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घर-परिवार जीवन शैली - भारत के श्रेष्ठ गाँव


भारत के सर्वश्रेष्ठ गाँव
जो हम सबके लिये प्रेरणादायक हैं


७- आर्सेनिक को पराजित करने वाला बलिया

उत्तर प्रदेश के बलिया गाँव के लोग पानी में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा होने के कारण पहले मेलानोसिस (शरीर के विभिन्न अंगों पर काले धब्बे पड़ना), त्वचा पर खुजली, फिर केटोसिस (काले धब्बों का गाँठ में तब्दील होना और उसमें मवाद भर जाना) और अंततः कैंसर से पीड़ित हो जाने या अंगों के विकृत हो जाने से परेशान थे। आरसेनिक यों तो हानिरहित पदार्थ है लेकिन जब यह आक्सीजन या पानी के साथ मिलता है तब यह उन्हें प्रदूषित होकर अनेक प्रकार के रोगों को जन्म देता है।

दरअसल १९९० के दशक में केंद्र और राज्य सरकारों ने पूरे देश में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पीने योग्य पानी पहुँचाने के लिये नलकूप लगवाने शुरू कर दिए। डॉक्टरों ने भी अपने मरीज़ों को कुएँ का पानी नहीं पीने और साफ पानी के लिये नलकूप का पानी इस्तेमाल करने के लिये कहना शुरू कर दिया। लगभग एक दशक बीत जाने के बाद पता चला कि नलकूप के पानी में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्थिति को पार कर चुकी है।

कई शोध हुए तो पता लगा कि कुएँ का पानी सेहत के लिये अब भी अच्छा है। विद्वानों का मानना था कि कुएँ का पानी खुला होने के कारण धूप और हवा (ऑक्सीजन) के संपर्क में रहता है। दूसरी बात यह है कि कुएँ के पानी में मौजूद आयरन (लौह तत्व) के संपर्क में आकर आर्सेनिक नीचे चला जाता है। इसलिये कुएँ के पानी पर आर्सेनिक का असर नहीं हुआ है। लगभग एक दशक तक गाँव में कुओं की उपेक्षा के कारण वे खराब हो चुके थे। बलिया नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी संतोष मिश्र ने शहर के २० कुओं का जीर्णोंद्धार कराने की घोषणा की। इसके बाद गाँव वालों ने स्वयं के प्रयत्नों से लगभग ५००० अन्य कुओं का जीर्णोद्धार किया और इस प्रकार अपने गाँव में आर्सेनिक के प्रकोप पर विजय प्राप्त कर ली।

 १ अप्रैल २०१७

(अगले अंक में एक और गाँव)  पृष्ठ- . . . . . . .

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