मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


साहित्य संगम

साहित्य संगम के इस अंक में प्रस्तुत है जसवंत सिंह विरदी की पंजाबी कहानी खुले आकाश में का हिन्दी रूपांतर। रूपांतरकार हैं चंद्रप्रभा ।


 

गर्मियों के दिनों में मेरे घर के पीछे अक्सर हलचल मची रहती है। यह ठीक है कि मेरी पत्नी पक्षियों के लिए ढेर सारे दाने और रोटी के टुकड़े घर के पीछे फेंक देती है। पर यह हलचल का कारण नहीं है।
1
कई पक्षी स्वयं चुग्गा चुगते हैं और दूसरे पक्षियों को भी आवाजें लगाते हैं? पर कई सिर्फ अपने आप चुग्गा चुगते हैं और दूसरों को पास भी नहीं फटकने देते। पर हलचल का कारण यह भी नहीं है।
1
वास्तव में बात यह है कि जब मासूम चिड़िया दीवार या स्नानघर के कोनों में अपने घोंसले बना लेती हैं तब शारकें तुरन्त हाज़िर हो जाती हैं। चिड़िया जो भी तिनका-तिनका इकठ्ठा करती हैं? शारके उनको एक-एक कर बिखेर देती हैं। पर चिड़ियाँ मोर्चे पर डटी रहती हैं। . . .
1
प्रत्येक वर्ष ऐसा ही होता है। कुछ दिन पहले एक बार जब मेरी पत्नी दोपहर के बाद घर के पीछे गई तो उसने देखा कि घोंसले के नीचे धरती पर एक अण्डा टूटा पड़ा था।
1
"यह शारके की शरारत है।" उसने गुस्से से कहा . "मैं शारकों को इस घर में नहीं आने दूँगी।"

 पृष्ठ-. .

 आगे-

  
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।