मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


 

उसके खूबसूरत पाँवों में कोई जूती नहीं है। घड़ी-घड़ी उसके स्ट्राबेरी से गुदाज सुर्ख़ पैरों में नर्म दूब के स्पर्श से मीठी-मीठी गुदगुदी उठती है। नंगे कोमल तलवों को भिगोती, ठंडी ओस की बूँदों का अहसास उसकी देह के रेशे-रेशे में फुरहरी भरता है। ओह! यही वह सुख है! यही वह आनंद की अनुभूति है! जिसकी उसे सदा से चाहत रही है। उसका रोम-रोम हुलस उठता है।

चेरी ब्लॉसम की नर्म पाँखुरियाँ बारिश की शीतल बूँदों-सी झरती उसकी राह में गुलाबी कोमल कालीन बिछा देती हैं। वह हल्के कदमों से चलती हुई, कोई सुंदर गीत गुनगुनाती है। उसके बदन में चरम आनंद की मधुमय तरंगें उठती हैं। वह किसी बच्चे सी किलकारी भरती मद्धमगति से चलती झील के शांत जल में अपने तराशे खूबसूरत बदन का संगमरमरी प्रतिबिंब देखती विभोर हो उठती है। ओह! यही स्वर्ग है! यही स्वर्ग है! उसके लंबे बाल हवा में लहराते हैं। उसे सुखद अनुभूति होती है वह उड़ते हुए उलझे बालों को सँवारती नहीं है। उन्हें हवा में लहराने देती है।

चलते-चलते वह कब और कैसे हाइड पार्क के सुहावने उपवन से निकल कर पार्क लेन के स्क्वायर में पहुँच जाती है उसे पता ही नहीं चलता। स्क्वायर में फ़ैशनेबुल और स्मार्ट कपड़े पहने लोगों के झुंड जगह-जगह बैठे चाय, कॉफ़ी या कुछ और पीते हुए अख़बार देख रहे हैं। संगीतकार विवाल्डी के ''फोर सीज़न'' का संगीत हवा में हल्का-हल्का तैर रहा है। कुछ लोग ''पिन स्ट्राइप्ड सूट'' में दीवार के सहारे खड़े आपस में बतिया रहे हैं। हर कोई मशगूल है, शायद वे कोई विचार विमर्श कर रहे हैं। बैरे हाथों में ट्रे लिए इधर-उधर आ जा रहे हैं। खूबसूरत कपड़े पहने जवान लड़के-लड़कियों के जोड़े दुनिया से बेखबर प्रेमालाप कर रहे हैं। कहीं कोई जल्दबाज़ी नहीं है। लोग पूरी तरह से तनावमुक्त लग रहे हैं।

अचानक वह अपनी ओर देखती है। अचंभा! उसे अहसास होता है, वह वस्त्रहीन है। उसके बदन पर किसी वस्त्र का कोई आवरण नहीं है। वह सरे-बाज़ार हज़ारों-लाखों लोगों के बीच अलिफ नंगी खड़ी है। स्तब्ध, लज्जा की अनुभुति से सिहरती वह बुत-सी खड़ी शर्मसार चारों ओर तेज़ी से नज़र घुमाती है। ओह! सभी व्यस्त हैं। कोई उसकी ओर नहीं देख रहा है। सभी अपनी-अपनी बातों और क्रिया-कलापों में पूरी तरह लिप्त हैं। किसी को फ़ुर्सत नहीं है कि कोई उसकी ओर सिर उठा कर देखे।

