अनुभूति

24. 7. 2005

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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
डा प्रेम जनमेजय का
प्रवासी से प्रेम

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का तेरहवां भाग
समायोजन विधि भाग–1

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सामयिकी में
प्रेमचंद जयंती के अवसर पर
डा जगदीश व्योम की जांच–पड़ताल
प्रेमचंद 'मुंशी' कैसे बने

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आज सिरहाने
कृष्णा सोबती का उपन्यास
समय सरगम

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कहानियों में
यू एस ए से सुषम बेदी की कहानी
गुनहगार

सबको लगता है कि कहीं रत्ना उनके साथ न रहने लग जाए! पता नहीं कितना बड़ा मसला खड़ा हो जाएगा उनकी ज़िंदग़ियों में! रत्ना अब एक बहन या मां नहीं एक मसला थी– एक मुसीबत– एक समस्या– जिसका कोई हल नहीं था। यह भी कोई शाप था क्या? इतनी सी उम्र में पति चल बसे थे। अब बेटा दुनिया में होकर भी उससे दूर हो गया है! एक–एक करके सब का साथ छूटता गया। बस यहीं तक साथ होना था! अब बस अपना अकेलापन, अपने आप का बोझ, कितनों के बोझ ढोए? अब अपना बोझ ढोने के भी काबिल नहीं। कोई साथ चाहिए– बोझ ढोने में मदद करनेवाला! क्या ऐसा भी कभी होता है?

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इस सप्ताह

उपन्यास अंश में  
भारत से प्रमोद कुमार तिवारी के उपन्यास
'डर हमारी जेबों में ' का एक अंश
चीजू का पाताल

हम अपने गांव में 'चीजू का पाताल' वाला खेल खेलते थे। वह पाताल धरती की अनंत गहराइयों में बसा था। बीस कुंओं के बराबर मिट्टी निकालने के बाद ही पहुंचा जा सकता था वहां। जिसका मन जितनी ऊंची उड़ान भर पाता‚ उतना ही सुंदर हो जाता उसका 'चीजू का पाताल।' वहां वो सारी चीजें होतीं‚ जो मन चाहता था। पर केवल मन की गति थी वहां तक। पिताजी की बातें सुनकर लगा था‚ मैं खेलासराय नहीं‚ बल्कि अपने चीजू के पाताल में जा रहा था। अपने टोले के अवधेसवा को बताया भी था कि मुझे मेरा चीजू का पाताल मिल गया था। अवधेसवा का चेहरा उतर गया था।

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हास्य व्यंग्य में
अरूण राजर्षि का
कुता

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का चोदहवां भाग
समायोजन विधि भाग–2

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महानगर की कहानियों में
कमल चोपड़ा की लघुकथा
खेलने के दिन

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव ने परखा 'भारत संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय' के
हिन्दी सॉफ्टवेयर उपकरण
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सप्ताह का विचार
न एक भीरू शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है।
 —
प्रेमचंद

 

अनुभूति में

कुमार रवीन्द्र,
रामेश्वर कांबोज हिमांशु, 
अनूप भार्गव और दिनेश ठाकुर
 की नयी रचनाएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में

फर्क–सूरज प्रकाश
मुक्ति–प्रत्यक्षा
शर्ली सिंपसन शुतुर्मुर्ग है–उषा राजे सक्सेना
बदल जाती है ज़िन्दग़ी–अर्चना पेन्यूली
बस कब चलेगी–संजय विद्रोही
लॉटरी–राकेश त्यागी
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हास्य व्यंग्य में

हे निंदनीय व्यक्तित्व–अशोक स्वतंत्र 
मानवाधिकार–डा नरेन्द्र कोहली
सांस्कृतिक विरासत–अगस्त्य कोहली
मुक्त मुक्त का दौर–डा नवीन चंद्र लोहनी

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हास्य व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली बता रहे हैं
बहुसंख्यक होने का अर्थ

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दृष्टिकोण में
डा रति सक्सेना की कलम से
भावना को भुनाने की कला

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फुलवारी में
आविष्कारों की नयी कहानियां
और शिल्पकोना में वर्ग पहेली
भेड़िया आया भेड़िया आया

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव के सहयोग से
लिनक्स आया हिंदी में

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प्रकृति और पर्यावरण में
आशीष गर्ग द्वारा नवीनतम जानकारी
वर्षा के पानी का संरक्षण

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

 

 

 
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