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19.  9.  2006 

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पिछले सप्ताह
1
हास्य व्यंग्य में
गणेशोत्सव पर शरद जोशी के शब्दों में
अथ गणेशाय नमः

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प्रकृति में
डा डी एन तिवारी का
चिर सखा बांस

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साहित्यिक निबंध में
विद्याभूषण मिश्र की लेखनी से
सावन उड़ै कजरिया मस्तानी

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फुलवारी में
मौसम के विषय में जानकारी की बातें
मौसम क्या है?

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कहानियों में
भारत से संतोष गोयल की कहानी
भटकन

मन की भटकन को सब रंगो के फैलाव ने अपने भीतर समा लिया। कितना आसान होता है मन को थामना पर उतना ही आसान होता उसका भटक जाना। रंगीन कांच के भीतर डुबकियां लगाती रही जाने कितनी देर। दुकान की मालकिन भी चमक रही थी। लाल हरे नीले रंगो में सराबोर। चटक चुनरी मे लगे कांच जल रहे गैस के बल्ब में धमक मार रहे थे। गले में मोटे–मोटे लाल हरे दानों की माला थी जो रौशनी में चमक रही थी। कानों में भी बड़ी लटकन वाले झुमके थे। मतलब ख़ासा चमक–धमक का इंतज़ाम था तिस पर त्यौहार का मौका। मार्किट की भी सज–धज देखने लायक थी। दीवार पर सजे व लटके रंगो में लिपटी मैं वहां रूक ही गई उन्हें निहारती और सराहती।
°

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इस सप्ताह
1
कहानियों में
भारत से डा शिबन कृष्ण रैणा की कहानी
बाबू जी

बीच में थोड़ा रूककर उन्होंने सामने दीवार पर टंगी अपनी पत्नी की तस्वीर की ओर देखा और गहरी–लंबी सांस लेकर बोले, "आज हमारी शादी की सालगिरह है। बुढ़िया जीवित होती तो सुबह से ही इन मेडलों को चमकाने में लग गई होती। ये मेडल उसे अपनी जान से भी प्यारे थे। जाते–जाते डूबती आवाज़ में मुझे कह गई थी – निक्के के बाबू, यह मेडल तुम्हें नहीं, मुझे मिले हैं। हां – मुझे मिले हैं। इन्हें संभालकर रखना– हमारी शादी की सालगिरह पर हर साल इनको पालिश से चमकाना।" कहते–कहते बाबूजी कुछ भावुक हो गए। क्षणभर की चुप्पी के बाद उन्होंने फौजी अंदाज़ में ठहाका लगाया और बोले, "बुढ़िया की बात को मैंने सीने से लगा लिया।"

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हास्य व्यंग्य में
अंतरा करवड़े कर रही हैं
समाजसेवा

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संस्कृति में
डा नवीन लोहानी से रोचक जानकारी
हमारा लोक साहित्यः लावनी

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घर परिवार में
अर्बुदा ओहरी के कारगर सुझाव
बिन पानी सब सून

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रसोईघर में
माइक्रोवेव की सहायता से पकाएं
बेसन का सब्ज़ीदार चीला

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 सप्ताह का विचार
मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना चमत्कार है।— डा राधाकृष्णन

 

गीतों में शांति सुमन, कविताओं में नरेन्द्र मोहन व प्रत्यक्षा, देशांतर में पुष्पिता और हास्य व्यंग्य में नीरज त्रिपाठी की नयी रचनाएं 

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
गुलाबी हाथी–दीपक शर्मा
फोकस–अलका पाठक
मुंबई टु सतपुड़ा–पुष्यमित्र

तुम सच कहती हो–अभिरंजन कुमार
चाह–डॉ शैलजा सक्सेना
रक्तदान–नितिन उपाध्ये
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हास्य व्यंग्य में
बंदरों ने किताबें क्यों फाड़ीं–गुरमीत बेदी
जनतंत्र–डा नरेन्द्र कोहली 
राजनीति और मूंछ–राजेन्द्र त्यागी

धूप का चश्मा–संतोष खरे
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साहित्य समाचार में
जापान से विशेष रपट
टोक्यो में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन
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चिठ्ठापत्री में
चिठ्ठापंडित की पैनी नज़र
जुलाई माह के चिठ्ठों पर
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श्रद्धांजलि में
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां से परिचय और
एक महत्वपूर्ण साक्षात्कार
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संस्मरण में
अनूप शुक्ल व शोभा स्वप्निल की रचना
पार्षद और झंडा गीत
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सामयिकी में
कन्हैयालाल चतुर्वेदी का आलेख
क्रांतिकारी घटना का साक्षी
वह बरगद
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फिल्म–इल्म में
अजय ब्रह्मात्मज की पड़ताल
हिंदी फिल्मों में राष्ट्रीय भावना

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

   

 

 
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