मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


लेकिन पहले पैसा न था और परदेस जाने की चाह में वह कुछ न कर सका। अमेरिका में उसे सहेलियाँ तो मिली पर पत्नी न मिल सकी। सूजन के साथ थोड़ा दिल तो लग गया था लेकिन दोस्ती टिक न सकी। उसे जीवनसाथी की ज़रूरत तो महसूस होती हैं लेकिन उमर बढ़ने से और आचार-विचारों पर थोड़ा परदेसी असर होने से कोई मन को भाती ही न थी। इसलिए अब यह आखिरी बार भगीरथ प्रयत्न करने जा रहा था। यदि ऐसे भी सफलता नहीं मिली तो वह खाली हाथ अकेला ही अमेरिका चला जाएगा।

लेकिन उसका मन वैसे अकेले वापस जाने को तैयार नहीं था। भारत में रहकर उसे अमेरिका की स्त्रियों जैसी साहसी और स्वस्थ पत्नी चाहिए थी। बहुत लड़कियों ने तो इसलिए शादी करने से इन्कार कर दिया क्यों कि वह अमेरिका वापस जाना नहीं चाहता था बल्कि यहीं स्थायी रूप से रहना चाहता था फिर ''खुद लड़की खत लिखे'', ऐसा कहने वाले से कौन शादी करेगा?

एक हफ़्ते में सिर्फ़ पाँच खत आए। उसमें से दो को वह पहले नकार चुका था। बाकी तीन थोड़ी काम की लग रही थी। तीनों की उम्र ३० के करीब थी। तीनों खत माधव बार-बार पढ़ता रहा। वे सज्जन व साहसी लग रही थीं। सुंदर, सुदृढ़ और स्वतंत्र होने के संकेत खत दे रहे थे। लेकिन वैसे थोड़ी थोड़ी ख़ामियाँ तीनों में थी। मिलने से पहले ही सोच समझ सकते हैं और उनके लिए मन तैयार करना पड़ेगा ऐसी ख़ामियाँ। यदि ऐसे तीनों को अभी से बिना देखे नकार दे तो सब तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा हैं। अकेले ही जीवन की नैया पार लगानी पड़ेगी। किसी को भी हाँ करना साहस का काम था। माधव ने मन में यह साहस जुटा ही लिया।

"स्वप्ना" रेस्टोरेंट शहर के बाहर और बहुत ही शानदार था। कॉलेज के लड़के लड़कियों का यह पसंदीदा था। प्रशस्त हॉल में बै कर खूब गप्पें हाँकने के लिए, किसी को अपने दिल का हाल सुनाने के लिए और प्रथम परिचय के लिए यह "महल" एकदम योग्य माना जाता था।

ऊपरी मंज़िल पर एक कोने में लस्सी के ग्लास सामने रख कर माधव और अंजली मौन व्रत धारण किए बैठे थे। अंजली ने भावुक हो कर लम्बा चौड़ा खत माधव को लिखा था। इसलिए उसने अंजली से सबसे पहले मिलने का सोचा। वैसे देखा जाय तो अंजली में ऐब भी कुछ नहीं था। तीनों में वही सब से अच्छी थी। अभी अभी उसने पीएच. डी. किया था। अच्छे घराने की, और कुँवारी भी थी।

जब देखा तब ३० साल की अंजली मुरझायी, उदास लग रही थी। उसकी तरफ़ देखते माधव सोचने लगा कि इतने सुन्दर चेहरे पर यह उदासी क्यों? क्या उसकी तबीयत ठीक नहीं रहती? कि इसका प्रेम भंग हो गया होगा? कितने सवाल माधव के मन में उठे हैं?
"मैंने अपने बारे में सब कुछ बताया है, आप के बारे में और कुछ?" माधव ने सवाल किया।
इस पर अंजली ने जवाब दिया, "मेरा भी मैंने सब आपके सामने रख दिया हैं। मेरा अब तक का जीवन एकदम सरल है।"
माधव ने कहा, "जैसा मैंने कहा कि मेरे जीवन में एक अमेरिकन लड़की आई थी, वैसे आप का कोई अतीत?"
"मेरे जीवन में ऐसे कोई आने का सवाल ही नहीं आता। मैं आज तक किसी अलग चीज़ की खोज में थी। प्रेम, शादी इससे कुछ अलग, और मुझे वह मार्ग मिल गया। सत्य साईबाबा ने वह प्रकाश मुझे दिखाया। तब से मुझे जैसे मुझे मुक्ति मिल गई, प्रेम मिल गया ऐसे लगने लगा हैं।" अंजली के मुँह पर खुशी छलक रही थी।

