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पाचवाँ भाग

कोशिश तो की थी, मगर इसी ख़्याल से छोड़ दी कि मेरा गाड़ी चलाना सिर्फ मेरे लिए ही नहीं, सड़क पर दौड़ती हुई दूसरी गाड़ियों के लिए भी ख़तरे से खाली नहीं! मैं पेसेंजर सीट पर बैठी हुई सामने आती गाड़ियों से आँख नहीं मिलाती।
"तुम रास्तों के नाम तक याद नहीं रख पाती।" राजन ने मना करते हुए कहा," कहीं वन वे पर ग़लत मुड़ गईं तो कहोगी कि मैं तो सीधी ही जा रही थी, पता नहीं इस सड़क ने अचानक क्यों मोड़ ले लिया।"
न्यूयार्क के व्यापारिक-रिहायशी मैनहैटन शहर से करीब तीस मील दूर लांग आईलैंड की नितांत रिहायशी सबर्ब में घर है हमारा। घने पेड़ों की तरतीब वार कतारों के साथ पैदल चलने वाली पक्की पगडंडियाँ और भारी वाहनों के लिए वर्जित चौड़ी सपाट सड़कें। हरियाली दूब भरे लान और तरह तरह के फूल बेलों के हल्के फुल्के झिल्पिटों वाले घरों की एक दूर तक फैली बस्ती में बड़ी सी झोंपड़ी दिखने जैसे कोने वाले घर में रहते हैं हम। शान्तनु की शादी से हफ्तों पहले हमारे घर वाला सड़क का कोना चहल पहली और रौनकीला हो गया। सड़क पार के ज्यूईश सिनेगौग में आते जाते लोग कभी रुक कर पूछते कि क्या हो रहा है और कभी मुस्कुरा कर कहते, "हम तो सिनेगौग की खिड़की से झांक कर देख लेते हैं कि आज और कितनी खूबसूरत लिबासों वाली महिलाएं यहाँ आएंगी।"

इस ज़्यादातर ज्यूईश इलाके में हमारे घर से पाँच-दस-बीस मिनट की ड्राइव के दायरे में कोई आठ-दस हिन्दुस्तानी परिवार हैं जिनमें से हमीं को पहला शादी वाला घर बनना नसीब हुआ। बस अचानक हम बीस-पच्चीस हिन्दुस्तानी एक गुथी गुथाई बिरादरी बन गए। बाहर से आने वाले मित्र संबंधियों के लिए हमारे बिरादरों ने अपने घर, गाड़ियाँ तो मुहईया की हीं, हो हल्ला करने में भी कोई कसर न छोड़ी। हरियाले बन्ने को दुआएं देने के लिए कई बार ढोलक बजी। संगीत, बारात, रिसेप्शन के लिए ज़ेवर-कपड़ों का मुआइना हुआ। घर को सजाने के लिए हिदायतों और बन्दनवारों की बौछार हुई। और नाच-गाना? खूब जम कर हुआ।

घर में फर्शी कालीन पर बैठ ढोलक बजाती औरतों ने बड़े-छोटे मित्र-संबंधियों को नचाया। सड़क पर बारातियों की बस के आगे चलते हुए ढोलकिये ने गुलाबी पगड़ियाँ बाँधे मर्दों और रेशमी साड़ी लपेटी औरतों को नचाया। न्यूजर्सी में हयात होटल के मुख्य द्वार से सौ गज की दूरी पर जोड़ा-जामा पहने सेहरा बाँधे दूल्हा को दूर दूर से आए उसके दोस्तों ने नचाया। फेरों के बाद दूल्हा-दुल्हन को एक साथ नचाने के लिए बजता हुए बैंड जब डिस्को छोड़ कर पंजाबी भांगड़े के बोल बोला तो कोई भी मेहमान डांस हाल के चौड़े फर्श पर उतरने से नहीं रुका। फिर एकदम सब के सब गोल दायरा बांध कर सिर्फ तालियाँ बजाते दिखाई दिए। फर्श पर सिर्फ एक ही नाचने वाला – अपने सुडौल कंधों पर बैठी बासंती लहंगे, चोली, चुनरी में खिलखिल कर हंसती हुई लीना को संभाले हुए मनु! बैंड का सुर ऊँचा होता गया और गाने के बोल सभी को याद हो गए। अब बैंड न भी बजता और न ही गाना तो भी गाना-नाचना चलता ही रहता। चलता ही रहा।
"इस मुंडा पंजाबी, ओदे नैन शराबी
ओहनू लव यू लव यू आक्खदी
दिल लै गई कुड़ी गुजरात दी।"
मुझे न गाना आता है न नाचना। फिर भी हमारी पंजाबी बिरादरी ने "रौनक तां लगदी जे नचे मुंडे दी मां" गा गाकर मुझसे कई बार लटका-झटके लगवा ही लिए। लीना के गुजराती माता-पिता यहाँ वहाँ घूमते हुए मेहमानों की आवभगत में लगे हुए थे। लाल बनारसी साड़ी में लीना की मां अपने दुबले पतले शरीर को समेटे मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर एक तरफ ले गई,
"आप सब लोग ठीक हैं न?" उनका गला रुंधा हुआ था और आँखें भर आईं थीं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ उस शाम।
"आप क्यों फिक्र कर रही हैं? प्लीज़ हम सब बिल्कुल मज़े में हैं। आप इस तरह..." मैं कोई मुनासिब शब्द ढूंढ रही थी कि मेरी दुनियादार, गठीली, सुन्दर राजस्थानी दोस्त हंसा ने मेरी पीठ पर हल्की सी धौल जमाते हुए ज़ोर से कहा, "तू चुप रह। उनका ऐसा कहना बनता है। और तेरा उनका धन्यवाद देना। ऐसी ही रीत है।"

