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१०. ६. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
आशीष देवल, अरुण तिवारी अनजान, विनोद पासी हंसकमल, ज्योतिर्मयी पंत और उषा वर्मा की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत गर्मी के मौसम में लौकी के व्यंजनों की विशेष शृंखला के क्रम में प्रस्तुत है- लौकी की लौज (बर्फी)

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- पुरानी दराज का नया उपयोग

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- जन्मदिवस

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- २७ के नवगीतों का प्रकाशन पूरा हो गया है। जल्दी ही अगली कार्यशाला की सूचना यहाँ प्रकाशित होगी।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- १६ मार्च २००४ को प्रकाशित शुभांगी भड़भड़े की मराठी कहानी का हिंदी रूपांतर सारांश

वर्ग पहेली-१३७
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में भारत से
विकेश निझावन की कहानी कुर्सी

पहले तो यह स्पष्ट कर दूँ कि यह कोई पॉलिटिकल कहानी नहीं है। दरअसल इस कहानी का शीर्षक ही ऐसा है। और फिर कुर्सी और राजनीति आज के वक्त में पर्यायवाची बन चुके हैं। लेकिन यह कुर्सी उन राजनेताओं की नहीं है जिसे हर कोई हथियाने को तैयार रहता है। यह कुर्सी तो अम्मा की है। इस कुर्सी को हथियाना नहीं पड़ा और इसको हथियाने जैसी कोई बात भी नहीं थी। यह कोई ओहदा तो है नहीं कि इसको मिलते ही व्यक्ति बहुत ऊँचा हो जाए। मामूली बेंत की कुर्सी है यह। बस इतना है कि बहुत आरामदायक है। किसी वक्त लालाजी ने घर पर ही बनवाई थी। एक वक्त था जब गली–मुहल्लों में लोहे, लकड़ी और इस तरह के काम करनेवाले घूमा करते थे। एक रोज़ लालाजी ने ही आवाज देकर रोक लिया था। अम्मा ने तो रोका था– पहले क्या घर में कम कबाड़ जमा कर रखा है।’ लेकिन लालाजी ने अनसुनी करते हुए मिस्त्री को सामने ही बिठा यह कुर्सी बनवाई थी। लालाजी ने बढ़ई को हिदायत दी थी, ‘भई काम बारीकी से और प्यार से करना। भले ही दो पैसे ज्यादा लग जाएँ।’...आगे-
*

अनुज खरे का व्यंग्य
सरकारी अय्यारों की गाथा
*

अमन दलाल का संस्मरण
उनसे मुलाकात वो आखिरी भी न हुई
*

ओमप्रकाश तिवारी का रचना प्रसंग
मुंबई के नवगीतकार
*

पुनर्पाठ में डॉ.सूरज जोशी के साथ पर्यटन
न्यूजीलैंड का नैसर्गिक सौन्दर्

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पिछले सप्ताह-


प्रेरक प्रसंग में
लघुकथा- धन-सफलता-प्रेम
*

सुबोध कुमार नन्दन का आलेख-
विक्रमशिला-
-विश्व-का-दूसरा-आवासीय-विश्वविद्यालय
*

भावना सक्सेना की कलम से-
कुछ कतरे कंत्राक के
*

पुनर्पाठ में रूपम मिश्र
का संस्मरण- राग यात्री
*

वरिष्ठ लेखकों की बहुचर्चित कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में कामतानाथ की कहानी- मकान

चाभी ताले में फँसा कर उसने उसे घुमाया तो उसने घूमने से कतई इनकार कर दिया। उसने दुबारा जोर लगाया परंतु कोई परिणाम नहीं निकला। अपनी जेबें टटोलना शुरू कर दीं। ऊपर वाली जेब में उसे स्टील का बाल प्वाइंट पेन मिल गया। उसने उसे जेब से निकाल कर चाभी के माथे में बने सूराख में डाल कर, मुट्ठी की मजबूत पकड़ में लेकर पेंचकस की तरह जोर से घुमाया। खटाक की एक आवाज के साथ ताला खुल गया। कुंडी खोलने में भी उसे काफी परेशानी हुई। जिन दिनों वह यहाँ रहता था शायद ही कभी यह कुंडी बंद हुई हो। इसीलिए उसे हमेशा ही बंद करने और खोलने, दोनों में ही, परेशानी होती थी। कुंडी खोल कर उसने दरवाजे में जोर का धक्का दिया। दरवाजे के पल्ले काफी मोटे और भारी थे। उनमें पीतल के छोटे-छोटे फूल जड़े थे, जिनमें छोटे-छोटे कड़े लगे थे, जो दरवाजा खुलने-बंद होने में एक अजीब जलतरंगनुमा आवाज करते थे। दरवाजा खोल कर वह दहलीज में आ गया। घुसते ही उसने देखा, फर्श पर कुछ कागज आदि पड़े थे। उसने झुक कर उन्हें उठा लिया।...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि

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