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क्या पता मिशेल भी सोचती हो जैसे पपा सोचते हैं, क्या पता मिशेल में भी कर्नल साहब उग आए हों सोचती हो मेरे बच्चों को कुछ हो गया तो, माइकेल तुम्हारा इतना पतन, मुझसे तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं। वह एकाएक चिल्ला पड़ा- नहीं. . .नहीं मिशेल तुम भी मुझे नहीं छोड़ना मैं क्या करूँगा।'
माइकेल फ़ोन की घंटी का इंतज़ार करता रहा। उसका सारा शरीर कान बन गया, पर वह फ़ोन की घंटी, वह आवाज़ माइकेल मैं हूँ न उसे न सुनाई दी। मिशेल तुम भी- मैं तुम्हारा जुडवाँ भाई हूँ, तुम्हें मेरी याद न आई, एक फ़ोन भी नहीं। अगर तुम्हें वैसा कुछ होता तो मैं तुम्हारे पास रहता, तुम्हें हर तरह से सहारा देता। नहीं, नहीं तुम्हारे बच्चों के पास तो मैं खुद भी नहीं आता। मैं उन्हें दूर से ही देख कर तसल्ली कर लेता। पर मिशेल तुम, त़ुम एक फ़ोन भी न कर सकीं। तुम भी पपा की तरह. . ,

माइकेल ने अपने कमरे पर एक निगाह डाली, अब मैं क्या करूँ? यदि मैं बता दूँ तो मेरी नौकरी भी जाएगी, मकान मालिक से कहने पर कमरा भी छोड़ना पड़ेगा, तब मैं इस बीमार शरीर को लेकर कहाँ जाऊँगा, जिस म्यूज़िक ग्रुप से जु़डा हूँ वह भी छोड़ना ही होगा। माइकेल ने कस कर अपना सर पकड़ लिया, और आँखें बंद कर लीं।
इसी म्यूज़िक ग्रुप के साथ वह यूगोस्लाविया गया था। और एक होटल में पार्ट-टाइम संगीत के प्रोग्राम देता था। एक बार जब फिर मौका मिला इजिप्ट जाने का तो उसका मन खुशी से भर गया। वहीं उसकी मुलाक़ात शीलन से हुई। तब लगा था जिंद़गी में रंग ही रंग हैं, उस दिन आकाश में कितने सितारे चमके थे, और कितनी बिजलियाँ उसके तन-मन में।

सुबह उठा तो खूब बारिश हो रही थी, माइकेल को लगा यह न रुकने वाला पानी है। क्या करे। इसी परेशानी में उलझा हुआ था कि सैली का ख़याल आया। माँ-बाप बहन शीलन, सब रिश्ते पानी में गले हुए काग़ज़ की तरह बेकार हो गए फिर सैली। एक बार वहीं जाना पड़ेगा। रिश्ते फिर उसी चोट पर हाथ पड़ गया। पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था। उसने सोचा तब तक एक कप चाय पी कर देखूँ। धीरे-धीरे उठ कर चाय बनाई, लेकर बैठा रहा पर पीने का मन नहीं हुआ। कप लेकर सिंक में उलट दिया। गहरे रंग की चाय सिंक में फैल गई, और तुरंत ही बह गई। माइकेल को लगा उसका जीवन भी ऐसा ही है।

बड़ी तकलीफ़ से उठा, कपड़े पहने और सारी ताक़त लगा कर बरसते पानी में ही निकल पड़ा। सैली का घर क़रीब ही था, माइकेल पैरों को घसीटता हुआ चलता रहा, मन की अजीब हालत थी, शरीर में कोई ताक़त नहीं बची थी, मन भी अपनी उन्हीं रिश्तों के लिए छटपटाता था, मनुहार करता था, और उनकी निर्जीवता पर जूझते-जूझते थक गया था। सैली के घर के पास पहुँच कर जैसे-तैसे बेल बजा कर वहीं दरवाज़े पर बैठा भीगता रहा। सैली ने घंटी सुनी तो पर उन्हें लगा इतनी सुबह-सुबह कौन होगा। उन्हें आने में थोड़ी देर हुई, दरवाज़ा खोला तो एकदम सकते में आ गईं, देखा अर्धबेहोशी की हालत में माइकेल पड़ा है। माथे पर हाथ रक्खा, बुरी तरह जल रहा था, पुकारा माइकेल माइकेल, उसने बड़ी मुश्किल से आँखें खोली और सैली का सहारा लेकर अंदर आया और बिस्तर पर गिर गया।

सैली अंदर से सूखा तौलिया लाईं, बदन पोछ कर अंदर किचन में चली गईं, यह सोचती हुई कि माइकेल को कुछ समय के लिए छोड़ दें। थोड़ी देर बाद चाय लाईं, सहारा देकर पिलाया, फिर पूछा, "माइकेल क्या बात है। तुम्हारी तबीयत कैसी है?" माइकेल अब तक शांत हो गया था, उसने धीरे-धीरे सारी बात सैली को बता दी। सैली कुछ देर सोचती रहीं फिर बोलीं, "घबड़ाओ नहीं माइकेल, ज़रा एक दो हफ्ते का समय बीत जाने दो, लेकिन अभी सबसे ज़्यादा ज़रूरी है तुम्हारा इलाज शुरू होना। तुम डाक्टर से समय लो, देखो वह क्या कहता है।" माइकेल सूनी-सूनी उदास आँखों से देखता रहा जैसे जीवन का अर्थ खो गया हो। सैली तुमने अपने लिए क्यों नहीं सोचा। प्रेम के इस छोटे से शब्द में इतनी पीड़ा क्यों है। शायद इसीलिए कि यह बड़ी उम्मीदें रखता है। माँ-बाप बहन सब ने उससे अपेक्षा की थी कि मैं उनकी बनाई लाइन पर चलूँ तभी अच्छा हूँ, इस अच्छे की परिभाषा क्या है। बिना अच्छे बुरे की खोज किए क्या किसी की तकलीफ़ नहीं दूर की जा सकती। वह जो कुछ है जैसा है वही उसका स्वत्व है। उसे वह कैसे छोड़ सकता है, कुछ दिनों तक वह एक बौद्ध धर्म के मठ में जाता था, मन की शांति उसे वहीं मिली।

कितनी ऊँची बात कि बीमार से उसकी जात मत पूछो उसका इलाज करो। नमे सो अत्ता। अपना दीप स्वयं बनो। पर मेरी बीमारी का सुनकर सबने सारे रिश्ते तोड़ दिए। उस बहन तक मेरी पीड़ा न पहुँची जो मेरे भूखे होने पर भूखी होती थी जो मेरे सोने पर सोती थी।
यह सब सोचते-सोचते उसे कुछ शांति मिली। सैली आई देखने। उसे सोता देख एक कंबल और उढ़ा कर चली गईं, सोचा खाने के लिए जगाना ठीक नहीं है, सोता रहे तो थोड़ा आराम मिलेगा। स्वयं कुछ खा पी कर सो गईं।
सैली के पति नाइजीरिया के थे, केंब्रिज में पढ़ाते थे। सैली वहीं दूसरे विभाग में रिसर्च कर रहीं थीं। अकसर किसी न किसी पार्टी में मुलाक़ात होती रहती थी। मुलाक़ात धीरे-धीरे मित्रता में बदलती गई। फिर कुछ दिन बाद दोनों ने शादी कर ली। सैली बड़े सुख से रह रहीं थीं, आधी दुनिया घूम-घूम कर दोनों सारे जहाँ की खुशी बटोरते। एक छोटा-सा घर बसा लिया था। उसमें उनका प्यार भरा संसार आराम से चल रहा था।

