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"ध्यान से देखो तो बेशक सब कुछ निवेश पर ही टिका है। पिता बेटे को पढ़ा रहा है, बेटी के लिए दहेज दे रहा है, हम पड़ोसी की मदद कर रहे हैं एक रिटर्न पाने की अपेक्षा से सारा कुछ निवेश ही तो है। हमारा भविष्य बढ़िया रहे हमारा परलोक बढ़िया रहे अगला जन्म बढ़िया रहे यह कामना उस लाभांश की तरह ही तो है जिसके निवेश के उपरांत प्राप्त होने की आशा रहती है।"

पिंकी को लगा जैसे उसके सामने उसका पति नहीं कोई अजनबी मुखातिब है जिसके दिमाग पर खुली अर्थव्यवस्था की तरह एक साथ कई देश के झंडों के रंगों का घालमेल हो गया है। हर चीज में बाज़ार और बाज़ार में हर चीज ढूँढ़ने लग जानेवाले उस आदमी ने माधुरी नाम को एक ब्रांड बना लिया है और इस नाम का जलाल यह है कि वह पति होने को भी एक व्यवसााय मानने लगा है। क्या दाम्पत्य अब खरीदफरोख्त के गणित से संचालित होगा?

गोरेलाल को लगने लगा कि फुल्लू सचमुच माधुरी को दिलोजां से चाहने लगा है। पड़ोस के दुकानदार भी लक्ष्य करने लगे कि फुल्लू की प्रकृति कुछ-कुछ असामान्य होने लगी है। उसके जरा विशिष्ट होते जाने पर उन्हें चिढ़ तो थी ही, उसे सुनाकर कुछ लोग माधुरी के बारे में उल्टी बातें, "माधुरी माने हुस्न का बियर बार' 'फ्लॉप फिल्म की फूलन' 'दांत दिखाये, कमर लचकाये' आदि कहने लगे। कुछ लौंडों ने तो तंज और फब्तियों 'लल्लू जगघर चाटवाला, जपे माधुरी नाम का माला', 'कौआ चले हंस की चाल, काले रंग का नहीं खयाल' ‘धागा खींचा नेने ने गुड्डी उड़ी विदेश, मजनू की नानी मरी लगी नाक में ठेस' आदि की कुछ तख्तियाँ और पोस्टर बना लिये, जिन्हें वे फुल्लू के आने-जाने के रास्ते में सड़क पर या दीवार पर चिपका देते या फिर उसकी दुकान की शटर के नीचे डाल देते। वह बेजब्त हो जाता, उखड़ जाता, बिगड़ जाता। पिंकी ने इसे झिड़ककर समझाने की कोशिश की, "माधुरी तुम्हारी खरीदी हुई जायदाद नहीं हैं, वह सबकी है। कोई उसे गाली दे या प्यार करे, तुम उसे रोकनेवाले कोई नहीं होते।"

फुल्लू जानता था कि यह बात ठीक है, फिर भी माधुरी के प्रति कोई अपशब्द सुनकर वह खुद को बेकाबू हो जाने से रोक नहीं पाता था। चिढ़ानेवाले का मकसद पूरा हो जाता। उसके चिर प्रतिद्वंद्वी चिरंजी की इन हरकतों की पृष्ठभूमि में खास भूमिका रहती। वह रोज उसके खिलाफ कोई न कोई नया किस्सा 'जन्म दिन का बधाई कार्ड भेजा था तो उधर से उसका सेक्रेटरी का जवाब आया कि जरा होश में और अपनी औकात में रहो' 'सुबह माधुरी का माला जप रहा था, पत्नी ने देखा तो सिर पर चार-पाँच चप्पल दे मारा' ब़ाज़ार में चला देता ताकि ग्राहक उसे सनकी समझकर भड़क जायें। मगर वह हैरान था कि ग्राहकों का उसके प्रति क्रेज और बढ़ता जा रहा था। शायद उसकी दीवानगी में निहित निश्छलता, पवित्रता और परदु:खकातरता से लोग उसके और भी कायल बनते जा रहे थे।