वह लज्जित संकुचित-सी गहरी साँस लेती है और फिर खुद को आश्वस्त और संतुलित करहे हुए सहजता के साथ, दोनों बाहों को उठा कर सीने को ''क्रॉस'' करते हुए हथेलियों और सुनहरे लंबे बालों से वक्षस्थल और देह के अन्य अंगों को ढँक लेती है। फिर, पुन: एक बार वह सतर्कता से चारों तरफ़ बड़े एहतियात से गर्दन उठा कर देखती हुई अपने मन को आश्वस्त करती है कि उसे इस लज्जाजनक स्थिति में कोई देख तो नहीं रहा है।
नहीं सब अपने आप में व्यस्त, किसी न किसी से मशगूल बतिया रहे हैं या कुछ खा पी रहे हैं। वह गहरी साँस लेकर एक बार फिर खुद को संयमित और संतुलित करती है, फिर किसी कुशल अभिनेत्री नायिका की तरह स्वाभिमान के साथ चुपचाप सधे कदमों से चलती हुई चौबार के अंतिम सिरे पर पहुँचकर गिलहरी की तरह तेज़ी से भागती हुई अपने कमरे में पहुँचकर लंबी साँस भरती है। फिर ज़रा ठहर कर खुद से कहती है, "किसी ने कुछ नहीं देखा। कुछ भी अशोभनीय अथवा लज्जाजनक नहीं हुआ।" तभी उसकी नज़र सामने रखे आदमक़द शीशे पर पड़ती है। वह निर्वस्त्रा, अपनी अलिफ़ नंगी देह को देखती मन ही मन संकुचित और लज्जित होती सोचने लगी, मेरे कपड़े! ओह! मेरे कपड़े कहाँ गए मेरे कपड़े! मैं निर्वस्त्र कैसे हो गई? मैं, मैं।"

उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। उसके सुर्ख गालों से सरकते मोटे मोटे गर्म आँसू कमरे के फ़र्श पर आँसू के चहबच्चे बनाने लगते हैं। गर्म आँसू के चहबच्चों से भाप उठती है। वह चहबच्चों से उठती भाप के कुहासे के बीच डूबते उतराते उफनाती हुई सोचती है, "मैं, मैं हाइड पार्क कैसे पहुँची? और फिर वहाँ से पार्क लेन स्क्वायर के अंदर कैसे पहुँच गई? "ओह! ओह!" वह साँस भरते हुए खुद को समझाती हुई कहती है, थैंक गॉड सभी व्यस्त थे। बातों में मशगूल थे। मुझ अलिफ नंगी को शर्मनाक स्थिति में किसी नें आँख उठा कर नहीं देखा। पर, पर वे कौन लोग थे जो पार्कलेन के स्क्वायर में बैठे हुए थे?" अचानक उसके चारों ओर खूबसूरत कपड़ों के ढेर लग जाते हैं और सब कुछ भूल कर वह खुद से कहती है, "ओह! शुक्र है! अब मैं अपने मन पसंद कपड़े पहन सकती हूं।'' वह चुन कर एक सुर्ख ''हाल्टर नेक टॉप'' हाथ में उठाती है। बस फिर अचानक उसकी नींद खुल जाती है और रह जाती है हाथों में सुर्ख हाल्टर नेक टॉप के सिल्क की मधुर रेशमी फिसलन।

वह करवट बदल कर सपने में घटित दृश्यों को याद करने की कोशिश करती है पर सब कुछ धुँधला जाता है। उसे बस इतना ही याद रहता है कि वह अलिफ नंगी अल सुबह प्रकृति के सौंदर्य से अभिभूत हाइड पार्क से चलती पार्क लेन के स्क्वायर में बैठे हज़ारों लाखों लोगों के बीच से गर्दन उठाए हथेलियों से अपने वक्ष ढँके किसी वायवी मानवी की तरह निकल आई, बिना कोई हलचल मचाए। उसे किसी ने नहीं देखा, पर, पर वे खूबसूरत कपड़ों के ढेर वह हॉल्टर नेक टॉप?
उसकी रीढ़ की हड्डी सनसनाने लगती है। उसका बदन नर्वस तरंगों से काँपने लगता है। वह विचलित हो उठती है। दमकता चेहरा अचानक मायूस-सा हो जाता है। बस अभी थोड़ी ही देर पहले वह हज़ारों लाखों लोगों के बीच अलिफ नंगी, शर्मसार खड़ी थी। अचानक वह खुद से लज्जित हो उठती है। क्या ज़रूरत थी उसे वहाँ जाने की? असंभव! एक खूबसूरत जवान लड़की हाइड पार्क से दौड़ती हुई पार्क लेन के स्क्वायर से निकल जाए और कोई उसकी ओर आँख उठा कर न देखे, सीटियाँ न बजाए, फब्तियाँ न कसे, ऐसा कैसे हो सकता है? वह सिर उठा कर अपने शयनकक्ष में लगे वार्डरोब के दरवाज़े पर जड़े आदमक़द आइने में खुद को देखते हुए चेहरे पर झुक आए उलझे सुनहरे बालों को उँगलियों में फँसा कर पीछे की ओर सँवारते हुए खुद को तसल्ली देते हुए बुदबुदाती है, "ओह! सपने स़पने हैं। सपनों में सबकुछ हो सकता है, कुछ भी हो सकता है। किसी ने मुझे नहीं देखा, उनके लिए मैं वहाँ नहीं थी, मैं अदृश्य थी, हवा थी, वायवी थी।''

