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 २. ११. २००९

सप्ताह का विचार- हर चीज़ की कीमत व्यक्ति की जेब और ज़रूरत के अनुसार होती है और शायद उसी के अनुसार वह अच्छी या बुरी होती है। -संतोष गोयल

अनुभूति में- वेद प्रकाश शर्मा 'वेद', जतिन्दर परवाज़, रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति,  डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय 'नन्द' और नरेन्द्र मोहन की रचनाएँ।

कलम गहौं नहिं हाथ- ३० अक्तूबर का दिन विश्व में गुलाबी रिबन दिवस के रूप में जाना जाता है जब हजारों की भीड़ गुलाबी रंग से सजधजकर... आगे पढ़ें

रसोई सुझाव- एक प्याले पानी भर कर उसमें नीबू डालकर फ्रिज में रखें तो वे लगभग तीन महीने तक ताज़े बने रहते हैं।

पुनर्पाठ में - १६ सितंबर २००१ को पर्यटन के अंतर्गत प्रकाशित सुचिता भट से जानें- फ्रांस- सपनों के भीतर का सच।

क्या आप जानते हैं? कि विश्व का सर्वोच्च क्रिकेट मैदान भारत में हिमाचल प्रदेश के चैल शहर में समुद्र की सतह से २४४४ मीटर की ऊँचाई पर हैं।

शुक्रवार चौपाल- आज की चौपाल लंबी बातचीत के साथ समाप्त हुई। बातचीत का विषय ऐसी संभावना की खोज था जहाँ नाटकों का मंचन... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-४ पर विशेष टिप्पणियाँ आरंभ हो गयी हैं साथ ही शुरू हो गया है कार्यशाला- ५ के गीतों का प्रकाशन।


हास परिहास

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
रूपसिंह चन्देल की कहानी हादसा

पर्यावरण के संबन्ध में उसे इंडिया इंटरनेशनल सेण्टर में वक्तव्य देना था। हारवर्ड विश्वविद्यालय से 'पर्यावरण प्रबन्धन' की उपाधि लेकर जब एक साल पहले वह स्वदेश लौटा, सरकार के पर्यावरण विभाग ने उसकी सेवाएँ लेने के लिए कई प्रस्ताव भेजे। लेकिन स्वयं कुछ करने के उद्देश्य से उसने सरकारी प्रस्तावों पर उदासीनता दिखाई। वह जानता है कि ऐसी किसी संस्था से बँधने से उसकी स्वतंत्रोन्मुख सोच और विकास बाधित होंगे। वह स्वयं को अपने देश तक ही सीमित नहीं रखना चाहता, बावजूद इसके कि वह अपना सर्वश्रेष्ठ देश के लिए देना चाहता है। पर्किंग से गाड़ी निकालते समय पिता ने पूछा, ''अमि, (उसका पूरा नाम अमित है ) कब तक लौट आओगे?''  पूरी कहानी पढ़ें...
*

प्रेम जनमेजय का व्यंग्य
अँधेरे के पक्ष में उजाला
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक
नचे मुंडे दी माँ का दूसरा भाग
*11

वेद प्रताप वैदिक का दृष्टिकोण
इंदिरा गांधी ने बनाया भारत को महाशक्ति
*

नरेन्द्र पुंडरीक का आलेख
जीवन सत्य के उद्घोषक कवि केदारनाथ

1

पिछले सप्ताह-
 

हरिहर झा का व्यंग्य
भारतीय छात्र- जाएँ भाड़ में
*

स्वदेश राणा का धारावाहिक संस्मरण
नचे मुंडे दी माँ का पहला भाग
*11

रंगमंच में स्वयं प्रकाश का आलेख
हिंदी नाटक कहाँ गया

*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

*

कथा महोत्सव में पुरस्कृत
शैली खत्री की कहानी बादल छँट गए

आँख के कोने से एक बूँद आँसू निकल आया। नहीं, ये आँसू दुख के नहीं बेबसी के हैं। परिस्थितियों का क्या किया जाए। सच, समय और परिस्थितियाँ बड़ी बलवान होती हैं। ये अपने इशारों पर नचा कर रख ही देती हैं। सपने तोड़ती नहीं हैं तो सपने पूरे भी नहीं होने देती। उन सपनों का बजूद आँखों तक ही सिमटा कर रख देती हैं। फिर धीरे-धीरे बहुत कुछ समा जाता है आँखों में। वे प्यारे, मासूम और महत्वपूर्ण से लगने वाले सपने एक याद बनकर रह जाते हैं। एक ऐसी याद जिन पर न मुस्कुराया जाए और जिन्हें न भूलाया ही जा सके। सोचता-सोचता दीप रुक गया। पूरी कहानी पढ़ें...

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

   
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