चिरंजी के ग्लोबल पिज्जा का जादू इतना क्षणभंगुर होकर रह जायेगा, इसकी उसने कल्पना तक नहीं की थी। वह फुल्लू के प्रभामंडल को खत्म करने के लिए उसी की तर्ज पर सोचते हुए दिमाग दौड़ाने लगा। उसे याद आया कि फुलुआ ने लॉटरी का झाँसा देकर सबको उल्लू बनाया आ़ज तक उस घोषित लॉटरी का ड्रॉ नही हुआ। उसके मन में पहले तो आया कि इस मुद्दे को उभारकर उसे लफ्फाज साबित कर दें ताकि वह सबकी नज़रों में गिर जाये और खुद को सच्चा-सही साबित करने के लिए वह वाकई एक लॉटरी करवा डाले। फिर मन में आया कि ऐसा करने की जगह उसी के रास्ते पर वह भी क्यों न चलें? उसने जब बिना खर्च किये काम निकाल लिया तो इसे क्या जरूरत है खर्च करने की? लॉटरी घोषित करके ड्रॉ की एक-एक कर कभी न आनेवाली तारीख बढ़ाता जाये। उसने कोक बनानेवाली एक कंपनी के स्थानीय मैनेजर को पटाया, चूँकि इस ब्रैंड के पेय का बहुत बढ़िया कलेक्शन देनेवाला वह एक अग्रगण्य रिटेलर था। इस कंपनी की मदद से माधुरी के कार्यक्रम की उसने तैयारी शुरू कर दी। जोरदार प्रचार किया जाने लगा अमुक तारीख को शहर के सबसे बड़े स्टेडियम में माधुरी का लाइव शो। शो के लिए हर टिकट धारक को पिज्जा, कोक और लॉटरी कूपन फ्री। लॉटरी का ड्रॉ ऑन स्पॉट माधुरी द्वारा। प्राइज में कई ब्रैंड की कारें शामिल।

गोरेलाल ने फुल्लू को बताया कि उसका बिजनेस प्रभावित करने के लिए यह नहले पे दहला चाल चली जा रही हैं। एक बारगी फुल्लू को भी लगा कि सचमुच यह तो सरासर बदमाशी है। उसे करना ही था तो रवीना टंडन, ऐश्वर्या राय, प्रीति जिंटा, करिश्मा कपूर या रानी मुखर्जी नाइट करा लेता। जब वह देख रहा है कि उसके सामने माधुरी के लिए इतना कुछ हो रहा है, फिर माधुरी पर इसका क्या हक था? अगले ही पल उसे खयाल आया कि अगर इसने माधुरी को चुना है तो ठीक ही चुना है। माधुरी का मुकाबला किसी और से हो भी कहाँ सकता है। पूरी दुनिया में माधुरी तो सिर्फ एक ही है अव्वल, बेमिसाल, अभूतपूर्व, जिसके नृत्य और मुस्कराहट का कोई विकल्प नहीं, कोई सानी नहीं। चलो अच्छा है, उसकी एक जमाने की साध पूरी हो जायेगी। माधुरी को उसने आज तक पर्दे पर या चित्रों में ही देखा अब सामने साक्षात देख सकेगा। उम्मीद है एकदम पास से मिलने-बतियाने का उसे सुअवसर भी मिल जायेगा। निश्चित रूप से जब उसे मालूम होगा कि उसका ऐसा कोई फैन है जो सालों भर किसी खुदा की तरह उसकी इबादत करता है तो वह जरूर इंकार नहीं कर सकेगी।

माधुरी आयी आ़ने की एक बड़ी कीमत लेकर बड़ी कीमत, जिसे चिरंजी ने और कोक कंपनीवाले ने एक जरूरी निवेश समझकर जुटाया किसी तरह। वे जानते थे कि यह कीमत शो के टिकट बेचकर बहुत हद तक वसूल ली जायेगी। उनका अनुमान सही साबित हुआ। चूँकि देखनेवालों की भेड़ियाधसान भीड़ हज़ारों में जुटी पूरे शहर में मानो माधुरी का बुखार छा गया। चिरंजी मन ही मन सोचता रहा कि कितने पागल हैं यहाँ लोग कि उस ग्लैमर को देखने के लिए मरे जा रहे हैं जिससे उन्हें कुछ हासिल नहीं होना है। शो देखनेवालों में ऐरे-गैरे नत्थू-खैरे सभी थे नहीं था तो एक फुल्लू, जिसके लिए चिरंजी ने खास तौर पर हिदायत दे रखी थी कि वह किसी भी तरह अंदर दाखिल न हो सके। अखबारों में माधुरी के साथ चिरंजी के धुआँधार फोटो छपने लगे।

