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मुझे उसका सवाल बड़ा तार्किक लगा। मैंने उसे बड़े आदर-भाव के साथ देखा... एक ऐसा सम्मान जिसमें सिर्फ़ पवित्र  भावना का स्थान होता है, वहाँ भावना के अलावा और कुछ नहीं होता। वह मेरी ओर तटस्थ भाव से देख रही थी और उसकी प्रतीक्षा बड़ी आतुर-सी दिख रही थी मानो मैं भारत के पूरे मानचित्र का कॉपीराइट अपने पास रखे हुए हूँ। इरिना सीम्स टू बी ग्रेट। वह अपने कद से मुझे बड़ी लगी। दरअसल उसका वह सवाल मुझे उससे भी ज़्यादा खूबसूरत लगा था। मुझे उसके सवाल का जवाब देने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्यों कि इरिना जैसी खूबसूरत लड़कियों की किसी चाह, इच्छा या सवाल को टाला नहीं जा सकता। मुझे यह भी महसूस हुआ कि इरिना की तरह की लड़कियाँ सवाल कर ही नहीं सकतीं... इसलिए उसका सवाल एक भावना बनकर मेरे भीतर उतर रहा था और उस जैसी कई इरिना भारत-भूमि पर कदम रख रही थीं धीरे-धीरे...

''इरिना! दरअसल भारतवर्ष एक बहुत विशाल और विराट देश है... मातृभूमि का ह्रदय बड़ा महान होता है... माता सबको प्यार करती है। एक माँ के लिए अपना, पराया कुछ भी नहीं होता।''
उसे लगा कि सब कुछ मिल गया। वह संतुष्ट दिखी।

निकोलाई अब तक नहीं आए। इरिना बताती है कि बहुत व्यस्त व्यक्ति हैं। फोन करने पर बुरा मान जाएँगे। मैं निपट अकेला यहाँ बैठा-बैठा बोर हो रहा हूँ। इरिना भीतर की तरफ़ चली गई थी। रेस्तरां से आवाज़ें अब भी आ रही थीं लेकिन उन आवाज़ों में हँसी-कहकहे गायब हो चुके थे। अधिकांश लड़खड़ाते कदमों से चलकर आई लड़खड़ती आवाज़ें थीं जिनमें एक लावारिस शाम की बेवफाई थी।

मेरी जोगिया शाम धीरे-धीरे रात के आगोश में पहुँच रही थी क्यों कि रात पूरे वातावरण को अपनी आगोश में लेने को तैयार बैठी थी और जोगिया शाम को किसी भी तरह छोड़ना नहीं चाहती थी। वह शाम रात को पसंद है और सभी शामों के बारे में मुझे कोई अता-पता नहीं है। इरिना अंदर जा चुकी थी और बाहर मैं निपट अकेला इस शहर का सुस्त और मरा हुआ ट्रैफिक देख रहा था।
इरिना ने मेरे लिए रात का खाना भिजवाया था। वह उस रूसी लड़की के साथ आई थी जिसका नाम उसने मरगरिता बताया था।
''आप प्लीज खाना खा लें। निकोलाई आते ही होंगे।''
''क्या आपने उनसे फ़ोन पर बात की?''
''मैंने कोशिश की थी किंतु फ़ोन ऑफ है। वह व्यस्त आदमी हैं। आप चिंता न करें... वह ज़रूर आएँगे।'' इरिना मुझे आश्वस्त कर रही थी। उसके आश्वासन में एक सहज-सुलभ निवेदन था जिसे मैं सिर्फ़ महसूस कर रहा था।

कुछ मनचलों का रेस्तरां में नाच-डांस जारी था। कोई सुरीला संगीत नहीं था बल्कि वातावरण को बोझिल बनाता कर्कश स्वर था जिसका कोई अर्थ नहीं होता।
इरिना फिर भीतर से आई थी। उसके हाथ में वाइन का गिलास था... उँगलियों में सिगरेट! वह कह रही थी, ''व्हाय डोंट यू हैव वाइन ऑर व्हिस्की?''
''नो! नो थैंक्स!! आय एम कंफर्टेबल! एक्चुअली आय डोंट वांट...!''
''ओह! ऐज यू विश! बट प्लीज एक्सक्यूज़ मी। आय एम... आय वांट टू बी ऑल अलोन! दिस वाइन कीप्स मी वेरी कंफर्टेबल... आई रियली इंज्वाय विद...!''
''यस! प्लीज़ कैरी ऑन...!'' मैं झटके से कह गया और सोचता रहा, अगर निकोलाई न आए तो मैं कैसे कहाँ जाऊँगा? परदेस में अकेलापन और आत्मनिर्वसन की हदें पार करता मैं सचमुच एकदम विवश था। इरिना वाइन 'इंज्वाय' कर रही थी औऱ नशे का खुमार उसके दिलोदिमाग पर छाता जा रहा था। वह अब बिल्कुल पास बैठ गई थी और कह रही थी, ''इफ यू डोंट माइंड, आई वांट योर कंपनी...!''

