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१७. १. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
1
शंभुनाथ सिंह, कृष्ण कन्हैया, वर्तिका नंदा, सुधा गुप्ता और डॉ. शीला मिश्र की रचनाएँ।

- घर परिवार में

सप्ताह का व्यंजन- मारिशस की सुप्रसिद्ध पाक विशेषज्ञ मधु गजाधर की स्वास्थ्यवर्धक रसोई से- दही से बना स्वादिष्ट चीज़ स्प्रेड

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- नवजात शिशु का तीसरा सप्ताह

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- मुहाँसों से मुक्ति

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १५ जनवरी से ३० जनवरी २०११ का भविष्य फल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- कुकी- किसी जालघर द्वारा आपके ब्राउज़र में रखी गयी छोटी सी जानकारी अथवा सूचना को कुकी कहते हैं। ...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला १३ के "सड़क पर" विषय से संबंधित रचनाएँ आने लगी हैं। जल्दी ही इनका प्रकाशन शुरू हो जाएगा।... आगे पढ़ें...

वर्ग पहेली- ०१२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपालइस पूरे सप्ताह आबूधाबी और दुबई में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी दिवस के कार्यक्रमों में चौपाल के सदस्य व्यस्त रहे। ... आगे पढ़ें

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
जीवन सिंह ठाकुर की कहानी सरासर

जिन हालात में मुझे लगभग अचानक दिल्ली के लिए रवाना होना पड़ रहा था। वह बेहद त्रासद था और लग रहा था, अब मेरे जीवन में लम्बे समय तक शिकारी कुत्तों की तरह पीछा करने वाली परेशानियों का एक लम्बा सिलसिला शुरू हो जाएगा। दरअस्ल हुआ यह था कि दिल्ली के मुख्यालय से अप्रत्याशित संदेश मेरे उच्चाधिकारी के पास आया था कि मुझे किसी खास वजह से मुख्यालय में अविलम्ब उपस्थित होना है। आदेश के न पालने की स्थिति में विभाग द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही भी हो सकती है। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि मुख्यालय ने मेरी ताबड़तोड़ उपस्थिति के फरमान अचानक जारी कर दिये। पिछले बीस साल के सेवाकाल में मुझसे अपने दायित्वों को विधिवत निभाने में कहीं कोई रत्ती भर भी चूक नहीं हुई थी। किसी तरह की कोई आर्थिक अनियमितता भी नहीं हुई। पूरी कहानी पढ़ें...
*

देवेन्द्र इन्द्रेश का व्यंग्य-
वी आई पी कबूतर
*

डॉ. ए. के. अरुण से जानें
होमियोपैथी की विकास यात्रा

*

प्रभात रंजन की पड़ताल
हिंदी भाषा और साहित्य में चिट्ठाकारिता की भूमिका
*

पुनर्पाठ में पद्मप्रिया का आलेख
अनूदित साहित्य एवं पठनीयता

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पिछले सप्ताह-

1
आकुल की लघुकथा-
एक करोड़ का सवाल
*

साल भर के भारतीय पर्वों की
जानकारी के लिये- पर्व पंचांग

*

प्रौद्योगिक में रश्मि आशीष से जानें
खोज युक्तियों का प्रयोग

*

पुनर्पाठ में प्रकृति एवं पर्यावरण के अंतर्गत
एन.डी तिवारी का आलेख- चिर सखा है बाँस

*

समकालीन कहानियों में भारत से
सुधा अरोड़ा की कहानी पीले पत्ते

टक्......टक्.......और एक पीला पत्ता टूटा। फिर एक और। फिर एक और।
जनवरी महीने की उस सुबह में उगते सूरज की लाली थी। हरे भरे दरख्तों और अपने कद के हरे पौधों के बीच उनकी उँगलियाँ बड़े एहतियात से सूखे हुए पीले पत्ते ढूँढ लेतीं और उन पत्तों को बड़े प्यार से समेट कर अपने बाएँ हाथ में फँसी थैली में डाल देतीं। पिछले एक साल से मैं उन्हें लगभग रोज देख रही थी। सफेद स्याह रंग के बेतरतीब से बिखरे बालों के बीच लुनाई लिए चेहरे पर खोयी खोयी सी आँखें जैसे ढूँढ कुछ और रही हों और अचानक पीले पत्तों पर अटक गई हों। उन्हें जरा सा ठिठक कर मैं देखती, मुस्कुराती और आगे बढ़ लेती। बगीचे के गेट पर खड़ा वाचमैन अपनी कनपटी पर दाहिनी हथेली की तर्जनी गोल गोल घुमाकर अजीब तरह से होंठों को सिकोड़ता हुआ मुझे इशारे से बताना चाहता कि... पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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