प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित 
पुरालेख तिथि
अनुसारविषयानुसार हिंदी लिंक हमारे लेखक लेखकों से
SHUSHA HELP // UNICODE  HELP / पता-


पर्व पंचांग  २३. ६. २००८

इस सप्ताह-
समकालीन कहानियों में- डेनमार्क से चाँद शुक्ला हदियाबादी की कहानी पराई प्यास का सफ़र

जब डेनमार्क के इस सीमावर्ती शहर के लिए प्रवीण बावला पहुँचे तो शाम जवान थी। मौसम भी बेहद दिलकश था। बसंत ऋतु की खुनकी हवा में घुलकर वातावरण को मस्‍त किए दे रही थी। शहर तो छोटा-सा ही था, लेकिन कार्निवाल के कारण ख़ासी भीड़ थी। अलग-अलग शहरों और कस्बों से आए नृत्य समूह अपनी तैयारियों के अन्तिम चरण में थे। सारी गहमागहमी के बावजूद प्रवीण बावला उदास थे। चारों तरफ़ की भीड़ और उत्साह के बावजूद उन्हें सब कुछ बेरस लग रहा था। दरअसल पिछले तीन दिनों से वे जिस मानसिक उद्वेलन की स्थिति से गुज़र रहे थे उसका कारण वे स्‍वयं भी समझ नहीं पा रहे थे। ऐ यंग मैन! गहमा गहमी के बीच चर्च के पास एक रेलिंग के सहारे टिके खोए से प्रवीण बावला की तंद्रा को उनके सहायक जैनसन ने भंग किया - बस अब कार्निवाल के चीफ गेस्‍ट आने ही वाले हैं। और एक खुशखबरी है– जैनसन चहका

*

उमा शंकर चतुर्वेदी का व्यंग्य
बीमार होना बड़े अफ़सर का

*

पर्यटन में सुबोध कुमार 'नंदन' के साथ
केसरिया के बौद्ध स्तूप की सैर

*

स्वाद और स्वास्थ्य में
आरोग्यकारी अंगूर

*

रचना प्रसंग में पूर्णिमा वर्मन का आलेख
छुटकारा रद्दी की टोकरी से

*

 

पिछले सप्ताह
कचनार विशेषांक में

भुवनेश्वर प्रसाद गुरुमैता का ललित निबंध
वसंत का संदेशवाहक कचनार

*

प्रकृति और पर्यावरण में अर्बुदा ओहरी के साथ
कचनार की छाँह में

*

आज सिरहाने वृंदावन लाल वर्मा का उपन्यास
कचनार

*

पूर्णिमा वर्मन ढूँढ लाई हैं
डाक-टिकटों की दुनिया में कचनार

*

समकालीन कहानियों में भारत से
ममता कालिया की कहानी निर्मोही

बाबा की पुरानी कोठी। लम्बे-लम्बे किवाड़ों वाला फाटक, जहाँ पहुँच रेल की पटरी ट्राम की पटरी जैसी चौड़ी हो जाती। जब बन्द होता, ताँगों की कतार लग जाती कोठी के सामने। रेल क्रॉसिंग के पार झाड़-बिरिख और कुछ दूर पर सौंताल। कभी इसका नाम शिवताल रहा होगा पर सब उसे अब सौंताल कहते। उसके पार जंगम जंगल। बीच-बीच से जर्जर टूटी दीवारें। कहते हैं वहाँ राजा सूरसेन की कोठी थी कभी। घर की छत पर मोरों की आवाज़ उठती- 'मेहाओ मेहाओ।' जब तक हम दौड़-दौड़े छत पर पहुँचे मोर उड़ जाते। लंबी उड़ान नहीं भरते। बस सौंताल के पास कभी कदंब पर या कटहल पर बैठ जाते। सौंताल से हमारी छुट्टियों का गाथा-लोक बँधा हुआ था। शाम को ठंडी बयार चलती। दादी हाथ का पंखा रोक कर कहतीं, ''जे देखो सौंताल से आया सीत समीरन।'' कभी आकाश में बड़ी देर से टिका एक बादल थोड़ी देर के लिए बरस जाता।

 

अनुभूति में- देवमणि पांडेय, श्याम सखा श्याम, कीर्ति चौधरी, अभिज्ञात और राम निवास मानव की नई रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ
पिछले सप्ताह शहर पर हल्की धुंध छाई रही। धुंध हल्की थी पर एलर्जी और दमे के मरीज़ों के हाल बेहाल रहे। इमारात में धुंध कोई नई बात नहीं। ऐसा आमतौर पर जुलाई अगस्त के मौसम में होता है जब नमी और गर्मी दोनों पराकाष्ठा पर होते हैं। ऐसे मौसम में सुबह देर तक कोहरा छाया रहता है। पर अभी तो जून है। नमी और गर्मी भी अभी नहीं,  फिर यह धुंध क्यों। अखबार कहते हैं कि कुवैत में तूफ़ान आया हैं। इमारात की धुंध इसी तूफ़ान के कारण है। धूल का तूफ़ान जब समुद्रतट से नगर की ओर बढ़ता है तो कैसा लगता है यह दिखाने के लिए कुवैत में हमारी सहयोगी दीपिका जोशी संध्या ने नवाफ़ नेट के सौजन्य से कुछ फ़ोटो भेजे हैं, जिसमें कुवैत देश और शहर में तूफ़ान के कुछ ज़मीनी और कुछ आकाशीय दृश्य हैं। इस तूफ़ान से कुवैत का समुद्री और हवाई यातायात बुरी तरह प्रभावित रहा। दो दिन शांति से गुज़रे हैं पर आने वाले दिनों के लिए खबर अच्छी नहीं है। अखबार कहते हैं कि अब ऐसा मौसम कुवैत में साल में 250 दिन तक रह सकता है। ज़ाहिर है कुवैत में ऐसा रहा तो आसपास के बाकी देश भी बचेंगे नहीं। आज जब खाड़ी के देशों में हरियाली दिन पर दिन बढ़ रही है इस तरह के तूफ़ानों का बढ़ना क्या दुनिया के गर्म होने के कारण है? अभी तक आधिकारिक रूप से ऐसा कहा नहीं गया है।
-पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- प्रेमचंद

सप्ताह का विचार
हँसी छूत की बीमारी है, आपको हँसी आई नहीं कि दूसरे को ज़बरदस्ती अपने दाँत निकालने पड़ेंगे।
--प्रेमलता दीप

क्या आप जानते हैं? कि मधुमक्खी के कान नहीं होते। इस कमी को उसके शक्तिशाली एंटीना स्पर्श से पूरा करते है।

अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़ें

Click here to send this site to a friend!

नए अंकों की पाक्षिक
सूचना के लिए यहाँ क्लिक करें

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

 

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org

hit counter

आँकड़े विस्तार में
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०