माधव एकदम सकपका गया। अंजली के बारे में माधव के मन में क्या था और उसे क्या सुनना पड़ा।
"तो क्या आप साईबाबा की भक्त हैं?"
"हाँ, साल में कम से कम एक महीना मैं बाबा के सहवास में रहती हूँ। वो जब यहाँ आते हैं तब मैं उनका प्रवचन ज़रूर सुनने जाती हूँ। उनका मुझ पर काफी प्रभाव है। यह देखिए, उन्होंने दिया हुआ लॉकेट" अंजली ने कहा। उस लॉकेट में साईबाबा की तस्वीर देख कर तो माधव और झनझना उठा। एक साधू ने इस औरत के जीवन को जकड़ रखा हैं। उसी के ध्यान से इसे शान्ति मिलती है यह तो मानसिक रोगी लगती हैं।

साईबाबा की तारीफ़ करते अंजली रुके नहीं रुकी। उनकी दैवी शक्ति के बारे में बता रही थी। और अन्त में उसने कहा कि साईबाबा की बदौलत मुझे माधव जैसा पति मिल रहा हैं।
अंजली उसकी पत्नी बन सकती हैं या नहीं इस संभ्रम में वह था। अंजली में शायद शादी के बाद बदलाव आएगा, वह साईबाबा को मन से निकाल कर मेरे बारे में सोचने लगेगी। लेकिन यह तो सारी "शायद" वाली बातें थी। जब वह अपनी सोच से बाहर आया तब माधव ने महसूस किया कि अंजली अकेली वहाँ से जा चुकी थी। माधव वहीं पर सर पर हाथ रख कर बैठा रहा।

---

"स्वप्ना" में बैठ कर माधव गौरी को अपने बारे में बता रहा था। नाते-रिश्ते, शिक्षा, पसंद-नापसंद, अपना कारोबार, और अमेरिका में रहते सूजन के साथ संबंध, याद कर के उसने सब कुछ बता दिया। और उसके बाद गौरी के मन को टटोल ने की कोशिश कर रहा था कि अब उसकी राय अपने बारे में क्या हो सकती है। माधव को गौरी के खत का एक वाक्य ही बार-बार याद आ रहा था कि वह विधवा है।

माधव की सब बातें सुन लेने के बाद उसने एक ही सवाल किया जो कि माधव से और काफी लड़कियों ने किया था, "आपने सूजन से शादी क्यों नहीं की?"
"वह मेरी दोस्त थी, उसके साथ शादी का मैंने कभी सोचा ही नहीं। हम कुछ अलग ही परिस्थिति में करीब आए और उतनी ही जल्दी दूर भी हो गए।"
उसने यह सुन सिर्फ़ गर्दन हिलाई, ऐसे दर्शाते हुए कि उसे इतना जवाब काफी था।

गौरी सुन्दर, गोरी, सतेज तो थी लेकिन विधवा होने के कारण ज़रा प्रौढ़-सी लगती थी। लेकिन फिर भी उसमें कुछ आकर्षण तो ज़रूर था। उसमें एक खानदानी मिठास थी। अंजली जितनी गौरी पढ़ी-लिखी नहीं थी लेकिन बुद्धिमान लगती थी। ६ साल अपने पति के साथ उसने गुज़ारे थे, बाद में विधवा हुई थी।

गौरी ने आगे कहना शुरू किया, "मैंने खत में सब कुछ लिख ही दिया है। मेरे पति ने मेरे लिए घर, काफी सारा पैसा रखा है, लेकिन मुझे घर-गृहस्थी का, बाल-बच्चों का शौक हैं, और मुझे किसी का सहारा चाहिए जो मुझे सँभाले, छाया दे।"
ऐसा कहते कहते बीच में ही गौरी ने नज़र उठा कर देखा। जैसे उसे यह सहारा देनेवाला, सँभालने वाला सामने ही बैठा हो।

गौरी मुझसे सहारा माँग रही है इसलिए माधव की गर्दन ज़रा ऊँची हो गई। यह सुन्दर, विधवा स्त्री मुझे अपना सहारा मान रही है, इस कल्पना से वह लेकिन दूसरे ही क्षण उसके मन में यह आया, आज कल तो पैसा ही सब कुछ होता है, फिर इसके पति ने इसके लिए पैसा रखा ही हैं, अपने पश्चात अपनी पत्नी को किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े मन में शंका ने घर कर ही लिया।

पृष्ठ

आगे-

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।