SHUSHA HELP /लेखकों से/ UNICODE  HELP
केवल नए पते पर पत्रव्यवहार करें


9. 8. 2007

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घाकविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व-पंचांग
घर–परिवार दो पल नाटकपरिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक
विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरणसाहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य
हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह-
समकालीन कहानियों में
भारत से तरुण भटनागर की हैलियोफ़ोबिक
कैंप भयंकर और निर्दयी लोगों की बस्ती था। ग़रीबी और भुखमरी के कारण पागल और लुटेरे बने निर्मम लोग। जहाँ किसी का मरना खुशी लाता था।लोग हत्या और लूट के लिए हमेशा तैयार रहते। इस कैंप को देखकर यकीन करना मुश्किल था, कि ये सब लोग अच्छे घरों से थे। शांत और अच्छे घरों वाले लोग, जो छोटी-छोटी इच्छाएँ पालते हैं और यकीन करते हैं कि वे और उनके माँ-बाप, भाई-बहन...कभी मरेंगे नहीं।पर यहाँ उनकी औरतों और बच्चों को कुत्तों की भाँति लाठियों से पीटकर मार डाला जाता था और उन्हें इससे ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता था। कुछ लोग आत्महत्या कर लेते, ज़्यादातर नये लोग...पर अधिकतर ऐसा नहीं कर पाते थे।

*

हास्य-व्यंग्य में
वीरेंद्र जैन बता रहे हैं ख़ास बनने का नुस्ख़ा
कुछ लोग जीते जी महानता को प्राप्त हो जाते हैं। कुछ लोगों को उसके लिए मरना पड़ता है। मर जाने पर प्रत्येक का महान हो जाना स्वाभाविक होता है। भले ही महानता की सीमा श्मशान घाट और शोक सभा की समय सीमा तक ही रह पाती हो। कुछ की स्वाभाविक मौत तक समाचार बन जाती है भले ही वह चार पंक्तियों वाले संक्षिप्त समाचार तक ही सीमित हो जिसमें देश में उनके नहीं रहने व उम्र का उल्लेख होता है और दो में उनके नामों का ज़िक्र जो उनकी मौत पर दुख व्यक्त करने के लिए ज़िंदा बने हुए हैं व खुश हैं क्योंकि उनका नाम दुख व्यक्त करने वालों की सूची में छप गया है। अख़बार वालों ने किसी भी कारण सही नाम तो छापा।

*

दृष्टिकोण में महेशचंद्र द्विवेदी के विचार
ग्लॉस्गो धमाके के बाद अप्रवासी भारतीयों की स्थिति

बीसवीं सदी के छठे एवं सातवें दशक में प्रतियोगी परीक्षाओं में सबसे ज़्यादा पूछा जाने वाला सवाल होता था 'भारत से विदेश को होने वाला ब्रेन-ड्रेन भारत के भविष्य के लिए हानिकारक है या नहीं।' इस बारे में तभी से मेरा मत रहा है कि यह लाभदायक है। इसका कारण यह था कि भारत में ब्रेन की कोई कमी नहीं थी, परंतु उसके समुचित उपयोग के अवसर इतने ख़राब थे कि यहाँ जो ब्रेन बेकार साबित होता था, वही विदेश जाकर कमाल दिखाता था। भारत के मेडिकल कॉलेजों, आई.आई.टी., आई.आई.एम. में प्रशिक्षित ब्रेन्स ने आज पाश्चात्य देशों में भारत की धाक जमा दी है।

*

संस्कृति में कटरपंच दंपत्ति की लेखनी से
ब्रज में सावन के हिंडोलों की छटा
ब्रज की संस्कृति निराली है और साहित्य अनूठा है। स्वभाव से ब्रजवासी अत्यंत विनम्र और मधुर होते हैं और ऐसी ही होती है उनकी संस्कृति, उनकी भाषा और उनका व्यवहार। श्रावण मस्ती का महीना है। धरती ने जब हरी साड़ी पहन ली तो किस नवयौवना का मन नहीं मचल उठेगा। आकाश में उमड़ते, घुमड़ते और गरजते बादलों में अनेक प्रकार की भावनाएँ प्रकट होती हैं। सावन के महीने में नवविवाहित महिलाओं को अपने मायके जाने की परंपरा ब्रज क्षेत्र की संस्कृति में अधिक परिलक्षित होती है, जो आज भी अनवरत रूप से चली आ रही है।

*

आज सिरहाने मधुलता अरोरा प्रस्तुत कर रही हैं
तेजेंद्र शर्मा का कविता संग्रह ये घर तुम्हारा है
चर्चित कथाकार तेजेंद्र कथाकार ही नहीं हैं बल्कि कविता, ग़ज़ल के क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति पूरी शिद्दत से दर्ज कराते हैं। उनके अनुसार गद्य और पद्य में अंतर दिखना चाहिए। यही वजह है कि उनका मन तुकांत कविताओं और ग़ज़लों में खूब रमता है। प्रवासी लेखकों की भाँति वे सिर्फ़ अतीत की ही बात नहीं करते, बल्कि जिस देश में वे रह रहे हैं, वहाँ की गतिविधियों से भी वास्ता रखते हैं और ये सभी सरोकार उनके कविता - संग्रह ये घर तुम्हारा है में खुलकर सामने आये हैं। कविता एवं ग़ज़लों की सरल भाषा सहज ही पाठकों को एक बार में ही पूरी पुस्तक पढ़ने के लिए विवश कर देती है।

 

सजीवन मयंक, गिरीश कुमार त्यागी, अमित कुमार सिंह, राजश्री और अजय यादव की नई रचनाएँ

पिछले सप्ताह
1 अगस्त 2007 के अंक में
*

समकालीन कहानियों में
भारत से मिथिलेश्वर की कहानी
बारिश की रात

*

घर परिवार में
पूर्णिमा वर्मन के साथ
छाता लेकर निकले हम

*

ललित निबंध में डॉ महेश परिमल की
पहली बारिश

बारिश ने इस मौसम पर धरती का आँचल भिगोने की पहली तैयारी की। प्रकृति के इस दृश्य को देखने के लिए मैं अपने परिवार के साथ अपने परिसर की छत पर था। बारिश की नन्हीं बूँदों ने पहले तो माटी को छुआ और पूरा वातावरण उसकी सोंधी महक से भर उठा। ऐसा लगा मानो इस महक को हमेशा-हमेशा के लिए अपनी साँसों में बसा लूँ। उसके बाद शुरू हुई रिमझिम-रिमझिम वर्षा। मैंने अपनी खुली छत देखी। विशाल छत पर केवल हम चारों ही थे। पूरे पक्के मकानों का परिसर। लेकिन एक भी ऐसा नहीं, जो प्रकृति के इस दृश्य को देखने के लिए अपने घर से बाहर निकला हो।
*

साहित्यिक निबंध में
निर्मला जोशी कर रही हैं
पावस-धरती के काग़ज़ पर छंदों की रचना

*

महानगर की कहानियों में
अर्बुदा ओहरी की लघुकथा
बरसात

*

अन्य पुराने अंक
*

सप्ताह का विचार
सज्जन पुरुष बादलों के समान देने के लिए ही कोई वस्तु ग्रहण करते हैं।
--कालिदास

अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़ें

Click here to send this site to a friend!

नए अंकों की नियमित
सूचना के लिए यहाँ क्लिक करें

आज सिरहानेउपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग
घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक
विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरणसाहित्य समाचार
साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्य

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org