उसकी बात का इंकार शायद अशिष्टता होती। जिस प्रकार यहाँ कोई डांस करने के लिए 'इनवाइट' करे और आप मना कर दें तो यह यहाँ के रिवाज के विरुद्ध माना जाता है। इसलिए मैंने स्वीकृति में सिर हिलाया मानो मुझे कोई आपत्ति नहीं... पर अब मैं यहाँ से निकल जाना चाहता था... मुझे एक ऐसा दोस्त चाहिए था जो मुझे मेरे गेस्ट हाउस तक छोड़ जाए। मैं फिर 'गोस्त रेस्टोरेंट' के भीतर था। जहाँ मस्ती और मदहोशी का ऐसा आलम था कि साथ आए जोड़े एक-दूसरे को पहचानने में असमर्थ थे।

रात अपनी जवानी पर थी। किसी ने शराब छिड़का था रात के आँचल पर और इरिना धीरे-धीरे मेरी तरफ़ बढ़ रही थी। मैं सोचता हूँ कि पता नहीं, वह क्या पूछ बैठे और मैं क्या कह बैठूँ। मेरी शंका यह भी है कि क्या वह अपने होशो-हवास में है भी।
''ओह सॉरी। आय एम वेरी सॉरी!!''
''क्या आपको पता है, निकोलाई साहब अब नहीं आ रहे हैं। उन्होंने टेलीफोन पर बताया... कहीं किसी पार्टी में जा रहे हैं। मिस लुबा ने पार्टी रखी है उनके नाम। क्या आप जानना चाहेंगे कि यह लुबा कौन है?''

मैं आश्वस्त होना चाहता था कि किसी तरह मैं अपने गेस्ट हाउस तक पहुँच जाऊँ, उसके बाद मैं दुनिया-भर की लुबाओं के बारे में सुनने को तैयार हूँ।
''क्या आप मुझे मेरे गेस्ट हाउस तक छोड़ देंगी?''
''ओह! ज़रूर। निकोलाई साहब ने मुझसे कहा है कि मैं आपका ज़रूर गेस्ट हाउस तक छोड़ दूँ क्यों कि आप उनके अच्छे मित्र हो सकते हैं। आप अच्छे इंसान हो सकते हैं। खरोशे चलावेक।'' मैं पता नहीं क्यों मुस्कराया।

मैं जहाँ बैठा था वह रात का पहला प्रहर था। वह जोगिया शाम जोगन-सी कब की जा चुकी थी... पता नहीं कहाँ? शायद रात ने उसे नहीं अपनाया होगा और वह किसी बसंती हवा के साथ देर तक नाच-गा रही होगी या रात ने अपनी आगोश में भरकर उसका विरह-गान सुना होगा। जोगिया शाम की यह जोगन इरिना के रूप में मेरे सामने ज़रूर मौजूद थी जो मुझे गेस्ट हाउस छोड़ने के साथ-साथ किसी लुबा के विषय में कोई अफसाना सुनाने को तैयार हो रही थी... यहाँ रात थोड़ी थम-सी गई थी।

इरिना के हाथों में वाइन का कोई पैग नहीं था। उसकी उँगलियाँ सिगरेट के कश के साथ... वह अपनी उँगलियों से अपने माथे की लट ठीक कर रही थी। बिल्कुल सफ़ेद बाल और उसकी लटें गालों तक अठखेलियाँ करती हुई। गोस्त रेस्टोरेंट से अब लोगों का प्रस्थान शुरू हो गया था। उन सबके साथ किसी इरिना या किती लुबा का साथ था जो पता नहीं किन लम्हों तक उनके साथी हो सकते थे।''
''हमें चलना चाहिए!'' मैं इरिना की तरफ़ देखता हुआ तपाक से कह बैठा।

