मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


जैसे तैसे एक तारतम्य बैठाया। स्टाफरूम में डोनोवन ने पूछा--
‘‘कितने आए आज तुम्हारी क्लास में?’‘
मुझसे पहले वही उन्हें पढाता था। मैंने बताया ‘‘तेरह में से दस!’‘
‘‘बधाई!’‘डोनोवन हँस कर बोला,''जीत रही हो! मेरे समय में तेरह में से तीन आते थे। दस गोल!’‘

कुछ कुछ उत्साह बढ़ा! सबकी नई फाइलें बनवाईं! हेड से रिरिया के नई किताबें वाई।क्लासरूम बदलवाया। खुद उसकी धजा सुधारी। सत्र के दूसरे महीने में चौदहवाँ बंदा आ जुड़ा- मनिंदर जीठा। पहले ही दिन समझ में आ गया कि लिखित सवालों को वह दो मिनट में हल कर सकता था। फिर उसे इस जोड़ घटाने वाली क्लास में क्यों रखा गया? समस्या भाषा थी। अंग्रेजी नहीं आती थी। मनिंदर पंजाब के दुआबे के किसी गाँव से आया था। एकदम उजड्ड!ना पहनने ओढ़ने का ढंग, ना बाल ठीक से कटे हुए!,दांत गंदे, हाथ गंदे! जूते नए मगर धूल से भरे हुए! क़द काठी से लम्ब तडंग,रज्ज कर पक्का रंग, गूदड़ सी मिली हुई भौंहें और मूंछों की रेखा!प्लेग्राउंड में फर्स्ट क्लास फुटबौल खेल रहा था मगर बौल को किसी और के कब्जे में जाने ही ना दे। टीम का मान ना रखे तो कौन संग खिलाए? नतीजा -- पहले ही हफ्ते में चारोँ तरफ दुश्मन बना लिए। लड़ने झगड़ने में गालियाँ पहले सीख लीं।
क्या नमूना है! लन्दन तो आ ही जाते हैं सब!!

दो एक दिन बाद लूसी ओ हारा नाम की एक सहकर्मी ने मुझसे पूछा कि क्या मै पंजाबी भाषा जानती हूँ। मेरे हाँ कहने पर उसकी राहत की साँस सुनाई दी। झीठा उसकी अंग्रेजी की कक्षा में था। मनिंदर तो वह कह ही नहीं पाती थी अतः उसे जीटा बुलाने लगी। तभी से वह इसी नाम से मशहूर हो गया। दो चार जरूरी बातें मैंने उसे पंजाबी में समझा दीं। पर गुस्सा तब आया जब उसने अपनी समझकर मेरी क्लास में शरारतें करनी शुरू करीं। उसने सोंचा कि मेरे रहते वह कुछ भी कर सकता है। काम करने को नए रूलर दिए तो उसने अन्य छात्रों की आँखों को लक्ष्य करके धूप में चमकाना शुरू कर दिया। यही नहीं, लश्कारा मेरी आँखों पर भी छोड़ा। मैं तकरीबन अंधी ही हो जाती। अतः चिल्ला कर डाँटा। ड़ेविड कोरकोरन और पॉल कोरकोरन नाम के दो जुड़वाँ भाई जो इंग्लिश सूमो जाति के थे और जिनका वज़न सौ सौ किलो था, अपनी जगह से उठे और एक-एक धौल उसकी पीठ पर मारा। इस तरह के कई झगड़े हो जाया करते थे। मेरे डाँटने पर उसने मुझसे बदला लेने की एक तरकीब निकाल ली।

