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कितनी अजीब बात है, जब तक वह थी तो उसके लिए कितना महत्त्वपूर्ण होता था उसके तौर तरीकों में मीनमेख निकालना। और अब जब वह अपनी मर्जी से अपना स्वतंत्र निर्णय लेकर गई है तेा कितना उदास - उदास लगता है! जब थी तो कभी कभी ऐसा लगता था कि वह न होती तो कितना अच्छा होता और अब जब वह नहीं है तो लगता है कि जिन्दगी ही कहीं खो गई है। और उसे गए हुए अभी तीसरा ही दिन तो है। ये मानवीय रिश्ते भी अजब है।

मन की बात और है पर चंदर जानता था कि किसी न किसी को घर छोड़ना ही था। हालात ही कुछ ऐसे पैदा हो गए थे। उसने घर इसलिए नही छोड़ा कि वही तो भागीरथी को उसके पहाड़ी गाँव से यहाँ ले आया था। वैसे घर भी उसी का तो है, उसी के नाम पर है।

हालाँकि चंदर अपने मन की बात कभी अपनी जबान पर नहीं लाया पर लगता है किसी न किसी तरह भागी ने टोह पा ली थी। अपने स्वाभिमान की खातिर वह उसे छोड़ कर चली गई है। भीड़ में जाते हुए कितनी निरीह लग रही थी। पर क्या वह सचमुच निरीह है? बाकायदा घर से प्लान बना कर निकली है। घर से स्टेशन गई, टिकट लिया, अपना सामान स्टेशन में छोड़ा और रेस्तराँ में आकर उसे घर की चाभी पकड़ा कर चलती बनी। क्या यह ऐसी निरीह पहाड़ी लड़की का काम है जो जीवन में पहली बार शहर आई हो।

भागी, गाँव की थी। शहर के समाज में उसका गँवारपन कहीं उजागर हो ही जाता था जो चंदर को नागवार लगता पर खुशी भी होती। नागवार इसलिए लगता कि पत्नी के गँवारपन पर लोग क्या कहेंगे, खुशी इसलिए होती कि उसे सुधारने का एक मौका मिलता।

भागी का कहना था कि वह कुमाऊँ की नार है। जो तौर-तरीके उसे घुट्टी में मिले है। उन पर उसे गर्व है। एक पहाड़ी लड़की में पहाड़ीपन नहीं झलकेगा तो और किसमें झलकेगा?

'मैं भी तो पहाड़ी हूँ।' चंदर कहता तो भागी मुस्कुराहट ओढ़ कर कहती कि उसे इस बात पर आश्चर्य है कि चंदर कैसे पहाड़ी हो गया। आरंभ में यह मुस्कुराहट एक नवेली की होती थी जो अपने पति से अठखेली करना चाहती थी। अपने पति को समझाना चाहती थी। फिर यह मुस्कुराहट कड़ुवाहट छिपाने के लिए होती थी और बाद के दिनों में यही मुस्कुराहट कड़ुवाहट दर्शाती थी।

भागी एक सहिष्णु लड़की थी। उसने स्वयं को अपने पति की इच्छानुसार ढाल लिया था। अपने पहाड़ीपन के ऊपर उसने शहरीपन का मुलम्मा चढ़ा लिया था। पर पति था कि जैसे उसने प्रसन्न होना सीखा ही न हो। वह अपने पति से प्यार करना चाहती थी। प्यार करने लगी थी। उसके साहस, उसकी लगन और सूझबूझ की वह कायल थी। पर उन दोनों के बीच एक ऐसा ऊँट था जो किसी करवट नहीं बैठ रहा था।

वह रात चंदर पर बहुत भारी पड़ी। एक ओर हताशा दूसरी ओर भावावेश और बीच में वह टेबल-टेनिस-बाल की तरह। सोचते सोचते उसके गाल उसके आँसुओं से गीले हो गए। ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ था। सुबह पौ भी नहीं फटी थी जब वह जावेद के घर पहुँचा।

'ऐसा क्या कह दिया भागीरथी ने कि जनाब आधी रात को दौड़ते हुए चले आये?' जावेद ने पूछा।

'भागी चली गई जावेद।' चंदर ने लंबी साँस छोड़ते हुए कहा।

'चली गई! क्या मतलब है तुम्हारा?' जावेद ने पूछने के लिए पूछा। वर्ना उसे नीलोफर से मालूम हो गया था कि नौबत यहाँ तक पहुँच सकती है। फिर उसे गुस्सा आया कि उसका दोस्त इतना नासमझ है। उसने कहा, 'चुगद हो तुम! गदहे हो तुम! बेवकूफ हो तुम!'

नीलोफर चाय लेकर आई। 'सुना तुमने नीलोफर?' जावेद ने पूछा।

'मैंने सुन लिया है, जावेद। चंदर भाई, यह क्या कर दिया आपने?'

