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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से सुमेरचंद की कहानी-  पेड़ कट रहे है


"हेलो उनियाल, बड़े दिनों के बाद दर्शन हुए।" ए.सी. कोच के दरवाजे पर हाथ मिलाते मेहरा ने कहा।
"दर्शन तो आपके हुए, मेहरा- मैं तो अक्सर इस गाड़ी से काठगोदाम जाता हूँ।" हाथ को सख्त करते उनियाल ने कहा।
"रिटायरमेंट के बाद क्या कर रहे हो भाई?" मेहरा ने पूछा।
"आओ मेरी बर्थ पर- अभी सो तो नहीं रहे।" मेहरा ने बर्थ पर बैठते-बैठते कहा।
"भाभी की तबीयत तो ठीक ..?" उनियाल ने पूछना चाहा।
"वो तो जा ली भगवान के घर।" कह कर मेहरा हँसा।
"बड़े भाग्यशाली हो भाई- हमारी तो जोंक की तरह चिमटी है।" उनियाल बोला।
"ऐसा मत बोलो यार, साथी तो बुढ़ापे में ही चाहिए।" मेहरा ने टोका।
"क्या साथी यार, दो बरस से अपोलो में... " कहकर उनियाल मुरझा गया।
"इस बात में हम खुशकिस्मत निकले भाई- रात को सोई थी, सुबह राम नाम सत हुई मिली।" कह कर मेहरा जोर से हँसा।
"लो मेहरा, एक बात बताऊँ, मैं पहले आप को पंजाबी समझता था। ये तो कुमॉऊ में रहने से पता चला कि यहाँ भी मेहरा होते हैं।" उनियाल ने बात बढ़ाई।
"उनियाल, आप तो गढ़वाली हैं, कुमाऊँ में क्या करते हो?" मेहरा ने पूछा।
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