जब भी मै कुछ समझा रही होती, एक ' ली ली ली ली, घे घे घे घे हुश ' जैसे शब्दों से जड़ी चीत्कार तीखे सुर में निकालता जिसकी बेसुरी सीटी जैसी ध्वनि अगले दो कमरों तक पहुँचती। कमाल यह था कि ये आवाजें निकालते समय उसके होंठ नहीं हिलते थे और चेहरा ऐसा तटस्थ रहता था कि जैसे कुछ हुआ ही ना हो। पहली बार तो लड़के चौंके फिर उन्हें मज़ा आने लगा। शीघ्र ही यह पाठ्यक्रम को गड़बड़ाने का सर्वाधिक लोकप्रिय साधन बन गया। पर निकल आए तो लूसी की क्लास में भी उसने अपनी कला आजमाई। वह ठहरी अंग्रेज! वह यह सब कहाँ सहन करने वाली थी। झट उसने लिखित शिकायत करके ऊपर भेज दी और जीटा के माँ बाप को बुला भेजा।
जब वह आए तो लूसी ओ हारा दूर से ही उन्हें देख कर कन्नी काट गई।’‘सौरी अभी मै खाली नहीं हूँ, '' कहकर जाने कहाँ दुबक गई। मै एक और क्लास को पढ़ा रही थी कि डोनोवन बीच में आ टपका। कान के पास फुसफुसाया ''देयर इस अ हैंडसम इन्डियन जेंटल मै न वेटिंग फॉर यु इन द ऑफिस!’‘( एक सुन्दर भारतीय युवक तुम्हारा इंतज़ार ऑफिस में कर रहा है।)

‘‘हाँ मगर मै तो पढ़ा रही हूँ।''
‘‘नहीं, तुम चलो। तुम्हारी जगह मै खड़ा हो जाता हूँ मै अभी फ्री हूँ। पाँच सात मिनट की ही तो बात है। ‘‘

यूं जबरदस्ती मुझे ऑफिस में भेज दिया। इतना काला और बदशकल इंसान कभी नहीं देखा। गाल थे कि मुँहासों का शिलालेख। मेघनादी मूछें,घने बाल,खूब छोटे कटे,ऊँचा क़द और सेना के कपड़े। तिस पर आँखें बड़ी बड़ी और फटी हुई सी!
‘‘हाँ कहिये। ‘‘
एकदम शालीन,साफ़ अंग्रेजी में उसने अपना परिचय दिया। ‘‘मै मनिंदर झीठा का बाप हूँ। आप लोगों ने मिलने के लिए बुलाया था।''

मै चुप। दोहरा आश्चर्य। एक तो मैंने बुलाया नहीं, दूसरे उसकी अमीन सायानी जैसी आवाज़! वह बोला, ‘‘आप कुछ शिकायत करें इसके पहले ही मै बता दूँ। मनिंदर कभी भी स्कूल नहीं गया इसके पहले। इस देश में मै भारतीय सेना की ओर से एक ख़ास ट्रेनिंग कोर्स करने आया था । भारतीय सेना में मै एक निम्न श्रेणी का सिपाही था। इसलिए परिवार को साथ रखने की अनुमति नहीं थी। मनिंदर मेरा इकलौता बेटा है। इसकी दो बहने अभी बहुत छोटी हैं। गाँव के स्कूलमास्टर से इसने पहाड़े, गणित, ककहरा आदि सीख लिया है। बाकी समय यह खेत वगैरह के काम पर लगा रहता था। तैरना जानता है। खेलता अच्छा है। मगर ----गँवार है! ''
‘‘वह एक भोंड़ी सी आवाज़ निकालता है!''
’‘हाँ वह बकरियाँ चराया करता था। उन्हें बुलाने की आवाज़ है। लगता है चार बच्चों के साथ रहकर वह शरारतें ज्यादा कर रहा है। मै देख लूँगा। आप थोड़ा समय दें इसे। हम लोग तो जी गाँव से सीधे आ रहे हैं। कोई पूछे कि यातायात का इतिहास लिखो तो मनिंदर लिखेगा, पहले बैलगाड़ी आई फिर बोईंग हवाई जहाज आया और उसके बाद मोटर और रेलगाड़ी आई। मै चाहूँगा कोई अँग्रेजी सिखाने की इसे ट्यूशन मिल जाए। मुझे इस देश में ही रहने का परमिट मिल गया है। कैसे भी हो मै मनिंदर को एक पढ़ा लिखा इंसान बना ही लूँगा मिस जी।''