'मैंने कर दिया! तुम दोनों को गलतफहमी हो रही हे। भागी को मैंने नहीं छोड़ा है। वह स्वयं मुझे छोड़ कर गई है। वह भी गुस्से में नहीं, सोच समझ कर, बहुत शांत दिल से पूरा इंतजाम करके।'

'चंदर भाई, मुझे मालूम था कि भागी आज नहीं तो कल चली जाएगी। मैं तो दुआ माँग रही थी कि नौबत यहाँ तक न पहुँचे।' नीलोफर का गला रुँध आया।

'नीलोफर........' जावेद ने कहा।

'नहीं जावेद मुझे कहने दो,' नीलोफर ने कहा, 'चंदर भाई, भागी ने बहुत सहा है और कोई होती तो इतना सहने तक रुकती नहीं।'

'नीलोफर यह तो तुम ज्यादती कर रही हो। कसूर मेरा जरूर होगा पर, ताली एक हाथ से नहीं बजती,' चंदर ने कहा।

'एक हाथ से ताली नहीं बजती पर एक हाथ से मुक्का जरूर मारा जा सकता है। भाई साहब आज की यह माडर्न दुनियाँ भी मर्दों की ही है। अच्छे की जिम्मेदारी आप लोग खुशी-खुशी ले लेते हैं। तो बुरे के जिम्मेदार भी आप ही हैं। भले ही दोष दोनों का क्यों न हो,' नीलोफर ने कहा।

'नीलोफर ठीक कहती है चंदर,' जावेद ने कहा, 'तुम जिस दृष्टिकोण से भी देखो कसूर तुम्हारा ही है। तुमको नहीं मालूम तुम्हारी समझदारी पर मैं कितना निर्भर रहता था। पता नहीं शादी के बाद तुमको क्या हो गया है। अरे नीलोफर और मेरे बीच भी बहुत बड़े बड़े झगड़े हुए । तुम्हारी तरह मेरे भी अपने बुजुर्ग नहीं है। कई बार इच्छा होती थी कि कोई तो अपना होता जो बीच बचाव करता। तुम अपने ही मामले में इतना उलझे हुए थे कि कभी तुम से मदद माँगने का दिल ही नहीं किया। फिर हमलोगों ने वही किया जो करना चाहिए था। जो तुमको भी करना चाहिए। यानी अपने मामले खुद निबटाओ। खुद निबटाना छोड़ कर तुम शायद भागी के भरोसे बैठे रहे कि वही निबटाएगी। जो हो, भागी को जाने दे कर तो तुमने हद ही कर दी।'

सचमुच उसने ज्यादती कर दी है।

'अब तो देर हो गई है,' हार कर थकी हुई आवाज में चंदर ने कहा, 'मुझे तो यह भी नही मालूम कि वह कहाँ गई? मौनी गई होगी शायद।'

'और कहाँ जाएगी बेचारी। और कोई देर-वेर नहीं हुई है।' जावेद ने कहा।

'वह नहीं आएगी जावेद।'

'तुम जाओगे तो जरूर आयेगी। कोशिश तो करो।'

'चंदर भाई। आप आज ही चले जाइए।' नीलोफर ने कहा।

मौनी ऊँचे पहाड़ पर बसा एक छोटा गाँव है। पिथौरागढ़ से करीब 10 किलोमीटर दूर है, तथा आखिरी बस स्टॉप से करीब चार किलोमीटर की चढ़ाई पर है। चंदर का बचपन तो पिथौरागढ़ में बीता था पर गाँवों से उसे विशेष लगाव था। मौनी से थोड़ा हट कर एक रेशम का फार्म था जहाँ उसकी एक दूर के रिश्ते की चाची के यहाँ उसका आना-जाना लगा रहता था। पहली बार भागी को देखा था जब वह मौनी के वन मे घूम रहा था।
उसने देखा बड़ा हरी घास का बोझा पास में रखे एक लड़की विश्राम कर रही है और हल्की आवाज में गा रही है।
'छाना बिलौरी जन दिया बौज्यू लागलो बिलौरी को घाम .....' -हे बाबुल मुझे छाना बिलौरी मत ब्याहना क्यों कि सुना है वहाँ की धूप बड़ी तेज होती है।

अपरिचित को आते देख उसने गाना बंद किया और बोझा उठाने लगी। पीठ का बोझा बड़ा हो तो घसियारिनें बोझे के ऊपर पीठ के बल लेट जाती है। और सिर की रस्सी ठीक करके जेार लगा कर बोझे समेत उठती हैं। अगर कोई पीछे से बोझ उठाने में सहायता दे तो काम आसान हो जाता है। जब भागी घास के बोझे पर अधलेटी रस्सी ठीक कर रही थी, उसी समय चंदर वहाँ पहुँच गया। जो छवि उसने देखी उस पर वह मंत्रमुग्ध हो गया। बाल छींट के पिछौडे़ से बँधे हुए, फिर भी कुछ काले भूरे से, पिछौड़े के नीचे से निकल कर माथे पर अठखेलियाँ कर रहे थे। उसने छींट की ही अँगिया पहन रखी थी। अपनी दशा और एक अपरिचित के पास होने का भान और ऊपर से बोझा उठाने का श्रम। भागी का चेहरा बीरबहूटी हो उठा।

