अभिव्यक्ति-चिट्ठा
पुरालेख तिथि-अनुसार। पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश  //  शब्दकोश // SHUSHA HELP // पता-


२९. ८. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
राम अधीर, मदन वात्सायायन, आशीष श्रीवास्त, प्रियंकर पालीवाल और सुभाष नीरव की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- टिक्की, कवाब व पकौड़े- बारह चटपटे और स्वादिष्ट व्यंजनों की शृंखला में इस सप्ताह प्रस्तुत है- हरा-भरा कवाब।

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का ३५वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- हृदय रोग में आँवले का मुरब्बा।

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ सितंबर से १५ सितंबर २०११ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- गूगल के ही जालपृष्ठ पर iGoogle के नाम से सैकड़ों जाल-अनुप्रयोग उपलब्ध हैं। इनमें गूगल की सभी सेवाओं के साथ ...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१७ 'शहर का एकांत' विषय पर रचनाओं का प्रकाशन अंतिम दौर चल रहा है।  

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों में से प्रस्तुत है- १ मई २००४ को प्रकाशित रवीन्द्र कालिया की कहानी— गौरैया

वर्ग पहेली-०४४
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

अपनी प्रतिक्रिया लिखें / पढ़ें

साहित्य व संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
शीला इंद्र की कहानी- गिलास

वह गिलास कोई साधारण गिलास नहीं था। फिर उसकी कहानी साधारण कैसे होती। किंतु ऐसी होगी यह किसी ने कहीं जाना था। कई पीढ़ियों की सेवा करते-करते उस गिलास पर क्या बीती कि हे भगवान! वह गिलास हमारे परबाबा जी का था। ख़ूब बड़ा सा, पीतल का गिलास बेहद सुंदर नक्काशीदार। अंदर उसमें कलई रहती थी। चाय का उन दिनों रिवाज़ नहीं था। हमारे परबाबा जी उस गिलास में भरकर जाड़ों में दूध और गर्मियों में गाढ़ी लस्सी पिया करते थे। ठंडाई बनती तो उसी में, और पानी तो उसमें पीते ही थे। वह गिलास जिसमें लगभग सेर भर दूध आता था सिर्फ परबाबा जी ही इस्तेमाल करते रहे। उनकी जिंदगी में उसमें कुछ भी पाने की जुर्रत किसी में भी नहीं थी। जैसा रोब परबाबा जी का था वैसा ही गिलास का भी था। उसको उठाने की ताव घर के किसी भी बच्चे की नहीं थी, जो उठाता वही बैठ रहता। परबाबा जी की मुझे याद नहीं। मैं दो वर्ष की थी जब वे परलोक सिधार गए। पूरी कहानी पढ़ें...
*

रतनचंद जैन का प्रेरक प्रसंग
प्रगति और अभिमान
*

ऋषभ देव शर्मा की कलम से
सच्चिदानंद चतुर्वेदी का उपन्यास `अधबुनी रस्सी'

*

डा .सुरेशचन्द्र शुक्ल "शरद आलोक" का संस्मरण
भारतीय संस्कृति के आख्याता हजारी प्रसाद द्विवेदी

*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें।

पिछले सप्ताह-

1
मनोहर पुरी का व्यंग्य
हो के मजबूर मुझे उसने उठाया होगा
*

कुमार रवीन्द्र के साथ
यात्रा एक कलातीर्थ की

*

शेर सिंह का संस्मरण
धारा के विपरीत
*

पुनर्पाठ में प्रेम जनमेजय का आलेख
व्यंग्य का सही दृष्टिकोण- हरिशंकर परसाईं

*

समकालीन कहानियों में यू.के. से
कादंबरी मेहरा की कहानी- जीटा जीत गया

सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बँटा हुआ था। उच्च श्रेणी में 'ओ' लेवल- ऑर्डिनरी लेवल, मध्य में सी. एस. ई. सर्टिफिकेट ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन और निम्न श्रेणी में रेमेडिअल यानि कमजोर जिन्हें सुधार की जरूरत हो। मुझे तीसरे दर्जे के छात्रों से निपटना था। क्लासरूम क्या था--- कबाडखाना! जितने शरारती, लफंगे, कम दिमाग छोकरे थे सब जमा थे। न उन्होंने कभी पढाई की थी, न उन्हें पढ़ना था। मर्जी से आते थे और मर्जी से उठ कर चले जाते थे। न समझ आये तो केवल शोर मचा कर, समय काट कर चले जाते थे। इनको इम्तिहान तो देना नहीं था। काम किया तो किया वरना परवाह नहीं। ऐसा नहीं था कि उनमे कोई काबिलियत नहीं थी। अगर थी तो स्कूल के लिए नहीं थी। फल तरकारी बेचने से लेकर जहाज पेंट करने तक, जमाने भर के धंधे वह गिना देते थे। पूरी कहानी पढ़ें...

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ

आज सिरहानेउपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुलेडाक-टिकट संग्रहअंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्यडाउनलोड परिसरहमारी पुस्तकेंरेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

Google
Search WWW Search www.abhivyakti-hindi.org

blog stats
आँकड़े विस्तार में
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ ०