अनुभूति

16. 3. 2005

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पिछले सप्ताह

बड़ी सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
वेलकम टु अमेरिका

मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में
शरद जोशी और जीप पर सवार खिल्लियां

°

रसोईघर में
होली पर मेहमानों के स्वागत के लिए पकवानों की भरमार

आज सिरहाने
अभिव्यक्ति की सुपरिचित लेखिका
संतोष गोयल का उपन्यास
रेतग़ार
परिचयः इंदिरा गोस्वामी द्वारा

°

कहानियों में
महिला दिवस के अवसर पर
भारत से क्रांति त्रिवेदी की कहानी
एक पढ़ी–लिखी स्त्री

शैलजा ने कहा, "मैं नौकरी कर लूं तो मेरी शैक्षिक योग्यता काम आएगी और अर्थाभाव का कांटा भी निकल जाएगा।" प्रभात ने कठोर दृष्टि से उसकी ओर देखते हुए कहा, "मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे नौकरों के सहारे रहकर बड़े हों और रही अर्थाभाव की बात, तो अर्थाभाव का कांटा मुझे तो कहीं दिखता नहीं। तुम्हारी शिक्षा नौकरी के लिए नहीं है, वह इसलिए है कि बच्चों का सही पालन–पोषण हो और अर्थार्जन के लिए उसका तब उपयोग हो, जब वास्तविक अर्थार्जन करनेवाला न रहे।" शैलजा समझ गई कि प्रभात के विचार इस विषय में इतने दृढ़ हैं कि तर्क उसी तरह लौट आएंगे जैसे दीवार से टकराकर गेंद।

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होली विशेषांक

कहानियों में
यू एस ए से स्वदेश राणा की कहानी
हो ली

पास ही एक लंबी मेज़ पर चमचमाती स्टेनलैस स्टील की थालियों में अबरक, गुलाल की लाल, नीली, पीली, हरी ढेरियां। कुछ दूरी पर अमरूद के पेड़ के तने को घेरे बालटीनुमा टबों में ऊदे, काशनी, जामुनी रंगों का घोल। सामने बरामदे में जाली से ढकी मोतीचूर के लड्डुओं और कलाकंद बर्फी की प्लेटों के साथ शीशे के जगों में खसखस, इलायची, बादाम वली दूधिया ठंडाई और इन सब से अलग घने बरगद की छांव में खड़ी अंगीठी के उपर गोभी, पालक के ताज़ा पकौड़े बनाने की कढ़ाही। कर्नल कपूर ने तड़के उठकर खुद सारा इंतज़ाम होते देखा था और अब अपने उजले पजामे कुरते के सलवट निकालते यहां वहां घूम रहे थे। 

हास्य व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली के तार्किक विश्लेषण
कट्टरता

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संस्कृति में
प्रभा पंवार का जानकारी भरा लेख
अल्पना क्या है

°

उपहार में
होली की शुभकामनाएं व जावा आलेख में
रंगों की बौछार

संस्मरण में
सुरेन्द्रनाथ तिवारी की सरस स्मृतियां
बहुत दिनों बाद देस में

°
°

!सप्ताह का विचार!
जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। —मुक्ता

 

अनुभूति में

बिलकुल नई कविताओं का संकलन
'फागुन के रंग'
दोहों, ग़ज़लों, गीतों और हाइकु की बहार के साथ

पिछले होली विशेषांकों से

उपहार में
होली की शुभकामना कविताएं जावा आलेख के साथ

होली है तथा होली के मौसम में
°
कहानियों में
अलग अलग तीलियां–प्रभु जोशी
होली मंगलमय हो–ओमप्रकाश अवस्थी
°
कलादीर्घा में
कलाकृतियों में होली

ललित निबंध में
बृज में हरि होली मचाई
राम नारायण सिंह मधुर
बृज में होली का त्योहार–महेश कटरपंच
मन बहलाव वसंत के–पूर्णिमा वर्मन
यह पगध्वनि–उमाकांत मालवीय
लेकिन  मुझको फागुन चाहिये–दामोदर पांडेय
वसंतोत्सव–लावण्या शाह
होली और गीत संगीत – आस्था
सुनिये रंगों के संदेशमहेश कटरपंच
मादक छंद वसंत केश्यामनारायण वर्मा
रोको यह वसंत जाने पाए–श्यामसुंदर दुबे

प्रकृति और पर्यावरण में
वसंत ऋतु–महेद्र सिंह रंधावा
°
संस्मरण में
त्रिनिडाड में छूटती 'पिचकारी' का नया रंग
–डा प्रेम जनमेजय
°

घर परिवार में
एक और रंग रंगोली और रंग बरसे
°
पर्व परिचय में
रंग रंग की होली–दीपिका जोशी
°
फुलवारी में
कहानीहोली वाला रोबोट
कविताएं–होली आई और हंगामा
साथ में एक होली का चित्र
रंगने के लिये
और बनाने के लिए होलिका और प्रहलाद

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

 

 

 
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