गोरेलाल इस विडंबना पर हैरान था कि माधुरी के साथ सचमुच जिसका फोटो होना चाहिए उसे धकियाकर किनारे कर दिया गया। यहाँ तक कि उसे एक झलक तक देखने का अवसर नहीं दिया जा रहा। जो चिरंजी माधुरी के बारे में हमेशा अनर्गल, भी और अश्लील अफवाहें इज़ाद करता रहता था, वह आज खुद को इसका सबसे बड़ा कद्रदान सिद्ध करने में लगा था। फुल्लू रात-दिन उसका कीर्तन करता रहता था, मगर आज किसी खतरनाक वायरस की तरह वह परे हटा दिया गया।

गोरेलाल के लिए यह रवैया असह्य हो गया। उसने अपनी पत्रकार की हैसियत दिखाकर होटल में माधुरी से मुलाकात की और फुल्लू के बारे में विस्तार से बताया कि उसके नाम पर वह क्या क्या आयोजन करता है किन-किन लाचार और उपेक्षित लोगों में भलाई और पुण्य का काम करता है उसकी फिल्मों को कितनी आसक्ति और बेताबी से एक उत्सव की तरह देखता है किसी देवी की तस्वीर की तरह उसके फोटो के मढ़े फ्रेमों से दुकान की दीवारें सजा रखी है उसके फोटो का लॉकेट तक बनवाकर उसने गले में पहन रखा है।

माधुरी के चेहरे पर यह सब सुनकर अच्छा भाव आने की जगह एक हिकारत का भाव उभर आया। उसने कहा, "ऐसे-ऐसे बेढंगे लोगों के कारण मेरी छवि खराब होती है। ये लोग मुझे एकदम चीप बना देते हैं। अब भला चाटवाला, सफाईवाला, रिक्शावाला, कबाड़ीवाला मेरे लिए इस तरह पागलपन दिखायेंगे तो संभ्रांत समाज मुझे क्या महत्त्व देगा?" माधुरी की नजर अचानक सामने खड़े एक पुलिस ऑफिसर पर पड़ी जो उसकी सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर नियुक्त था और अपने आवभाव से यह कई बार जतला चुका था कि वह माधुरी का घनघोर प्रशंसक है। गोरेलाल की शिकायत पर अपना कान उसने भी खड़ा किया हुआ था। माधुरी ने उसे संबोधित किया, "सुन रहे हो ऑफिसर, तुम्हारे रहते इस शहर में मेरे नाम पर लोग क्या-क्या फूहड़ तमाशा कर रहे हैं? तुम कहते हो कि मेरे बहुत बड़े फैन हो, फिर भी क्या इस तरह की भौंडी हरकतों पर अंकुश नहीं लगा सकते?"

ऑफिसर को लगा कि माधुरी जी ने उसे कुछ करने के लिए कहकर मानो उसके जीवन को सार्थक कर दिया। इतनी बड़ी स्टार उसे कुछ कह रही है, क्या कह रही है, जायज या नाजायज यह मायने नहीं रखता बस वह कुछ कह रही है और जो कह रही है उसका पालन होना चाहिए।

गोरेलाल को लगा कि जैसे कोई बड़ा हवाई जहाज क्रैश होकर ठीक उसके सामने गिर पड़ा। लाखों-करोड़ों की कीमत वाला और बहुत ऊपर उड़ने वाला हवाई जहाज जब जमीन पर गिरता है तो तहस-नहस होकर किरचों में तब्दील हो जाता है।
हवाई जहाज का क्रैश होकर गिरना हमेशा उसे विचलित कर देता रहा है आज भी वह विचलित हुए बिना न रह सका। गोरेलाल ताज्जुब में पड़ गया कि वह तो फुल्लू का भला करने चला था फिर उसका बुरा क्यों होने लगा? क्या उससे कोई चूक हो गयी? या कहीं ऐसा तो नहीं कि माधुरी जैसे लोगों के लिए अच्छाई-बुराई की परिभाषा अलग है? उसका माथ एकदम चकरा गया। उसने एक तल्ख रिपोर्ट लिखी कि फुल्लू जैसे अदना व्यक्ति की भावनाओं का इन नामचीन फिल्मी हस्तियों के लिए बस उतना ही महत्त्व जितना किसी रैपर या पैकिंग का होता है अंदर का माल यूज किया और बाहर का थ्रो कर दिया। यही फुल्लू अगर साधारण चाटवाला की जगह किसी पंचसितारा होटल का मालिक होता या फिर प्रसिद्ध चित्रकार, पत्रकार या मंत्री तो इनकी जिह्वा से कृतज्ञता के संभाषण कभी खत्म नहीं होते।