मै उसकी बातचीत से हैरान रह गई। वह शायद गरीब होगा। अकेले की आमदनी। पत्नी सलवार कमीज़ पहने थी और दो स्वेटरों पर क़स कर शौल लपेटे थी। तीन बच्चों को पालना ठहरा। मुझे उस पर तरस आया।
जो भी हो मनिंदर का व्यवहार धीरे धीरे सुधरने लगा।

एक रोज़ मै स्टाफरूम में घुसी तो लूसी मुझे देखते ही चुप हो गई। इसके पहले वह बकझक कर रही थी और गन्दी गन्दी गालियाँ निकाल रही थी। फिर धड़ से उठी और दरवाज़ा पटकती हुई बाहर निकल गई।
’‘इसे क्या हुआ?’‘मैंने आश्चर्य से पूछा।
‘‘कुछ खास नहीं, जीटा से परेशान है। ‘‘मार्गो ने बताया।
‘‘क्यों अब क्या किया उसने? ‘‘
‘‘कहती है की वह इसे घूरता रहता है। आज शायद उसने इसे छूने की कोशिश की।’‘
‘‘क्या कह रही हो? ‘‘
‘‘अरे यह कोई नई बात थोड़े ही है। अक्सर टीन-एजर लड़के लेड़ी टीचरों पर फ़िदा होते हैं। गलती से छू गया होगा,पर लूसी कहती है की उसने जान बूझ कर ऐसा किया। मनिंदर की आँखें देखी हैं?वह तो हर समय घूरती सी लगती हैं। ''
‘‘गलत बात है। मै समझाऊँ झीटा को? ''
’‘मै तुम्हारी जगह होती तो चुप ही रहती। लूसी जरा अपनी सुन्दरता को हवा भी देती है। पहले भी किसी पर ऐसे ही इल्जाम लगा चुकी है। खुद कौन सी दूध की धुली है?

मार्गो एक परिपक्व बुद्धी की जहाँदीदा स्त्री थी। स्टाफ में सब उसको मानते थे। मुझे अपनी छतरी में रखती थी और वक्त बेवक्त काम भी आती थी। लूसी पर झल्ला कर बताने लगी, ‘‘समझती है कि बस एक यही बची है जने कने की चहेती! ...देखती नहीं उसकी चटक मटक? आज एकदंम पारदर्शी स्वेटर पहना है। और उसके नीचे लेसवाली ब्रा। कौन नहीं घूरेगा? वह खुद क्या दाना नहीं डाल रही? लड़कों के स्कूल में क्या ऐसे रहा जाता है? बात करती है सतवंती जैसी!... ऊँह...''

दिल का ग़ुबार निकालकर मार्गो चलती बनी। अपनी क्लास में दस मिनट पहले पहुँचना उसका नियम था चाहे बाहर खड़े रहना पड़े। उसके पीठ मोड़ते ही पैम सौन्डर्स ने कहा,’‘देखो मार्गो चाहे जो भी बताए चुपचाप सुन लेना।मुंह पर जाकर बक मत देना। तुम अभी नई हो। कोई कैसे भी रहे! चटके या मटके!! तुम्हारी कही लिखी जाएगी। यह दुनिया न्याय से बहुत दूर है।’‘