फिर एक बेटा हुआ, सैली की रिसर्च पूरी हो चुकी थी। वह बेटे और पति के साथ इतनी रम गई थीं कि नौकरी करने का मन नहीं हुआ। देखते-देखते जिंद़गी के बारह साल पंख लगा कर उड़ गए।
अचानक उनके पति की तबियत ख़राब हुई, वे हस्पताल में भरती हुए, सारे टेस्ट हुए, पता चला बल्ड कैंसर है, लास्ट स्टेज है, कुछ किया नहीं जा सकता। एक हफ्ते का और साथ दे कर चले गए। सैली क्या करें कुछ समझ ही न पाईं। ज़िंदगी ऐसा धोखा देगी, इस तरह सब कुछ उजड़ जाएगा। जब कुछ सँभली तो मन को समझाया और बेटे के लिए ही सही एक बार अपनी रिसर्च डिग्री को निकाला, देखा फिर उसे जहाँ थी वहीं रख दिया। सोचा क्या होगा जब जीवन में कोई रस ही नहीं रहा।

कुछ भी करने के लिए ईवनिंग क्लास में फ्रेंच पढ़ाने लगीं। जीवन के चार साल बीते, लेकिन अभी भाग्य ने उनसे अपना हिसाब पूरा नहीं किया था। जवान बेटा कार एक्सीडेंट में धोखा दे कर चला गया। अब तो सिवाय किरचें बटोरने के उनके पास कुछ भी न बचा था। निगाहों में एक ऐसा निर्जीव सूनापन भर गया था जो मरी हुई चिड़िया की आँखों में होता है। कहीं भी उन्हें ज़िंदगी की गर्माहट नहीं मिली। जीवन में पहली बार चर्च गईं, लेकिन वहाँ भी शांति नहीं मिली। कभी अस्पताल जातीं, कभी बेसहारा मरीज़ो को फूलों के गुच्छे पकड़ा देतीं, उनके चेहरे पर खुशी देख कर एक ठंडी साँस लेती आगे बढ़ जातीं, कभी बच्चों को चॉकलेट बाँट आतीं।

फ्रेंच क्लास लेतीं शाम को घर आकर सो जातीं, कुछ दिनों तक उनके पति के मित्रों ने हालचाल पूछा पर वह खुद ही किसी का साथ न दे सकीं। पेंशन का पैसा, रहने को घर, इतना सब कुछ था कि उसकी चिंता करने की ज़रूरत ही न थी। अकसर पति और बेटे की फ़ोटो निकाल कर देखतीं, आँसू पोछते हुए कहतीं अभी कुछ और भी है क्या खोने के लिए।
और तब फ्रेंच क्लास में माइकेल आया था पढ़ने। ऐसा साम्य लगा जैसे उनका बेटा ही सामने खड़ा हो। पहले ही दिन कुछ न कह सकीं, अपने को संयत करने की कोशिश में लगी रहीं। कोर्स ख़तम होते-होते माइकेल से उनके रिश्ते एक अजीब-सी मज़बूती से बढ़ते रहे। माइकेल कभी-कभी उनके घर जाता, दोनों खाना बनाते, वह अपने बेटे के पसंद की म्यूज़िक लगा देती, कभी दूर-दूर घूमने निकल जाते। सैली को जीने का बहाना मिल गया। इसी सिलसिले में माइकेल की माँ भी दो चार बार सैली से मिलने आ चुकी थीं।

माइकेल के घर की टेनेन्सी ख़तम हो रही थी, सैली ने कहा, "माइकेल तुम्हारे रहने के लिए मेरे घर में बहुत जगह है।" दो साल माइकेल वहीं रहा उसके बाद उस म्यूज़िक ग्रुप के साथ इजिप्ट गया, लौटने पर एक कमरा किराए पर लेकर रहने लगा। लेकिन सैली के पास बराबर आता रहता, सैली को ऐसा लगता जैसे माइकेल किसी तरह की उलझन में है।
और आज माइकेल उनके पास अपना दर्द लेकर आया है, परिवार से तिरस्कृत। माइकेल का वज़न दिन पर दिन घट रहा था। ए.ज़ी.टी. दवा से कुछ फ़ायदा तो हुआ पर कमज़ोर बहुत हो गया था। एडस के विषय में फैली धारणा को ग़लत समझतीं थीं।

