उड़ रहे लोग करीब आ गए 
                          थे। अब पैरासेलिंग करने को हम तैयार थे। एक एक कर के हम 
                          हवा में उड़ने लगे शुरू में तो डर लगा, लेकिन क्या करें! 
                          पैरों तले खिसकने के लिए ज़मीन भी तो नहीं थीं!! पाँच 
                          मिनट का सफर, नीचे अथाह सागर और हवा में हम सब कुछ बड़ा 
                          ही रोमांचकारी रहा। हवा में उड़कर आए ही थे कि समुद्र की 
                          गहराई नापने स्कूबा डायविंग करने चल दिए। पानी में तैरती 
                          मछलियाँ, शार्क के बीच में और कोरल्स को हाथ से महसूस 
                          करते, आधा घण्टा बीत भी गया और समझ में भी नहीं आया कि 
                          हम कौन-सी दुनिया में थे।  पटाया 
                          का समुद्र ज़्यादा गहरा नहीं और पानी इतना साफ़ है कि 
                          कोरल्स देखने का मज़ा ही कुछ और हैं यहाँ। आखिर हम पटाया 
                          पहुँच ही गए। आँखों पर यकीन करे या नहीं, लेकिन यहाँ 
                          समुद्र के पानी के दो रंग साफ़-साफ़ नज़र आते हैं। समंदर 
                          में उतरे तो पानी इतना साफ़ कि तल दिखने लग जाए। सारा 
                          दिन पानी में डुबकियाँ लगाते रहे लेकिन दिल नहीं भरा। 
                          साफ़ पानी, ठण्डी हवा और उपर से ज़रा हल्की धूप व़ाह! 
                          क्या मौसम था। पटाया का सारा लुभावना नज़ारा वीडियो और 
                          फोटो में समा कर हम थके हारे लौट रहे थे पर खुशी का अंत 
                          नहीं था। बैंकाक में मसाज का भी बड़ा महत्व है। थके हारे 
                          पैरों को इस मसाज से बड़ा ही सुकून मिला। ४ दिन बैंकाक 
                          में बिता कर, हमारे मज़ाकिया टैक्सी ड्राइवर को अलविदा 
                          कहा तो, लेकिन भारी मन से... |