मै मुस्कुराकर चुप मार गई। धीरे धीरे मुझे सभी की असलियत और सोंचने का ढंग समझ में आने लगा। बात की बात में साल विदा हो गया। गणित पर मेरी अच्छी पकड़ देख कर अगले साल मुझे सी० एस० ई० की क्लास पढ़ाने को दे दी गई। इसके अलावा पहली, दूसरी और तीसरी की सेकंडरी कि क्लासें तो पढ़ानी ही थीं। इधर झीठा तरक्की कर के रिमेडिअल के बाहर हो गया। उसका हुलिया एकदम बदल गया। शेव करने लगा। बदन का बचकाना मोटापा झड़ गया और शेर जैसी कमर निकल आई। क़द और भी ऊँचा, अपने बाप के जैसा हो गया। बालों को पर्म कराके जेल लगाके सुन्दर चमकीली लटों में सँवार लिया। देखने में सुन्दर ना होने पर भी वह दूर से नज़र आ जाता था। चेहरे पर सेहत की चमक और ताजगी थी। कोई व्यसन नहीं। शक्ति भर पढ़ता लिखता था न लूसी न मै, अब दोनों ही उसे नहीं पढ़ाते थे। साइंस के विषय लेकर अब वह दो दो ट्यूटरों के बीच पिसा रहता था। अपने जैसे अनेक गोरे काले लड़कों के बीच नगण्य-सा 'औसत छात्र'। भारतीय मूल के बड़े बच्चे अपना अलग समूह बनाए रहते थे। यह पढ़ाकू बच्चे होते थे। जीटा उनमे सबसे लम्बा और चुप!

लूसी का आत्मवाद सिर चढ़कर बोल रहा था। स्टाफरूम में उसके चाहनेवालों की लम्बी कतार थी। अमीर माँ की एकलौती बेटी, किसी राजनैतिक व्यक्ति से पैदा हुई थी और किसी प्राईवेट स्कूल में पढ़ी थी। केवल ओ लेवल करके उसे टीचर की नौकरी मिल गई थी। उस जमाने में टीचरों की इतनी किल्लत थी कि जो कुछ और न कर सके उसे टीचर बना देते थे। मार्गो का कहना था कि लूसी को खुद ही स्पेल करना नहीं आता था तो वह मार्किंग क्या करती। एक बार मैंने चेक किया कि वह भारतीय बच्चों की मूल व्याकरण की गलतियाँ सुधार कर नहीं लिखती थी। हेडमास्टर इंस्पेक्शन के समय लूसी से बहुत काम निकालता था। उनकी खातिरदारी के लिए एक हीरोइन जो चाहिए थी। तीस पार कर चुकी थी पर शादी के लायक अमीर लड़का उसे नहीं मिल पाया था। अब टीचर तो अमीर होते नहीं। उसकी माँ ने उसे अपनी सोसायटी में धकेलना चाहा था मगर लूसी दबोचे में आई नहीं। कोई पूछे तो गाती थी- ‘‘मेन में कम एंड मेन में गो बट आई गो ओंन फॉर एवर!

अब जवानी के उफान पर उसने एक पुलिसवाले से सम्बन्ध बना लिया था। लड़कों की लड़ाई के समय हेडमास्टर उसका भी खूब फायदा उठाता था। पुलिसवाला शादीशुदा था, दो बच्चों का बाप! न उसकी बीवी डाईवोर्स देती थी ना लूसी उससे शादी कर सकती थी।

लंच में अक्सर सब स्कूल के सामने वाले पब में जा बैठते थे। मुझे भी चलने को कहते थे मगर वहां और भी भारतीय टीचर थे जो चुपचाप अपने काम से काम रखते थे।अतः मैंने भी उसी मर्यादा का पालन किया। अंग्रेजों के जाने के बाद हम खुलकर उस ज़माने की नस्ल्वादिता की चर्चा करते थे।