पर वह करें क्या? माइकेल की माँ आना चाहतीं थीं लेकिन कर्नल साहब और मिशेल उन्हें आने नहीं देते। शुरू-शुरू में एक-दो बार ऐनी छिपा कर आईं थीं, जाने कैसे कर्नल साहब को शक हो गया, तो उन्होंने कार के माइलेज गिनने शुरू किए और समझ गए कि ऐनी कहाँ जाती हैं। फिर तो क़यामत आने में कोई कसर नहीं रही।
आज माइकेल का जन्मदिन था, सुबह से ही उदास बैठा था, सैली एक कप चाय लेकर आईं और विश किया, "हैपी बर्थडे माइकेल," वह सूनी-सूनी निगाहों से देखता रहा। वह दूसरे कमरे में चलीं गईं थीं। वह उठा और गुस्से से काँपते थरथराते फ़ोन उठा कर खिड़की से बाहर फेंक दिया, विवशता में आँसू बह निकले। "मेरा कोई नहीं है, कोई नहीं है," कहते हुए लहूलुहान कुर्सी पर बैठ गया।

फिर दौड़ कर गया, फ़ोन उठा लाया, क्या पता ममा को देर हो गई हो, क्या मालूम मिशेल ही फ़ोन करे, आज मेरा जन्मदिन है। मिशेल के बच्चे ही अंकल-अंकल फ़ोन पर पुकार लें। माइकेल के कानों में आवाज़ें गूँजने लगीं। वह अपनी हालत समझ रहा था। सैली आवाज़ सुन कर दौड़ी आईं, माइकेल की दशा देख कर एकदम चुप हो गईं।
दूसरे कमरे में जाकर जी. पी. को फ़ोन किया। थोड़ी देर में ऐंबुलेंस आ गई। माइकेल समझ गया अब जाना है, जाना ही नहीं शायद अब लौटना नहीं होगा। सैली पास में खड़ी थीं उनसे लिपट गया, गला रुँध गया, जाते-जाते ललचाई आँखों से फ़ोन की तरफ़ देखा, सहारा लेकर ऐंबूलेंस में बैठ गया।

सैली थोड़ी देर बाद टूथ ब्रश, रात के कपड़े, बर्थ डे केक तथा एक छोटा लकड़ी का बॉक्स जो माइकेल को बेहद प्रिय था ले कर अस्पताल गईं। माइकेल सोया था। थकावट तथा दवा का असर, चेहरे पर शांति फैली थी। गईं, डाक्टर से बात की डाक्टर ने कहा, "इच्छा शक्ति ख़तम हो रही है शायद ही सुबह तक. . ." कहकर चुप हो गए। सैली स्वयं टूट रहीं थी। किसी तरह हिम्मत बाँध कर ऐनी को फ़ोन किया। संयोग से ऐनी ने फ़ोन उठाया,
"ऐनी, मेरी बात ध्यान से सुनो फ़ॉर गॉडस सेक ऐनी, कम ऐंड सी योर डाइंग सन। क्या कर लेंगे कर्नल साहब तुम्हारा, माइकेल के कान तुम्हारी आवाज़ सुनने के लिए व्याकुल हैं। जब दवा का असर कम होता है वह व्याकुल निगाहों से फ़ोन की तरफ़ देखता रहता है। वह शायद ही आज की रात निकाल सके।" इसी समय कर्नल साहब आ गए, ऐनी एक झटके से उठीं बिना कुछ कहे सुने गाड़ी बाहर निकाली और तेज़ी से चलीं गईं।

वार्ड नं. सोलह रूम नं. अठारह, एक बार दरवाज़े पर ठिठक गईं। कहीं माइकेल घबराहट में दरवाज़ा खोला अंदर आईं, 'मेरा बेटा' कह कर माइकेल से लिपट गईं। सैली ने सहारा दिया, बोली, "देर हो. . ." अपने अंदर उठते हुए बवंडर को सम्हालते हुए सैली ने लकड़ी का बॉक्स ऐनी को थमा दिया। ऐनी पहले एकटक देखती रहीं फिर धीरे-धीरे हाथों से सम्हालते हुए नरमी से बॉक्स को सहलाती रहीं।

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१ दिसंबर २००५

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