अभिव्यक्ति-चिट्ठा
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६. ६. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
भारतीय साहित्य और संसकृति सो जुड़े बरगद के वृक्ष पर केन्द्रित अनेक विधाओं में रची काव्य रचनाएँ।

- घर परिवार में

मसालों का महाकाव्य- देश-विदेश में लोकप्रिय चटपटे मिश्रणों के बारे में प्रमाणिक जानकारी दे रहे हैं शेफ प्रफुल्ल श्रीवास्तव। इस अंक में- पेस्तो मार्सालीज़

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का २३वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- गले में खराश के लिये जीरा

अभिव्यक्ति का २० जून का अंक टेसू या पलाश विशेषांक होगा। इस अंक के लिये हर विधा में गद्य रचनाओं का स्वागत है। रचनाएँ हमें १० जून से पहले मिल जानी चाहिये। पता इसी पृष्ठ पर ऊपर है।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- एम एस ऑफिस के मुफ्त और मुक्त विकल्प के लिये ओपेन ऑफिस का प्रयोग किया जा सकता है। इसमें एम एस ऑफिस

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- १६ में नवगीतों का प्रकाशन प्रारंभ हो गया है। चनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं

वर्ग पहेली-०३२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपालपिछले सप्ताह वार्षिक समारोह के बाद इस चौपाल में छुट्टी का सा वातावरण रहा। उपस्थित सदस्य थे प्रकाश सोनी  आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य व संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
अशोक गुप्ता की कहानी- शोक वंचिता

उस समय रात के डेढ़ बज रहे थे...
कमरे की लाईट अचनाक जली और रौशनी का एक टुकड़ा खिड़की से कूद कर नीचे आँगन में आ गिरा।
लाईट दमयंती ने जलाई थी। वह बिस्तर से उठी और खिड़की के पास आ कर बैठ गई। उसके बाल खुले थे, चेहरा पथराया हुआ था लेकिन आँखें सूखी थीं।
दमयंती ने खिड़की के बाहर खिड़की के बाहर अपनी निगाह टिका दी। चारों तरफ घुप्प अँधेरा था, लेकिन दमयंती को भला देखना ही क्या था अँधेरे के सिवाय? एक अँधेरा ही तो मथ रहा था उसे भीतर तक...
नीचे आँगन में दमयंती की सास के पास दमयंती का पाँच बरस का बेटा सोया हुआ था। वहीं, अपने घर से आई हुई दमयंती की छोटी बहन अरुणा भी सोई हुई थी।
अँधेरे को भेद कर देखते हुए दमयंती ने सीढियों पर कदमों की आहट सुनी। अरुणा का आना जान कर भी दमयंती ने सिर नहीं उठाया। निरंतर बाहर ही देखती रही। अरुणा बे आहट आकर कुर्सी पर बैठ गई। पूरी कहानी पढ़ें...

*

नंदलाल भारती की लघुकथा
लैपटॉप
*

एम.एस. मूर्ति से रंगमंच पर
आंध्र प्रदेश की नाट्य शैलिया
*

विवेक मांटेरो से जानें
परमाणु ऊर्जा- आवश्यकता या राजनीति 
*

पुनर्पाठ में राजेन्द्र प्रसाद सिंह का आलेख
भोजपुरी में नीम आम और जामुन

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पिछले सप्ताह-

1
रवीन्द्र खरे की लघुकथा
बरगद का दर्द
*

राजकुमार मलिक का आलेख
समय का समरूप बरगद

*

पुनर्पाठ में कन्हैयालाल चतुर्वेदी का आलेख
क्रांतिकारी घटना का साक्षी वह बरगद 
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

*

समकालीन कहानियों में भारत से
पुष्पा तिवारी की कहानी- सावित्री का व्रत

सावित्री एक लड़की थी।
वह अपने को अनोखी लड़की समझती थी। वह लड़की थी-प्रेम करने के लिये क्या यही काफी नहीं था? उसमें अनोखी लड़की हो जाने का अहसास संकोच सहित ठहर गया था। तबसे वह खुद में कुछ ढूँढ़ने लगी। अचानक उसे अपने में एक लड़के के लिए प्रेम मिला। वह उसके लड़की होने के अहसास को रोज सुबह छेड़ने लगा। सावित्री के साथ उसका जीवन भी रहता था। जीवन दिनचर्या के हवाले था। दिनचर्या सूरज की पहली किरण के साथ लड़की को उसके घर आकर जगाती। रोज शाम वही किरण उसके घर से चली जाती। सावित्री और किरण दिन भर साथ रहते लेकिन उसे लगता कि किरण उससे सुबह और शाम केवल एक एक क्षण के लिये मिलती है। शाम के बाद सावित्री को सुबह का इन्तजार होता। उसे चन्द्रमा की किरणों में विश्वास नहीं था। वैसे भी चन्द्रमा की किरणों में रोज उगने के लिए लगन और निष्ठा का पूरी कहानी पढ़ें...

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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