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ब्रिज ने अंदर से एक शीवाज़ रीगल की बोतल निकाली और आवाज़ लगाई, "शेरू उस्ताद ज़रा लेकर आना।"
"यह क्या कर रहे हो भैया?" मीरा ने टोका।
"क्यों व्हॉट्स रांग?"
"अरे कैसे मौके पर आए हैं और कैसी बात कर रहे हैं आप?"
"अरे शुभ-शुभ बोलो मेरी बहन। जब तक खैऱियत है ऊपर वाले का नाम लेकर मस्त रहो, हमारा पेशा तो हमें सिखाता है कि पल-पल जियो, अगर हम ऐसा न सोचें डियर तो हम डाक्टर लोग ज़िंदा ही नहीं रह सकते।
"लेकिन यह अच्छी बात नहीं है, भैया।"
"कम-ऑन।" इस बार सुधा बोली, "क्यों परेशान हो डार्लिंग, लेट दैम इन्ज्वाय।" फिर उसने चंदर से पूछा, "क्यों स्वीट हार्ट तुम क्या कहते हो?"
"मेरे ख़याल से, "झिझकते हुए चंदर बोला, "ठीक नहीं रहेगा इस मौके पर।"
"बड़े सेंटीमेंटल हो यार तुम दोनों।" ब्रिज बोला, "अरे जो है सो है, जो होगा सो होगा अभी से मातम क्यों मना रहे हो। अरे, ऊपर वाले से शुभ-शुभ माँगो।" शेरू ट्रे में दो गिलास, सोडे, बर्फ़ का पेल सब सजा कर ले आया था। ब्रिज ने दो बड़े-बड़े जाम तैयार किए। एक चंदर को पकड़ाते हुए बोला, "लो पार्टनर।"
चंदर झिझका। सुधा उसे गिलास उठाकर पकड़ाती हुई बोली, "कमऑन स्वीट हार्ट, चीयर्स।"
चंदर ने गिलास पकड़ लिया। सुधा ने शेरू को आवाज़ लगाई, "बेटा वो कबाब फ्रीजर में रखे हैं उन्हें तैयार करके ले आओ।"
"अरे क्या कर रही हैं भाभी।" मीरा ने टोका।
"हमारे स्वीट हार्ट की पसंद है यह हम जानते हैं।" फिर उसने शेरू को आवाज़ लगाई, "बेटा शेरू सिंह ज़रा हमारे लिए दो ज्यूस लेते आना।"
"कौन से?" शेरू ने आकर पूछा।
"क्या लोगी मीरा - मेंगो या पाईन एपल?"
"कुछ भी चलेगा भाभी लेकिन हो सके तो चाय बनवा दो मैं तो चाय ही पसंद करूँगी।"
"ठीक है बेटा फिर चाय ही बना लाओ।"
शेरू चाय बनाने चला गया।
शीवाज़ रीगल का पहला दौर चल रहा था। चंदर ने कहा, "भैया, यह चीज़ सचमुच लाजवाब है, कब लाए?"
"अभी पिछले महीने एक सेमीनार अटेंड करके लौट रहा था, दो रख लाया।" चाय की ट्रे के साथ गर्मागर्म कबाब पहुँच गए थे। कबाब चंदर की पसंद थी इसलिए पहले ही मँगवाकर फ्रीजर में रख लिए गए थे।
तभी फ़ोन की घंटी बजी। सुधा उठकर भीतर गई। फिर वह देर तक नहीं लौटी। अक्सर मरीज़ों के फ़ोन आते रहते हैं इसलिए ब्रिज पूछता ही नहीं कि किसका फ़ोन है।
"क्या सोच रहे हो चंदर।" उसे खामोश देखकर ब्रिज ने पूछा।
"भैया मुझे बार-बार कंचन का ध्यान आता है तो दिल बैठने लगता है।"
"देखो डियर।" ब्रिज ने उसके घुटने पर हाथ थपथपाते हुए नसीहत दी। "ड्रिंक करते हुए चिंताओं को बाहर छोड़ देना चाहिए। ड्रिंक एंड वरीज़ डोंट गो वैल विद इच अदर।"
चंदर कुछ नहीं बोला। शीवाज़ रीगल का लुत्फ़ लेने की कोशिश करता रहा।
"कबाब कैसे लगे?" ब्रिज ने पूछा।
"वहीं के हैं न?" चंदर ने पूछा। उसकी एक ख़ास पसंद की दूकान थी जहाँ से हमेशा कबाब मँगवाए जाते थे।
"तुम्हारी याददाश्त का जवाब नहीं।" कहते हुए ब्रिज ने अपना गिलास खाली कर दिया।
दूसरा दौर शुरू हुआ तो फिर टेलीफ़ोन की घंटी बजी। इस बार सुधा जब फ़ोन पर बात कर रही थी तो उसकी आवाज़ की घबराहट उन लोगों तक आ पहुँची।
"क्या बात- ख़ैरियत?" ब्रिज ने पूछा।
"ख़ैरियत ही तो नहीं।" कहते-कहते वह सामने आ गई, बोली, "करन का फ़ोन था।"
"समथिंग सीरियस?"
