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पर्व पंचांग   ९. ६. २००८

इस सप्ताह-
समकालीन कहानियों में भारत से
प्रियदर्शन की कहानी जो उसके पिता नहीं थे

उसके गाँव के आसपास तीन पहाड़ थे और वे गाँववालों की ज़िंदगी का, उनकी दिनचर्या का अहम हिस्सा भी थे। बहुत बचपन में वह अपने पिता को भी किसी पहाड़ की तरह ही देखता था, पास के तीन पहाड़ों की तरह अपने चारों ओर पसरे चौथे पहाड़ की तरह। फ़र्क सिर्फ़ इतना था कि गाँव के पास के तीनों पहाड़ों का रंग गहरा काला था और उसके पिता ख़ासे गोरे थे। इसलिए वे कभी-कभी बाहर के आदमी लगते थे। शहर से गाँव में आकर बसे हुए। यह एक अजीब-सी बात थी, क्योंकि उसके पिता शहर कभी नहीं आए थे। और आगे चलता हुआ जो आदमी उसे अपने पिता की तरह लग रहा था, उसे वह एक बार पिता पुकार ही लेता, मगर उसने सिर्फ़ इसलिए नहीं पुकारा कि पिता को शहर से बेहद परहेज़ था। उनको गुज़रे हुए हालाँकि पंद्रह साल हो चुके थे, फिर भी शहर से उनके परहेज़ को उसने अपने भीतर बचाकर रखा था।

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कमल चोपड़ा की लघुकथा
किराया

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कलादीर्घा में
पिता विभिन्न कलाकारों की तूलिका से

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बेजी जयसन का संस्मरण
बाबूजी

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रचना प्रसंग में पूर्णिमा वर्मन का आलेख
अपने संदर्भ अपना ख़ज़ाना

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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में मनोहर पुरी की
हॉफ पैंट में मार्निंग वॉक

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डॉ मृदुल शर्मा का साहित्यिक निबंध
दहकती धूप की काव्य-छवियाँ

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पुनर्पाठ में दर्शन सेठी की कलम से
रहिमन धागा प्रेम का

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रचना प्रसंग में पूर्णिमा वर्मन का आलेख
जन्म एक लेखक का

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समकालीन कहानियों में
भारत से राजश्री की कहानी नीचे वाली गली

बूँदाबाँदी फिर से चालू होते ही प्रियंवदा और एरिक ने अपनी अपनी छतरियाँ खोल ली। वे छतरियों को दोनों हाथों से मज‍बूती से पकड़े गिट्टी वाली कच्ची-पक्की पहाड़ी पगडंडी पर चल रहे थे। पगडंडी घाटी में कहीं जाती हुई लगती थी। बारिश तेज़ हो चुकी थी। पगडंडी प्राचीन से लगने वाले मंदिर पर खत्म हो गई। दोनों दौड़ते हुए मंदिर के अहाते में घुस गए। यह घाटी कुमारी पर्वतमाला के बीच थी, जिसका कुमारी पर्वत तीन नदियों का उद्गम स्थल था। नदियों के गिरने की आवाज़ मंदिर में नगाड़ों की भाँति आ रही थी। पहाड़ों से घिरी घाटी में घनघोर मानसून चारों ओर गहरे हरे अंधेरे का साम्राज्य, चारों ओर से पानी के गिरने की आवाज़, रह-रह कर कड़कती बिजली की जगमगाहट, सब कुछ मंदिर के खुले प्रांगण में रहस्यमय संसार की सृष्टि कर रहे थे। प्रकृति के रौद्र सम्मोहन ने दोनों को कुछ क्षणों के लिए निशब्द, निराकार कर दिया।

 

अनुभूति में- पितृ दिवस के अवसर पर २९ कविताओं का संकलन पिता की तस्वीर और यतीन्द्र राही के दस नए गीत

कलम गही नहिं हाथ
पिता अनुशासन का प्रतीक है। वह परिवार का सुरक्षा-कवच है। पिता शब्द संस्कृत की पा धातु से बना है जिसका अर्थ है रक्षा करना। वह धनार्जन कर के भोजन लाता है ताकि बच्चे के जीवन की रक्षा हो सके। वह माता के बाद संतान का दूसरा गुरू बनकर अक्षरज्ञान देता है ताकि अज्ञान के अंधकार से उसकी रक्षा हो सके। वह मार्गदर्शक बनकर संतान को जीवन यापन के गुर सिखाता है ताकि संतान सुखी और समृद्ध रहे। पिता के इस उत्तरदायित्वपूर्ण पद की गरिमा में उसका कोमल पक्ष दब सा जाता है। क्या बच्चों के प्रति प्रेम और दुलार की भावना पुरुषों में नहीं होती? आज से ५०  साल पहले की बात करें तो पिता से प्रेम करने वाले बच्चों की तुलना में पिता से डरने वालों की संख्या ज़्यादा आएगी। पिता के साथ बच्चों के मधुर पल भी कम ही होते थे। इसलिए पिता पर लिखा गया साहित्य और पिता पर बनाए गए चित्र माँ की तुलना में कम हैं। जब हम खुद माता पिता बनते हैं और अनुशासन के महत्व को समझते हैं तब पिता के प्रति डर, श्रद्धा में बदलने लगता है। समय के साथ पिता पर प्रेम की ज़िम्मेदारी बढ़ी है और माँ पर अनुशासन की। भावनात्मक रिश्तों में पिता का महत्व बढ़ा है, पिता बच्चों के दोस्त बने हैं। पिता से संतान के संबंध परिवार के घनिष्ठतम संबंधों में से है। ये संबंध ऐसे ही बने रहें, इस पर  आधुनिकता की मार न पड़े इसी कामना के साथ -पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- रंगोली

सप्ताह का विचार
पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं। --वाल्मीकि

क्या आप जानते हैं?
महाभारत विश्व का सबसे लंबा साहित्यिक ग्रंथ है।

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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