ठीक ही कहती है हँसा। कहीं कुछ भी नहीं बदला है। कोई पच्चीस साल पहले मेरी छोटी मौसी की विदाई से पहले मेरी नानी ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें अपने नए मौसा की मां के पास ले चलूं। ऐसी ही रुंधी आवाज़ में कुछ ऐसा ही कहा था नानी नें अपनी समधिन को जिन्होंने जवाब में मेरी मौसी को बहू रूप में पाने पर अपने आप को धन्य बताया था। मैं भी लीना की मां से कुछ ऐसा ही कहने वाली थी कि लीना के पापा वहाँ चले आए और बोले,
"मेरे साथ चलो आप।" उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया, "मैं अपने बड़े साले को दिखाना चाहता हूँ कि आपके हाथों में मेंहदी कितनी गाढ़ी रची है। वह कहता है कि ऐसी मेंहदी उसी को चढ़ती है जिसका पति उसे बहुत प्यार करे।"
सफेद रूपहली साड़ी और ढीले बंधे जूड़े में, बिल्कुल हल्के से ज़ेवर पहने हुए मेरे शरीर पर सिर्फ हाथ और पाँव ही चटक रंगीन मेहंदी के फूल बूटों से सजे हुए थे। घर की औरतों ने बड़ा इसरार किया था कि मैं सिर्फ चेहरे के मेकअप और बालों के स्टाइल को त्योहारी बनाने के लिए किसी ब्यूटी सेलून में जाऊँ। शान्तनु ने सुन लिया और अलग बुला कर सख़्त ऐतराज़ जताया।

