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लक्ष्मी चाय लेकर ज़मींदार के कमरे में चली गई। ज़मींदार उठ कर लक्ष्मी के इंतज़ार में बैठा था उसने सिरहाने तकिया लगा कर पीठ को पीछे टिका दिया। पैरों को सीधा किया और सामने फैला दिया। लक्ष्मी उसके पायताने बैठ गई।
"मेरी बेटी को बुलाया है?" लक्ष्मी के प्रश्न में कृतज्ञता है।

"हूँ", भारी आवाज़ के साथ ज़मींदार ने काहा। वह सुबह आएगी और दोपहर बाद वापस चली जाएगी।"
"ठीक है।" लक्ष्मी ने जवाब दिया।
"तुम्हारी बेटी को देने के लिए मैंने नौकर से दो फ्राक मँगवाए हैं।"
"अच्छा।" वह प्रसन्नता और संतोष से ज़मींदार को देखती है।
"तुम जानती हो यह सब काम मैं क्यों करता हूँ?"
"हूँ"
"क्यों?" 
"मैं तुमसे प्रेम करता हूँ। यह तुम समझती हो और हर रोज़ मेरा ख़याल रखती हो।"
"हूँ।"

लक्ष्मी बेचैनी से इधर उधर टहलती है। गलियारों से कमरों और रसोई से होते हुए उसकी आंखें सीधे द्वार पर आ जाती हैं। द्वार के बाद सूर्य के प्रकाश में खुले खेत हैं। वह मन की आंखों से देखती है - एक छोटी लड़की सड़क पर उसकी ओर चली आ रही है। उसका मन करता है वह सीढ़ियां उतर कर नीचे आ जाए और बाहर जाकर प्रतीक्षा करे। पर वह ऐसा नहीं कर सकती। ज़मींदार की आज्ञा है कि वह बाहर न जाए। वह चारदीवारी के भीतर बने तालाब तक जा सकती है पर उसके बाहर नहीं। बाहरी आंगन में भी जाना मना है। तामि घर में काम करने के लिये वहां आता-जाता है उस समय भी बाहर निकलना या उससे मिलना लक्ष्मी के लिये मना है।

जब तामि खेत में काम करता है तब वह भीतर से उसे देख सकती है पर तामि उसे नहीं देख सकता।

वह फावड़े से ज़मीन खोदता है। थक कर फावड़े को बगल में रख कर सुस्ताता हुए हवेली की ओर देखता है - शायद किसी खिड़की से लक्ष्मी दिख जाए। पर वह उस समय जल्दी से अंदर चली जाती है। वह ज़मींदार से डरती है। ज़मीदार की क्रूरता की कहानियाँ उसने अनेक लोगों से सुनी हैं पर लक्ष्मी के सामने ज़मींदार हमेशा ही सदय बना रहा है।

जब भी ज़मींदार पैसे लाता है वह अंदर ही अंदर डरती है - क्या उसे यह सब छोड़ कर जाना होगा? इस समय वह शर्र्त उसे याद आती है। शर्त का क्या परिणाम होगा, यह उसे ठीक से मालूम नहीं। क्या तामि ने पैसे वापस कर दिये तो उसे यह सब छोड़ कर जाना होगा? क्या तामि पैसे वापस कर देगा? क्या तामि के पास इतने पैसे होंगे? इस समृद्धि में रहते हुए जब भी बेटी का भोला चेहरा याद आता है उसे यह सब निरर्थक लगने लगता है।

नौकर ने रसोई के दरवाज़े से लक्ष्मी को पुकारा और एक पैकेट थमाया। लक्ष्मी ने पैकेट खोले - दो सुंदर फ्राकें। एक छोटे लाल फूलों वाली नीली फ्राक और दूसरी पीली हरी नाशपातियों वाली। साथ में दो चडि्डयाँ। उसके ख्याल में आया इन्हें पहन कर सुलू कितनी सुंदर लगेगी। सुलू ने आजतक इतनी सुन्दर फ्राकें कभी नहीं पहनीं।

तामि सुलू को लेकर पूर्व के रसोईघर की ओर पहुँच गया। माधवी सुलू को लेकर अंदर आ रही है। लक्ष्मी उन्हें देखकर आंसू नहीं रोक पाती। कितना दुख है उसे - मैं अपनी बेटी का चेहरा तक भूल गयी।

सुलू आश्चर्य से अपरिचित लोगों को देखने लगी। यह उसकी माँ नहीं हो सकती। उसकी नज़रें माँ को इधर उधर ढूँढने लगीं। लक्ष्मी ने पुकारा, "बेटी, इधर आओ" और सुलू को अपनी गोद में बैठा लिया। सुलू आश्चर्य से लक्ष्मी को देखने लगी। सोचने लगी - यह अच्छे कपड़े पहनने वाली, तेल और साबुन से महकने वाली औरत कौन है? उसने ऐसी ठाठदार औरत पहले कभी नहीं देखी। उसी समय मालकिन ने अंदर से आकर लक्ष्मी से पूछा, "तुम्हारी बेटी आई?"

