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१६. १२. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
भारत भूषण, संजू शब्दिता, दिनकर कुमार, अश्विनी कुमार विष्णु, अनिल वर्मा और रजा किरमानी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- सर्दियों के मौसम की तैयारी में गरम शोरबों की शानदार यात्रा का आनंद- इमली की रसम।

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- पुरानी बेड साइड टेबल से बना बेटी का रसोईघर

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- बागबानी

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- नई कार्यशाला- ३१ के विषय- नव वर्ष के स्वागत पर रचनाओं का प्रकाशन शुरू हो गया है। टिप्पणी के लिये देखें- विस्तार से...

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है १६ फरवरी २००६ को प्रकाशित रवीन्द्र बत्रा की कहानी- 'जिंदगी जहाँ शुरू होती है'  

वर्ग पहेली-१६४
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

साहित्य संगम के अंतर्गत टी.श्रीवल्ली राधिका की
तेलुगु कहानी का हिंदी रूपांतर लहरें जहाँ टूटती हैं

“अर्चना कल ही आ रही है।” भवानी ने बेचैनी के साथ सोचा। उस दिन जागने के बाद उसका इस प्रकार सोचना यह साठवीं बार था। दो वर्ष बाद अपने अभिन्न मित्र से मिलने की बात उसके मन को अशांत कर रही थी।
‘अभिन्न मित्रता!', हाँ, अपनी मित्रता के प्रति उन दोनों की भावना वही है। कालेज में उनकी पहली भेंट, उन दोनों के लिए आज भी एक अविस्मरणीय घटना है। तीन वर्ष का कालेज जीवन, हास्टल, साथ मिलकर देखी गयीं फ़िल्में, पढ़ी हुई पुस्तकें, प्रत्येक घटना, उनकी मित्रता को मज़बूत बनाने में सहायक ही रही। कभी भी... किसी भी परिस्थिति में दोनों की प्रतिक्रियाएँ एक जैसी होती थीं। परिहास में झगड़ने के लिए भी उनके बीच कभी मतभेद नहीं होता था।
“आपके जीवन की अद्भुत घटना कौन सी है?” यदि भवानी से कोई पूछ बैठे तो शायद वह एक ही उत्तर देगी - “ठीक मेरी तरह सोचने वाली मित्र का होना।”
डिग्री एग्ज़ाम्स समाप्त होने की देरी थी कि अर्चना का विवाह हो गया। वे इंजीनियर थे। विवाह के समय अमेरिका में थे। आगे-

*

रतनचंद जैन का प्रेरक प्रसंग
श्रम और दान
*

बालेन्दु शर्मा दाधीच का आलेख
कहीं हैक न हो जाए फेसबुक खाता
*

डॉ. शरद पगारे का निबंध
मालवा की ऐतिहासिक प्रणय कथाएँ
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पुनर्पाठ में-गीता बंधोपाध्याय का संस्मरण
क्या अधिकार था तुम्हें अमृत

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पिछले सप्ताह-


विनय मोघे का व्यंग्य
पाठ्यक्रम बाबागिरी का
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नचिकेता का रचना प्रसंग
समकालीन गीतों में संवेदना के विकास का स्वरूप
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सुधा अरोड़ा की श्रद्धांजलि
चंद्रकिरण सौनरेक्सा की जयंती पर
*

पुनर्पाठ में-अर्बुदा ओहरी के
साथ चलें फुटबाल की दुनिया में

*

समकालीन कहानियों में यू.के. से
चंद्रकिरण सौनरेक्सा की कहानी हिरनी

काली इटैलियन का बारीक लाल गोटेवाला चूड़ीदार पायजामा और हरे फूलोंवाला गुलाबी लंबा कुर्ता वह पहने हुई थी। गोट लगी कुसुंभी (लाल) रंग की ओढ़नी के दोनों छोर बड़ी लापरवाही से कंधे के पीछे पड़े थे, जिससे कुर्ते के ढीलेपन में उसकी चौड़ी छाती और उभरे हुए उरोजों की पुष्ट गोलाई झलक रही थी। अपनी लंबी मजबूत मांसल कलाई से मूसली उठाए वह दबादब हल्दी कूट रही थी। कलाई में फँसी मोटी हरी चूड़ियाँ और चाँदी के कड़े और पछेलियाँ बार-बार झनक रही थीं। उन्हीं की ताल पर वह गा रही थी -'हुलर-हुलर दूध गेरे मेरी गाय... आज मेरा मुन्नीलाल जीवेगा कि नाय।'
बड़ा लोच था उसके स्वर में। इस गवाँरू गीत की वह पंक्ति उस तीखी दुपहरी में भी कानों में मिश्री की बूँदों के समान पड़ रही थी। कुछ देर मैं छज्जे की आड़ में खड़ी सुनती रही। न उसने कूटना बंद किया और न वह गीत की पंक्ति 'हुलर-हुलर...।' धूप में पैर बहुत जलने लगे, तो मैं लौटने को ही थी कि पीछे से भाभी ने आ कर जोर से कहा ...आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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