यह रिपोर्ट सुबह छपी मगर उस पुलिस ऑफिसर ने शाम में ही अपनी खैरख्वाही जताकर पीठ थपथपवा ली और कृतार्थ हो गया। उसने दुकान जाकर माधुरी के सारे ब्लोअप, पोस्टर, कटआउट और सीडी-कैसेट जब्त कर लिये। दीवारों पर लिखे फिल्मों के नाम और गानों के बोल आदि पर अलकतरा पोतवा दिया। ऐसा लग रहा था जैसे वह माधुरी का पक्ष नहीं ले रहा, बल्कि विरोध कर रहा है। फुल्लू की तो जैसे अक्ल ही गुम हो गयी थी। उसे कहीं से भी समझ में नहीं आ रहा था कि किसी को अगर वह ईश्वर की तरह ऊँचा स्थान दे रखा है तो इसमें गुनाह क्या है? उसकी पत्नी पिंकी पर भी यह बर्बर कार्रवाई नागवार गुजर गयी थी, हालांकि इसी के साथ उसके मन का आधा हिस्सा मुदित भी था कि चलो अच्छा हुआ इसे एक तमाचा लगा मुँह पर ज़मीन पर रेंगनेवाले चले थे आसमान में उड़ान भरने अब अक्ल ठिकाने आ जायेगी। गोरेलाल एक अपराधबोध से एकदम आहत महसूस कर रहा था उसी के कारण बेचारे फुल्लू के जिगर को लहूलुहान होना पड़ रहा है। उसने अपना तेवर सख्त बना लिया, "सुनो फुल्लू, ऐसी अहमक और कमजर्फ औरत का अपनी दुकान और ख्यालात से नामोनिशान तक मिटा दो। तस्वीरें ही लगानी हैं तो मदर टेरेसा की लगा दो और जो भी आयोजन करने हैं कल्याण-कार्य करने हैं, उनके नाम पर करो।"

पिंकी ने भी लगे हाथ अपने मन मुताबिक झोंके के साथ जरा उड़ लेने का आनंद उठाते हुए अपना इरादा सामने रख दिया, "मेरा भी मन एकदम घिना गया है इस माधुरी-फादरी से। अब इसके नाम पर तुम कुछ भी नहीं करोगे द़ुकान चले या न चले। सभी लोग ऐसे टोटके और स्वांग रचकर ही अपना व्यवसाय नहीं चलाते। अगर माधुरी के नाम से तुमने आगे कुछ किया तो भगवान कसम मैं तुम्हें छोड़कर मायके चली जाऊँगी और फिर कभी वापस नहीं आऊँगी।"

फुल्लू बहुत असहाय नज़रों से कभी गोरेलाल को, कभी पिंकी को और कभी अपनी बदसूरत-सी हो गयी दुकान को निहार रहा था। उसके पास बोलने के लिए मानो मुँह ही नहीं रह गया था। दूर से देखकर चिरंजी खुश हो रहा था और उसे लग रहा था कि उसने फुल्लू को एक जोर की पटकनी दे दी।

गोरेलाल फिर एक प्रहारात्मक रिपोर्ट लिखने के लिए तड़फड़ा उठा। मगर पुलिस ऑफिसर ने उसे और उसके संपादक को भी चेता दिया कि माधुरी के खिलाफ मुहिम बंद कर दे, नहीं तो उन्हें इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। फुल्लू मन मसोसकर रह गया। काश वह अखबार का खुद मालिक और संपादक होता। अखबार में कोई रिपोर्ट न छपने के बाद भी उसने देखा कि दुकान की कहानी कानों-कान पूरे शहर में फैल गयी और अगले दिन दुकान में आनेवालों की संख्या और भी बढ़ गयी। सभी देखना चाहते थे कि जो हवाई जहाज आसमान में उड़ता है वह क्रैश होकर जमीन पर कैसे ढेर हो जाता है।

भीड़ को देखकर चिरंजी को मानो फिर साँप सूँघ गया था।

कुछ अर्सा बीता चुप-चुप रहनेवाला फुल्लू अचानक फिर सुर्खरू हो उठा। वह माधुरी के बेटा होने की खुशी में एक उत्सव मनाने की तैयारी करने लगा। गोरेलाल, पिंकी, चिरंजी आदि हैरान रह गये। पिंकी तमतमाकर मायके चली गयी गोरेलाल ने भी दुकान पर न आने की कसम खाली फुल्लू के आसपास अब अपना कोई नहीं रह गया हालाँकि दुकान में ग्राहकों की संख्या और बढ़ गयी।

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१६ जून २००३

 
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