"एवरीथिंग इज ओवर।"
सुनकर चंदर सन्न रह गया।
"चलो चला जाए।" मीरा बोली।
"नहीं।" सुधा ने कहा, "करन कह रहा था कि वह घर जाकर नींद की गोली खाकर सोने वाला है इसलिए कोई आए नहीं।"
"बॉडी का क्या बताया, कब मिलेगी।" ब्रिज ने बड़े सहज ढंग से पूछा।
"कल दस बजे, उन्होंने कहा है दस बजे हम लोग हास्पिटल पहुँच जाएँ।"चंदर सोच रहा था अब कंचन की बात नहीं हो रही है अब बॉडी की बात हो रही है। उसका गला सूख रहा था। हाथ में कबाब का टुकड़ा था। उसे अपनी इस स्थिति पर अजीब शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। उसके भाई के साथ इतना बड़ा हादसा हुआ है और वह इस मौके पर आकर अपने ससुराल में बैठा यह क्या कर रहा है।
लेकिन वह करे भी क्या। अव्वल तो इस समय ये लोग उसे जाने नहीं देंगे और अगर जाए भी तो इस हालत में कैसे उसके सामने जाए। वैसे भी करन तो तब तक नींद की गोली खाकर सो भी चुका होगा। बेचारा करन! चंदर ने एक ठंडी साँस ली।
"कहाँ खो गए कुँवर जी?"
"कुछ नहीं भैया, सोच रहा था अब क्या करना होगा।"
"अरे हमारे रहते तुम्हें कुछ फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं। सब कुछ हो जाएगा। वैसे करन का साला काफ़ी रिसोर्सफुल है। सँभाल लेगा।"
लेकिन चंदर वैसे ही गुमसुम हुआ रहा।
उसके सामने दूसरा ड्रिंक ज्यों का त्यों रखा था। सोडे के छोटे-छोटे बुलबुले आहिस्ते-आहिस्ते निकल रहे थे।
गिलास की ओर इशारा करते ब्रिज ने कहा, "कुँवर जी इस बेचारे ने क्या कसूर किया है। पता नहीं दुनिया के किस-किस कोने से घूमता आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुआ है।"
"मन नहीं हो रहा।"
"देखो डियर! इस नायाब चीज़ के लिए ऐसे नाक नहीं चढ़ाते। यह तो वह चीज़ है जो खुशी है तो खुशी चमका दे और ग़मी हो तो ग़मी को भुला दे।"
"पता नहीं क्यों, मन नहीं मानता।"
"क्या जनानियों वाली बात करते हो यार। तुम्हारे न पीने से कंचन वापस लौट आएगी या करन का कोई भला हो जाएगा?"
