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कहानियाँ  

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
यू. के. से उषा राजे सक्सेना की कहानी— 'शर्ली सिंपसन शुतुर्मुर्ग है'


चेरी ब्लॉसम जवाँ है। डलियों पर हज़ारों-लाखों लाल-गुलाबी फूल गजरे की तरह गुथे हुए हैं। नन्हीं-नन्हीं गुलाबी नर्म पंखुड़ियाँ नि:शब्द झर्रझर्र झरती गुलाबी तितलियों-सी उसके बालों, पलकों, होंठों, कंधों, वक्षस्थल को संवेदनशील स्पर्श देकर उमगाती हैं। वह पुलक-पुलक उठती है और सहज ही प्रकृति के सौदर्य के साथ एकरस हो जाती है। हाइड पार्क के बीचोबीच बहती ''सरपेंटाइन लेक'' सर्पीली गति से बहती चाँदी-सी चमक रही है। वासंती हवा झील के नीले पानी के ऊपर से बहती हुई उसके यौवन को सहलाती है। लंदन की सुहानी ग्रीष्म उसके तन-बदन में फुलझरियों का सा स्फुरण करती है।

अलस्सुबह वह नन्हें-नन्हें कदम रखती झील के किनारे-किनारे ओस से भीगी हरी घास पर चलती है। पार्क में खिले अनगिनत झुंड के झुंड खूबसूरत रंग बिरंगे फूलों का सौंदर्य उसके तन-बदन को पुलकाता हुआ उसमें सुखद लहरियाँ भरता है। वह भाव विभोर अनन्य प्रसन्नता से उत्फुल्ल कभी खरगोश की तरह फुदकती है तो कभी आकाश में गुलाल-सी बिखरती सुबह की लाली को आँखों से पीती सम्मोहित पतली पगडंडी पर संतुलित पाँव रखते हुए आगे बढ़ती है। अजब मादक अनुभूति है, उसका अंग-अंग थिरकता है।

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