मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


कहानियाँ 

समकालीन हिंदी कहनियों के स्तंभ मे इस सप्ताह प्रस्तुत है
यू. एस. ए. से इला प्रसाद की कहानी—''ई-मेल''


आज अचानक, पहली बार, जय का मेल अपने मेलबॉक्स में पा कर वह मुस्कराई। तो जय ने भी अब ई-मेल करना सीख लिया! ज़रूर वंदना ने ही सिखाया होगा। अच्छा है। इस तरह वह जय से वंदना की भी ख़बर लेती रहेगी। कुछ इस तरह परेशान है लड़की कि मेल ही नहीं लिखती। पता नहीं उसकी शादी की बात कितनी आगे बढ़ी। जय बता सकेगा। वह भी जय को कुछ पते भेज सकेगी।
उसने एक सरसरी निगाह से सारे पते पढ़ डाले। यह उसकी पुरानी आदत है। पहले सारे पते पढ़ेगी, फिर तय करेगी कि किस क्रम में उसे अपने ई-पत्र पढ़ने हैं। पढ़ने हैं या बिना पढ़े मिटा देने है। लेकिन आज तो जय का मेल है। पहले उसे देख ले।
मेल खोला तो बिना किसी भूमिका, संबोधन के एक वाक्य था, 'मेरी कविता' और नीचे एक छोटी-सी कविता की कुछ पंक्तियाँ -
एक आकाश था मेरा विश्वास
निर्दोष, खूबसूरत
अछोर, आधारहीन
मुझ ही को छलता रहा।
उसे कुछ अजीब लगा। जय कविताएँ लिखता है यह उसे नहीं मालूम था। न वंदना ने, न ही जय ने उसे कभी बतलाया। पूरे महीने भर वह बनारस में वंदना के घर पर रही थी।

पृष्ठ : . . .

आगे—

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।