उसकी कार बिल्कुल नई थी और ड्राइव करते समय उसकी उँगलियाँ स्टियरिंग पर ऐसे चल रही थीं मानो वह किसी गुम हो गए गीत को सुर में ढाल रही हो। वह पूछ बैठी, ''मेरे पीने और सिगरेट के धुएँ से परेशानी हुई होगी आपको, माफ़ी चाहती हूँ। दरअसल आज ही मेरा एक पुराना प्रेमी मिल गया... दस बरस बाद... मुझे दस बरस पहले चिंबुलक की बर्फ़ीली घाटियों में छोड़ गया था... मदमस्त और मदहोश करके। जब तक आँख खुलती, पाया कि वह वहाँ नहीं था। वही मेरा पहला और आखिरी प्रेमी था... उसके बाद किसी और के साथ प्रेम नहीं किया। मेरा पता करता वहाँ तक पहुँचा। आप बाहर बैठे निकोलाई की प्रतीक्षा कर रहे थे और मैं भीतर उस बेचार पर तरस खा रही थी!''
''क्यों? तरस क्यों?''

उसकी कार अचानक रुकी। उसने मेरी ओर विस्मय से देखा, तनिक हँसी फिर बोली, ''तरस इसलिए कि वह निराश प्रेमी निकला... मुझे छोड़कर जिस मरगरिता को अपनाने चला था, वह कब की मार्टिन के प्रेम में निराश होकर आत्महत्या कर चुकी थी।
मेरे लिए यह सब महत्वपूर्ण नहीं था, न मेरी दिलचस्पी का ही विषय था... लेकिन मैं यह जानता था कि यह इरिना कहीं-न-कहीं सच्चे दिल की है और यह जिस किसी से भी प्यार करेगी, वह ज़रूर भाग्यशाली होगा।
''आप बोर तो नहीं हो रहे हैं?'' वह फिर मुस्कुराई, ''यहाँ सब चलता रहता है। आपके इंडिया की तरह यहाँ कोई कहाँ प्यार करता है? खतो-किताबत, गिला-शिकवा, रंजोगम, बात-बात पर कसमें खाना- यह सब यहाँ कहाँ?''
''निकोलाई क्यों नहीं आए?'' मैंने अनायास पूछा। हालाँकि उनके लिए भी कोई ऐसी जिज्ञासा मेरे मन में नहीं थी, पर जानना चाहता था कि ऐसी क्या मजबूरी रही होगी निकोलाई के साथ कि वह मुझसे मिलने नहीं आए और मैं लगातार उनकी प्रतीक्षा करता रहा?

''वो अपनी पुरानी गर्लफ्रेंड की पार्टी में चले गए। उन्हें पता नहीं था कि उनकी गर्लफ्रेंड आज ही कोकतोबे से आ रही है। बड़ा विश्वास है दोनों का एक-दूसरे के प्रति। दोनों शादीशुदा हैं तो क्या हुआ, फ्रेंडशिप अपनी जगह है। आप कब इंडिया जाएँगे?''
''मैं तीन दिन बाद वापस लौट जाऊँगा।''
''यहाँ से क्या लेकर जा रहे हैं?''
''जोगिया शाम... वही शाम जो मुझे यहाँ गोस्त रेस्तरां तक लाई थी। ऐसी शामें वहाँ भी होती हैं लेकिन इस जोगिया शाम की माया कुछ अलग ही है।''

उसने अपनी चुनरी मेरी तरफ़ बढ़ाई। प्रणय निवेदन की मुद्रा में कहा, ''इसे अपने पास रख लें- इसे अपने साथ भारत ले जाएँ। जोगिया शाम को सिर्फ़ जोगिया रंग का होना चाहिए, मेरी याद करके वह शर्म से लाल न हो जाए इसलिए ये चुनरी आपको दे रही हूँ... इसे सँभालकर रखिएगा।''

कार का दरवाज़ा खोलता मैं उसे अवाक् देखता रहा... सोचता रहा, अब जब कि मेरी वापसी के महज़ तीन दिन शेष हैं, अगर वह जोगिया शाम मेरे दरवाज़े पर किसी शाम ठिठकी खड़ी मिलेगी तो मैं क्या जवाब दूँगा...!

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८ दिसंबर २००८

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