एक रोज़ लूसी देर से स्कूल पहुंची और सीधी हेड के कमरे में घुस गई।दस मिनट के बाद उसे मैंने हेड के साथ कार पार्क में जाते देखा। लंच टाइम तक यह खबर आम हो गई कि लूसी ने नई एम० जी० कार ली है। पुलिसवाले बॉय फ्रेंड स्टीव की पहुँच से उसे यह नायाब, हाथ की बनी कार नसीब हुई थी। सारा स्टाफ एक-एक करके इस पीले रंग की ठिंगनी सी स्पोर्ट्स कार का मुआयना कर आया। कार खुली छत वाली केवल दो जानो के बैठने के लिए बनी थी। इंजन की पावर इतनी कि सौ मील की रफ़्तार पर भी झटका पता न चले। आराम के सभी उपकरण लगे थे जो बटन दबाते ही हाजिर! रोज़ वह घर जाते समय अपनी कार की योग्यताओं का प्रदर्शन करती। लड़के हुजूम बनाकर ताकते,फिकरे कसते। कार पार्क में छात्रों को जाने की अनुमति नहीं थी। केवल सिक्स्थ फॉर्म के बड़े लड़के उधर से गुजरते थे।

उस वर्ष लूसी को सिक्स्थ फॉर्म को अंग्रेजी पढ़ाने का मौका दिया गया। जीटा उसी की क्लास में था मगर लूसी ने कह सुनकर उसे अपनी क्लास से निकलवा दिया। उसका कहना था कि जीटा अभी भी उसे घूरता है। जीटा बेचारा उसके सामने जाने से भी कतराता था।
एक रोज़ लूसी सोमवार को स्कूल आई तो उसकी दाहिनी बाँह पर प्लास्टर बँधा था।
‘‘अरे क्या हो गया? ''
‘‘किसी हरामजादे भारतीय ने मेरी कार को टक्कर मार दी!''
‘‘ओह मुझे दुख है!! ‘‘
‘‘कब तुम्हारे लोग सड़क पर चलने का शिष्टाचार सीखेंगे? ''
‘‘पता नहीं। मैंने भी तो नहीं सीख पाया अभी तक! ‘‘

इस पर सब लोग जोर से हँस पड़े क्योंकि सबको पता था कि मुझे गाड़ी चलानी नहीं आती। मार्गो ने बाद में बताया, इस बद दिमाग से यह पूछो कि इंडियन ने इसकी कार को मारा तो कार के अगले हिस्से में चोट कैसे लगी? लगती न लगती पीछे लगती। दरअसल कल रात को देर से घर आई थी। स्टीव के साथ वीकेंड मनाने लन्दन से बाहर गई थी। सुबह देर से उठी फिर तेज-तेज गाड़ी भगा रही होगी। सामने वैन थी। सुबह आठ बजे के बाद ट्रेफिक पत्थरों की कतार की तरह खिसकता है। ये तेज जा रही थी। सामने वाले ने ब्रेक लगाया इसने दे मारी। यह भी कहो जान बच गई। अगला हिस्सा पिच्चूँ! गालियाँ तो हमेशा देती है क्या इंडियन क्या कोई और!! ‘‘
अभी हफ्ता भी नही हुआ था कि वह बाथरूम में फिसल गई और बाईं टाँग की हड्डी टूट गई। मैंने पूछा क्या हुआ तो मार्गो ने उत्तर दिया ''ब्लड़ी इंडियन ने डंडा मार दिया ''!
लूसी खिसियाकर चिल्लाई ‘‘शट अप ''!

कुछ दिनों के बाद लूसी की कार बन कर आ गई तो खुशी मनाने सब पब में जा बैठे। सामने कार पार्क साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था। टक्कर का किस्सा आम चर्चा का विषय बन गया था इसलिए सिक्स्थ फॉर्म के लड़के आते जाते रुक रुक कर उसे निरख रहे थे।