सुलू डर गयी। उसकी माँ कहां है? उसे यह औरत नहीं चाहिये सिर्फ अपनी माँ चाहिये। उसे वहां खाने की अच्छी अच्छी चीज़ें मिलीं पर खाते हुए भी वह यही सोचती रही - ये सब कौन हैं? मेरी माँ कहां है? खाने के बाद लक्ष्मी ने सुलू को तेल लगा कर नहला दिया। और अच्छी फ्राक पहनाते हुए बोली, "देखो सुलू माँ तुम्हारे लिये नयी फ्राक लायी है।"

सुलू यह सुन कर खुश हो गयी, पर उसकी माँ है कहां? नयी फ्राक पहने हुए भी उसकी आंखें माँ को ही खोजती रहीं। पूछते हुए उसे डर लगा। वह किससे पूछे कि मेरी माँ कहां है?

शाम का सूरज ढलते ही मुण्डियान खेत के साये लंबे होने लगे। खेत के सामने कारकुन्न पहाड़ है। इस समय इसके पेड़ों पर चिड़ियाँ लौटने लगीं। धान कूटने वाली औरतें भी घर जाने लगीं। खेत के बीच बने झोपड़ों में रोशनी जल गयी है। मजदूरों ने सूखी पत्तियों को इकट्ठा कर के आग लगा दी है। अंधेरे में धुएं के इस ओर खड़ा तामि सुलू का इंतज़ार कर रहा है।

नौकर तामि से बातें करने लगता है।
"ज़मींदार ने सुलू के लिये दो फ्राक मंगवाए हैं। तुम्हारी पत्नी किस्मत वाली है। वह यहां आराम से है। उसे वापस मत बुलाओ। बाद में तुम्हारी बेटी भी यहीं आ जाएगी।"
तामि कोई जवाब नहीं देता। सिर्फ सोचता है - मैं क्या कहूँ। दो हज़ार रूपये और उसका ब्याज मैं कैसे चुकाऊंगा। न मैं कभी पैसे चुका पाऊँगा न कभी लक्ष्मी लौटेगी।

खेतों के बीच बनी मेड़ों पर से गुज़रते नौकर नौकरानियों के बीच उसे एक नौकरानी के साथ सुलू दिखाई दी। वह ज़ोर ज़ोर से बातें कर रही थी। दौड़ कर पास आई। तामि ने उसे गोद में उठा लिया। नौकरानी ने एक छोटी थैली में दो फ्राकें तामि को पकड़ा दीं, बोली, "तुम्हारी बेटी के लिये उपहार में दी हैं।"

तामि ने सुलू को चूमा और पूछा, "माँ को देखा?"
"माँ?" सुलू आश्चर्य से बोली। "मैंने माँ को नहीं देखा।"
"ज़मींदार के घर में कौन थीं?"
"वहाँ? एक गोरी मालकिन और एक साँवली मालकिन। फिर ज़रा-सा रुक कर बोली, "वह साँवली मालकिन बहुत अच्छी है। उसने मुझे यह फ्राक दी।"
"वह तुम्हारी माँ है।"
"नहीं, वह मेरी माँ नहीं है। वह ज़मींदारिन है। साँवली मालकिन।" और सुलू चुप हो गई। कुछ सोचने लगी।

तामि दिया जला रहा है। दीपक की रोशनी में सुलू का छोटा-सा चेहरा चमक रहा है। इस समय भी सुलू कुछ सोच रही है। बहुत-सी बातें सुलू के छोटे से दिल में बार-बार आ रही हैं। वह सोच रही है कि यह साँवली मालकिन कौन है, वह मुझे प्यार क्यों करती है, वह मेरे लिए फ्राक क्यों ख़रीद कर लायी, इन सवालों के जवाब सुलू को नहीं मालूम। वह धीरे से पुकारती है, "अप्पा..."
"क्या है बेटी?''
"मेरी माँ कब आएगी?"

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१६ अगस्त २००१

 
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