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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश //
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२०. . २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
विनय मिश्र, राम अवध विश्वकर्मा, मिता दास, अरुण कुमार मयंक और डॉ. अजय त्रिपाठी की  रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- अंतर्जाल पर सबसे लोकप्रिय भारतीय पाक-विशेषज्ञ शेफ-शुचि के रसोईघर से शीतल सलादों की शृंखला में- लोबिया का सलाद

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- आत्मविश्वास का प्रदर्शन

रक्षक फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित
देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता
"गौरवगाथा २०१२" में हिस्सा लें।
अधिक जानकारी - गौरवगाथा फ़ेसबुक पर

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के पाक्षिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- भालू, तितली और फूल

- रचना और मनोरंजन में

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२२ - में प्रकाशित नवगीतों पर समीक्षा प्रकाशित हो गई है। नए विषय की घोषणा सितंबर के प्रथम सप्ताह में होगी।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से ३ मार्च २००८ को प्रकाशित सुधा अरोड़ा की कहानी- एक औरत तीन बटा चार

वर्ग पहेली-०९५
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में भारत से
सतवंत सिंह बावा की कहानी नंगे पाँव

सुगना का जन्म झारखंड के एक अविकिसत गाँव में हुआ था। हालाँकि उसके माँ-बाप बहुत ही गरीबी के दौर से गुजर रहे थे, फिर भी करीबी रिश्तेदारो ने ढे़रों बधाईयाँ देने के साथ सुगना को लक्ष्मी का रूप बताया। सारा दिन जानवरों की तरह मेहनत करने के बावजूद भी सुगना के माँ-बाप अपनी बेटी के लिये दो वक्त का खाना ठीक से नही जुटा पाते थे। सुगना की माँ जब दिन भर मजदूरी करती तो सुगना उसके साथ कंकड़-पत्थरों से कुछ न कुछ खेल खेलती रहती। कंकड़-पत्थरों के बीच खेलते हुए कई बार उसके पैर कभी तीखे काटों और कभी तेज धार वाले पत्थरों से घायल हो जाते थे। जब कभी सुगना को खेलते हुए पैर में चोट लगती तो वो हर बार अपने पिता को अपने नंगे घायल पाँव दिखा कर एक अच्छी सी चप्पल लाकर देने के लिये कहती। मजबूर और लाचार पिता हर बार उसे झूठा दिलासा दे देता कि अब जिस दिन भी अच्छी मजदूरी मिलेगी तो सबसे पहले-तुम्हें-अच्छी-सी-चप्पल-लेकर दूँगा। विस्तार से पढ़े
*

कर्मजीत सिंह नडाला की
लघुकथा- भूकंप
*

कुन्नुकुषि कृष्ण कुट्टी से रंगचर्चा
नाट्यविधा मलयालम की

*

राजीव रंजन का आलेख
अगर तुम न होते ह्वेनसांग
*

पुनर्पाठ में भावना कुँअर की
श्रद्धांजलि- हृषिदा का फ़िल्म संसार

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पिछले-सप्ताह-


हरिशंकर परसाईं का व्यंग्य
खोज एक देशभक्त कवि की
*

सुरेश अग्निहोत्री का आलेख-
बुंदेल केसरी छत्रसाल

*

शशि पाधा का संस्मरण
राष्ट्रनेता के नाम पत्र
*

पुनर्पाठ में दीपिका जोशी का
संस्मरण- जादू की खिड़की से सच की दुनिया में

*

समकालीन कहानियों में भारत से
मनोहर पुरी की कहानी एक रास्ता और

खुदाबख्श बहुत ही चिन्तित था। अचानक यह क्या हो गया? बड़े मजे की जिन्दगी चल रही थी। आज तक किसी ने उसकी ओर ऊँगली तक नहीं उठाई थी। अब अचानक क्या हो गया? क्यों हो गया? सोच सोच कर वह परेशान था। उसके विचारों के तार इस एक क्यों पर आ कर अटक जाते और वह अपने हाथ में पकड़े आदेश पत्र को फिर से देखने लगता । उसमें साफ साफ उसके तबादले के बारे में लिखा था। उसे यहाँ से बदल कर किसी बड़े रेलवे स्टेशन पर भेजा जा रहा था। उसके स्थान पर कोई और होता तो प्रसन्नता से नाच उठता। खुदाबख्श केबिन मैन के रूप में पिछले दस सालों से यहीं टिका हुआ था। यह रेलवे क्रासिंग शहर के पास ही पड़ता था। शहर से राज मार्ग तक आने जाने का यह एक मात्र रास्ता था। मुख्य रेल लाइन पर होने के कारण दिन भर यहाँ से रेलगाड़ियाँ आती जाती रहतीं थीं। उसका पूरा दिन रेल लाइन के बैरियर को उठाने गिराने में व्यतीत होता था। विस्तार से पढ़े...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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