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जो विजय कहता वहीं बातें घर में होने लगीं। नेहा अपनी बेटी को कुछ अच्छी बातें सिखाने की कोशिश करती तो विजय की रोक-टोक होने लगी। किसी भी बात में नेहा ने ज़रा-सी कुछ बात कह दी तो अजय बुरा मान जाता। हमेशा चुप रह कर सब सहन करना ही अब नेहा की ज़िंदगी बन गई। दिन ऐसे ही उलझन भरे आते और बीत जाते। आज ठीक हो जाएगा कल संभल जाएगा, ऐसा ढाँढ़स नेहा खुद को बँधाती रहती।

बेटियाँ छोटी, हर आने जाने वाले को खाना खिलाना, बाकी काम, वह भी कुछ पढ़ाई कर के आगे बढ़ना चाहती थी पर घर में किसी को, किसी के लिए समय नहीं था। पहले की राजी खुशी हँसती खेलती ज़िंदगी में धीरे-धीरे ग्रहण लगता गया। पहले अजय शाम को समय पर घर आता था, साथ में बैठ कर चाय नाश्ते के साथ प्यार भरी बातें भी होतीं। बाद में पास वाले बगीचे में दोनों सैर के लिए निकल जाते। दिन भर फ्लैट की बंद ज़िंदगी से बाहर कुछ पल खुली हवा में गुज़रते।

विजय के आने के बाद इन सभी बातों पर पाबंदी आ गई। अजय का - पैसे के साथ ही साथ नेहा और बच्चियों का समय भी बँट गया था। घर एक होटल के रूप में बदलता जा रहा था। सब अपने-अपने हिसाब से चल रहे थे। नेहा की देवर से अनबन होती रहती थी। उन में संबंध अच्छे होने के बजाय बिगड़ते ही जा रहे थे।

इस साल जब अजय-नेहा की शादी की सालगिरह आई तो बड़ी अजीब तरह की घटना घटी। हमेशा विजय को साथ ले कर जाने वाले अजय-नेहा इस सालगिरह के दिन सिर्फ़ बच्चों को साथ ले कर कहीं घूमने जाना चाहते थे। अजय इस बात को लेकर नेहा से सहमत तो नहीं था, पर नेहा का दिल रखने के लिए उसने हामी भरी थी। इस साल अनायास छुट्टी का दिन भी था। निशा हर साल की तरह सुबह ही मुबारकबाद देने चली गई। उसने निशा को शाम के प्रोग्राम के बारे में बताया। बड़ी खुशी से सब बता रही थी। सुन कर निशा ने भी तसल्ली कर ली।

शाम को नेहा ने बेटियों को तैयार कर दिया, खुद भी अच्छे कपड़े गहनों से सज-सँवर कर तैयार हो गई और कहीं बाहर गए अजय की राह देखने लगी। जब अजय आया तो नेहा को देखता ही रह गया और मन ही मन मुस्कुराता हुआ खुद भी तैयार होने चला गया।

कभी न मिलने वाला मौका मिला है इस खुशी में बाहर निकल ही रहे थे तो विजय ने टोक दिया। इतनी देर से ताकता हुआ विजय जैसे मौके के इंतज़ार में ही था।
"सब लोग कहाँ जा रहे हो, मैं भी साथ चलूँगा।" उसके बर्ताव से ऐसा महसूस हो रहा था कि आज के दिन का उसे कुछ अंदाज़ा ही नहीं है। नेहा अजय की तरफ़ देखने लगी इस उम्मीद से कि वह जवाब में कुछ कहेगा। लेकिन उसने अपनी चुप्पी बनाए रखी। दिल पर पत्थर रख कर ही सही, पर नेहा को कहना ही पड़ा कि आज के दिन सिर्फ़ हम ही घूमने जाना चाहते हैं। विजय को साथ न चलने की बात जैसे ही नेहा ने अपनी मुँह से निकाली, अजय का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। अजय ने बिना सोचे समझे नेहा को ही भला बुरा कहा। हँसी खुशी का माहौल एक मिनट में गम़गीन हो गया।

बेटियाँ सहम गईं। नेहा कमरे में जा कर रोने लगी। अपने हक की शाम अपने ढंग से मनाने की उम्मीदों पर पानी फिरा और नेहा को उस रात भूखे पेट सोना पड़ा। अफ़सोस तो इस बात का था कि इस किस्से का अजय पर कोई असर नहीं था, दूसरी तरफ़ विजय को अपनी जीत पर बड़ा नाज़। दोनों भाइयों ने किसी की चिंता किए बिना खाना भी खा ही लिया था। दूसरे दिन जब निशा ने फ़ोन किया तब रोती हुई नेहा ने ये सारी कहानी उसे सुनाई।

नेहा इस तरह ऊब गई कि उसने कुछ दिन के लिए भारत घूम आने का फ़ैसला किया। वह छह साल बाद भारत आई थी। सभी ने उसका खुले दिल से स्वागत किया। उसके पिता जी अभी भी ज़रा नाराज़ थे लेकिन माँ का दिल पिघल ही गया और बेटी को गले लगा लिया। भारत में पाँच-छह दिन गुज़ार कर वह हँसी खुशी वापस आई। लेकिन वापस आने पर निशा ने देखा कि वह कुछ सहमी-सहमी-सी लग रही है। काफ़ी कमज़ोर भी लग रही थी। शायद वहम होगा सोच कर निशा ने बात छोड़ दी।

...