"ले लो स्वीट हार्ट।" सुधा ने सलाह दी, "इट विल हेल्प यू।" आख़िर चंदर ने गिलास पकड़ ही लिया। चंदर के मन में इस समय जितनी भी चिंताएँ थी उनमें सबसे बड़ी चिंता थी उसकी पैरिस के लिए बुक हुई उड़ान की। जिसमें अब बारह दिन शेष रह गए थे। वह करन का बड़ा भाई है। घर का मुखिया। उसका तेरहवीं पर होना बहुत ज़रूरी है वर्ना लोग-बाग क्या कहेंगे। एक तरफ़ पैरिस जाने के वर्षों से संजोये सपने दूसरी तरफ़ तेरहवीं में शामिल होने की मजबूरी। कुदरत भी कैसे-कैसे इम्तहान लेती है।
"ब्रिज भैया?" चंदर से नहीं रहा गया तो उसने पूछ ही लिया, "ये सारे रीचुअल्स - आई मीन यह रस्म पगड़ी वगड़ी कब तक चलेंगे।"
ब्रिज भैया ने कंधे उचकाए। बोले, "नो एक्सपीरियेंस। क्यों? एनी प्राब्लम? छुट्टी के हिसाब से पूछ रहे हो क्या?"
"नहीं- वैसे ही।"
सुधा बोली, "मेरे ख़याल से तेरहवीं तो होती ही है। इसका मतलब है तेरह दिन।" चंदर का चेहरा लटक गया। उसकी हालत देखकर सुधा ने कहा, "कोई बात नहीं, आप चौथे के बाद चले जाना फिर तेरहवीं पर आ जाना। मीरा को छोड़ जाओ।"
"मैं बताती हूँ भाभी. . ." मीरा ने बात खोली, "असल चिंता यह है कि इनकी फ्लाइट बुक्ड है पैरिस की। किसी कौन्फ्रेंस में जा रहे हैं। इसलिए इन्हें तेरह दिन रुकना मुश्किल हो रहा है।"
"ओ इतनी सी बात।" ब्रिज ने उसका कंधा दबाते हुए, "डोंट वरी, यह सब हम पर छोड़ दो और यह बताओ कि तुम कब फ्री होना चाहते हो।"
चंदर ने हिसाब लगाकर बताया, "इस आने वाले से अगले संडे तक।" ब्रिज ने उँगलियों पर गिनकर बताया, "अरे यह तो दो-एक दिन का ही फ़र्क पड़ रहा है, डोंट वरी। हम पंडित जी को पटा लेंगे।"
ऐसा कैसे हो सकता है? चंदर इस आश्वासन के बावजूद रात भर इसी चिंता में झूलता रहा कि क्या होगा। तेरहवीं तो तेरहवें दिन ही होगी। ब्रिज भैया का आश्वासन तो शीवाज़ रीगल की झोंक में दिया आश्वासन है। अगले दिन सुबह दस बजे वे लोग अस्पताल पहुँचे। करन और उसके कई साथी, संबंधी वहाँ पहले से मौजूद थे। कंचन के पत्रकार साथियों का ख़ासा जमघट था। मॉर्चरी से लाश बरामद करने के लिए पुलिस की खाना पूरी चल रही थी क्यों कि यह केस एक्सीडेंट का था।
इसके बाद अंतिम यात्रा की तैयारी हुई। महानगर में मॉर्चरी से ही उसकी व्यवस्था हो जाती है। श्मशान जाने से पहले पंडित जी ने अपनी ज़रूरी रस्में पूरी की। इसके बाद चलने की तैयारी हुई तो चंदर और मीरा करन के साथ शव वाहन में बैठे। बाकी लोग अपनी गाड़ियों, स्कूटरों पर निकल पड़े। पंडित जी को ब्रिज अपनी टोयोटा में बिठाकर शमशान रवाना हुआ।
पंडित जी बड़े गंभीर और गुस्सैल किस्म के आदमी थे। उनको देखने के बाद चंदर के मन में रही सही आस भी टूट गई थी। क्या ब्रिज भैया इन पंडित जी से इस तरह की बात छेड़ सकेंगे, और अगर छेड़ी भी तो क्या ये पंडित जी मान जाएँगे? कभी नहीं।
दाह संस्कार की रस्म पूरी होने के बाद पंडित जी ने घोषणा की कि फूल चुनने की रस्म परसों होगी और पगड़ी की रस्म तेरह तारीख़ यानि आने वाले रविवार से अगले रविवार होगी।
एक क्षण में चंदर की चिंताओं का पहाड़ पिघल गया और तरल होकर उसकी आँखों से बह निकला। उसे आँखें पोंछते देखा तो करन ने उसके कंधों पर हाथ रखते हुए कहा, "भैया दिल छोटा न करो। अपने को सँभालो।"
 

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१ फरवरी २००५

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