छुट्टी के समय लूसी घर जाते जाते वापस स्टाफरूम में घुसी और बदहवास होकर हमें बताया कि कार को अन्दर से गन्दा करके किसी ने स्टीरिओ आदि निकाल लिया है। उसकी थर्ड ईअर की कापियाँ कैलकुलेटर आदि भी गायब कर दिया। कापियों में छमाही टेस्ट के रिजल्ट थे जिनका प्रतिशत आदि निकालना बाक़ी था।काले अमिट मार्कर से गंदे गंदे पुल्लिंग निशान सीट पर डाल दिए थे। लूसी रोने लगी। पुलिस को बुलाया गया। गंदे निशानों को देखकर लूसी से उन्होंने पूछा कि क्या वह किसी ऐसे लड़के पर शक करती है जो उसे मन ही मन चाहता हो।लूसी ने हामी भरी और कागज़ पर चुपके से लिखकर जीटा का नाम दे दिया। पुलिस ने सिक्स्थ फॉर्म के सब लड़कों से अलग अलग पूछताछ करी कि उनमे से कौन कौन लंच टाइम में कार पार्क में गया था। इत्तेफाक से जीटा लंच टाइम में ही घर से आया था। कार पार्क से गुजरते समय उसने कई लड़कों को कार के पास खड़ा देखा तो खुद भी झाँकी मारने चला गया लेकिन जब अंग्रेज लड़कों ने उसे देखा तो वे सब फूट लिए और वह मिनट भर अकेला ही वहाँ खड़ा रहा। पब में बैठी लूसी ने तभी उसे देखा था। पर यह बात उस भोले भंडारी ने खुद ही पुलिस को बता दी।

‘‘तुम्हे कार पार्क में देखा गया था। क्या तुम मानते हो?''
‘‘ हाँ मै कार देख रहा था।''
‘‘क्यों?''
‘‘क्योंकि सब देख रहे थे। ''
''सब माने कौन कौन?''
‘‘मुझे याद नहीं सर। ‘‘
’‘क्यों याद नही?’‘
‘‘क्योंकि मै सबसे बाद में वहाँ अकेला रह गया था।’‘
‘‘और मौके का फायदा उठा कर तुमने कार को नुकसान पहुँचाया क्योंकि तुम बदला लेना चाहते थे। ‘‘
‘‘बदला किस बात का सर?''
‘‘क्योंकि मिस ने तुम्हे अपनी क्लास में से निकाल दिया था। ‘‘
''पर मै तो सर उन्हें पसंद करता हूँ।''
''वही तो बात है।''
पुलिस ने और कुछ नहीं पूछा। कार में से कीमती सामान चोरी करने, कार को नुकसान
पहुँचाने और अपनी गंदी भड़ास निकालने के अभियोग में उसे गिरफ्तार कर लिया। यह बात किसी को बताई नहीं गई। मार्गो ने भी मुझसे छुपाई।|

इधर मेरी क्लास में कुछ और ही तमाशा चल रहा था। थर्ड इअर की क्लास थी यानी १३ -१४ साल की उम्र। चौदहवें साल में आते ही लड़कों में शारीरिक परिवर्तन आने लगते हैं।तब उन्हें संभालना बेहद दुष्कर हो जाता है।जिमी काला और टेरेंस गोरा था।दोनों अनाथ थे और कौंसिल द्वारा निर्धारित परिवारों में पल रहे थे।दोनों के सरकारी माँ बाप सुबह काम पर चले जाते थे।यह दोनों क्लासें बंक करके सड़कों पर घूमते थे और भूख लगने पर स्कूल लंच टाइम पर आ जाते थे। अफवाह थी कि वह समलैंगिक क्रियाओं में अपना समय बिताते थे। लंच से पहले मेरी ही क्लास होती थी। जिस रोज़ लूसी की गाड़ी बनकर आई थी उसरोज़ यह दोनों लंच से जरा ही पहले क्लास में घुसे थे। अगले रोज़ किसी चीज़ को लेकर सब लड़के आँखों ही आँखों में इशारे कर रहे थे ।जिमी और टेरेंस का झगड़ा भी हुआ किसी कैलकुलेटर को लेकर। मगर वह बरामद नहीं हुआ। झगड़े की शिकायत पर उनके माँ और बाप को इत्तिला दे दी गई।

