अनुभूति

 1. 3. 2004

आज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्कहास्य व्यंग्य 

 

पिछले सप्ताह

परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत शैल अग्रवाल
घर से घर तक
और
नार्वे निवेदन के अंतर्गत प्रभात कुमार
नार्वे में भारतीय तिरंगा
के साथ

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विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप की कलम से
मंगल ग्रह का कुशल–मंगल 

°

आत्मकथा में
इस पार से उस पार से का अगला भाग
यह तो नहीं होना चाहिये था

°

समाचार में
हिन्दी की ओर एक और कदम
माइक्रोसॉफ्ट ने प्रस्तुत किया
विंडोज़ व ऑफिस हिन्दी

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कहानियों में
भारत से नीलम शंकर की कहानी
संकल्प

अम्मा का मूड जब अच्छा रहता तो अन्दर ही अन्दर उनके विदेश–प्रेम पर हंसतीं। नहीं तो पलट कर कहतीं,
"नासपीटे…अमेरिका जा अमेरिका, तुम्हारा गुजर बसर वहीं होगा। जब हमारा बनाया कढी पनगोछवा याद आयेगा तब पछताना। देशी आबोहवा में देशी तरीका ही शरीर को मजबूत बनाता है। पनैल सब्जी और ब्रेड से कितने दिन चलेगा। तुम्हारी दीदी जब आती है तो दाल, दम आलू, कढी, कोफ्ता ही मांगती है।" बडबडाती अम्मा फिर रसोई में कुछ बनाने भूनने चल देती। उनका कहना था कि चौका में आग नही बुझनी चाहिये, बुझती है दरिद्रों के यहां पर।

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होली विशेषांक

कहानियों में
भारत से ओमप्रकाश अवस्थी की कहानी
होली मंगलमय हो

दिमाग गुब्बारे–सा हल्का होकर उड़ने लगा था और कदम लड़खड़ा रहे थे तो लगा, शायद मैं भी नशे में हूं। एक ऐसा नशा जो कभी ईसामसीह के सिर जा बैठा था। गौतम बुद्ध भी उसकी चपेट में आकर राजपाट और घर–परिवार तक छोड़ बैठे थे। उसी की मादकता में गांधीजी बैरिस्टरी छोड़–छाड़कर मरते दम तक घूमते रहे थे। वह कोई मामूली नशा नहीं, वह तो सारे नशों का राजा लगता है जो एक बार चढ़ जाने के बाद फिर कभी उतरने का नाम ही नहीं लेता। कहीं उसी का नाम हमदर्दी तो नहीं। जाने भी दो। जैसे होली के तमाम रंग, वैसे ही इस समाज के भी हजारों रंग! 

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सामयिकी में
पर्व परिचय के अंतरगत होली का पारंपरिक महत्व दामोदर पाण्डेय द्वारा
लेकिन मुझको फागुन चाहिये

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मंच मचान में
प्रख्यात हास्य कवि काका हाथरसी के जीवन की एक अंतरंग झांकी विशेष रूप से होली विशेषांक के लिए
कभी सरदी कभी गरमी
अशोक चक्रधर की कलम से

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फुलवारी में
बच्चों के लिए प्रेम जनमेजय की कहानी
होली वाला रोबोट
और होली का एक सुंदर चित्र

रंगने के लिये

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9 मार्च को एक और होली विशेषांक
जिसमें प्रारंभ कर रहे हैं यू एस ए से
स्वदेश राणा का लघु उपन्यास
कोठेवाली

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!सप्ताह का विचार!
रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है
मुक्ता

 

अनुभूति में

होली, वसंत
और
शुभकामनाओं
की
ढेर सी नयी–पुरानी
कविताएं

होली विशेषांक समग्र

° पिछले अंकों से°

कहानियों में
उससे मिलनाउषा राजे सक्सेना
अमृतघटडा मीनाक्षी स्वामी
रेशमी लिहाफविनीता अग्रवाल 
विसर्जन मीरा कांत
यह जादू नहीं टूटना चाहियेसूरज प्रकाश
सुबह होती है शाम होती हैरजनी गुप्त

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प्रकृति और पर्यावरण में
प्रभात कुमार का आलेख
आसमान में चित्रकारी
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आज सिरहाने
संजय ग्रोवर का ग़ज़ल संग्रह
खुदाओं के शहर में आदमी
°

हास्य व्यंग्य में
भारतभूषण तिवारी का व्यंग्य
पहला विज़िटिंग कार्ड
°

साहित्य समाचार में
मुंबई से सूरज प्रकाश की रपट
रावी पार का रचना संसार
°

साहित्यिक निबंध में डा रति सक्सेना
की कलम से वैदिक देवताओं की
कहानियों के क्रम में
इंद्र
°

रसोईघर में स–फल व्यंजन के अंतर्गत
वसंत माधुरी

°

सामयिकी में
लोकप्रिय गायिका व अभिनेत्री सुरैया के निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि
स्वर सम्राज्ञी सुरैया

°

परिक्रमा में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत
बृजेश शुक्ला की कलम से
माघमेले में डूबा प्रयाग

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन   
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