एक स्वस्थ-सुंदर युवती की ऐसी छटा पर चंदर को मंत्रमुग्ध होना ही था। उस एक ही छवि पर वह ऐसा उन्मादित हुआ कि उसने भागी के बारे में सब-कुछ पता लगा लिया। उसे यह जान कर अति प्रसन्नता हुई कि भागी सुशिक्षित है। इसी साल मनोविज्ञान में एम ए किया है। बस, अपने रिश्तेदारों के माध्यम से पैगाम भिजवाया और एक साल के अंदर भागी को ब्याह कर ले गया।

इस बार भी वह रेशम फार्म पर ही रुका। उसने यह भी पता लगा लिया था कि भागी मौनी में ही है, पर वह उसके घर जाने का साहस नहीं जुटा पाया। मौनी के वनों में घूमते हुए दो दिन हो गए।

एक बार भागी मिल जाती तो उसे मनाने का प्रयत्न करता। पता नहीं वह मानेगी या नहीं। उसे इस बात का भी भान हो ही गया कि ज्यादती किसकी है। वह यही सोचता रहा कि भागी उसकी है, वह उसे जिस साँचे में ढालना चाहेगा उसी में ढलेगी। ढलेगी ही नहीं वरन खुश भी रहेगी। अपने अहं में वह एकदम ही भूल गया कि भागी का भी अस्तित्व है। उसका अपना व्यक्तित्व है। वह तो भागी ही थी जो इतने दिन उसके साथ टिक गई। नीलोफर ने भी तो यही कहा था। उसे अब प्रत्यक्ष लगने लगा कि उसका अपराध अक्षम्य है। एक बार, बस एक बार किसी तरह भागी मिल जाती तो वह उससे क्षमा माँग लेता। उसके अपराध का बोझ थोड़ा तो हल्का होता।

रेशम फार्म में भी अधिक रुकना शायद न हो। आज तो चाची को भी अहसास हो गया था कि सब कुछ ठीक नहीं है। उन्होंने पूछ लिया कि वह ससुराल कब जा रहा है। दो एक दिन में भागी न मिली तो चाची को सब बताना ही पड़ेगा। बिना भागी से मिले वह वापस भी तो नहीं जा सकता।

भागी मिली उसे तीसरे दिन। उसने सुना, कोई वही छाना बिलौरी वाला गीत गा रहा है। आवाज एकदम भागी की ही थी। वह उसी ओर बढ़ा। पेड़ों की ओट से उसने देखा कि भागी हाथ में एक टहनी लिए एक छोटे टीले पर बैठी गा रही है। पास ही एक गाय चर रही है। गाने के अंत में उसने एक लंबी साँस छोड़ी और कहा, 'शादी तो तेरी मर्जी से ही हुई थी भागी, पर तुझे लग ही गया बिलौरी का घाम। नहीं सहन कर पाई तू बिलैारी की धूप की ताप!'

एक गबूचा उठा और उसके गले में अटक गया। कैसा नामर्द है वह! जिन्दगी की कड़ी धूप सहने के लिए उसने भागी को अकेले छोड़ दिया। वह ओट से निकल कर उसके सामने आ गया। भागी अचकचा कर खड़ी हो गई।

न टकटकी बँधी और न किसी से बोल फूटे। दोनों आँखें नीची किए देर तक खड़े रहे। जब चुप्पी असह्य हो गई तो चंदर ने पूछा, 'कैसी हो भागी तुम?'

'देख तो रहे हो, ठीक ही हूँ,' भागी ने कहा। और न चाहते हुए भी जोड़ दिया, 'गाय चरा रही हूँ। तुमको तो एकदम गँवार लग रही हूँगी।' चंदर पर चोट करने का मोह संवरण नही कर पाई।

चंदर क्या जवाब देता। जैसा बोया था वैसा काटना तो पड़ेगा ही। नजर उठाई तो भागी को अपनी ओर देखते पाया। 'तुम कैसे हो चंदर? तुमने अपनी यह कैसी हालत बना रखी है?' उसने पूछा।

'मैं तीन दिन से यहाँ आ रहा हूँ भागी' चंदर इतना ही कह पाया।

'मुझे मालूम है, चंदर। यह छोटा गाँव है। किसी का आना छिपा नहीं रहता। जिस दिन तुम रेशम फार्म में आए थे उसी दिन मुझे पता चल गया था।' फिर फीकी हँसी हँसते हुए उसने कहा, 'मैं मौनी में तुम्हारा इंतजार कर रही थी। मैं अनहोनी की आशा कर रही थी। भूल गई थी कि मैं ही तुमको छोड़ कर आई थी।'

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