हमेशा अपनी दीदी से खुलकर बात करने वाली, नेहा ने निशा को कुछ नहीं बताया। वापस आ कर एक हफ़्ता भी नहीं हुआ था कि अब यह फ़ोन। जितनी अधूरी बातें थीं वह निशा आज तक पूरी तरह जान नहीं पाई थी। खुल कर यदि नेहा बताती तो ही जान पाती न! भारत से लौटने के बाद सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। क्या फिर कोई झगड़ा हो गया? सोच में ही डूबी निशा नेहा के घर पहुँच गई थी। मिली तो रो धो कर बदहवास हो चुकी थी। कुछ असमंजस की स्थिति में थी। कहने लगी कि किसी बिजिनेस के सिलसिले में एक हफ़्ते के लिए अपनी दीदी के पास जा रहीं हूँ। अपनी सात-आठ महीने की बेटी को भी छोड़ कर जाना चाहती थी।

निशा को लगा वह घर की डावाँडोल आर्थिक स्थिति से घबराई हुई है। और बहन के साथ मिल कर कुछ चादरें या सूट लाकर इस देश में बेचना चाहती है तो यह कोई बुरी बात नहीं। छोटी बेटी को छोड़ कर जाना मुश्किल था पर वह निशा से घुली मिली थी और अगर नेहा अपने कार्यक्रम के हिसाब से तीन दिन में वापस आ ही जाएगी लौटकर। इसलिए निशा ने भी बच्ची की देखभाल से कोई परेशानी नहीं दिखाई। निशा ने समझाया वह दिल छोटा न करें, वो अजय को समझा देगी और बच्चों का तीन दिन तक खयाल रख लेगी। विदेशों में ऐसे वक्त बेवक्त, बुजुर्गो के निधन या परीक्षाओं के समय भारत जाते समय विश्वास के साथ पड़ोसियों के घर बच्चों को छोड़ कर जाते ही रहते हैं।

अजय नेहा को भेजने पर राज़ी नहीं था, निशा के समझा-बुझाने पर ही अजय ने उसे भेजा। उस समय निशा ज़रा भी अंदाज़ा नहीं लगा पाई कि हमेशा आधा सच बताने वाली नेहा ने इस बार भी अपने दिल का आधा रहस्य निशा से छिपा ही लिया। जब तीसरे दिन नेहा नहीं लौटी तो उसका जाना, सब शक की नज़र से देखने लगे। लोगों ने बातें बनानी शुरू कर दी। ऐसे छोटी-छोटी बेटियों को छोड़ कर जाने वाली माँ के प्यार पर सबको शक होने लगा। शुरू में सब उसकी वापसी का पता करते रहे। तीन दिन के हफ़्ते और हफ्तों के महीने बीत गए पर नेहा वापस नहीं लौटी। लौटे तो सिर्फ़ तलाक़ के कागज़ाद।

कुछ दिनों तक बातें होती रही, अब वह चर्चा का विषय नहीं रहा। बाद में अजय भी बच्चों को ले कर उसके पीछे गया। सुनने में आया कि उनकी मुलाकात भी हो गई। कहते हैं, उसने बच्चों को रखने या सँभालने से मना कर दिया है। अजय और नेहा के झगड़े में बच्चों का क्या कसूर? वे दोनों भी बच्चों को बोझ समझ रहें है।

कैसी है उन मासूमों की किस्मत? अजय फ्लैट बदल कर दूसरी बिल्डिंग में चला गया। आगे क्या हुआ, कुछ पता नहीं चला। आखिर बेटियाँ किसके पास हैं, यह भी पता नहीं। किसी का कुछ नहीं बिगड़ा, सिर्फ़ किस्मत ने उन मासूम ज़िंदगियों से असली माँ बाप का प्यार छीन लिया जो उनका जन्मसिद्ध अधिकार था।

अगर ये भारत में होते तो क्या बुजुर्ग इस हँसते खेलते परिवार को इस तरह बिखर जाने देते? क्या अलग होकर नेहा उस खुशी की तलाश कर पाएगी जिसके लिए पहले पिता और फिर अब पति का घर छोड़ गई है? क्या विजय के प्रति अजय के उत्तरदायित्व नेहा से ज़्यादा था जिसके लिए वह बराबर नेहा का भावुक मन दुखाता रहा? क्या भारतीय पुरुष पत्नी के त्याग को हमेशा उसका कर्तव्य ही समझते रहेंगे? उन मासूम बच्चों की क्या ग़लती जिन्हें माँ बाप जन्म देने के बाद ठुकराने पर मजबूर है? नेहा ने इतनी कम उम्र में अपनी ज़िम्मेदारियाँ अपेक्षा से कहीं ज़्यादा अच्छी निभाई थीं, फिर कहाँ पर ग़लती हो गई?

क्या प्रेम विवाह में शादी के बाद प्रेम या फिर आगे की ज़िम्मेदारियाँ कहीं मायने नहीं रखती? अविश्वास की कच्ची नींव पर टिका संसार क्या ऐसे उजड़ता है। शायद अजय सबकुछ भूल कर जल्दी ही व्यवस्थित हो जाएगा। नेहा भी मेहनती और समझदार है। उसे भी अपने जीवन में कोई न कोई राह मिल ही जाएगी पर इन बच्चों का क्या होगा जिन्होंने बिना गल़ती सब कुछ खोया ही खोया है।

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१५ मार्च २००१

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