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७. ६. २०१०

सप्ताह का विचार- अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है। -चंद्रशेखर वेंकट रमण

अनुभूति में-
अमित कुलश्रेष्ठ, रावेंद्र रवि, वर्तिका नंदा,  भावना कुँअर और गोपाल कृष्ण सक्सेना पंकज की रचनाएँ।

सामयिकी में- देश के तालाबों को पुनर्जीवन देनेवाले अनुपम मिश्र के के विषय में सुनील मिश्र का आलेख- तालों के तारनहार अनुपम मिश्र

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव - प्रतिदिन नाखूनों पर जैतून के तेल की हल्की मालिश करने से नाखूनों का टूटना रुक जाता है।

पुनर्पाठ में- १ जून २००१ को पर्व परिचय के अंतर्गत प्रकाशित टीम अभिव्यक्ति का आलेख- जून माह के पर्व।

क्या आप जानते हैं? ईसा से ७०० वर्ष पूर्व स्थापित तक्षशिला विश्वविद्यालय में १०,५०० से अधिक विद्यार्थी ६० से अधिक विषयों की शिक्षा प्राप्त करते थे।

शुक्रवार चौपाल- इस सप्ताह चौपाल में रूहे इश्क का पूर्वाभ्यास जारी रहा। पहले इसका मंचन ११ जून को होने वाले था लेकिन कुछ कारणों से... आगे पढ़ें

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-८ की सभी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। जल्दी ही नए विषय की घोषणा का समय आनेवाला है।


हास परिहास
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सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
मथुरा कलौनी की कहानी बिलौरी की धूप

यह रेस्तराँ एक जीर्ण बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर है। नाम है सागर। खुली बाल्कनी में बैठने से नीचे की सड़क और सड़क के उस पार की गतिविधियों का नजारा लिया जा सकता है। नीचे सड़क, सामने दो सिनेमा हाल और दो सिनेमा हालों के बीच एक बहुत बड़ा शापिंग सेन्टर, स्थानीय लोगों और सैलानियों की मिलीजुली भीड़। खोमचेवालों की चिल्लपों और लोगों का शोरगुल। सड़क पर छोटी-बड़ी गाडियों की घुरघुर तथा हाड़ कँपा देनेवाले हॉर्न। परसों इसी शोर ने उसकी आवाज को भागीरथी तक नहीं पहँचने दिया था। उसने कितनी आवाजें दीं पर इस शोर में उसकी आवाज खो कर रह गई थी। लेकिन आवाज पहुँच भी जाती तो क्या होता! वह अपना निर्णय थोड़े ही बदलती। इतना तो वह उसे जानता ही था। पर पता नहीं क्यों चंदर को ऐसा लग रहा था कि यदि वह यह जान पाती कि चंदर पीछे से आवाज दे रहा है तो अच्छा होता।...  पूरी कहानी पढ़ें
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डॉ. नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
अपहरण
 
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डॉ. गीता शर्मा का दृष्टिकोण
खोज खोई हुई खुशी की
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डॉ. विनोद गुप्ता का आलेख
फलों का राजा आम
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गृहलक्ष्मी से जानें
मुखौटों का महत्त्व

पिछले सप्ताह

अनूप शुक्ला का व्यंग्य
ग्रीष्म ऋतु कुछ नए बिंब
 
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मोहन अवस्थी का संस्मरण
अविस्मरणीय पदुमलाल पन्नालाल बख्शी
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रामचंद्र सरोज का आलेख
संबोधि का पर्व : बुद्धपूर्णिमा

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समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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साहित्य संगम में सरोजिनी साहू की
उड़िया कहानी का हिंदी रूपांतर- प्रतिबिंब

जब वे पहुँचे थे, तब नीपा अपनी दिनचर्या में अत्यंत व्यस्त थी। एक हाथ में उसके टोस्ट था, तो दूसरे हाथ में पानी का गिलास। डाइनिंग-टेबल के पास खडी होकर, वह किसी भी तरह टोस्ट को गटक लेना चाहती थी। इस प्रकार उसने सुबह का नाश्ता खत्म कर लिया। फिर शेल्फ से निकाल कर चप्पलें पहन ली, हाथ-घड़ी बाँध ली, नौकरानी को दो-तीन कामों के बारे में आदेश भी दे दिये और सोने के कमरे का ताला भी लगा दिया। अब वह सोच रही थी कि घर से निकल कर ड्यूटी पर चले जाना चाहिये। ऐसे हड़बड़ी के समय में शरीर की तुलना में मन कुछ ज्यादा ही सक्रिय होता है। मन के साथ ताल-मेल मिलाकर काम करते समय अगर कोई उसे रोक दे, यहाँ तक कि अगर टेलिफोन की घंटी भी बज उठे तो उसके लिये असहनीय हो जाता है, वह तुरंत ही...  पूरी कहानी पढ़ें

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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