"पर, पर, ये सपने ओह! ये सपने मुझे बार-बार इस तरह क्यों त्रस्त करते हैं। आख़िर इन सबका कुछ तो अर्थ होगा।" यह सोचते हुए वह नीचे पालिश किए हुए लकड़ी के फ़र्श पर पड़े गुदाज मुकासिन को पैरों में डालते हुए एक बार फिर उलझे बालों में उंगलियाँ फिरा कर पीछे की ओर सँवारते हुए पलट कर पलंग पर पसरे कामरान की उघड़ी हुई देह को देखती है। वह उल्टी तरफ मुँह कर के सो रहा है। उसका कुछ मुटयाया हुआ बदन खर्राटों के साथ तेज़ी से हिलता है। "कहाँ गया उसका वह लजीला, शर्मीली मुस्कान वाला कामरान जिसके प्यार ने उसे उसके माँ बाप से जुदा कर दिया था? कहाँ गया उसका वह व्यक्तित्व जिसने उसे टॉम जैसे खुदगर्ज़ पहलवान कुश्तीबाज़ के सम्मोहन से उबारा था? कहाँ गए वे खूबसूरत मदहोश सतरंगे दिन? वह तो पड़ोसी अहंकारी पहलवान कुश्तीबाज़ टॉम की दोस्त हुआ करती थी। उसके माँ बाप और पास पड़ोस के सब लोग यही सोचते थे कि वह कुश्तीबाज़ टॉम के साथ ही विवाह की गाँठ लगाएगी। पर उसने सबको चकित कर दिया था। कामरान को अपना जीवनसाथी चुन कर। कहाँ गया कामरान जो उसका दीवाना था। कहाँ गया वह कद्दावर जाँबाज़ मेहरबान जिसने झगड़ालू अहंकारी पहलवान टॉम से उसके लिए पंजा लड़ाया था? कहाँ चले गए वो मदमस्त दिन? सालों-साल हर पल हर दिन कामरान बदलता चला गया? पता नहीं कैसे और कब वह टॉम जैसा होता चला गया, अहंकारी खुदगर्ज़ और दबंग। हर तरह से उसे संत्रासता हुआ, कुचलता हुआ।

ओह ये सपने, ये सपने उसे क्यों आते हैं? शर्ली सिंपसन इन सपनों के संदर्भों को कुछ-कुछ बदली से आँख मिचौली खेलते चाँद-सा जानती है। शर्ली सिंपसन स्वभाव से सरल और स्वप्निल है। शायद कुछ कायर भी है। अक्सर वह नग्न सच्चाई से आँखें नहीं मिलाना चाहती है और ये सच्चाइयाँ हैं कि उसके चारों ओर जलकुंभियों की तरह उगती चली जाती हैं और वह उन्हें पूरी शिद्दत के साथ अनदेखा करने की कोशिश करती रहती है। शर्ली सिंपसन शुतुर्मुर्ग है। हाँ शुतुर्मुर्ग है। शुतुमुर्ग सामने खड़े ख़तरे को देखते ही स्तब्ध शिथिल हो आँखें बंद कर सिर को रेत के ढेर में छुपा लेता है। शर्मीली शर्ली संवेदनशील है। क्षमाशील है। वह अपने सरल स्वभाव के कारण स्वयं पर हो रहे हर अन्याय को, अपने ढंग से व्याख्या करते हुए, ख़ारिज करती आई है पर क्या ये अन्याय ये त्रास उसे क्षत विक्षत और लहू लुहान नहीं करते? आदतन वह अपने घाव को चाट जाती है।

पृष्ठ : . . .

आगे—

 
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।