स्कूल की छुट्टियों में बाज़ार गई तो इक्तिफक से वहाँ जीटा नज़र आ गया। एक स्टाल पर चप्पलें बेच रहा था। साथ में उसकी माँ पैंट और जाकेट पहने पैसे समेट रही थी। जीटा 'नाईस इटालियन सैंडिल लेड़ी' की हाँक लगा रहा था। मै भी देखने रुक गई। जीटा ने पंजाबी भाषा में मेरा परिचय कराया। वह रिरिया कर हाथ जोड़कर बोली, ‘‘मेरे लाल को बचा लो मिस जी। वाहे गुरु आपका भला करेंगे।''

‘‘क्यों? क्या बात हो गई बहन जी? ऐसा क्या कर दिया जीटा ने?''
‘‘कुछ नईं किया भैन जी, कुछ वी नईं! एवईं झूठा इल्जाम लगा दिया खसम रखनी ने!! मेरे लाल पर सारी जिन्दगी वास्ते धब्बा लगा दिया। हु न कैंदे ने जेल जाएगा। चोरी इसने नईं करी। हम तो आर्मी के हैं। इसका बाऊ तो अंग्रेजों का मातवर है तभी हमें इधर रैने का परमिट मिला। कुछ आप उस सिरफिरी को समझाओ।''
’‘मम्मी जी ये वाले मिस कुछ नईं कर सकदे,''जीटा शर्मिंदा सा बोला।

उसने मुझे सारी बात बताई। केस करीब करीब वह लोग हार चुके थे। कहीं कोई सबूत नहीं था जो उसे निर्दोष साबित कर पाता। इस इल्जाम के रहते उसका सारा भविष्य बिगड़ जाता। किसी और स्कूल में दाखिला भी नहीं मिलता। यौन विकृति और प्रियतमा का पीछा करके उसे नुकसान पहुँचाने का अभियोग उसे सदा के लिए स्तौकर्स की लिस्ट में धकेल देता और मानसिक रोगी साबित कर देता। लूसी का वकील उसे सलाह दे रहा था कि वह एक माफीनामा लिखकर लूसी को दे दे और उससे अपना केस वापिस लेने की इल्तिजा करे। मगर जीटा यह हरगिज़ मानने को तैयार नहीं हुआ। जो गुनाह उसने किया नहीं उसकी माफी वह क्यों माँगे? खासकर विकृत आशिकी का इल्जाम। लूसी और स्टीव एंड को० जबरदस्ती उसे फँसा रहे थे। माफीनामा तो सबूत बन जाता।

तभी उसका पिता भी वहाँ आ गया। उसने दोनों पक्षों की दलीलें मुझे सुनाईं। कोई उम्मीद जीटा के पक्ष में नहीं थी। बाप बेटे दोनों निराशा से दग्ध थे। पर जीटा के चेहरे पर कठोरता थी, अंत तक लड़ने का इरादा था। मैंने निगाहें मिलाकर उसे देखा। उसकी आँखों में उसके दिल की सफाई झलक रही थी। कर लें जो करना है। हमारा भगवान् है। मरना है तो लड़ते हुए मरेंगे। जीटा की माँ हिलक हिलक कर रो रही थी।'' आजकल मनिंदर का बाऊ रोज़ सुबह चार बजे उठ कर पाठ करता है। सानु तो जी बस वाहे गुरु का आसरा! ‘‘