"अपनी शादी के वक्त मुझे अपने साथ ली गई तस्वीर में अपनी मां चाहिए, कोई अजनबी नहीं।"
लीना के साथ शादी के बाद शान्तनु कुछ ज़्यादा करीब हो गया हमारे। पहले भागता दौड़ता अकेला आता था, अब दोनों एकसाथ आने लगे। पहले कभी कभार आता था वो, अब दोनों अक्सर टपक पड़ते हैं। पहले आते-जाते हाय-बाय कहता दूर से हाथ हिला देता था अब आने के बाद और जाने से पहले बाँह फैला कर हल्का घेरा बांधने लगा है। लीना तो खुल कर गले मिल लेती है मुझसे और राजन को भी हालांकि उनके गले तक नहीं पहुँच पाती।
उस दिन शान्तनु अकेला ही आया था और स्टडी में मेरे साथ बैठ कर मुझे प्रिंटर से टैस्ट शीट निकालना सिखा रहा था।
"मौम, मुझे कहना पड़ेगा कि पापा और आप दोनों ही लीना को बहुत आदर देते हैं।"
"तुम्हारे मुंह से ऐसा सुनकर बहुत अच्छा लगा, बेटा।"
"मेरे सगाई करने से पहले भी वह आपको अच्छी लगी थी, मौम?"
"हाँ, बिल्कुल लगी थी।" मैंने कहा "तुम्हारे पापा और मैं अब मनु को लेकर काफी परेशान हैं।"
"क्यों क्या हुआ मनु को?"
"होना क्या है? नहीं हो रहा इसीलिए फिक्र में हैं हम। तुमसे पाँच साल बड़ा है। तुम्हारी शादी को पाँच बरस होने को आए। वो अभी तक लीसा को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुँचा।"
"आपने पूछा है उससे?"
"कई बार कोशिश की है, यह बात उठाते ही एक दीवार सी खड़ी हो जाती है हमारे बीच।"
"पापा और आप क्या चाहते हैं?"
"यही कि वो दोनों शादी कर लें। न भी करें तो मैं नहीं चाहती कि अलग हो जाएँ। लीसा को दुख होगा ही, मनु भी देर तक अलगाव से उबर नहीं पाएगा। मैं उसे भी तुम्हारी तरह खुश देखना चाहती हूँ।"
"आपने कभी मनु से कहा है कि लीसा आपको पसंद है?"
"इतने बरसों से तकरीबन हमेशा ही मनु के साथ घर आती है वो। बाहर भी तुम सबके साथ इतनी बार मिले हैं उसे। मनु को दिखता नहीं क्या कि हम लीसा को भी वैसा ही मान-सम्मान देते हैं जैसा लीना को?"
"यह आप मुझे कह रहीं हैं, मौम। मनु से भी कह दीजिए। वरना उसके लिए कोई निर्णय लेना मुश्किल होगा।"
मैंने राजन को सब बता दिया।
"तुम कहो तो मनु की तरफ से मैं लीसा के आगे शादी का प्रस्ताव रख दूँ।" राजन बोले।
"जी नहीं!" मैं चिढ़ उठी, "उसे यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आएगी।"
"ठीक है। अगली बार जब वो दोनों घर आएँ तो तुम लीसा से अकेले में पूछ लेना कि बेटी, तेरे मन में क्या है?"
"वो कोई सत्यनारायण की कथा सुनकर घर नहीं लौट रही कि मैं पूछूँ, "बता बेटी, तू रात भर कहाँ रही और तेरे मन में क्या है?"
"अच्छी बात है। कुछ सोचेंगे।"
"ऐसा तो तुम कई बार कह चुके हो अब मुझे कुछ करना होगा।"
"शादी की संस्था से तुम्हारी आस्था उठ गई है क्या मनु?"
मैंने मैनहैटन में अकेले डिनर पर पूछा,
"नहीं ममा। पूरी आस्था है।"
"तो फिर?"
"मुझे कुछ मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझाना है अभी।"
"ज़ाहिर है कि तुम मुझा भी नहीं बताना चाहते हो अब। खैर, तुम्हारी मर्जी। मुझे यह कहने तो दोगे कि तुम्हारे पापा और मेरी रज़ामंदी लेना उन मुद्दों में शामिल मत करो। हमें लीसा के साथ तुम्हारी शादी से खुशी होगी।"
"यह बता कर आपने मुझ पर मेहरबानी की है।" मनु हंस पड़ा "लेकिन मुद्दा नहीं है मेरे लिए, मैं समझता हूँ।"
"तो जो है उसे सुलझा लो मनु। हम किसी काबिल हों तो हमें बता देना।"
शनिवार के दिन हाँफते-कूदते घर के अंदर घुसते ही शान्तनु और लीना ने अभी पूरी तरह से कदम फर्श पर रखे भी न होंगे कि शान्तनु ने ऐलान किया,
"लीना मां बनने वाली है। शी इज प्रेगनैंट।"
मैंने लीना को गले से लगाया तो उसकी बाहों का घेरा देर तक मुझे कसे रहा।
"कब पता लगा?"
"आज ही सुबह कनफर्म हुआ। सीधे यहाँ आए हैं। फिर लीना के पेरैंट्स से मिलने जाएँगे।"
"हम अभी चार महीने तक किसी को बताना नहीं चाहते," लीना ने बाहर जाते हुए मुड़ कर कहा।
उसी इतवार शाम को फोन बजा तो मनु था।
"कहाँ से बोल रहे हो?"
"लीसा और मैं यहाँ करिब्बियन में छुट्टी पर आए हुए हैं, एक हफ्ते के लिए, "उसने जिस टापू का नाम लिया वो मुझे ठीक से सुनाई नहीं दिया। सैंट जॉन्ज़ था?
"कैसी कट रही है छुट्टी?"
"बेहद खूबसूरत ममा। आप और पापा को कभी यहाँ आना चाहिए।"
"देखेंगे। अभी तुम्हारे मुँह से सुन लेते हैं। समन्दर के किनारे से बोल रहे हो या होटल से?"
"मुझे आपसे कुछ कहना है ममा।"
"मैं सांसे थामे हूँ मनु।"
"मैंने लीसा के सामने शादी का प्रस्ताव रखा है।"

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