घर आकर मैंने भी देवी माँ के आगे मत्था टेका। जीटा की खैर मनाई।

मेरी क्लास के दोनों बदमाश लड़के छुट्टियों में पुलिस के हाथों पड़ गए। हेडमास्टर की चिट्ठी उन्होंने अपने माँ बाप को नहीं दिखाई। गलियों में डोलते और चोरियाँ करते फिरे। एक बूढ़ी औरत ने उन्हें दीवार पर काले मार्कर से लिखते देखा। गंदे निशान देखकर उसने इन्हें डाँटा तो दोनों ने उसको तंग किया और घर तक उसका पीछा किया। अगले रोज़ जब बिल्डिंग के सब लोग काम पर गए हुए थे तो उन्होंने बुढ़िया के फ़्लैट में आग लगानी चाही। दरवाजे के नीचे की झिरी में एक स्कूल की कापी, आधी अन्दर आधी बाहर घुसाकर आग लगा दी । दरवाज़ा लकड़ी और पेंट का था, झट से आग पकड़ गया। यह दोनों भाग गए। सामने वाली पड़ोसन को धुएँ की बदबू आई तो उसने आग बुझाकर पुलिस को बुलाया। इतने में बुढ़िया घर आ गई। ताला खोलने पर अधजली कापी पुलिस के हाथों पड़ी। कापी पर जिस बच्चे का नाम और क्लास का नाम पड़ा था उसे ढूँढने पर ही अभियुक्त को पकड़ा जा सकता था। स्कूल खुल जाने पर इस काम में पुलिस को देर नहीं लगी। पता चला कि वह कापी उस बंडल में से एक थी जो लूसी की कार में से गायब किया गया था। उस तारीख को जो लोग अनुपस्थित थे उन पर जाल फेंका गया। जिमी और टेरेंस लंच टाईम पर आए थे और खाना खाकर फिर भाग गए थे। उन्हें लूसी की क्लास में जाना था जिसमे वह नहीं गए और जब वह बिज़ी थी यह तोड़ फोड़ करी। पुलिस को उन्हें अपराधी साबित करने में देर नहीं लगी क्योंकि बुढ़िया ने उन्हें पहचान लिया। उनके घरों से बाकी सामान भी बरामद हुआ। कार का स्टीरिओ वह किन्हीं ड्रग वालों के हाथों बेच चुके थे। वे भी पकड़े गए मगर अठारह साल से कम उम्र होने के कारण रिमांड होम में भेज दिए गए।

मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। जीटा का केस आप ही आप खारिज हो गया। वाहे गुरु जी दा खालसा! वाहे गुरु जी दी फ़तेह !!

जीटा निर्दोष था। छूट गया। हेडमास्टर ने उसके बाप को बुलाकर खुद माफ़ी माँगी।

मगर जीटा ने स्कूल छोड़ दिया। सबने समझाया मगर उसका दिल टूट गया था। पिता की हसरत थी उसे पढ़ा लिखा बनाने की मगर क्या दिया उसे इस सिस्टम ने? मैंने भी समझाना चाहा तो बोला ‘‘ इंसान कमाई से पहचाना जाता है। चप्पलें बेचकर मै ५०० पाउंड हफ्ते में कमालेता हूँ। पढ़कर कौन सी नौकरी मुझे यह रिटर्न देगी। मुझे किसी अंग्रेज से मत्था नहीं लगाना। मुझे अकेला छोड़ दो।‘‘

आज की तारीख में जीटा एक सफल व्यापारी है। कहीं एक शादी में मिला था। सुन्दर सी लम्बी ऊँची पंजाबिन बीवी, दो बच्चे, सोने से लकदक उसकी माँ और सूटेड बूटेड पिता। सबसे उसने मुझे मिलवाया। उसकी बीवी खूब अच्छी अँग्रेजी बोलती है। किसी प्राईवेट स्कूल की पढी है। बच्चे भी सिटी ऑफ़ वेस्तमिन्स्तर में पढ़ रहे थे। बाहर एक सिल्वर मर्सिड़ीज़ गाड़ी खड़ी थी जिसकी नंबर प्लेट पर लिखा था जे वन टी एच ए। उसकी ऐसी समृद्धि देखकर मैं सोचने लगी जीटा जीत गया।

पृष्ठ : . .

२२ जून २०११

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।